Monday, June 14, 2010

दाग और दुर्गंध की दोस्ती

अर्थार्थ
भारत और अमेरिका में दोस्ती अब बहुत गाढ़ी हो चली है। दोनों शर्मिदगी को साझा कर रहे हैं। पेट्रोल कंपनी बीपी के कुएं से रिस कर मैक्सिको की खाड़ी में बहता तेल व्हाइट हाउस को दागदार करने लगा है, तो भारत सरकार 26 साल बाद 15 हजार मौतों वाले भोपाल गैस हादसे के गुनहगार तलाश रही है और शर्मिंदगी की दुर्गध से बचने के लिए सियासत के पीछे छिप रही है। रसूखदार कंपनियों के बेफिक्र कामकाज और बोदे कानूनों के कारण औद्योगिक हादसे बार-बार होते हैं और घोंघे से होड़ करती न्याय व्यवस्था के कारण पूरी बहस आपराधिक उपेक्षा बनाम भूल-चूक की कानूनी धुंध में गुम हो जाती है। अंतत: पहाड़ जैसी तबाही के बदले राई जैसी राहत पर बात समाप्त हो जाती है। अमेरिकी राज्य लुइसियाना अपने वर्तमान को, भोपाल के ढाई दशक पुराने अतीत के साथ बांट सकता है, क्योंकि भारत और अमेरिका दोनों के पास औद्योगिक हादसों को रोकने के मजबूत कानून नहीं हैं। दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों की यह नई और हैरतअंगेज साझीदारी है। ..क्या कहा आपने? यूनियन कार्बाइड का पूर्व प्रमुख एंडरसन तो अमेरिका में ही है? अब जाने दीजिए, दोस्ती इतनी भी गाढ़ी नहीं है?
हादसों का ‘टॉप किल’
टॉप किल, कॉफर डैम, टॉप हैट? ये अनसुने तकनीकी जुमले लुइसियाना तट से उठकर दुनिया के अखबारों में तैर रहे हैं। ये उन तकनीकी उपायों के नाम हैं, जो बीपी मैक्सिको की खाड़ी में बहते नर्क को रोकने के लिए कर रही है। इसी तरह भोपाल हादसे के बाद मिथाइल आइसोनाइट, गैस स्क्रबर व फ्लेयर टॉवर, आम लोगों की जुबान पर थे। अमेरिका के दक्षिणी तट पर गहरे समुद्र में बीपी का 5,000 फीट गहरा तेल कुआं मैकोंडो पिछले करीब पचास दिनों से रोजाना समुद्र में करीब 19,000 से एक लाख बैरल (30 लाख लीटर से डेढ़ करोड़ लीटर तक) तेल उगल रहा है और पूरी दुनिया बेबसी के साथ टॉप किल (समुद्री तेल कुएं में मिट्टी भरने) जैसी बेहद महंगी तकनीकों की पराजय देख रही है। 20 अप्रैल को बीपी के ऑयल प्लेटफॉर्म में धमाके के बाद से करीब 46 हजार वर्ग मील समुद्री क्षेत्र में मीथेन और कच्चे तेल की मोटी चादर तैर रही है, जो अलबामा और फ्लोरिडा के तटों तक पहुंच चुकी है। कैटरीना से बुरी तरह तबाह लुइसियाना के लिए यह दोहरी मार है। इलाके के मछली व पर्यटन उद्योग को 5.5 अरब डॉलर का नुकसान होना तय है। इस इलाके में दूसरे तेल कुएं भी बंद होंगे, जिससे 20 हजार नौकरियां अलग से जाएंगी। फ्लोरिडा तट की तेज समुद्री धाराएं इस तेल को पूरे अटलांटिक क्षेत्र में फैलाकर अब तक की सबसे बड़ी पर्यावरण त्रासदी बनाने को बेताब हैं। यदि ऐसा हुआ तो उबरने में वर्षो लग जाएंगे जैसे कि कार्बाइड फैक्ट्री में पड़ा 390 टन जहरीला कचरा आज भी भोपाल के भूजल को प्रदूषित कर रहा है।
अपराध या चूक?
बराक ओबामा पिछले दस दिन में तीन बार मैक्सिको खाड़ी तट पर जा चुके हैं। फिर भी यह तेल व्हाइट हाउस तक पहुंच ही गया है। नियमों को तोड़कर तेल कंपनियों को मंजूरी देने के आरोप बड़े हो रहे हैं। तेल खोज से संबंधित अमेरिकी कानून नार्वे से भी लचर पाए गए हैं। ओबामा के मुल्क में भी बड़ी कंपनियां कानून से ऊपर हैं। उनकी किलेबंदी के भीतर जाकर सुरक्षा जांच नहीं होती। चेतावनियां बाहर नहीं आतीं और नसीहतें खो जाती हैं। इसी मैक्सिको खाड़ी में 1979 में पेट्रोलॉस मेक्सिकॉना के आइक्सोटॉक्स वन और 1989 में अलास्का में एक्सॉन के कुएं से भयानक तेल रिसाव हुआ था, लेकिन अमेरिका में कोई सबक नहीं लिया गया। याद कीजिए कि कार्बाइड से भोपाल में 1981 से लेकर 1984 तक गैस रिसने के आधा दर्जन मामले सामने आए थे।