मि. जकरबर्ग (फेसबुक) आप अपनी डेटा ताकत से प्रतिस्पर्धियों की जासूसी करते हैं. उनका अधिग्रहण करते हैं या उन्हें मिटा देते हैं?
मि. पिचाई (गूगल) विशेष सेवाओं वाले सर्च इंजन आपको फूटी आंख नहीं भाते. अपनी अकूत ताकत से आप तय करते हैं कि उनको ट्रैफिक न मिल पाए.
और मि. बेजोस (अमेजन) आपके प्लेटफॉर्म से जो कारोबारी सामान बेचते हैं क्या उनके डेटा का इस्तेमाल अमेजन कर रही है?
बीते हफ्तों में जब फेसबुक और भाजपा के रिश्तों को समझने की कोशिश हो रही थी और रिलायंस के डिजिटल कारोबार (सबसे बड़ी मोबाइल कंपनी) में फेसबुक, गूगल, क्वालकॉम (सबसे बड़े सोशल नेटवर्क, ऑपरेटिंग प्लेटफॉर्म व सर्च इंजन और तकनीक कंपनी) के निवेश और माइक्रोसॉफ्ट से करार पर ‘जिओ-जिओ’ हो रहा था, ठीक उस समय फेसबुक, एपल, गूगल और अमेजन के नेतृत्व अमेरिकी कांग्रेस (संसद) की समिति के कठघरे में थे. इन पर कंपीटिशन खत्म कर गलत तरीके से कारोबार करने गंभीर आरोप हैं.
राष्ट्रपति चुनाव के शोर और कोविड के जोर के बीच अमेरिका की कारोबारी दुनिया नब्बे का दशक याद कर रही है जब उसके आखिरी वर्षों में अमेरिका के कानून निर्माताओं ने बिल गेट्स की कंपनी को इंटरनेट ब्राउजर बाजार में प्रतिस्पर्धा रोकने का दोषी पाया था. यह अभियान उससे कहीं ज्यादा बड़ा और रोमांचक है.
मोनोपली, मुक्त बाजार की पैदाइशी दुश्मन है इसलिए अमेरिका के कानून निर्माता फेसबुक, गूगल, अमेजन और एपल पर ऐंटी ट्रस्ट कानून (बाजार में मोनोपली तोड़ने वाला) के तहत कार्रवाई की पेशबंदी कर रहे हैं. कांग्रेस की समिति इन कंपनियों के अंदरूनी संवादों के आधार पर यह सनसनीखेज मामले बनाए हैं.
फेसबुक ने व्हाट्सऐप और इंस्टाग्राम को निगल कर कैसे कंपीिटशन खत्म किया, इसका खुलासा अब हो रहा है. आपसी खतो-किताबत में कंपनी के अधिकारी यह कहते पाए कि गए प्रतिस्पर्धा खत्म करने के लिए कर्मचारी तोड़ने, कंपनी खरीदने और फिर खत्म कर देने में कोई हर्ज नहीं है.
यूट्यूब अधिग्रहण के पुराने दस्तावेजों के आधार पर गूगल कठघरे में है. कंपनी के गोपनीय संवाद दिखाकर सुंदर पिचाई से पूछा गया कि अगर गूगल के पास रोजगार सर्च आदि के लिए अच्छे रिजल्ट नहीं हैं तो क्या आप अन्य सर्च इंजन को ट्रैफिक नहीं देंगे. क्यों ग्राहक सभी सेवाओं के लिए सिर्फ गूगल के मोहताज रहें?
अमेजन तो फेडरल ट्रेड कमिशन और जस्टिस डिपार्टमेंट की जांच में फंस ही गई है. दुनिया के सबसे बड़े ई रिटेलर पर आरोप है कि उसने अपने प्लेटफॉर्म से सामान बेचने वालों और स्टार्ट-अप का डेटा चुराकर अपने उत्पाद विकसित किए. अमेजन ने थर्ड पार्टी डेटा के दुरुपयोग से इनकार नहीं किया. अभी तक की सुनवाई में एपल पर ज्यादा आरोप नहीं लगे हैं.
ऐंटी ट्रस्ट का हथौड़ा चला तो फेसबुक, गूगल, अमेजन को दो-तीन हिस्सों में तोड़ने की नौबत आ सकती है. और पूरी दुनिया में इन पर कार्रवाई व जुर्माना लगाया जा सकता है.
हैरत की बात है कि जिन कंपनियों को मोनोपली के लिए उनके जन्मस्थान पर सजा देने की तैयारी चल रही है, उन्होंने सिर्फ चार माह में भारतीय बाजार की सूरत ही बदल दी और कंपीटिशन कमिशन ने कुछ भी नहीं किया.
जिओ-फेसबुक-गूगल-माइक्रोसॉफ्ट-क्वालकॉम के एक साथ आने का बाजार के लिए मतलब हैः
• भारत के मोबाइल सेवा बाजार में जिओ की हिस्सेदारी 33 फीसद है. दुनिया की सबसे बड़ी तकनीक कंपनी माइक्रोसॉफ्ट क्लाउड इन्फ्रास्ट्रक्चर ले कर आई है. गूगल के पास मोबाइल डिवाइस, एंड्राएड ऑरेटिंग सिस्टम और पेमेंट सर्विस, फेसबुक के पास डेटा, चैट व सोशल नेटवर्क है. क्वालकॉम 5जी की तकनीक से लैस है.
• ये सब जिओ को एक सुपर ऐप बनाने की तरफ ले जाएगा. वह 2025 तक भारत में इंटरनेट के जरिए बिकने वाले सामान का 35 फीसद और डिजिटल पेमेंट का 50 फीसदी बाजार कब्जा सकती है.
• इसके एकाधिकार को ऐसे समझिए कि जैसे पेट्रोल-डीजल उत्पादन करने व बेचने वाली कंपनी पूरे एकाधिकार के साथ इंजन, पुर्जों, टायर, बॉडी, बाहरी भीतरी सुविधाओं सहित पूरी कार बनाए, बेचे, सर्विस दे. उन कारों के लिए हाइवे-सड़कें-गलियां भी बनाए उस पर टोल भी वसूले, उस सड़क के किनारे मकान, मॉल, मल्टीप्लेक्स, बनाए जहां उसी का सामान बेचा जाए. वह कंपनी इन्हें बनाने की तकनीक भी बनाए और यह सब कैसे बनेगा या चलेगा, इसके पैमाने भी तय करे.
कोविड के बाद दुनिया तकनीक केंद्रित होगी लेकिन इसे एकतरफा नहीं होना चाहिए, इसलिए अमेरिकी कानून निर्माता अपनी ही यश कथाओं को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं. यह जानते हुए भी कि एकाधिकार, अवसरों के लुटेरे हैं, उपभोक्ताओं को ठगते हैं और ताकत केंद्रीकरण करते हैं. हमारे नेताओं, नियामकों और आत्मनिर्भरतावादियों ने भारत का उभरता बाजार प्लेट में सजाकर दुनिया का सबसे बड़ी मोनोपली को सौंप दिया है.
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