पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के ख्वाब के बीच यह कैसा ब्रांड इंडिया बन रहा है जिसका निर्यात पिछले पांच साल से धराशायी है?
दुनिया को बाजार खोलने की नसीहतदेते हुए भारत अपना ही बाजार क्योंबंद करने लगा?
हमें खुद से भी यह पूछना पड़ेगा कि तारीफों से लदी-फंदी विदेश नीति पिछले पांच बरस में हमें एक नया व्यापार समझौता भी क्यों नहीं दे सकी?
दुनिया को बाजार खोलने की नसीहतदेते हुए भारत अपना ही बाजार क्योंबंद करने लगा?
हमें खुद से भी यह पूछना पड़ेगा कि तारीफों से लदी-फंदी विदेश नीति पिछले पांच बरस में हमें एक नया व्यापार समझौता भी क्यों नहीं दे सकी?
इन सवालों का सीधा रिश्ता भारत की ताजा जिद्दी मंदी से है क्योंकि इस संकट की एक बड़ी वजह ढहता विदेश व्यापार भी है. निर्यात की बदहाली की नई तस्वीर उस उच्चस्तरीय सरकारी समिति की रिपोर्ट में उभरी है, जिसे एशिया के सबसे बड़े व्यापार समूह यानी आरसीईपी (रीजनल कॉम्प्रीहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप) में भारत की भागीदारी के फायदे-नुक्सान आंकने के लिए इसी साल बनाया गया था.
पूर्व विदेश, वाणिज्य सचिवों, डब्ल्यूटीओ के पूर्व महानिदेशक, वित्त मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार और अर्थशास्त्रियों से लैस इस समिति (अध्यक्ष अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला) ने 253 पेज की रिपोर्ट के जरिए भारत के आरसीईपी में शामिल होने की पुरजोर सिफारिश की थी. आरसीईपी को पीठ दिखाने से एक हफ्ते पहले तक वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल इसी रिपोर्ट को सरकार के लिए गीता-बाइबिल-कुरान बता रहे थे. इस रिपोर्ट की रोशनी में आरसीईपी से भारत का पलायन और ज्यादा रहस्यमय हो गया है.
हाल के वर्षों में पहली बार अर्थशास्त्रियों और नौकरशाहों ने ठकुरसुहाती छोड़ भारत के विदेश व्यापार के संकट को आंकड़ों की रोशनी दिखाई है. रिपोर्ट के तथ्य बताते हैं कि ताजा मंदी इतनी चुनौतीपूर्ण क्यों है.
· सन् 2000 में अंतरराष्ट्रीय व्यापार (निर्यात-आयात) की भारत के जीडीपी में हिस्सेदारी केवल 19 फीसद थी जो 2011 में बढ़कर 55 फीसद यानी आधे से ज्यादा हो गई जो अब 45 फीसद रह गई है. यही वजह है कि घरेलू खपत के साथ विदेश व्यापार में कमी की मारी विकास दर 4.5 फीसद पर कराह रही है.
· 2003 से 2011 के मुकाबले 2012 से 2017 के बीच भारत का निर्यात लगातार गिरता चला गया. आरसीईपी पर बनी समिति ने गैर तेल निर्यातक 60 बड़ी अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं के साथ तुलना के बाद पाया कि जीडीपी में बढ़ोतरी और अपेक्षाकृत स्थिर विदेशी मुद्रा विनिमय दर के बावजूद इन पांच वर्षों में सभी (कृषि, मैन्युफैक्चरिंग, मर्चेंडाइज और सेवाएं) निर्यात में समकक्षों के मुकाबले भारत की रैंकिंग गिरी है. इस बदहाली के मद्देनजर 2014 के बाद जीडीपी के उफान (सात फीसद से ऊपर) पर शक होता है.
· 2000 के बाद उदारीकरण ने भारत को सॉफ्टवेयर सेवाएं, फार्मा और ऑटो निर्यात का गढ़ बना दिया था. लेकिन 2010 के बाद भारत निर्यात में कोई जानदार कहानी नहीं लिख सका.
· हाल के वर्षों में भारत ने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने में विशेषज्ञता हासिल कर ली. 2017 से पहले लगातार घटता रहा सीमा शुल्क, नई सरकार की अगुआई में बढ़ने लगा. आयात महंगा होने से आयातित कच्चे माल और सेवा पर आधारित निर्यात को गहरी चोट लगी. इस संरक्षणवाद से दुनिया के बाजारों में भारत के लिए समस्या बढ़ी है.
· भल्ला समिति ने नोट किया कि भारतीय नीति नियामक आज भी आयात को वर्जित मानकर गैर प्रतिस्पर्धी उद्येागों को संरक्षण की जिद में हैं जबकि भारत ने बढ़ते विदेश व्यापार से जबरदस्त फायदे जुटाए हैं.
· आरसीईपी विरोधियों को खबर हो कि बकौल भल्ला समिति, सभी मुक्त व्यापार समझौते भारत के लिए बेहद फायदेमंद रहे हैं. इनके तहत आयात-निर्यात का ढांचा सबसे संतुलित है यानी कच्चे माल का निर्यात और उपभोक्ता उत्पादों का आयात बेहद सीमित है.
· यह रिपोर्ट आसियान के साथ व्यापार घाटे को लेकर फैलाए गए खौफ को बेनकाब करती है. यह घाटा पाम ऑयल और रबड़ के आयात के कारण है, जिनकी देशी आपूर्ति सीमित है और ये भारतीय उद्योगों का कीमती कच्चा माल हैं.
इस सरकारी समिति ने छह अलग-अलग वैश्विक परिस्थितियों की कल्पना करते हुए यह निष्कर्ष दिया है कि अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के हालात में आरसीईपी जैसे किसी बड़े व्यापार समूह का हिस्सा बनने पर भारत के जीडीपी में करीब एक फीसद, निवेश में एक 1.22 फीसद और निजी खपत में 0.73 फीसद की बढ़ोतरी होगी!
हमें नहीं पता कि आरसीईपी में बंद दरवाजों के पीछे क्या हुआ? किसे फायदे पहुंचाने के लिए सरकार ने यह मौका गंवाया? लेकिन अब जो आंकड़े हमारे सामने हैं उनके मुताबिक, भारत की विदेश और व्यापार नीति की विफलता भी इस मंदी की एक बुनियादी वजह है. पूरी तरह ढह चुकी घरेलू खपत के बीच तेज निर्यात के बिना मंदी से उबरना नामुमकिन है और निर्यात बढ़ाने के लिए बंद दरवाजों को खोलना ही होगा. पांच ट्रिलियन के नारे लगाने वालों को पता चले कि हाल के दशकों में दुनिया की कोई बड़ी अर्थव्यवस्था निर्यात में निरंतर बढ़ोतरी के बगैर लंबे समय तक ऊंची विकास दर हासिल नहीं कर सकी है.
Export increases the Cash in flow in the country, Export increases the income of Farmers and Bussiness man and increase the purchasing capacity.
ReplyDeleteVery informative Sir🙏
ReplyDeleteसर NRC जैसे मुद्दे अर्थव्यवस्था को कितना प्रभावित कर सकते हैं जब बड़ा श्रमबल ( सरकारी व गैर सरकारी ) देश मे नागरिकता के फेर में लगा होगा
ReplyDeleteNRC पर सरकारी व्यय व जो लोग नागरिक नहीं रह जाऐंगे उनके डिटेंशन केन्द्रों पर शासकीय व्यय कितना प्रभावित कर सकता है