कुछ पता चला आपको ? आपकी बचत का पूरा हिसाब किताब ही बदल गया है। छोडि़ये भी डाक घर जमा व प्रॉविडेंट फंड पर ब्यापज दर में मामूली बढ़ोत्तरी के ताजे तोहफे को। सरकार की कृपा से, अब छोटी बचतों में पाई पाई जोड़कर भविष्य को बेखटक बनाने का जुगाड़ पेचीदा और अनिश्चित होने वाला है। गारंटीड ब्याज या रिटर्न, सुरक्षा, सुविधा और कर रियायत वाली डाक घर बचत स्कीमों की दुनिया में बाजार घुस आया है। यानी कि इन पर रिटर्न का पहाडा नए सिरे से पढ़ना होगा। छोटी बचतों में पिछले कई दशकों का, यह सबसे बडा बदलाव है। जिसके आम लोगों की बचत का कारवां एक ऐसे सफर पर चल पड़ा है जहां अच्छे रिटर्न की गारंटी तो नहीं है अलबत्ता निर्मम बाजार की चपेट में आने का खतरा भरपूर है।
सारे घर के
इस दीवाली से लेकर बीते सप्ताह तक सरकार ने बचतों में सारे घर के बदल दिये हैं। भारत में आम लोगो की छोटी बचत के दो ही ठिकाने हैं बैंकों की जमा (बचत बैंक और मियादी जमा यानी फिक्स्ड डिपॉजिट) और लघु बचत स्कींमें। ताजा बदलाव के दायरे में यह दोनों क्षेत्र आ गए हैं। बैंकों को जमा पर बयाज दर तय करने की छूट मिल गई जबकि लघु बचत स्कीमों का पूरा हुलिया ही बदल गया। 1873, 1959, 1968 और 1981 के बचत बैंक, प्रॉविडेंट फंड व बचत स्की म कानूनों के तहत आने वाले लघु बचत परिवार में आठ सदस्य हैं, जो डाक घर में रहते हैं।
तीन स्कीमें जमा (डाकघर बचत स्कीम, पांच वर्षीय डाकघर रिकरिंग जमा और डाकघर फिक्ड्स डिपॉजिट) और एक स्कीड डाकघर मासिक आयक खाता (पोमिया) है। 15 साल की अवधि का पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (पीपीएफ), किसान विकास पत्र, राष्ट्रीय बचत पत्र (एनएससी) और वरिष्ठ नागरिक बचत स्कीम भी इसी समूह में शामिल हैं। केंद्र सरकार ने पिछले साल जुलाई में गठित श्यामला गोपीनाथ कमेटी की सिफारिशें स्वीकारते हुए कई फैसले किये हैं। किसान विकास पत्र बंद हो रहा है। पोस्टी ऑफिस मंथली इनकम अकाउंट और एनएससी छह की जगह पांच साल की होगी। दस साल वाली एक नई एनएससी भी आएगी। पीपीएफ में जमा की सालाना अवधि 70,000 की जगह एक लाख रुपये होगी। सबसे गहरा असर करने वाला बदलाव यह है कि इन बचत सकीमों पर ब्याज दरें बाजार (सरकारी प्रतिभूतियों पर ब्यादज के मुताबिक) तय करेगा। इस बदलाव से छोटी बचत सकीमों में रिटर्न का पासा पलट गया है। मगर इस फैसले की चीर फाड़ और इसके असर को आंकने से पहले यह देखना जरुरी है कि बचत नीति परिर्वतन अभियान का मकसद क्या है।
तीन स्कीमें जमा (डाकघर बचत स्कीम, पांच वर्षीय डाकघर रिकरिंग जमा और डाकघर फिक्ड्स डिपॉजिट) और एक स्कीड डाकघर मासिक आयक खाता (पोमिया) है। 