शाम की बात है.. डा. वाटसन ने कमरे के अंदर कदम रखा ही
था कि शरलक होम्स बोल उठे
आज पूरा दिन आपने क्लब में मस्ती की है
डा. वाटसन ने चौकते हुए कहा कि आपको कैसे पता
आज पूरा दिन लंदन में बारिश हुई
इसके बीच भी अगर कोई व्यक्ति साफ सुथरे जूतों और
चमकते हुए हैट के साथ आता है तो स्वाभाविक है कि वह बाहर नहीं था
डा. वाटसन ने कहा यू आर राइट शरलक
यह स्वाभाविक है
होम्स ने कहा कि हमारे आस-पास बहुत से घटनाक्रम स्वाभाविक ही हैं
लेकिन हम उन्हें पढ़ नहीं पाते
यह किस्सा इसलिए मौजूं है क्यों कि दुनिया इस वक्त बड़ी बेज़ार है.
मंदियां बुरी होती हैं लेकिन इस वक्त
भरपूर मंदी चाहती है लेकिन जिससे महंगाई से पीछा छूटे मगर मंदी है कि आती ही नहीं
...
क्या कहीं कुछ एसा तो नहीं जो स्वाभाविक है मगर दिख नहीं पा रहा है.
इसलिए पुराने सिद्धांत ढह रहे हैं और कुछ और ही होने जा रहा है.
महंगाई मंदी युद्ध महामारी सबका इतिहास है लेकिन वह बनता अलग तरह से
है. बड़ी घटनायें एक जैसी होती हैं मगर उनके ताने बाने फर्क होते हैं. मंदी महंगाई
की छाया में एक नया इतिहास बन रहा है.
एशिया के देश चाहते हैं कि अमेरिका में टूट कर मंदी आए क्यों कि जब
महंगाई काट रही हो तो वह मंदी बुलाकर ही हटाई जा सकती है. यानी मांग तोड़ कर
कीमतें कम कराई जा सकती हैं. अमेरिका में मंदी आने देरी की वजह ब्याज दरें बढ़
रही हैं. डॉलर मजबूत हो रहा है बहुत से देशों के विदेशी मुद्रा भंडार फुलझडी की
तरह फुंके जा रहे हैं. सरकारों का प्राण हलक में आ गया है.
विश्व बैंक की जून 2022 रिपोर्ट बताती है कि सभी विकसित देशों और
उभरती अर्थव्यवस्थाओं की महंगाई उनके केंद्रीय बैंकों के लक्ष्य से काफी ऊपर
हैं. एसा बीती सदी में कभी नहीं हुआ. ब्याज दरें बढ़ने एशिया वाले बुरी तरह संकट
में हैं क्यों कि यहां महामारी ने बहुत तगड़े घाव किये हैं;
अर्थशास्त्री कहते हैं कि ब्याज दरें बढ़ें तो मंदी आना तय. क्यों
कि रोजगार कम होंगे, कंपनियां खर्च कम
करेंगी, बाजार में मांग टूटेगी फिर महंगाई कम होगी. पहिया
वापसी दूसरी दिशा में घूम पड़ेगा. मंदी की मतलब है कि तीन माह लगातार नकारात्मक
विकास दर.
अमेरिका फेडरल रिजर्व 2022 में अब तक ब्याज दर में तीन फीसदी यानी
300 प्रतिशतांक की बढ़ोत्तरी कर चुका है. दुनिया के प्रमुख केंद्रीय बैंक अब तक
कुल 1570 बेसिस प्वाइंट यानी करीब 16 फीसदी की बढत कर चुके हैं.
इसके बाद महंगाई को धुआं धुआं हो जाना चाहिए था लेकिन
कुछ ताजा आंकड़े देखिये
-
अमेरिका में
उपभोक्ताओं की खपत मांग सितंबर में 11 फीसदी बढ़ गई.
-
अमेरिका सितंबर
में बेरोजगारी बढ़ने के बजाय 3.5 फीसदी कम हो गई
-
फ्रांस में मंदी
नहीं आई है केवल आर्थिक विकास दर गिरी है.
