Wednesday, September 2, 2015

जीएसटी है, कोई जादू नहीं


जीएसटी में जितनी उम्मीदें पैवस्त हैंजटिलताओं व किंतु-परंतुओं का हिस्सा उनसे ज्यादा बड़ा हैउम्‍मीदों को तर्कसंगत रखने के लिए जिन्‍हें समझना जरुरी है।
ह शायद हमारी चमत्कारप्रियता का नतीजा ही है कि हम वैसे ही सोचने लगते हैं, जैसा कि सियासत या सरकारें हमसे चाहती  हैं. जैसे, जादू-टोने के कद्रदान हम हिंदुस्तानी यह समझ रहे थे कि कांग्रेस तरक्की का कोई स्विच चुरा ले गई है नई सरकार आते ही उसे फिट कर देगी और सब कुछ चमक उठेगा. ठीक उसी तरह हमें समझाया गया कि गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) लागू होते ही विकास दर छलांगे लगाने लगेगी. यह बात अलग है कि बीजेपी को भी जीएसटी में कमजोर ग्रोथ का शर्तिया इलाज, गद्दीनशीन होने के बाद ही नजर आया. इससे पहले तक जीएसटी महज एक टैक्स सुधार था, जिसमें जल्दबाजी को लेकर बीजेपी को गहरी आपत्ति थी. फिर भी सियासत को माफ किया जा सकता है. ज्यादा बड़ा अचरज यह है कि निवेशकों से विशेषज्ञ तक, सब जीएसटी की बारात में शामिल हो गए. शुक्र है कि सरकार, जब जीएसटी के बुनियादी विधेयक को पारित कराने के लिए संसद के विशेष सत्र की तैयारी कर रही है, तब इस टैक्स सुधार को लेकर तर्कहीन उत्साह की गर्द बैठने लगी है और इसे वास्तविकता की रोशनी में देखने की कोशिश शुरू हो गई है.
जीएसटी के मामले में विपक्ष और पक्ष, दोनों ही खेमों को धन्य कर चुकी बीजेपी को सरकार में आने के बाद उम्मीदों को तर्क का आधार देना चाहिए था. जीएसटी में जितनी उम्मीदें पैवस्त हैं, जटिलताओं व किंतु-परंतुओं का हिस्सा उनसे ज्यादा बड़ा है, जिन्हें न केवल जागरूक बहस के लिए समझना जरूरी है बल्कि इसलिए भी जानना चाहिए ताकि जीएसटी की राह में आने वाले झटकों और यू टर्न के लिए पहले से तैयार रहा जा सके. जैसे कि इस प्रचार को कुछ ठहर कर निगलने की जरूरत है कि जीएसटी लागू होते ही देश की विकास दर एक से दो फीसदी बढ़ जाएगी. आइएमएफ की सूचनाओं के आधार पर एम्बिट कैपिटल का एक ताजा अध्ययन साबित करता है कि इनडायरेक्ट टैक्स सुधार और आर्थिक ग्रोथ का कोई सीधा रिश्ता नहीं है.
1986 से लेकर 2000 के बीच दुनिया के चार अलग-अलग देशों में जीएसटी लागू हुआ था. न्यूजीलैंड ने 1986 में जीएसटी अपनाया और 1989 में इसकी दर बढ़ाई. ऑस्ट्रेलिया में 2000 में जीएसटी आया जबकि कनाडा में 1991 में. कनाडा ने 2006 और 2008 में इसकी दरें बदलीं. थाईलैंड में 1991 में एकमुश्त जीएसटी लागू हुआ. इन चारों देशों में केवल न्यूजीलैंड ऐसा था जहां जीएसटी के बाद ग्रोथ तेज हुई. शेष तीन देशों में ग्रोथ में गिरावट रही. विशेषज्ञ मानते हैं कि न्यूजीलैंड में ग्रोथ की कई और दूसरी वजहें भी थीं.