15 साल की अवधि का पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (पीपीएफ), किसान विकास पत्र, राष्ट्रीय बचत पत्र (एनएससी) और वरिष्ठ नागरिक बचत स्कीम भी इसी समूह में शामिल हैं। केंद्र सरकार ने पिछले साल जुलाई में गठित श्यामला गोपीनाथ कमेटी की सिफारिशें स्वीकारते हुए कई फैसले किये हैं। किसान विकास पत्र बंद हो रहा है। पोस्टी ऑफिस मंथली इनकम अकाउंट और एनएससी छह की जगह पांच साल की होगी। दस साल वाली एक नई एनएससी भी आएगी। पीपीएफ में जमा की सालाना अवधि 70,000 की जगह एक लाख रुपये होगी। सबसे गहरा असर करने वाला बदलाव यह है कि इन बचत सकीमों पर ब्याज दरें बाजार (सरकारी प्रतिभूतियों पर ब्यादज के मुताबिक) तय करेगा। इस बदलाव से छोटी बचत सकीमों में रिटर्न का पासा पलट गया है। मगर इस फैसले की चीर फाड़ और इसके असर को आंकने से पहले यह देखना जरुरी है कि बचत नीति परिर्वतन अभियान का मकसद क्या है।
खजाने की उलझन
बचत नीति में बदलाव की इस जोखिम भरी दवा को शुरुआत में मीठा रखने के लिए पीपीएफ (8 फीसदी 8.6 फीसदी) और डाक घर जमा (3.5 से 4) पर ब्याज दर बढ़ा दी गई है। जो दरअसल सरकार की ताजी मुश्किल हल करने के लिए किया गया है। आम लोगों की बचतें केंद्र व राज्य सरकारों का खर्चा चलाती हैं। बचत को संभालने वाले नेशनल स्माल सेविंग फंड को राज्यों व केंद्र के 80-20 के हिसाब में कर्ज बांटे जाते हैं। महंगे होते बाजार कर्ज के कारण बैंक जमा पर भी ब्याज दर बढ़ी, नतीजतन बचत करने वाले बैंकों की तरफ मुड़ गए छोटी बचत सकीमें अनाकर्षक हो गईं। अप्रैल से जून 2011 के बीच डाकघर बचत सकीमों का संग्रह करीब 26500 करोड़ रुपये कम हो गया। जिसका सीधा असर केंद्र व राज्यों के बजट पर गया और केंद्र व राज्यों को बाजार से ज्या दा कर्ज लेना पड़ा। इससे एक दुष्चक्र सा बन गया है। सरकारों का ज्यादा कर्ज बाजार में ब्याज दरें बढ़ाता है और नतीजतन जमा पर ब्याज दरें भी बढ़तीं जो अंतत: छोटी बचत स्कीमों की चमक घटाती हैं। चुनिंदा छोटी बचत स्कीमों पर ब्याज दर बढ़ाकर सरकार ने बचतकर्ताओं को लुभाने और बचत से मिलने संसाधनों का घाटा कम करने की कोशिश की है। बचत संसाधनों को केंद्र व राज्यों के बीच बांटने का ढांचा भी बदला है मगर इस फैसले ज्यादा बड़ा असर निवेशकों पर है।
बाजार के रहम पर
बाजार के रहम पर
इस साल एक दिसंबर से बचतों पर ब्याज दरें बाजार तय करेगा, जो समान अवधि वाली सरकारी प्रतिभूतियां (पांच साल की एनएससी=पांच साल की सरकारी प्रतिभूति) के ब्याज पर आधारित होगी। इस पैमाने पर अगला एक साल तो बचतकर्ताओं को राहत देगा क्यों कि सभी स्कीमों पर ब्याज दरें आज की तुलना में कमोबेश कुछ जयादा या स्थिर (संलग्न टेबल दो) रहेंगी। मगर इसके आगे की गहरी अनिश्चतता है। बचत स्कीमों पर ब्याज दरें बाजार की हलचल के हिसाब से ऊपर नीचे होंगी (संलग्न टेबल दो) और तय करना मुश्किल होगा कि इन बचतों पर एक निर्धारित अवधि के बाद कितना पैसा हाथ लगेगा। सरकार के इस नए इंतजाम को दो कसौटियों पर परखा जा सकता है। एक- बचत पर रिटर्न हमेशा महंगाई से नापा जाता है। इस हिसाब से यदि अगले दस साल तक महंगाई दर औसतन आठ फीसदी रहती है और दस साल की एनएससी पर संशोधित ब्याज दर 8.4 फीसदी है तो वास्तविक रिटर्न केवल 0.4 फीसदी रहेगा। दो- सरकार की कर्ज जरुरत घटते ही सरकारी प्रतिभूतियों पर ब्याज कम होगा नतीजतन छोटी बचतों पर भी