कंपनी के अपने विशेषज्ञों ने बड़ा खतरा बताया था, लेकिन यह अमेरिकी दिग्गज तो हर पड़ताल से ऊपर थी और इसलिए बाद में भी कायदे से जांच नहीं हुई। अमेरिका के लोग डरते हैं कि बीपी का रसूख उन्हें इंसाफ नहीं मिलने देगा। औद्योगिक हादसे, आमतौर पर आपराधिक लापरवाही बनाम अनजाने में चूक की, खींचतान में उलझते हैं और फिर भोपाल जैसा एक बड़ा हादसा कानून की निगाह में छोटी सी तकनीकी चूक साबित हो जाता है। पिछले साल छत्तीसगढ़ में एक निजी कंपनी के संयंत्र में चिमनी गिरने से 45 लोगों के मारे जाने की घटना सबसे ताजी है। इसमें कुछ छोटे अधिकारियों की गर्दनें कलम हुई और बात खत्म हो गई। तभी तो यूनियन कार्बाइड की वेबसाइट पर भोपाल त्रासदी आज भी एक सैबोटाज यानी तोड़फोड़ की घटना के तौर पर दर्ज है और बीपी के लिए मैक्सिको का हादसा बस एक मशीन की असफलता है।
कैसे-कैसे नतीजे?
भोपाल को लेकर छब्बीस साल बाद राजनीति के अलावा और क्या हो सकता है? लेकिन मेक्सिको की खाड़ी में बाजार को एक नए तेल संकट के साए दिख रहे हैं। पूरे विश्व में गहरे समुद्र से तेल निकालने पर सख्ती शुरू हो गई है। अमेरिका ने छह माह के लिए मैक्सिको की खाड़ी में तेल की खोज रोक (80 हजार बैरल प्रतिदिन का उत्पादन नुकसान) दी है। नार्वे सहित अन्य तेल उत्पादक देश भी इसी राह पर हैं। जबकि अगले दस साल में आधा समुद्री तेल उत्पादन गहरे सागरों से ही आना है, जिसके लिए चार सालों में 167 बिलियन डॉलर लगाए जाने हैं। लेकिन बीपी की चूक पूरे उद्योग को पटरी से उतार कर तेल की कीमतों को आसमान पर चढ़ा सकती है। वैसे भी गहरे समुद्र में तेल का रिसाव रोकना बहुत मुश्किल है। रूस में, कथित तौर पर, दशकों पहले हुए प्रयोग के सहारे इस कुएं को बंद करने के लिए परमाणु विस्फोट की बात भी चल पड़ी है। विस्फोट हो या न हो, लेकिन बीपी की बैलेंस शीट में भारी नुकसान का धमाका तय है। कंपनी के लिए हादसे की ताजा लागत 1.25 बिलियन डॉलर तक पहुंच गई है। 80 मिलियन डॉलर का हर्जाना भर चुकी बीपी के सामने मुकदमों की फौज तैयार है। कंपनी को 20 बिलियन डॉलर तक की चपत लग सकती है, जो इसके अस्तित्व पर भारी पड़ेगी। इसलिए अधिग्रहण की चर्चाएं भी शुरू हो गई हैं। भोपाल हादसे के बाद यूनियन कार्बाइड भी बंटती बिखरती अंतत: 1999 में डाउ केमिकल्स में समा गई थी। सियासत अमेरिका में भी कम गरम नहीं है। बीपी अचानक विदेशी कंपनी कही जाने लगी है। इसे जानबूझकर ब्रिटिश पेट्रोलियम (एक दशक पुराना नाम) के नाम से बुलाया रहा है। लंदन की सियासत भी जवाब देने लगी है।
भोपाल की गैस अमेरिका तक नहीं पहुंची थी, मैकोंडो कुएं से निकल कर समुद्र में तैरता तेल भारत नहीं आएगा। इसलिए लुइसियाना व भोपाल के लिए बस संकट का ही साझा है। इसके बादतो पैमाने दोहरे तिहरे हो जाते हैं। भारत अब महसूस कर रहा है कि कार्बाइड सस्ते में छूट गई और एंडरसन का प्रत्यर्पण होना चाहिए। लेकिन अमेरिका बीपी से तगड़ी कीमत वसूलने की तैयारी में है। भोपाल हादसे पर ताजा अदालती फैसले के बाद अमेरिका के लिए दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी की फाइल अब बंद हो गई है, मगर मैक्सिको खाड़ी को देखकर गुस्से में भरे बराक ओबामा बीपी के प्रमुख टोनी हेवार्ड को किक (ताजा विवादित बयान) करना चाहते हैं। ....तीसरी और पहली दुनिया में इतना फर्क तो होता ही है न!
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1 comment:

  1. भारत एक उपनिवेश से अधिक कुछ नहीं है..सम्प्रभुता किस चिडिया का नाम है? भूखे नगें लोगों को इससे क्या मतलब....

    तीसरी और पहली दुनिया में इतना फर्क तो होता ही है न!

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