वक्त बड़ा निर्मम है. अगर सब कुछ ठीक होता तो निर्मला सीतारमण भारत के सबसे विराट ड्रीम
बजट की प्रणेता बन जातीं. 20 सितंबर को कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती के साथ निर्मला ने पी. चिदंबरम (1997-98 कॉर्पोरेट, व्यक्तिगत इनकम टैक्स, एक्साइज, कस्टम में भारी कटौती) से बड़ा इतिहास बनाया. लेकिन यह अर्थव्यवस्था है
और इसमें इस बात की कोई गांरटी नहीं होती कि एक जैसे फैसले एक जैसे नतीजे लेकर
आएंगे.
1.5 लाख करोड़ रुपए के तोहफे (कंपनियों की कमाई पर टैक्स
में अभूतपूर्व कमी) की आतिशबाजी खत्म हो चुकी है. जिन चुनिंदा कंपनियों तो यह तोहफा मिला है, उनमें अधिकांश इसे ग्राहकों से नहीं
बांटेंगी बल्कि पचा जाएंगी. शेयर बाजार के चतुर-सुजान ढहते सूचकांकों से अपनी बचत बचाते हुए इस विटामिन के उलटे असर
का मीजान लगाने लगे हैं. क्योंकि इस खुराक के बाद भी कंपनियों की कमाई घटने का डर है क्योंकि
बाजार में मांग नहीं है.
कंपनियों पर टैक्स को लेकर सरकार के काम करने का तरीका अनोखा है. मोदी सरकार ने अपने पहले
कार्यकाल में कंपनियों पर जमकर टैक्स थोपा. शेयर बाजार में सूचीबद्ध शीर्ष कंपनियों की कमाई पर टैक्स की प्रभावी
दर (रियायतें आदि काटकर) 2014 में 27 फीसद थी जो बढ़ते हुए 2019 में 33 फीसद पर आई. अब इसे घटाकर 27.6 फीसद किया गया है.
कौन जवाब देगा कि औद्योगिक निवेश तो 2014 से गिर रहा है तो टैक्स क्यों बढ़ा या नए बजट में कंपनियों की कमाई
पर सरचार्ज क्यों बढ़ाया गया? लेकिन हमें यह पता है कि ताजा टैक्स रियायत भारत के इतिहास का सबसे
बड़ा कॉर्पोरेट तोहफा है
· क्रिसिल ने बताया कि 1,074 बड़ी कंपनियों (2018 में कारोबार 1,000 करोड़ रुपए से ऊपर) को इस रियायत से सबसे ज्यादा यानी 37,000 करोड़ रुपए का सीधा फायदा पहुंचेगा, जो कुल कॉर्पोरेट टैक्स संग्रह में 40 फीसद हिस्सा रखती हैं. इन पर लगने वाला टैक्स अन्य कंपनियों से ज्यादा था.
· ये कंपनियां करीब 80 उद्योगों में फैली हैं. और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के बाजार पूंजीकरण में 70 फीसद की हिस्सेदार हैं, इसलिए शेयर बाजार में तेजी
का बुलबुला बना था.
· 2018 में करीब 25,000 कंपनियों ने मुनाफा कमाया
जो सरकार के कुल टैक्स संग्रह में 60 फीसद योगदान करती हैं.
अर्थव्यवस्था के कुछ बुनियादी तथ्यों की रोशनी में बाजार और निवेश
खुद से ही यह पूछ रहे हैं कि 1,000 कंपनियों को टैक्स में छूट से मांग कैसे लौटेगी और मंदी कैसे दूर
होगी?
घरेलू बचत का आंकड़ा कंपनियों को इस रियायत की प्रासंगिकता पर सबसे
बड़ा सवाल उठाता है. पिछले वर्षों में निवेश या मांग घटने से कंपनियों की बचत पर कोई फर्क
नहीं पड़ा. 2019 में प्राइवेट कॉर्पोरेट सेविंग जीडीपी के अनुपात में कई दशकों की
ऊंचाई (12 फीसद) पर थी.
दूसरी तरफ, आम लोगों की बचत (हाउसहोल्ड सेविंग्स) कई दशक के सबसे निचले स्तर (3 फीसद) पर है. आम लोगों की आय घटने से बचत
और खपत ढही है. रियायत
की तो जरूरत इन्हें थी, दिग्गज कंपनियों के पास निवेश के लायक संसाधनों की कमी नहीं है. टैक्स घटने और कर्ज पर
ब्याज दर कम होने से बड़ी कंपनियों की बचत बढ़ेगी, बाजार में खपत नहीं.
भारत की मंदी पूंजी गहन के बजाए श्रम गहन उद्योगों में ज्यादा गहरी
है जो सबसे ज्यादा रोजगार देते हैं. कंपनियों की कमाई से मिलने वाले टैक्स का 55 फीसद हिस्सा तेल गैस, उपभोक्ता सामान, निर्यात (सूचना तकनीक, फार्मा, रत्नाभूषण) आदि उद्योगों से आता है
जबकि रोजगार देने वाले निर्माण या भारी निवेश वाले क्षेत्र टैक्स में केवल दस फीसद
का हिस्सा रखते हैं. इन्हें इस रियायत से कोई बड़ा लाभ नहीं मिलने वाला.
कॉर्पोरेट के इस तोहफे का बिल खासा भारी है! टैक्स संग्रह की टूटती
रफ्तार और मुनाफों पर दबाव को देखते हुए सरकार की यह कृपा खजाने पर 2.1 लाख करोड़ रुपए का बोझ
डालेगी जो जीडीपी के अनुपात में 1.2 फीसद तक है. इसका ज्यादा नुक्सान राज्य उठाएंगे. केंद्रीय करों में सूबों का हिस्सा करीब 40 फीसद घट जाएगा. केंद्र सरकार वित्त आयोग की
मार्फत, राज्यों को केंद्र से मिलने
वाले संसाधनों में कटौती भी कराना चाहती है. अगर ऐसा हुआ तो राज्यों में खर्च में जबरदस्त कटौती तय है. सनद रहे कि राज्यों का खर्च
ही स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं में मांग का सबसे बड़ा ईंधन है.
कंपनियों की कमाई पर टैक्स रियायत को लेकर अमेरिका का ताजा तजुर्बा
नसीहत है. डोनाल्ड ट्रंप ने कॉर्पोरेट
टैक्स में भारी (35 से 21 फीसद) कटौती की थी. वह भी उस वक्त जब अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी से उबर चुकी थी, ब्याज दर न्यूनतम थी और
शेयर बाजार गुलजार था. टैक्स घटने के बाद अमेरिकी शेयर बाजार ने छलांगें लगाईं, कंपनियों की कमाई बढ़ी
लेकिन 21 माह बाद अमेरिका का जीडीपी
अपने शिखर से एक फीसद लुढ़क चुका है, शेयर बाजार तब की तुलना में केवल 5 फीसद ऊपर है, निवेश की रफ्तार सुस्त हो गई, उपभोक्ताओं का मूड उदास है और घाटा बढ़ा हुआ है.
मिल्टन फ्रीडमैन फिर सही साबित होने जा रहे हैं कि सरकारों के समाधान
अक्सर समस्याओं को और बढ़ा देते हैं!
Respected Sir My research in economic science is successful,it is proof .all Indian Companies are in huge debt, it is the low demand and low sale.
ReplyDeleteKindly Visit :-
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Sir I am following u from arthaat lallantop show and I can guarantee u can defeat any economist In India love and regards sir
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