Monday, December 5, 2011

बैंक खतरे में हैं !

क्‍त के मारे एक निवेशक ने एक, चतुर सुजान विश्‍लेषक से पूछा- गुरु, ग्रोथ घटने लगी है, बचाव का ज्ञान बताओ। विश्‍लेषक फुसफुसाया बैंकों से दूर रहो!! यूरोप अमेरिका के बैंकों से ?? निवेशक ने पूछा। विश्‍लेषक बोला, बौड़म ! भारतीय बैंकों से बचो, ये ले डूबेंगे । ..बैंकों का मामला यकीनन संगीन है। यूरोप व अमेरिका की तरह भारत के बैंकों ने भी जोखिम का बारुद जुटा लिया है, बस पलीते का इंतजार है। यह हाल फिलहाल के वर्षों में में पहला मौका है जब फंसते कर्ज से लेकर घटते रिटर्न तक, भारतीय बैंकों में खतरे के कई बल्‍ब अचानक जल उठे है। लड़खड़ाती ग्रोथ, मुश्किल में फंसती कंपनियों, रसातल में जाते रुपये और महंगाई के बीच देशी बैंक सबसे कमजोर कड़ी साबित हो सकते हैं। भारत की अधिकांश बैकिंग सरकारी है इसलिए इस यह बैंकों का बुरा हाल दरअसल सरकार के लिए नई मुसीबत है।
कड़कती बिजली  
नवंबर की शुरुआत में इलाहाबाद बैंक ने बिजली बोर्डों को और कर्ज न देने   का ऐलान किया तो साफ हो गया कि बैंकों को करंट लगने लगा है। राज्‍य बिजली बोर्डों को बैंकों का कर्ज इस जून में  2,92,342 करोड़ रुपये (रिजर्व बैंक का आंकड़ा) से ऊपर निकल गया था। राज्‍य बिजली बोडों के घाटे दो लाख करोड़ रुपये से के घाटे देखकर आधा दर्जन से अधिक सार्वजनिक बैंकों की जान सूख रही है। बिजली बोर्डों के डिफॉल्‍ट होने का खतरा बहुत पुख्‍ता है। इसलिए बोर्डों पर बकाये के पुनर्गठन
(वसूली टालने) का काम शुरु हो गया है। पंजाब नेशनल बैंक ने पिछली तिमाही में तमिलनाडु बिजली बोर्ड के करीब 1800 करोड़ रुपये कर्जों का पुनर्गठन किया है। एडेलवाइस सिक्‍योरिटीज की रिपोर्ट बताती है कि पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी), इलहाबाद बैंक, ओरिएंटल बैंक, यूको बैंक, सेंट्रल बैंक सहित करीब छह सरकारी बैंकों के लिए खतरा ज्‍यादा बड़ा है। पीएनबी के कुल कर्ज में बिजली क्षेत्र, करीब सात फीसदी और इलाहाबाद बैंक के कर्जों में 13 फीसदी का हिस्‍सेदार है। मार्च 2009 से मार्च 2011 के बीच बुनियादी ढांचा क्षेत्रों को को बैंक कर्ज में बिजली क्षेत्र का हिस्‍सा 42 फीसदी के सर्वोच्‍च्‍ व हैरतअंगेज स्‍तर पर पहुंच गया। बैंकों की चिंता तमिलनाडु, राजस्‍थान, उत्‍तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, मध प्रदेश व पंजाब के बिजली बोर्डों को लेकर सबसे ज्‍यादा है जो, बकौल रेटिंग एजेंसी क्रिसिल, गहरे संकट में हैं। भारत में अगले तीन साल चुनाव ही होने हैं सुधार की उम्‍मीद नहीं है इसलिए बिजली बोर्डों की हालत और बिगड़नी है। अर्थात फंसे हुए कर्जो की बिजली बैंकों , खासतौर पर सरकारी बैंकों, की बैलेंस शीट पर गिर सकती है।
कांपती जमीन  
जमीनें, भारतीय बैंकों पर मुश्किलें उगल रही हैं। रियल एस्‍टेट को दिये गए कर्ज बैंकों के गले में फंसने लगे हैं। रिजर्व बैंक की ताजी फाइनेंशियल स्‍टेबिलिटी रिपोर्ट बताती है कि अचल संपत्तियो में फंसे हुए कर्जे बढ़ने (एनपीए) की रफ्तार करीब 20 फीसदी है। वाणिज्यिक प्रॉपर्टी में एनपीए 71 फीसदी की गति से बढ़े हैं। डीएलएफ, यूनीटेक और एचडीआईएल जैसे प्रमुख डेवलपर कर्ज में नाक तक धंस चुके हैं। रिजर्व बैंक के अनुसार देश