Sunday, June 23, 2019

सबसे बड़ा तक़ाज़ा


अपनी गलतियों पर हम जुर्माना भरते हैं लेकिन जब सरकारें गलती करती हैं तो हम टैक्स चुकाते हैंइसलिए तो हम टैक्स देते नहींवे दरअसल हमसे टैक्स ‘वसूलते’ हैंरोनाल्ड रीगन ठीक कहते थे कि लोग तो भरपूर टैक्स चुकाते हैंहमारी सरकारें ही फिजूल खर्च हैं.

नए टैक्स और महंगी सरकारी सेवाओं के एक नए दौर से हमारी मुलाकात होने वाली हैभले ही हमारी सामान्य आर्थिक समझ इस तथ्य से बगावत करे कि मंदी और कमजोर खपत में नए टैक्स कौन लगाता है लेकिन सरकारें अपने घटिया आर्थिक प्रबंधन का हर्जाना टैक्स थोप कर ही वसूलती हैं.

सरकारी खजानों का सूरत--हाल टैक्स बढ़ाने और महंगी सेवाओं के नश्तरों के लिए माहौल बना चुका है.

·       राजस्व महकमा चाहता है कि इनकम टैक्स व जीएसटी की उगाही में कमी और आर्थिक विकास दर में गिरावट के बाद इस वित्त वर्ष (2020) कर संग्रह का लक्ष्य घटाया जाए.

·       घाटा छिपाने की कोशिश में बजट प्रबंधन की कलई खुल गई हैसीएजी ने पाया कि कई खर्च (ग्रामीण विकासबुनियादी ढांचाखाद्य सब्सिडीबजट घाटे में शामिल नहीं किए गएपेट्रोलियमसड़करेलवेबिजलीखाद्य निगम के कर्ज भी आंकड़ों में छिपाए गएराजकोषीय घाटा जीडीपी का 4.7 फीसद है, 3.3 फीसद नहींनई वित्त मंत्री घाटे का यह सच छिपा नहीं सकतींबजट में कर्ज जुटाने का लक्ष्य हकीकत को नुमायां कर देगा. 

·       सरकार को पिछले साल आखिरी तिमाही में खर्च काटना पड़ानई स्कीमें तो दूरकम कमाई और घाटे के कारण मौजूदा कार्यक्रमों पर बन आई है.

·       हर तरह से बेजारजीएसटी अब सरकार का सबसे बड़ा ‌सिर दर्द हैकेंद्र ने इस नई व्यवस्था से राज्यों को होने वाले घाटे की भरपाई की जिम्मेदारी ली हैजो बढ़ती ही जा रही है.

सरकारें हमेशा दो ही तरह से संसाधन जुटा सकती हैंएक टैक्स‍ और दूसरा (बैंकों सेकर्जमोदी सरकार का छठा बजट संसाधनों के सूखे के बीच बन रहा हैबचतों में कमी और बकाया कर्ज से दबेपूंजी वंचित बैंक भी अब सरकार को कर्ज देने की स्थिति में नहीं हैं.

इसलिए नए टैक्सों पर धार रखी जा रही हैइनमें कौन-सा इस्तेमाल होगा या कितना गहरा काटेगायह बात जुलाई के पहले सप्ताह में पता चलेगी.

        चौतरफा उदासी के बीच भी चहकता शेयर बाजार वित्त मंत्रियों का मनपसंद शिकार हैपिछले बजट को मिलाकरशेयरों व म्युचुअल फंड कारोबार पर अब पांच (सिक्यूरिटी ट्रांजैक्शनशॉर्ट टर्म कैपिटल गेंसलांग टर्म कैपिटल गेंसलाभांश वितरण और जीएसटीटैक्स लगे हैंइस बार यह चाकू और तीखा हो सकता है.

        विरासत में मिली संपत्ति (इनहेरिटेंसपर टैक्स आ सकता है.

        जीएसटी के बाद टैक्स का बोझ नहीं घटानए टैक्स (सेसबीते बरस ही लौट आए थेकस्टम ड्यूटी के ऊपर जनकल्याण सेस लगाडीजल-पेट्रोल पर सेस लागू है और आयकर पर शिक्षा सेस की दर बढ़ चुकी हैयह नश्तर और पैने हो सकते हैं यानी नए सेस लग सकते हैं.

        लंबे अरसे बाद पिछले बजटों में देसी उद्योगों को संरक्षण के नाम पर आयात को महंगा (कस्टम ड‍्यूटीकिया गयायह मुर्गी फिर कटेगी और महंगाई के साथ बंटेगी. 
    और कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत में कमी के सापेक्ष पेट्रोल-डीजल पर टैक्स कम होने की गुंजाइश नहीं है.

जीएसटी ने राज्यों के लिए टैक्स लगाने के विकल्प सीमित कर दिए हैंनतीजतनपंजाबमहाराष्ट्रकर्नाटकगुजरात और झारखंड में बिजली महंगी हो चुकी हैउत्तर प्रदेशमध्य‍ प्रदेशराजस्थान में करेंट मारने की तैयारी हैराज्यों को अब केवल बिजली दरें ही नहीं पानीटोलस्टॉम्प ड‍्यूटी व अन्य सेवाएं भी महंगी करनी होंगी क्योंकि करीब 17 बड़े राज्यों में दस राज्य, 2018 में ही घाटे का लाल निशान पार कर गए थे. 13 राज्यों पर बकाया कर्ज विस्फोटक हो रहा है. 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के बाद राज्यों का आधा राजस्व केंद्रीय संसाधनों से आता है.

जीएसटी के बावजूद अरुण जेटली ने अपने पांच बजटों में कुल 1,33,203 करोड़ रुके नए टैक्स लगाए यानी करीब 26,000 करोड़ रुप्रति वर्ष और पांच साल में केवल 53,000 करोड़ रुकी रियायतें मिलीं. 2014-15 और 17-18 के बजटों में रियायतें थींजबकि अन्य बजटों में टैक्स के चाबुक फटकारे गएकरीब 91,000 करोड़ रुके कुल नए टैक्स के साथजेटली का आखिरी बजटपांच साल में सबसे ज्यादा टैक्स वाला बजट था.

देश के एक पुराने वित्त मंत्री कहते थेनई सरकार का पहला बजट सबसे डरावना होता हैसो नई वित्त मंत्री के लिए मौका भी हैदस्तूर भीलेकिन बजट सुनते हुए याद रखिएगा कि अर्थव्यवस्था की सेहत टैक्स देने वालों की तादाद और टैक्स संग्रह बढ़ने से मापी जाती हैटैक्स का बोझ बढ़ने से नहीं.



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