स्पेन के वित्त मंत्री क्रिस्टोबाल मोंटेरो कार से उतर कर वित्त मंत्रालय की इमारत की तरफ बढे ही थे कि पत्रकारों व सुरक्षा कमिर्यों की भीड को चीरते हुए एक अधेड़ महिला आगे आई ओर मोंटेरो से हाथ मिलाते हुए बोली.. मि. फाइनेस मिनिस्टर! मैं स्पेन की नागरिक हूं। बहुत डरी हुई हूं। मेरा पैसा बैंकिया (प्रमुख स्पेनी बैंक) में जमा है। क्या मुझे पूरा पैसा निकाल लेना चाहिए।
नहीं! . वित्त मंत्री मोंटेरो ने जवाब दिया
क्या आप पूरी तरह आश्वस्त हैं ?.. महिला ने जोर देकर पूछा
हां हां बिलकुल! .. मोंटेरो ने जवाब दिया।
मैंने पूरी जिंदगी काम किया है। अगर कोई मेरा पैसा ले लेगा, तो मैं किसी को मार डालूंगी ... महिला ऊंची आवाज में बोली ... मोंटेरो तब तक आगे बढ गये थे।
एक निवेशक को यूट्यूब पर यह ताजा वीडियो दिखाते हुए वह विश्लेषक बोला, बेचारा यूरोप! बस इसी का तो खौफ था। यूरोप के समृद्ध इतिहास में दर्ज बैंकों की तबाही के किस्से स्पेन और ग्रीस में शहरों में खुद को दोहराने लगे हैं। बैंकों का डूबना, यूरोपीय समाज का सबसे गहरा मनोवैज्ञानिक डर इसलिए है क्यों कि बैंकों से जमा निकालने लिए जनता की अफरा तफरी (बैंक रन) कुछ घंटों में एक ताकतवर मुल्क को पिद्दी सा देश (बनाना रिपब्लिक) बना देती है। यूरोप सरकारें भी अब सुधार व उद्धार छोड़ कर आपदा प्रबंधन में लग गई हैं। खौफ जायज भी है क्यों कि जब सरकारें दीवालिया हों और बैंक तबाह, तो उबरने की उममीदें भी खत्म हो जाती हैं। यही वजह है कि दुनिया मैक्सिको में दुनिया के 20 दिग्गजों (जी20) जुटान को नहीं बल्कि ग्रीस के चुनाव को देख रही है। ग्रीस के चुनाव परिणाम इसी सप्ताह यूरो का भविष्य तय कर देंगे।
भरोसे का डूबना
150 साल में करीब सत्रह बैंकिंग, कर्ज मुद्रा संकटों के धनी स्पेन के बैंकों को जब बीते सप्ताह 100 अरब यूरो का कर्ज मिला तो यूरोप में बैंकों के फायर अलार्म बज उठे। यूरोजोन की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (स्पेन) के ऑक्सीजन लगने के बाद अब यूरोप की सेहत बैकों में जमा व निकासी के आंकड़े से परखी जा रही है। इस साल में अब तक स्पेन के बैंकों से करीब 50 अरब यूरो निकाले जा चुके हैं। स्पेन का प्रमुख बैंक, बैकिया, ताजा राष्ट्रीकरण से पहले करीब एक अरब यूरो की जमा गंवा चुका था। इधर 14 व 15 मई को दो दिन में लोगों ने ग्रीस के बैंकों से 180 करोड़ यूरो , पुर्तगाल और इटली के हाल भी ऐसे ही है। बैंकिंग उद्योग मान रहा है कि यूरोप में एक स्लो बैंक रन (जमा की लगातार निकासी) शुरु हो गई है और साथ में पूंजी पलायन भी। स्पेन से करीब 100 अरब यूरो और इटली के बाजारों से करीब दस फीसदी पूंजी हाल में बाहर गई है। इस पूंजी के ठिकाने जर्मनी अमेरिका और स्विटजरलैंड के बैंक या बाजार हैं, जिनकी अर्थव्यवस्थायें कमोबेश सुरक्षित हैं। लेकिन इतने यूरो की आवक को देखकर स्विस व जर्मन सरकारें नई पाबंदिया लगाने वाली है। बैंक ऑफ इंग्लैंड के वर्तमान गर्वर्नर मर्विन किंग ने एक बार कहा था कि बैंक रन (डर में जमा की निकासी) की शुरुआत गलत है मगर एक बार जब यह शुरु हो जाए तो इसमें भाग लेना ही समझदारी है। ग्रीस के यूरो जोन से अलग होते ही बैंकों पर आफत टूटेगी। इसलिए यूरोप की सरकारें बैंक व एटीएएम से जमा की निकासी, देश से बाहर पैसा ले जाने की सीमायें और इलेक्ट्रानिक फंड ट्रांसफर की सीमायें तय करने की तैयारी में है।
