अपनी पूंजी और बचत का सरेआम खून खच्चर देखकर एक भोले निवेशक ने एक चतुर ब्रोकर से पूछा, गुरु ये सब क्या हो रहा है? 40 दिन की बंदी में सब डूब ही जाएगा! ग्रोथ जीरो हो जाएगी! हमारे खून-पसीने की कमाई पर पलने वाली यह भीमकाय सरकार किस दिन काम आएगी?
ब्रोकर ने कहा कुछ लोड तुम भी लेना सीखो. संकट में घिरते तो सब हैं, नतीजे इस पर निर्भर करते हैं कि कोई उनसे उबरता कैसे है. यह 2009 नहीं है. हमारी महान सरकार हमारी तरह ही बेबस है.
हमें अब तक पता नहीं है कि कोरोना हमारी सेहत की क्या गत करेगा लेकिन वायरसग्रस्त अर्थव्यवस्था का बिल तैयार है.
► 40 दिन के लॉकडाउन से 17 से 20 लाख करोड़ रुपए का सीधा नुक्सान (एचडीएफसी, बार्कलेज आदि के अनुमान) यानी कि केंद्र सरकार के साल भर के कुल राजस्व से ज्यादा. यह नुक्सान संचित होकर बढ़ता जाएगा इसलिए आर्थिक विकास दर पूरी शून्य या अधिकतम 1-1.5 फीसद
► मरे उद्योगों को जिलाने के लिए भारी रियायतों या संसाधनों की जरूरत. बैंकों को नई पूंजी
► राज्यों को चाहिए दस लाख करोड़ रुपए की मदद
► अगर देनी पड़ी तो गरीबों को नकद सहायता
यानी कि संकट जितना बढ़ेगा सरकार से मदद की उम्मीदें फूलती जाएंगी. इस हाल में कम से कम 10 लाख करोड़ रुपए का (जीडीपी का 5 फीसद) के सीधे पैकेज के बिना तबाही रोकना असंभव है. केंद्र और राज्यों ने मिलाकर अर्थव्यवस्था को उबारने पर अभी जीडीपी का 1 फीसद तक खर्च नहीं किया है.
यह रकम आएगी कहां से?
सरकार के पास यही ही स्रोत हैः
• बैंकों के पास 135 लाख करोड़ रुपए के डिपॉजिट हैं, जिनमें 103 लाख करोड़ रुपए के कर्ज दिए जा चुके हैं. संकट कालीन नकदी (सीआरआर) के बाद बची रकम सरकार के बॉन्ड व ट्रेजरी बिल में लगी है
• एलआइसी के 30.55 लाख करोड़ रुपए शेयर बाजार और सरकार के बॉन्ड में लगे हैं
• कर्मचारी भविष्य निधि के 10 लाख करोड़ रुपए भी सरकार कर्ज के तौर पर इस्तेमाल कर रही है
• और छोटी बचत स्कीमों के 15 लाख करोड़ रुपए जिसमें राज्यों को कुछ कर्ज देने के बाद बचा अधिकांश पैसा सरकारी बॉन्ड में लगा है
• इस साल तो सरकारी कंपनियां बेचकर, बैंकों लाभांश और रिजर्व बैंक के रिजर्व से भी कुछ नहीं मिलेगा
• विदेशी मुद्रा भंडार है, जो आयात के लिए है
अमेरिका अगर डॉलर और ब्रिटेन पाउंड, यूरोपीय संघ अगर यूरो छाप रहे हैं तो हम रुपया क्यों नहीं छाप सकते?
करेंसी छपाई देश की अर्थव्यवस्था के आकार के आधार पर तय होती है. 100 रुपए के उत्पादन के लिए 500 रुपए नहीं छापे जा सकते, नहीं तो कीमतें बेतहाशा बढ़ेंगी. भारत की अर्थव्यवस्था दिखने में ही बड़ी है, जरा-सी किल्लत पर कीमतें आसमान छूती हैं. अगर करेंसी छापते हैं तो भारत की साख कचरा (जंक) हो जाएगी, जो पहले ही न्यूनतम है.
रिजर्व बैंक महंगाई पर निगाह रखते हुए मनी सप्लाई को क्रमश: ही बढ़ा सकता है. कमजोर रुपए और खराब वित्तीय हालत के साथ विदेशी कर्ज महंगा होगा और जुगाड़ने की गुंजाइश कम है.
इसलिए अब जो हो रहा है वह जोखिम भरा है.
• केंद्र सरकार इस साल लंबे अवधि के बॉन्ड की बजाए ज्यादा पैसा (2.6 ट्रिलियन रुपए) छोटी अवधि (60 से 90 दिन) के बैंक कर्ज (वेज ऐंड मीन्स एडवांस, ट्रेजरी बिल) से उठाएगी. जब मांग खपत ही नहीं है तो 90 दिन के बाद यह कर्ज चुकाया कैसे जाएगा? बैंक दुबले हुए जा रहे हैं.
• राज्य सरकारों को 8 से 9 फीसद पर कर्ज मिल रहा है. उनकी साख किसी सामान्य नौकरीपेशा से ज्यादा खराब है, जिसे सस्ता होम लोन मिल जाता है. राज्यों को छोटी अवधि के कर्ज लेने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. पता नहीं, तीन माह बाद वे चुकाएंगे कैसे?
तस्वीर कुछ इस तरह है कि केंद्र और राज्यों के पास राहत पैकेज के लिए पैसा नहीं है. करेंसी छापने की सहूलत नहीं है. बैंक सरकारों को कर्ज देते हुए अर्थव्यवस्था के कर्ज हिस्से में कटौती करेंगी. सरकारों का कर्ज उनके घाटे का दूसरा रूप है, जिसे एक सीमा से अधिक बढ़ाने पर पूरा संतुलन ढह जाएगा.
तो होगा क्या?
जल्दी उबरने की एक मुश्त दवा नहीं मिल पाएगी. जो चूरन-चटनी मिलेगी, उसके लिए सरकार को कर्ज लेना होगा, जिसे लौटाने के लिए तत्काल जुगाड़ भी करना होगा.
बेकारी का जो भी हाल हो लेकिन लॉकडाउन हटते ही कोरोना राहत पैकेज के लिए नए टैक्स लगेंगे. राज्य सरकारें पेट्रोल-डीजल पर वैट बढ़ाने जा रही हैं. केंद्र कुछ नए सेस की तैयारी में है. कई सारी सेवाएं महंगी होंगी यानी छुरी खरबूजे पर गिरे या खरबूजा छुरी पर, कटेगा खरबूजा ही.
चाणक्य बाबा ठीक कहते थे, कुप्रबंध के कारण जब राजकोष दरिद्र होता है वहां का शासन प्रजा और देश की चेतना को खा जाता है.
Very long vision from site.
ReplyDeleteYou r best watching ur videos and ARTHAT i planned and able to save myself from the economy crash of India.
ReplyDeletemany thanks for your kind words
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