भारत
सरकार हर साल प्रतिरक्षा पर कितना खर्च करती है जीडीपी के अनुपात में 2.1 फीसदी
और
स्वास्थ्य
पर ? जीडीपी का केवल 1.1 फीसदी.
तुलना
विचारोत्तेजक है.
अलबत्ता
महामारी के बाद दुनिया के लोग एसे ही खौलते हुए हिसाब कर रहे हैं. यदि हमें कोराना
महामारी के महाश्मशान याद हैं (होंगे ही) तो इतिहास की कांव-कांव छोड़कर हमें सबसे
बड़ी उलझनों का मर्म समझना चाहिए.
कोविड
ने कायदे से समझाया कि किसी देश की आर्थिक प्रगति (जीडीपी) का उस देश के लोगों की
स्वास्थ्य से सीधा रिश्ता होता है. सरकारों ने हमें यह सोचने ही नहीं दिया कि
लोगों की सेहत या स्वास्थ्य सुविधायें विशुद्घ रुप से एक आर्थिक संसाधन
हैं.
इतिहास
से क्या सीखा?
पहले
विश्व युद्ध, स्पेनिश फ्लू
से लेकर दूसरी बड़ी लड़ाई तक दुनिया में औसत आयु करीब 42 साल थी. 20 वीं सदी में
दवाओं की खोज हुई, एंटीबायोटिक्स आए, पानी, आवासीय
स्वच्छता और खान पान बेहतर हुए, जिससे जीवन की प्रत्याशा या
औसत आयु 42 से बढ़ कर 75 वर्ष पहुंच गई.
1900
से 2000 के बीच दुनिया की आबादी 1.6 अरब से 7.5 अरब हो गई. इसमें स्वस्थ लोगों की
आबादी काफी बड़ी थी. इन्होंने श्रम बाजार का चेहरा बदल दिया, उत्पादकता बढ़ी, नई
मांग पैदा हुई और मानव संसाधन को नए अर्थ मिल गए. बीसवीं सदी में विकसित
अर्थव्यवस्थाओं की विकास दर का एक तिहाई हिस्सा अच्छी सेहत से आया है.
अब
किसी को शक नहीं है कि अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था आर्थिक प्रगति बढ़ाने में शिक्षा
जितना ही योगदान करती हैं. (सुचिता अरोरा 2001 कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी)
बीमारियां
तरक्की और समृद्धि को खा जाती हैः मेकेंजी ने अपने एक ताजा अध्ययन में बताया कि 2017 के दौरान बीमारियों और चिकित्सा की कमी से करीब 1.7
करोड लोगों की असामयिक मौत हुई. इससे ग्लोबल जीडीपी को 12 खरब डॉलर का नुकसान हुआ
जो विश्व के जीडीपी का 15 फीसदी है.
महामारी
के बाद समृद्धि के नए पैमाने बन रहे हैं. जिस मुल्क का स्वास्थ्य ढांचा जितना
चुस्त है उस पर उतने बड़े दांव लगाये जाएं. दुनिया में बुढ़ापा बढ़ रहा है यानी
श्रमिकों संख्या घट रही है. एसे में मौजूदा श्रमिकों से बेहतर और दक्ष (तकनीकी)
उत्पादकता की जरुरत है.
स्वास्थ्य
सेवाओं को सड़क, बिजली,
दूरसंचार की तर्ज पर विकसित करना होगा ताकि कार्यशील आयु बढ़ाई जा
सके और 65 की आयु वाले लोग 55 साल वालों के बराबर उत्पादक हो सकें.
स्वास्थ्य
में नई तकनीकें लाकर, बेहतर
प्राथमिक उपचार, साफ पानी और समय
पर इलाज देकर बडी आबादी की सेहत 40 फीसदी तक बेहतर की जा सकती है. स्वास्थ्य पर
प्रति 100 डॉलर अतिरिक्त खर्च हों जीवन में प्रति वर्ष, एक स्वस्थ वर्ष
बढाया जा सकता है. स्वास्थ्य सुविधायें संभाल कर, 2040 तक दुनिया के जीडीपी में 12 ट्रििलयन डॉलर जोडे जा
सकते हैं जो ग्लोबल जीडीपी का 8 फीसदी होगा यानी कि करीब 0.4 फीसदी की सालाना
बढ़ोत्तरी (मेकेंजी)
अनिवार्य
है यह
भारत
की नई गरीबी, बीमारी से
निकल रही है. यूनिवर्सल हेल्थकेयर अब अनिवार्य है. यूरोप और अफ्रीका तक (इथियोपिया)
मे सरकारें समग्र स्वास्थ्य सेवायें देने की तरफ बढ़ रही हैं. निजी और सरकारी
सेवाओं को जोड़कर बीमा और कैश ट्रांसफर जैसे प्रयोग किये जा रहे हैं
मार्च
2021 में संसद को बताया गया था कि स्वास्थ्य पर सरकार का प्रति व्यक्ति खर्च 1418
रुपये (अमेरिका 4 लाख और यूके 2.6 लाख रुपये) है. बकौल विश्व बैंक भारत में
स्वास्थ्य पर कुल खर्च में सरकार का हिस्सा केवल 27 फीसदी है जबकि लोग अपनी जेब से
करीब 72 फीसदी लागत उठाते हैं. ओईसीईडी और स्वयंसेवी संसथाओं के आकलन के अनुसार
भारत में निजी यानी अपनी जेब से और सरकारी खर्च मिलाकर चिकित्सा इलाज पर कुल
प्रति व्यक्ति खर्च जीडीपी का 3.6 फीसदी है.
सबको
सरकारी खर्च पर स्वास्थ्य (यूनिवर्सल हेल्थकेयर) के लिए दवाओं का खर्च मिलाकर
प्रति व्यक्ति 1700-2000 रुपये खर्च करने होंगे. (शंकर पिरिंजा व अन्य 2012 ).
स्वास्थ्य पर जीडीपी का 4 से 5 फीसदी तक खर्च करना होगा ,
जो 2021 में केवल 1.26 फीसदी है.
भारत
के भविष्य की राह सेहत सुविधाओं की मंजिलों से ही तय होगी. मेकेंजी का हिसाब है कि
भारत में स्वास्थ्य पर प्रति एक डॉलर के अतिरिक्त निवेश पर 4 डॉलर का आर्थिक
रिटर्न संभव है. स्वास्थ्य सेवायें बेहतर करने से हर व्यक्ति के जीवन में हर साल
औसतन करीब 24 स्वस्थ दिन बढ़ाये जा सकते हैं और 2040 तक जीडीपी में करीब 598 अरब
डॉलर जोड़े जा सकते हैं जो भारत के कोविड पूर्व जीडीपी का करीब 6 फीसदी होगा.
1930
की महामंदी के बाद दुनिया के जान गई थी कि उसे अपनी समस्याओं के हल तलाशने होंगे. हमारे पास भी अब कोई विकल्प नहीं है. हमें सरकारों को
अहसास कराते रहना होगा भविष्य की समृद्धि के लिए आरोग्य लक्ष्मी का आवाहन-आराधन
अनिवार्य है, उसके चरण पड़ने
से ही कल्याण होगा.
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