Monday, December 23, 2013

परिवर्तन का सूचकांक

 2014 में परिवर्तन के बड़े सूचकांक पर दांव लग रहे हैं जो अमेरिका में मंदी की विदाई, भारत में ग्रोथ की वापसी व सियासी बदलाव को समेटे हुए है। 2013 की समाप्ति अर्थव्‍यवस्‍था में एक तर्कसंगत आशावाद अंखुआने लगा है। 
गर आप जमीन की तरफ ही देखते रहें तो आपको इंद्रधनुष कभी नहीं दिखेगा। भारतीय वित्‍तीय बाजार अब चार्ली चैप्लिन के इस सूत्र को मंत्र की तरह की जप रहा है। पिछले तीन सालों में यह पहला वर्षान्‍त है जब भारत के बाजार यंत्रणायें भूल कर एक मुश्‍त उम्‍मीदों के साथ नए साल की तरफ बढ़ रहे हैं। सियासी अस्थिरता और ऊंची ब्‍याज दरों के बीच बल्ल्‍िायों उछलते शेयर बाजार की यह सांता क्‍लाजी मु्द्रा अटपटी भले ही हो लेकिन बाजारों के ताजा जोशो खरोश की पड़ताल आश्‍वस्‍त करती है कि किंतु परंतुओं के बावजूद, उम्‍मीदों का यह सूचकांक आर्थिक-राजनीतिक बदलाव के कुछ ठोस तथ्‍यों पर आधारित है।  
भारतीय बाजार जिसके आने की चर्चा भर से सहम जाता था वही जब आ गया तो जश्‍न हो रहा है। अमेरिकी केंद्रीय बैंक हर माह बाजार में 85 अरब डॉलर छोड़कर अमेरिकी अर्थव्यवस्‍था को सस्‍ती पूंजी की खुराक दे रहा है। बुधवार को बैंक ने जनवरी से बाजार में डॉलर का प्रवाह दस अरब डॉलर घटाने का ऐलान किया तो भारत के बाजार में वह नहीं हुआ जिसका डर
था। मई में इस फैसले की आहट सुनकर बाजारों की सांस उखड़ गई थी और रुपया नई तलहटी से जा लगा। लेकिन फेड रिजर्व का निर्णय आने के एक दिन बाद शुक्रवार को विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार में 16 करोड़ डॉलर निवेश किये। यह निवेश उस भरोसे से निकला है जिसके सहारे पिछले एक माह में शेयर बाजार की नई ऊंचाइयां दिखाईं हैं। 
 सयाने लोग ठीक ही कहते थे, प्रबंधन की परीक्षा संकट में ही होती है। सियासत के शोर-ओ-गुल के बीच मई से सितंबर तक के संकट प्रबंधन ने निवेशकों को आश्‍वस्‍त किया है। सोने के आयात पर जबर्दस्‍त सख्‍ती ने जुलाई से सितंबर की तिमाही में चालू खाते के घाटे को जीडीपी के अनुपात में 1.2 फीसद पर रोक दिया। विदेशी मुद्रा की आवक निकासी का अंतर बताने वाला यह घाटा इस साल 56 अरब डॉलर रहने की उम्‍मीद है जो बीते बरस 88.2 अरब डॉलर के शिखर पर था। मई जून के बाद डॉलर का 68 रुपये तक जाना चुभा जरुर लेकिन आयात सीमित करने और निर्यात बढ़ाने में मदद भी मिली। नतीजतन देश के पास 295 अरब डॉलर का विदेशी मु्द्रा भंडार है जो आठ माह का सबसे ऊंचा स्‍तर है। रुपये की कमजोरी के दौर में अनिवासियों से जुटाये गए 34 अरब डॉलर विदेशी मुद्रा के मोर्चे पर संजीवनी बने हैं। 
