Monday, January 20, 2014

गति से पहले सुरक्षा

मंदी से उबरी दुनिया में अब तेज ग्रोथ के चमत्‍कार नहीं होंगे बल्कि सफलता का आकलन इस पर होगा कि कौन कितना निरंतर व सुरक्षित है

ड़ी खबर यह नहीं है कि पांच साल पुराने ग्‍लोबल वित्‍तीय संकट के समापन का आधिकारिक ऐलान हो गया है बल्कि ज्‍यादा बड़ी बात यह है कि दुनिया ने अब बहुत तेज दौड़ने यानी ग्रोथ की धुआंधार रफ्तार से तौबा कर ली है। 2008 से पहले तक ग्रोथ की उड़न तश्‍तरी पर सवार ग्‍लोबल अर्थव्‍यवस्‍था अब धीमे व ठोस कदमों से चलने की शपथ ले रही है। यही वजह है कि बीते सप्‍ताह जब विश्‍व बैंक ने दुनिया के मंदी से उबरने का ऐलान किया तो बाजार उछल नहीं पड़े और न ही अमेरिका में ग्रोथ चमकने, यूरोप का ढहना रुकने, जापान की वापसी और भारत चीन में माहौल बदलने के ठोस संकेतों से आतिशबाजी शुरु हो गई। बल्कि विश्‍व के आर्थिक मंचों से नसीहतों की आवाजें और मुखर हो गईं जिनमें यह संदेश साफ था कि अगर सुधारों को आदत नहीं बनाया गया तो आफत लौटते देर नहीं लगेगी। खतरनाक गति नहीं बल्कि सुरक्षित निरंतरता, वित्‍तीय बाजारों का नया सूत्र है और मंदी के पार की दुनिया इसी सूत्र की रोशनी में आगे बढ़ेगी।
2014 का पहला सूरज सिर्फ साल बदलने का संदेश नहीं लाया था बल्कि यह पांच साल लंबे दर्द और पीड़ा की समाप्ति का ऐलान भी था। विश्‍व बैंक के आंकड़ों की  रोशनी में  अर्थव्यवस्‍था की ग्‍लोबल तस्वीर भरोसा जगाती है। इस साल दुनिया की विकास दर 3.2 फीसद रहेगी, जो बीते साल 2.4 फीसद थी। 2008-09 के बाद यह पहला मौका है जब दुनिया में ग्रोथ के तीनों बड़े इंजनों, अमेरिका, जापान और यूरोप में गुर्राहट लौटी है।
पिछले दो साल में विश्‍व व्‍यापार का आकार दोगुना हो गया है और वित्‍तीय बाजारों में ताकत वापस आई है। अमेरिका में पिछली दस तिमाहियों में उत्‍पादन लगातार बढा है। ऊर्जा आत्‍मनिर्भरता की ताजा कोशिशें भी उत्‍साह बढ़ा रही हैं। विश्‍व बैंक को उम्‍मीद है कि 2014 में अमेरिका की विकास दर 2.8 फीसद रहेगी जो बीते बरस 1.8 फीसद थी। दुनिया के सबसे बड़े बाजार की ग्रोथ में इस जबर्दस्‍त वापसी के कारण अमेरिकी शेयर बाजार ने 2013 में रिकार्ड तेजी दर्ज की।
मंदी, कर्ज, डिफाल्‍ट, बैंकों की तबाही, सरकारी खर्च में कमी से बेजार यूरोजोन पिछले पांच साल से दुनिया की सबसे बड़ी चिंता है। चौदह का बरस इस इलाके से भी अच्‍छी दे रहा है। आयरलैंड, पुर्तगाल, स्‍पेन में ग्रोथ लंगड़ाते हुए फिर चल पड़ी है जबकि ग्रीस व इटली की अर्थव्‍यवस्‍थाओं में गिरावट का रुख थम रहा है। यूरोस्‍टैट की रिपोर्ट बताती है कि उत्‍पादन में करीब 12 की ग्रोथ के साथ आयरलैंड पुनरोद्धार के दायरे से बाहर निकल आया है। जर्मनी की में विकास दर बढ़ी है, फ्रांस स्थिर है, ब्रिटेन में भी सकारात्‍मक प्रगति है, इसलिए 28 सदस्‍यों वाले समग्र यूरोपीय समुदाय में बीते नवंबर में उत्‍पादन में बढ़त दर्ज की गई। यहां तक कि पिछले एक दशक से मंदी व अपस्‍फी‍ति का शिकार जापान भी जागने लगा है। जापान में मांग व निवेश बढ़ने से दुनिया की अर्थव्‍यवस्‍था में नया संतुलन बनेगा।