के रियल एस्‍टेट डेवलपर 1.22 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लिये बैठे हैं। अपने चेयरमैन के जन्‍मदिन पर दुनिया की सबसे महंगी डांसर का शो कराने वाली डीएलएफ पर कर्ज पिछली तिमाही (जुलाई-सितंबर) में 1000 करोड़ रपये बढ़कर 22000 करोड़ रुपये से ऊपर निकल गया है। कंपनी का मुनाफा 11 फीसदी गिरा मगर बाजार के सूत्र बताते हैं कि बैंकों ने इसे फिर कर्ज दे दिया। बिल्‍डरों पर बकाया कर्ज का बारुद निजी बैंकों के पास कुछ ज्‍यादा ही मात्रा में है।
मारती मंदी 
मूडीज ने भारतीय बैंकिंग क्षेत्र की रेटिंग यूं ही नहीं घटाई। जिन बैंकों के पास जमीन या बिजली क्षेत्र का जोखिम नहीं है उनके पास तमाम ऐसे कारपोरेट कर्जदार हैं जिन्‍हें आर्थिक सुस्‍ती के कारण जिन्‍हें कर्ज चुकाने में दिक्‍कत हो रही है। यही वजह है कि पिछली तिमाही में सबसे बड़े बैंक, स्‍टेट बैंक का लाभ 12 फीसदी गिरा और एनपीए ने 2 फीसदी बढ़त दर्ज की। सितंबर के अंत तक देश के सभी 37 सूचीबद्ध बैंकों के एनपीए 32 फीसदी बढ़ गए है। फंसे हुए कर्जो की बीमारी सरकारी बैंकों के साथ निजी बैंकों को भी लग गई है। आईडीबीआई कैपिटल की एक ताजी रपट बताती है कि इस वित्‍त्‍ वर्ष की पहली छमाही में विभिन्‍न बैंकों में 345 अरब रुपये के कारपोरेट कर्जों का भुगतान टालने (कर्ज पुनर्गठन-सीडीआर) की प्रक्रिया शुरु हो गई है। पिछले साल यह आंकडा केवल 51 अरब का रुपये का था। इंडियन बैंक, यूको बैंक, देना बैंक की हालत की सबसे ज्‍यादा खबरा है। केयर की रिपोर्ट की मुताबिक बिजली, विमानन, माइक्रोफाइनेंस, अचल संपत्ति कंपनियां सबसे ज्‍यादा मुश्किल में हैं और पुनर्गठन के बावजूद 15 फीसदी कर्ज मुश्किल में फंस गए हैं। बैंकों के मार्जिन दबाब में है। बचतें बैंकों की पूंजी का स्रोत हैं, महंगे कर्ज की रोशनी में बचत पर ब्‍याज दर बढ़ाना  मजबूरी है। ब्रोकरेज फर्म एसएमसी की एक रिपोर्ट के अनुसार पूरी बैंकिंग प्रणाली में कुल जमा का आकार 14.46 खरब रुपये हैं। यदि जमा पर ब्‍याज दर एक फीसदी बढ़ती है तो बैंकों को करीब 14000 करोड़ रपये अतिरिक्‍त देने होंगे। जबकि औद्योगिक उत्‍पादन में गिरावट और कर्जों की घटती मांग से बैंकों रिर्टन  मार्जिन( निम) दबाव में हैं।
यूरोप की तर्ज पर अगर भारतीय बैंकों का स्‍ट्रेस टेस्‍ट ( जोखिम परीक्षण) किया जाए तो आधे से ज्‍यादा बैंक गंभीर खतरे में फंसे दिखाई देंगे। अधिकांश बैंक सरकार नियंत्रित हैं इसलिए अचरज नहीं कि छह माह के भीतर सरकार को बैंकों की मदद (बेल आउट या पूंजी निवेश) के लिए आगे आना पड़े। अर्थात करदाताओं के पैसे से बैंकों को उबारने की नौबत आ सकती है। सरकारों के कारण बर्बाद होते बैंक (ग्रीस) हों या बैंकों के कारण बर्बाद होती सरकारें (आयरलैंड), वित्‍तीय तंत्र की यह करिश्‍माई संस्‍था हमेशा संकट के सूत्रधारों में शामिल रही हैं। ताजे एंग्‍लो-सैक्‍सन (यूरोप-अमेरिकी) कर्ज संकट की सबसे बड़ी नसीहत बैंकों को मिली है। भारतीय बैंकों को भी कर्ज डूबने की बीमारी  बीमारी लग गइ गई जो आर्थिक सुस्‍ती के साथ और बढती जाएगी। ... सतर्क रहिये, आर्थिक मुसीबतों के दौर में भारत की पहली बड़ी शहादत बैंकिंग क्षेत्र में घट सकती है।
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