नोटबंदी को गुजरे एक साल गुजर गया. कोई बड़ी फतह हाथ नहीं लगी. ले-देकर गरीब कल्याण योजना में आए 5,000 करोड़ रुपए ही हैं जिन्हें अधिकृत तौर पर नोटबंदी का हासिल काला धन माना जा सकता है. शेष सब कुछ जांच युग में है या दावों पर सवार है.
तो कहां मिलेगा काला धन?
बगल में छोरा, गांव में ढिंढोरा.
काले धन के कुछ बड़े रहस्य सरकार की जन धन योजना के पास हो सकते हैं गरीबों को बैंकिंग से जोडऩे के लिए जिसे शुरू किया गया था.
नोटबंदी के बाद सरकार जन धन पर सन्नाटा खींच गई है लेकिन आंकड़े तो उपलब्ध हैं.
रिजर्व बैंक ने नोटबंदी के असर पर रिपोर्ट इसी मार्च में जारी की थी. वित्त मंत्री ने 3 फरवरी को संसद में एक सवाल के जवाब में कुछ जानकारी दी थी, सरकारी आंकड़ों पर आधारित दूसरे अध्ययन भी उपलब्ध हैं.
इनके आधार पर देखिए कि नोटबंदी के दौरान जन धन क्या हुआ था?
· नोटबंदी से पहले अप्रैल से जुलाई के बीच लगभग 73,000 खाते प्रति दिन खोले जा रहे थे लेकिन नोटबंदी के दौरान प्रति दिन दो लाख खाते खुले. नोट बदलने की सभी सीमाएं खत्म होने के बाद (मार्च से जुलाई से 2017) के बीच जन धन खाते खुलने का औसत दैनिक घटकर 92,000 पर आ गया.
· नोटबंदी के ठीक बाद 23.30 करोड़ नए जन धन खाते खोले गए. इनमें से 80 फीसदी सरकारी बैंकों में खुले. लगभग 54 फीसदी शहरों में खुले और शेष गांवों की शाखाओं में.
· नोटबंदी के वक्त (9 नवंबर 2016) को इन खातों में कुल 456 अरब रुपए जमा थे जो 7 दिसंबर 2016 को 746 अरब रुपए पर पहुंच गए.
· नोटबंदी के 53 दिनों में जन धन खातों में 42,187 करोड़ रुपए जमा हुए. इनमें से 18,616 करोड़ रुपए तो 9 नवंबर से 16 नवंबर के बीच शुरुआती आठ दिनों में ही इन खातों में जमा हो गए. ये आंकड़ा नोटबंदी से पहले के 53 दिनों के मुकाबले 1850 फीसदी ज्यादा है.
· नोटबंदी के पहले जन धन खातों में औसतन 43 करोड़ रुपए का दैनिक जमा होता था. नोटबंदी शुरू हो होते ही पहले हक्रते में प्रति दिन 2,327 करोड़ रुपए जमा होने लगे. नोटबंदी खत्म होते ही एवरेज डेली ट्रांजैक्शन में 95 फीसदी की कमी दर्ज की गई.
· नोटबंदी के दौरान जन धन की ताकत दिखाने वालों में गुजरात सबसे आगे रहा. 9 नवंबर 2016 से 25 जनवरी 2017 तक राज्य के जन धन खातों के डिपॉजिट में 94 फीसदी का इजाफा हुआ. इसी अवधि में कर्नाटक में जन धन डिपॉजिट 81 फीसदी, मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र में 60 फीसदी, झारखंड और राजस्थान में 55 फीसदी, बिहार में 54 फीसदी, हरियाणा में 50 फीसदी, उत्तर प्रदेश में 45 फीसदी और दिल्ली में 44 फीसदी बढ़े.
· जन धन खातों में नोटबंदी के पहले हक्रते में डिपॉजिट में 40 फीसदी की ग्रोथ देखकर 15 नवंबर 2016 को वित्त मंत्रालय ने एक बार में 50 हजार रुपए से ज्यादा राशि जन धन में जमा करने पर रोक लगा दी.
· नोटबंदी के दौरान जन धन खातों का औसत बैलेंस 180 फीसदी तक बढ़ गया था, जो मार्च में घटकर नोटबंदी के पहले वाले स्तर पर आ गया.
· गरीबों के जीरो बैलेंस खातों का व्यवहार गहरे सवाल खड़े करता है. नोटबंदी के दौरान इन खातों की संख्या में अप्रत्याशित बढ़ोतरी का रहस्य क्या है?
वित्त मंत्री ने फरवरी में संसद को बताया था कि विभिन्न खाताधारकों (जन धन सहित) को आयकर विभाग ने 5,100 नोटिस भेजे हैं, इसके बाद नोटबंदी जन धन इस्तेमाल की जांच कहां खो गई?
नोटबंदी के दौरान अनियमितता को लेकर बैंकों की शुरू हुई जांच भी बीच में क्यों छूट गई?
हम इतनी जल्दी इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहते कि जन धन खातों का इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग में हुआ लेकिन नोटबंदी के दौरान बैंकों के भीतर बहुत कुछ ऐसा हुआ है जो रहस्यमय है और नोटबंदी की विफलता की वजह हो सकता है.
आम लोगों को बैंकिंग से जोडऩे के सबसे बड़े अभियान की बदकिस्मती यह है कि वह सरकार के नीति रोमांच का शिकार हो कर दागी हो गया. बैंकिंग पर आम लोगों के भरोसे को गहरी चोट लगी है.
लोकतंत्र में जनता अजातशत्रु होती है. यह सरकारों की विफलताओं को भी पचा लेती है. नीतियों को पारदर्शी होना चाहिए. पहली बरसी पर क्या सरकार, नोटबंदी के दौरान बैंकिंग संचालनों और जन धन की जांच के नतीजे देश से बांटना चाहेगी?
गलतियों से सीखने का नियम केवल मानवों के लिए ही आरक्षित नहीं है, सर्वशक्तिमान सरकारें भी नसीहत लें तो क्या हर्ज है?
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