-
जर्मनी में
महंगाई 11 फीसदी पर है लेकिन सितंबर की तिमाही में मंदी की आशंक को हराते हुए
विकास दर लौट आई
-
कनाडा में अभी
मंदी के आसार नहीं है. 2023 में शायद कुछ आसार बनें
-
आस्ट्रेलिया
में बेरोजगारी दर न्यूनतम है. कुछ तिमाही में विकास दर कम हो सकती है लेकिन
मंदी नहीं आ रही
-
जापान में विकास
दर िगरी है येन टूटा है मगर मंदी के आसार नहीं बन रहे
-
ब्राजील में
महंगाई भरपूर है लेकिन जीडीपी बढ़ने की संभावना है
-
बडी अर्थव्यवस्थाओं
में केवल ब्रिटेन ही स्पष्ट मंदी में है
सो किस्सा कोताह कि महंगाई थम ही नहीं रही. अमेरिका में ब्याज दर
बढ़ती जानी है तो अमेरिकी डॉलर के मजबूती दुनिया की सबसे बड़ी मुसीबत है जिसके
कारण मुद्रा संकट का खतरा है
कुछ याद करें जो भूल गए
क्या है फर्क इस बार .; क्यों 1970 वाला फार्मूला उलटा पड़ रहा है जिसके
मुताबिक महंगी पूंजी से मांग टूट जाती है.
शरलक होम्स वाली बात कि कुछ एसा हुआ जो हमें पता मगर दिख नहीं रहा है
और वही पूरी गणित उलट पलट कर रहा है
राष्ट्रपति बनने के बाद फेड रिजर्व गवर्नर जीरोम पॉवेल को खुल कर
बुरा भला कह रहे थे कि उन्होंने 2018 में वक्त पर ब्याज दरें नहीं घटाईं. फेड
और व्हाइट हाउस के रिश्तों को संभाल रहे थे तत्कालीन वित्त मंत्री स्टीवेन
मंचेन जो पूर्व इन्वेस्टमेंट बैंकर हैं
किस्सा शुरु होता है 28 फरवरी 2020 से. इससे पहले वाले सप्ताह में
जीरोम पॉवेल रियाद में थे जहां प्रिंस सलमान दुनिया के 20 प्रमुख देशों के वित्त
मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों का सम्मेलन किया था. वहां मिली सूचनाओं के आधार पर
फेड ने समझ लिया था कि अमेरिकी सरकार संकट की अनदेखी कर रही है.
28 फरवरी को तब तक अमेरिका में कोविड के केवल 15 मरीज थे, दो मौतें थे. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस वायरस को सामान्य फ्लू बता
रहे थे. 28 फरवरी की सुबह जीरोम पॉवल ने वित्त मंत्री मंचेन
के साथ अपनी नियमित मुलाकात की और उसके बाद रीजलन फेड प्रमुखों के साथ फोन कॉल का
सिलसिला शुरु हो गया.
दोपहर 2.30 बजे जीरोम पॉवेल ने एक चार लाइन का बयान आया. जिसमें ब्याज
दर घटाने का संकेत दिया गया था. कोविड का कहर शुरु नहीं हुआ था मगर फेड ने वक्त
से पहले कदम उठाने की तैयारी कर ली थी. बाजार को शांति मिली.
इसके तुरंत बाद पॉवेल और मंचेन ने जी 7 देशों के वित्त मंत्रियों की
फोन बैठक बुला ली. यह लगभग आपातकाल की तैयारी जैसा था. तब तक अमेरिका में कोविड से
केवल 14 मौतें हुईं थी लेकिन इस बैठक में ब्याज दरें घटाने का सबसे बड़ा साझा अभियान
तय हो गया.
तीन मार्च और 15 मार्च के फेड ने दो बार ब्याज दर घटाकर अमेरिका में
ब्याज दर शून्य से 0.25 पर पहुंचा दी. कोविड से पहले ब्याज दर केवल 1.5 फीसदी
था. 2008 के बाद पहली बार फेड ने अपनी नियमित बैठक के बिना यह फैसले किये थे. सभी
जी7 देशों में ब्याज दरों में रिकार्ड कमी हुई.
बात यहीं रुकी नहीं इसके बाद अगले कुछ महीनों तक फेड ने अमेरिका के इतिहास
का सबसे बड़ा कर्ज मदद कार्यक्रम चलाया. करीब एक खरब डॉलर के मुद्रा प्रवाह से फेड
ने बांड खरीद कर सरकार, बड़े छोटे उद्योग,
म्युनिसपिलटी, स्टूडेंट, क्रेडिट कार्ड आटो लोन का सबका वित्त पोषण किया.
कोविड के दौरान अमेरिकियों की जेब में पहले से ज्यादा पैसे थे और
उद्योगों के पास पहले से लिक्विडिटी.
इस दौरान जब एक तरफ वायरस फैल रहा था और दूसरी तरफ सस्ती पूंजी.