मंदी की समाप्ति का ऐलान का सबसे दिलचस्‍प और उल्‍लेखनीय निष्‍कर्ष भारत चीन जैसे विकासशील देशों के लिए है, जहां की तेज रफ्तार विकास दर ने पूरे मंदी से पहले के विश्‍व का नजरिया ही बदल दिया था। लेकिन पिछले पांच साल के कर्ज संकटों और किस्‍म किस्‍म के झंझावातों से गुजरने के बाद अब विकासशील देशों को लेकर ग्‍लोबल नजरिया बदल रहा है। 2007 तक भारत व चीन को धुआंधार ग्रोथ की बूटी दे रहे विशेषज्ञ अब यह  मान रहे हैं कि 2003-07 के बीच भारत और चीन की जोरदार ग्रोथ दरअसल एक अपवाद थी। सस्‍ते कर्ज पर केंद्रित इस विकास दर ने फायदे के साथ नुकसान भी किये हैं। इसलिए मंदी की समाप्ति के बाद अब तीसरी दुनिया के ग्रोथ इंजन बहुत तेज नहीं दौड़ेंगे। भारत,रुस, चीन, मैक्सिको आदि की विकास दर पिछले रिकार्ड से दो फीसद नीचे रहेगी। तीसरी दुनिया अब ऐसी ग्रोथ चाहती है जो सुरक्षित हो जिसे तर्कसंगत तक ढंग से बनाये रखा जा सके।
सुरक्षित और निरंतर विकास दर के नए फार्मूले पर भारत के लिए सात फीसद की विकास दर तर्कसंगत मानी गई है। अर्थात भारत के नीति निर्माता जो 2009 तक देश के लिए आठ और दस फीसदी की विकास दर के जरुरी बता रहे थे उन्‍हें अब गणित बदलनी होगी। चीन की विकास दर गिरेगी और भारत की तेज होगी। विश्‍व बैंक संकेत दे रहा है कि अगले पांच साल में पूरब की दोनों ताकतें लगभग एक जैसी गति पर आगे बढ़ेंगी। भारत के लिए सबसे अच्‍छी खबर यह है कि विश्‍व के धनी मुल्‍को में ग्रोथ की वापसी निर्यात बढ़ाने का नया अवसर लेकर आई है। जबकि चीन अपने निर्यात इंजन रफ्तार घटा रहा है अर्थात भारत के लिए अगला दशक निर्यात में बड़ी सफलता का होना चाहिए।
मंदी से उबरने के बाद दुनिया की सबसे बड़ी चिंता यह है कि कहीं नीति नियामक फिर से सो न जाएं क्‍यों कि पिछले पांच साल में अर्थव्‍यवस्‍थाओं को सबसे ज्‍यादा धोखा, सरकारों, बैंकों और डब्‍लूटीओ जैसी बहुपक्षीय संस्‍थाओं ने दिया है, जिन पर संकट रोकने का दारोमदार था। इसलिए सुधार इन्‍हीं संस्‍थाओं में शुरु हुए हैं। सरकारें नीतियां बदल रही हैं, बैंकों पर सख्‍ती बढ़ रही है और बहुपक्षीय संस्‍थायें नई भूमिका की तलाश में हैं। ग्रोथ का अगला दौर इस बात पर निर्भर होगा कि कौन सा देश कितनी सजगता के साथ सुधारों का दामन थामे रहता है और संकट को लेकर गाफिल नहीं होता। धीमी गति के साथ याद मजबूत रहती है जबकि भूलने के लिए तेज रफ्तार जरुरी है। फ्रेंच उपन्‍यासकार मिलान कुंडेरा की यह दार्शनिक सूक्ति ताजा ग्‍लोबल आर्थिक चिंतन का बुनियादी आधार बन रही है। मंदी से उबरी दुनिया में अब तेज ग्रोथ के चमत्‍कार नहीं होंगे बल्कि सफलता का आकलन इस पर होगा कि कौन कितना निरंतर व सुरक्षित है।
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