Tuesday, October 21, 2014

अब अकेले नहीं बनेगी बात



मोदी के सुधार एजेंडे में राज्‍य सबसे कीमती कड़ी हैं। जिसे जोड़ने के लिए मोदी को, कामकाज के अपने तरीके के विपरीत, केंद्र के अधिकारों में कमी और राज्यों के रसूख में बढ़ोत्तरी करनी होगी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मेक इन इंडिया जल्द ही फलक से इसलिए उतर गया क्योंकि निवेश राज्यों में होना है और सिंगल विंडो क्लियरेंस सूबों की सरकारों से मिलेगा, केंद्र से नहीं. उद्योगों की सबसे बड़ी आस यानी गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) राज्यों के साथ असहमति के कारण ही अधर में टंगा है. आलू-प्याज की कीमतें कम होने को राजी नहीं हैं तो वजह यह है कि राज्यों ने मंडी कानून बदलने में रुचि ही नहीं ली. स्वच्छता मिशन अगर केंद्र सरकार के विभागों का कर्मकांड बनकर रह गया तो इसलिए क्योंकि स्थानीय निकायों को अधिकार देना राज्यों की जिम्मेदारी है. मोदी के सुधार एजेंडे में राज्य सबसे कीमती कड़ी हैं और अब तक यह कड़ी मजबूती से जुड़ी नहीं है. अलबत्ता, महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनावों के बाद इसे जोडऩे का मौका जरूर आ गया है. पश्चिम और उत्तर के दो प्रमुख औद्योगिक राज्यों में बीजेपी सत्ता में है। लंबे समय के बाद ऐसा हुआ है कि केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी या उसके सहयोगी दल, उत्तर और पश्चिम और मध्य भारत के उन सभी प्रमुख राज्यों की सत्ता संभाल रहे होंगे, जो अगले एक दशक में ग्रोथ का इंजन बनने वाले हैं. इसके बाद अब मोदी के लिए तेज सुधारों को टालने कोई कारण नहीं बचा है.
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