रिटर्न घट जाएगा। --- दरअसल छोटी बचत सकीमों पर ब्याज दरें महंगाई से जोड़ कर तय होनी चाहिए (कई देशों में यही व्यवस्था है) ताकि महंगाई की मार से, बचत सुरक्षित रहे लेकिन इन नए नियमों के बाद छोटी बचत करने वालों की किस्मत सरकार के कर्ज कार्यक्रम से बंध गई है जो हर साल बदलता है। तात्कालिक तौर पर तो ब्यांज दरों में ताजी बढ़त के बावजूद डाकघर बचत स्की्मों का आकर्षण बढ़ता नहीं दिख रहा है क्यों कि बैंक जमा ( ब्याज 4 से 6 फीसदी), डाकघर बचत (ब्याज 4 फीसदी), के मुकाबले के मुकाबले अब भी ज्यादा आकर्षक हैं। रही बात आगे तो यह पांच साल के भीतर स्पष्ट हो जाएगा कि इस नई व्यवस्था से सरकार को कितने संसाधन और निवेशकों का कितना रिटर्न मिला।
बचत हमेशा दूर की सोच कर होती है इसलिए इन बदलावों के दूरगामी नतीजों को समझना ज्यादा जरुरी है। निष्कर्ष यही है कि एनएससी या पीपीएफ जैसी बचत स्की मों पर निश्चित रिटर्न के जमाने अब लद गए हैं। रिटायरमेंट, बच्चों की शादी और मकान बनवाने के लिए डाक घर बचत सकीमों में पैसा लगाकर बेफिक्र हो जाने पर अब नुकसान संभव है। हमें छोटी बचतों पर रिटर्न की गणित अब आए दिन लगानी होगी और बाजार के मिजाज को समझने की आदत भी डालनी होगी। यानी कि चैन से सोना है तो जाग जाइये, आपकी बचत अब बाजार के हवाले है।
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Table 1-
Table 1-
Benchmark for various Small savings instruments
Instrument | Benchmark | |
1 | Savings Deposit | No benchmark - 4% (fixed) |
2 | 5 year Recurring | Deposit 5 year G-sec yield |
3 | 1 year Time Deposit | 364-day T-Bill (primary market auction cut-off weighted avg. for issuances during the previous calendar year) |
4 | 2 year Time Deposit | Linear interpolation between 364-day T-Bill and 5 year G-sec |
5 | 3 year Time Deposit | Linear interpolation between 364-day T-Bill and 5year G-sec |
6 | 5 year Time Deposit | 5 year G-sec |
7 | 5 year SCSS | 5 year G-sec |
8 | 5 year MIS | 5 year G-sec |
9 | 5 year NSC | 5 year G-sec |
10 | 10-year NSC | 10-year G-sec |
11 | 15-year PPF | 10- year G-sec |
Source - Shymala Gopinath committee report
Table -2
Administered Interest Rates for July 1, 2011 to March 31, 2012
Proposed
Instrument | Current rate (%) | Proposed rate (%) |
Savings Deposit | 3.50 | 4.0 |
1 year Time Deposit | 6.25 | 6.8 |
2 year Time Deposit | 6.50 | 7.2 |
3 year Time Deposit | 7.25 | 7.5 |
5 year Time Deposit | 7.50 | 8.0 |
5 year Recurring Deposit | 7.50 | 8.0 |
5-year SCSS | 9.00 | 8.7 |
5 year MIS | 8.00 ( 6 year MIS) | 8.0 |
5 year NSC | 8.00 (6 year NSC) | 8.0 |
10 year NSC | New instrument | 8.0 |
11-PPF | 8.00 | 8.2 |
Source - Shymala Gopinath committee report
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