निकाल लिये। आयरलैंड
निकाल लिये। आयरलैंड
दीवालिया मददगार
यूरोप को ब्रिटेन का नॉर्दन रॉक बैंक याद आ रहा है जो अमेरिकी आवास कर्ज (मॉर्गैज) संकट का पहला शिकार था और 2007( अमेरिकी लीमैन बैंक से पहले) में डूबा था। वह सितंबर का शुक्रवार था जब नार्दन रॉक के संकट में फंसने की खबर आई और तीन दिन में लोगों ने दो अरब पाउंड निकाल लिये। सौ साल के इतिहास में इस पहली बैंक आपदा ने वित्तीय करोबार के पुरोधा ब्रिटेन को हिला दिया। नॉदर्न रॉक का राष्ट्रीयकरण (2008) होने तक बैंक से करीब 24 अरब पाउंड निकल चुके थे। नॉदर्न रॉक बाद में पुर्नगठित होकर बिक गया। बैंकिया (सात क्षेत्रीय बैंकों को मिलाकर बन स्पेन का सबसे बड़ा बैंक) के साथ भी पिछले माह यही हुआ है। जमीन जायदाद को कर्ज देकर बर्बाद हुए बैंकिया पर जमाकर्ता पिल पडे और सरकार को 19 अरब यूरो के निेवश के साथ इसका राष्ट्रीयकरण करना पडा। मगर स्पेन और यूरोप की दीवालिया सरकारें, बैंकिंया का प्रयोग दोहराने की स्थिति में नहीं हैं। पूंजी की रीढ मजबूत करने के लिए यूरोजोन के बैंकों 115 अरब यूरो चाहिए। संकट से फंसे इटली के प्रमुख बैंक यूनीक्रेडिट को आठ अरब यूरो चाहिए। इटली सरकार का 40 फीसद कर्ज इसी बैंक ने खरीद रखा है। पूरे यूरोजोन का कर्ज अपने खातों में लिये बैठे जर्मन (कामर्ज, डाएच्च्ा आदि) और फ्रांस के बैंकों को भी पूंजी की जरुरत है। लेकिन जब यूरोजोन में सरकारों के कर्ज जीडीपी अनुपात 81 लेकर 198 फीसद तक हों तो बैंकों को नई पूंजी देने की बात ही बेमानी है। 1930 की महामंदी में अमेरिका में 9000 बैंको की बर्बादी के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रुजवेल्ट ने जमा बीमा की पद्धति शुरु की थी। यूरोप में भी सरकारें यह सुरक्षा देती हैं लेकिन जब सरकारों के खजाने खाली हों तो इस गारंटी पर भी भरोसा मुश्किल है।
अमेरिकी लेखक एडवर्ड एबे ने ठीक ही कहा था कि यदि आपके शहर में सबसे ऊंची, चमकदार इमारतें बैंकों की हों तो समझ लीजिये कि आपका शहर मुश्किल में है। जमीन जायदाद और प्रतिभूतियों के खेल के सहारे पश्चिम में बैंकों के लालच की इमारतें जितनी ऊंची उठीं हैं यह संकट उतना ही गहरा है। 1773 से लेकर 2012 तक करीब 40 बड़े बैकिंग संकटों से गुजर चुकी दुनिया यह जान चुकी है कि बैंकिंग के बिना चलना मुश्किल है लेकिन वित्तीय जगत को डुबाने की कुव्वत की भी सिर्फ बैंकों में ही मौजूद है।... यूरोप का डूबना और उबरना अब सिर्फ इस पर निर्भर है कि यूरोप अपने बैंकों का क्या करता है। बैंकों को लगने वाला अगला झटका यूरो जोन के लिए आखिरी झटका हो सकता है। शुक्र है कि आम लोग बैंकिंग और मुद्रा प्रणाली को नहीं समझते नहीं तो अगले ही दिन क्रांति हो जाती; उद्योगपति हेनरी फोर्ड की यह बात सोलह आने सच है क्यों कि जब लोग बैकिंग को समझ जाते हैं तो फिर बैंकिंया या नॉर्दन रॉक से कम पर बात नहीं बनती।..; यूरोप के नेताओं व बैंकरों की यही तो मुसीबत है कि यूरोपीय लोग बैंकिंग को समझने लगे हैं।
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