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ठीक ही कहते थे रोनाल्ड रेगन, सरकारें समस्याओं का समाधान नहीं करतीं बल्कि उन्हें नए क्रम में पुनर्गठित कर देती हैं. दो साल पुरानी भारत की दूसरी आजादी यानी जीएसटी को लेकर अगर आपको भी ऐसा ही महसूस होता है तो अब देश के संवैधानिक ऑडिटर यानी सीएजी को अपने दर्द से इत्तेफाक करता हुआ पाएंगे.
सीएजी ने जीएसटी की ‘समग्र असफलता’ का रिपोर्ट कार्ड संसद को सौंप दिया है, जिसे पढ़ते हुए बरबस 30 जून, 2017 की मध्य रात्रि याद आ जाती है जब जगमगाते संसद भवन और दिग्गजों से सजे सेंट्रल हॉल में युगांतरकारी जीएसटी अवतरित हुआ था. चैनल-चैनल घूमकर बधाई गाते हुए सरकार के मंत्री बता रहे थे कि जीएसटी के अवतार के बाद
· कारोबार करना दुनिया में सबसे आसान हो जाएगा
· टैक्स चोर तो दिखेंगे ही नहीं
· सरकार का खजाना भर जाएगा
· देश की विकास दर में कम से दो फीसद का इजाफा तो तय समझिए
जीएसटी पर सीएजी की ताजा रिपोर्ट 1991 के बाद भारत के सबसे बडे़ आर्थिक सुधार की श्रद्धांजलि है.
जीएसटी के तहत कारोबारी सहजता (ईज ऑफ डूइंग बिजनेस) को तलाशने निकले सीएजी को क्या मिला?
ऑडिटर ने रजिस्ट्रेशन सिस्टम की पड़ताल से शुरुआत की जो करदाता के लिए जीएसटी के तिलिस्म का प्रवेश द्वार है. पता चला कि कई जरूरी सूचनाएं गलत भरी जा रही हैं. यहां तक कि कंपोजिशन स्कीम (छोटे टैक्सपेयर के लिए टर्न ओवर आधारित जीएसटी) का गलत फायदा लिया जा रहा है.
निर्माता और सप्लायर की इनवॉयस यानी बिल का शत प्रतिशत (रियल टाइम) मिलान जीएसटी का सबसे बुनियादी सुधार था क्योंकि इसके आधार पर कच्चे माल पर चुकाया गया कर वापस (रिफंड) होना था. यह व्यवस्था कभी लागू नहीं हो सकी. नतीजतन, जीएसटी में जमकर फ्रॉड हुए. एक करदाता ने 6 लाख करोड़ रु. के रिफंड का दावा कर दिया, जिसे बाद में सुधारा गया.
पंजीकरण, हिसाब-किताब (इनवॉयस मिलान) की तरह ही टैक्स भुगतान का सिस्टम भी घिसट रहा है. डेबिट क्रेडिट कार्ड से टैक्स भुगतान आज तक शुरू नहीं हुआ. इन असफलताओं के चलते औसतन 60 फीसद करदाता ही रिटर्न फाइल करते हैं.
सीएजी ने दुख के साथ सूचित किया कि जीएसटी आने के बाद कर ईमानदारी तो नहीं बढ़ी अलबत्ता चोरी काफी बढ़ गई है.
कर नियमों के पालन, नए करदाताओं और खपत (कर दरों में रियायत के कारण) में बढ़ोतरी की मदद से राजस्व बढ़ना था लेकिन यह सुधार तो सरकारी खजानों को बहुत महंगा पड़ा है. जीएसटी लागू होने से पहले (2016-17) में सरकार के राजस्व में बढ़ोतरी की दर 21.33 फीसद थी जो घटकर करीब एक-चौथाई यानी 5.80 फीसद (2017-18) रह गई. जीएसटी में कई टैक्स शामिल किए गए थे, उनसे मिलने वाले राजस्व की तुलना में केंद्र की जीएसटी से कमाई दस फीसद (2017-18) घट गई.
ऑडिटर की रिपोर्ट यह भी बताती है कि सरकार ने अंतर्राज्यीय कारोबार पर लगने वाले आइजीएसटी को राज्यों के साथ बांटने में संविधान के नियमों का उल्लंघन किया. इसमें कई राज्यों के साथ भेदभाव हुआ है. इस गफलत पर सीएजी की मुहर के बाद राज्य मुखर हो सकते हैं.
लगभग 122 पेज की यह रिपोर्ट नियमों में बार-बार बदलाव, जीएसटीएन में तकनीकी खामियां, गलत गणनाओं की पड़ताल करते हुए कहती है, सरकार को यह समझना चाहिए था कि जीएसटी जैसे विशाल और जटिल सिस्टम में जरा सी चूक बड़े नुक्सान व असुविधा का सबब बनेगी लेकिन यहां तो दो साल से जीएसटी का संक्रमण पूरा होता ही नहीं दिख रहा है.
याद रखना जरूरी है कि उस मध्य रात्रि के जीएसटी अवतरण की गहमागहमी के बीच देश की विकास दर दो फीसद बढ़ने का सपना भी दिखाया गया था. जीएसटी में असंख्य बदलाव हुए लेकिन इस सुधार के बाद न केवल हर प्रमुख उत्पाद की खपत गिरी है बल्कि आर्थिक विकास दर हर तिमाही नए गड्ढे तलाश रही है.
सबसे गंभीर बात यह है कि वित्त मंत्रालय ने तमाम लानत-मलामत के बावजूद सीएजी को जीएसटी के अखिल भारतीय आंकड़े का ऑडिट करने की छूट नहीं दी. सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ये खामियां फील्ड ऑडिट के आधार पर पाई हैं, इसलिए यह सीमित ऑडिट है.
सनद रहे कि जीएसटी कानून के प्रारंभिक प्रारूप की धारा 65 के तहत सीएजी को जीएसटी काउंसिल से सूचनाएं तलब करने का अधिकार था लेकिन अक्तूबर 2017 में जीएसटी काउंसिल ने इस सुधार की निगहबानी से सीएजी को दूर कर दिया.
समझा जा सकता है कि सरकार जीएसटी से सीएजी को क्यों दूर रखना चाहती थी.
एक घटिया सुधार ने अर्थव्यवस्था के दो साल बर्बाद कर दिए. जीएसटी का समग्र ऑडिट और इस विफलता पर सरकार की जवाबदेही अब लोकतंत्र का तकाजा है.
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