 विदेशी मुद्रा की दरार सबसे खतरनाक थी। इसमें डॉलरों का पर्याप्‍त सीमेंट पड़ते ही निवेशकों को फेड रिजर्व का निर्णय खतरे की जगह अवसर लगने लगा। अमेरिका में अब भी ब्‍याज दरें शून्य पर रहेंगी अलबत्‍ता फेड रिजर्व बांड की बिक्री रोकेगा। इसलिए अब संभावना है कि अमेरिकी निवेशक महंगे बांडों से निकलकर उभरते बाजारों की तरफ लौटेंगे। पिछले एक माह में भारतीय बाजार में 19 अरब डॉलर की खरीद इस बात का सबूत भी है। विदेशी मुद्रा की पर्याप्‍त आपूर्ति, चालू खाते के घाटे में कमी और निर्यात में बढत के साथ अब भारतीय व विदेशी निवेशक देशी व ग्‍लोबल उम्‍मीदों पर बैठकर निराशा की जकड़ से उबरने को बेताब हैं।
फेड रिजर्व का फैसला भारत के लिए दोहरी आशा का सबब है। अमेरिका में मंदी खत्‍म हो रही है यानी अब पूंजी खर्च बढ़ेगा। जिसका फायदा भारत के निर्यात को मिलेगा। यूरोप व जापान में ग्रोथ की सुस्‍त वापसी शुरु हो गई है। कमजोर रुपया इस बदले हुए माहौल में भारत की सबसे बड़ी ताकत है इसलिए बाजारों को उम्‍मीद है कि नए साल में निर्यात ग्रोथ का रास्‍ता खोलेगा। इस साल की दूसरी तिमाही की जीडीपी ग्रोथ में करीब 70 फीसद हिस्‍सा निर्यात का है। 16.3 फीसद की बढ़त के साथ निर्यात ने ही ग्रोथ को मदद की है, जो अगले तिमाही में जारी रह सकती है।
देशी मांग की कमी उम्‍मीदों इस आयोजन की सबसे बड़ी कमजोरी है। मांग के  तली में बैठने के कारण आयात भी कम होने लगे हैं। आर्थिक विकास दर में उद्योग का हिस्‍सा नदारद है। आंकड़ों और गहरा खोदने पता चलता कि ग्रोथ अब पूरी तरह महंगाई के सहारे है। विकास दर को मांग व आपू‍र्ति दो पैमानों पर नापा जाता है। मांग आधारित ग्रोथ में मुद्रास्‍फीति को शामिल किया जाता है। तीसरी तिमाही में मुद्रास्‍फीति सहित जीडीपी दर 13 फीसदी हो गई जो पिछली तिमाही में आठ फीसद थी। यह इस बात का सबूत है कि अब कीमतें ही बढ़ रही हैं उत्‍पादन नहीं। फिर भी अप्रैल से जून की तुलना जुलाई से सितंबर के दौरान आर्थिक विकास दर में सकारात्‍मक हलचल (4.4 फीसद से 4.8 फीसद) ने इस धारणा को ताकत दी है कि जरा से प्रोत्‍साहन से ग्रोथ उबर सकती है। हालांकि ऊंची महंगाई व ब्‍याज दरें बड़े गड्ढे हैं जहां ग्रोथ की गाड़ी फंस हुई है, लेकिन निवेशकों को लगता है कि अगर ग्‍लोबल ग्रोथ लौटी तो 2014 में निर्यात व विदेशी निवेश के सहारे भारत का पहिया भी घूम ही जाएगा।
आस्‍कर वाइल्‍ड कहते थे कि दुनिया में चर्चित होने से भी बुरी चीज है चर्चित न होना है। पिछले छह माह के आर्थिक प्रबंधन से तस्‍वीर बदली है लेकिन हताश,  और बदकिस्‍मत सरकार इस बदलाव को चर्चा में नहीं ला पाई जबकि खुशकिस्‍मत विपक्ष यह ढोल पीटने में सफल रहा कि शेयर बाजार राजनीतिक बदलाव और विधानसभा चुनाव के नतीजों की लहर पर सवार है। बाजार के किसी राजनीतिक लहर में बहने के तथ्‍य भले ही न मिल सकें लेकिन इस बात के पर्याप्‍त प्रमाण हैं कि निवेशक 2014 में परिवर्तन के बड़े सूचकांक पर दांव लगा रहे हैं जो अमेरिका में मंदी की समाप्ति से लेकर भारत में ग्रोथ की वापसी और सियासी बदलाव तक सभी को समेटे हुए है। 2013 की समाप्ति पर अर्थव्‍यवस्‍था में एक तर्कसंगत आशावाद अंखुआने लगा है। 
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