तो फिर जीएसटी लागू होने के बाद भारत में विकास दर दो फीसदी बढ़ जाने का आकलन आखिर आया कहां से? दरअसल, एनसीएईआर ने 2009 में एक रिपोर्ट दी थी जिसके मुताबिक, यदि भारत में आदर्श और आधुनिक जीएसटी लागू होता है तो ग्रोथ की उम्मीद लगाई जानी चाहिए. लेकिन अब जो जीएसटी आने वाला है, उसमें पांच स्तरीय टैक्स होंगे. सीजीएसटी के तहत केंद्र के टैक्स (एक्साइज, सर्विस), एसजीएसटी के तहत राज्यों के टैक्स—अंतरराज्यीय बिक्री पर आइजीएसटी (सेंट्रल सेल्स टैक्स की जगह), अंतरराज्यीय आपूर्ति पर एक फीसदी अतिरिक्त टैक्स और पेट्रोल डीजल, एविएशन फ्यूल पर टैक्स अलग से होंगे. इस पांच मंजिला जीएसटी के बाद ग्रोथ का तर्क अपने अपने आप दुबक जाता है.
जीएसटी दोहरा-तिहरा टैक्स खत्म करता है इसलिए महंगाई में कमी का इसका रिश्ता जरूर स्थापित होता है. ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, थाईलैंड और न्यूजीलैंड में जीएसटी के बाद महंगाई घटी. लेकिन भारत में जीएसटी को लेकर सबसे बड़ा असमंजस इसी पहलू पर है. जिन देशों ने हाल में इसे लागू किया है, वहां जीएसटी दर पांच (जापान) से लेकर 19.5 फीसदी (यूरोपीय यूनियन) तक है. जीएसटी में एक रेवेन्यू न्यूट्रल रेट होता है यानी कि जिस दर पर सरकार को राजस्व का नुक्सान नहीं होगा. मौजूदा आकलनों में भारत के लिए यह दर 18 फीसद आंकी गई है इससे राजस्व तो नहीं बढ़ेगा लेकिन सरकारों को नुक्सान भी नहीं होगा.
भारत में इनडायरेक्ट टैक्स की औसत दर इस समय 24 फीसदी है इसलिए जीएसटी दर इससे ऊपर ही होने की संभावना है, क्योंकि सरकारों को बढ़ते खर्च को संभालने के वास्ते राजस्व में बढ़ोतरी चाहिए. एम्बिट का अध्ययन बताता है कि 25 फीसदी का जीएसटी रेट होने पर सरकारों का टैक्स जीडीपी अनुपात एक से दो फीसदी बढ़ेगा. उनको ज्यादा राजस्व मिलेगा, जिसे वे विकास में खर्च कर सकती हैं. लेकिन 25 फीसदी की जीएसटी दर महंगाई को भड़का देगी, जिससे मांग कम हो सकती है.
जीएसटी को लेकर केवल क्रियान्वयन की उलझन ही नहीं है बल्कि व्यावहारिक पेचीदगियां हैं, जिन्हें पारदर्शिता के साथ बताया जाना चाहिए. मसलन, अगर जीएसटी दर 18 फीसदी तय होती है तो शायद कारें, उपभोक्ता सामान, भवन निर्माण सामग्री सस्ती होगी लेकिन अगर दर 25 फीसदी तक रही तो कीमतें ऊंची ही रहेंगी. भारत में टेलीफोन, शिक्षा, होटल आदि दर्जनों सेवाओं की लागत आम लोगों के खर्च का बड़ा हिस्सा है. सेवाओं को लेकर जीएसटी में हर तरह से चोट लगनी है. सर्विस टैक्स की दर 14 फीसद है, जिसे बढ़ाकर 18 फीसद (आरएनआर) तो किया ही जाना है. यानी सेवाएं महंगी होंगी और अगर जीएसटी दर 25 या उससे ऊपर हुई तो सेवाओं पर टैक्स लगभग दोगुना हो जाएगा.

आर्थिक सुधारों को लेकर उम्मीदें जायज हैं लेकिन हवाई किले औंधे मुंह ला पटकते हैं. प्रत्येक आर्थिक सुधार फायदे और चुभन साथ लेकर आता है. सुधारों की स्लेट पर पहले हस्ताक्षर को बेताब सरकार का एक संवेदनशील, बहुआयामी और पेचीदा सुधार को जादुई बनाकर पेश करना स्वीकार हो सकता है, लेकिन यह समझना मुश्किल है कि जीएसटी पर कोई चर्चा राजनैतिक दायरे से निकलकर उत्पादक, व्यापारी और उपभोक्ता तक क्यों नहीं पहुंचाई गई, जिन्हें इसे लगाना, वसूलना और चुकाना है. जीएसटी को लेकर दीवानगी का आलम तैयार करने की बजाए इस पर ठोस चर्चा जरूरी है, क्योंकि इस टैक्स सुधार में फूल और कांटों का औसत रह-रहकर बदलने वाला है.

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