कोविड से मौतें तो हुईं लेकिन अमेरिका और दुनिया की अर्थव्यवस्था
वायरस से आर्थिक तबाही से बच गईं. यही वजह थी कि कोविड की मौतों के आंकडे बढने के
साथ शेयर बाजार बढ़ रहे थे. भारत के शेयर बाजारों इसी दौरान विदेशी निवेश
केरिकार्ड बनाये
तो अब क्या हो रहा है
यह सब सिर्फ एक साल पहले की बात है और हम इस स्वाभाविक घटनाक्रम के
असर को नकार कर ब्याज दरें बढ़ने से महंगाई कम होने की उम्मीद कर रहे हैं. जबकि
बाजार में कुछ और ही हो रहा है
अमेरिका में महंगाई दर के सात आंकडे सामने हैं. 1980 के बाद कभी एसा
नहीं हुआ कि महंगाई सात महीनों तक सात फीसदी से ऊपर बनी रहे
मंदी को रोकने और महंगाई को ताकत देने वाले तीन कारक है सामने दिख रह
हैं
जेबें भरी हैं ...
2020 में अमेरिका के परिवारों की नेट वर्थ यानी कुल संपत्ति 110
खरब डॉलर थी साल 2021 में यह 142 ट्रिलियन डॉलर के रिकार्ड पर पहुंच गई. 2022 की
पहली तिमाही में इसे 37 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई. यह 1989 के बाद सबसे बड़ी
बढ़त है. यही वह वर्ष था जब फेड ने नेटवर्थ के आंकड़े जुटाने शुरु किये थे.
संपत्ति और समृद्धि में इस बढ़ोत्तरी का सबसे बड़ा फायदा शीर्ष दस
फीसदी लोगों को मिला.
लेकिन नीचे वाले भी बहुत नुकसान में नहीं रहे. आंकड़ो के मुताबिक सबसे नीचे के 50 फीसदी लोगों की
संपत्ति जेा 2019 में 2 ट्रिलियन डॉलर थी अब करीब 4.4 ट्रिलियन डॉलर है यानी
करीब दोगुनी बढ़त.
एसा शायद उन अमेरिका में रेाजगार बचाने के लिए कंपनियों दी गई मदद
यानी पे चेक प्रोटेक्शन ओर बेरोजगारी भत्तों के कारण हुआ.
अमेरिका में बेरोजगारी का बाजार अनोखा हो गया. नौकरियां खाली हैं
काम करने वाले नहीं हैं.
इस आंकडे से यह भी पता चलता है कि अमेरिका के लोग महंगाई के लिए
तैयार थे तभी गैसोलीन की कीमत बढ़ने के बावजूद उपभोक्ता खर्च में कमी नहीं आई है.
कंपनियों के पास ताकत है
कोविड के दौरान पूरी दुनिया में कंपनियों के मुनाफे बढे थे. खर्च कम
हुए और सस्ता कर्ज मिला. महंगाई के साथ उन्हें कीमतें बढ़ने का मौका भी मिल गया.
अब कंपनियां कीमत बढाकर लागत को संभाल रही हैं निवेश में कमी नहीं कर रहीं.
अमेरिका में कंपनियों के प्रॉफिट मार्जिन का बढ़ने का प्रमाण इस चार्ट में दिखता
है
भारत में भी कोविड के दौरान रिकार्ड कंपनियों ने रिकार्ड मुनाफे दर्ज
किये थे. वित्त वर्ष 2020-21 में
जब जीडीपी, कोवडि वाली
मंदी के अंधे कुएं में गिर गया तब शेयर बाजार में सूचीबद्ध भारतीय कंपनियों के
मुनाफे रिकार्ड 57.6 फीसदी बढ़ कर 5.31 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गए. जो जीडीपी
के अनुपात में 2.63 फीसदी है यानी (नकारात्मक जीडीपी
के बावजूद) दस साल में सर्वाधिक.
यूरोप और अमेरिका भारत से इस लिए फर्क हैं कि वहां कंपनियां महंगे
कर्ज के बावजूद रोजगार कम नहीं कर रही हैं. नई भर्तियां जारी हैं. अमेरिका में ब्याज
दरें बढ़ने के बाद सितंबर तक हर महीने गैर कृषि रोजगार बढ़ रहे हैं यह बढ़त पांच
लाख से 2.5 लाख नौकरियां प्रति माह की है.
और कर्ज की मांग भी नहीं टूटी
सबसे अचरज का पहलू यह है कि ब्याज दरों में लगातार बढोत्तरी के
बावजूद प्रमुख बाजारों में कर्ज की मांग कम नहीं हो रही है. कंपनियां शायद यह मान
रही हैं कि मंदी नहीं आएगी इसलिए वे कर्ज में कमी नहीं कर रहीं. अमेरिका जापान और
यूके में कर्ज की मांग 7 से 10 फीसदी की दर से बढ रही है. भारत में महंगे ब्याज
के बावजूद कर्ज की मांग अक्टूबर के पहले सप्ताह में 18 फीसदी यानी दस साल के
सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है.
इसलिए एक तरफ जब दुनिया भर के केंद्रीय बैंक मंदी की
अगवानी को तैयार बैठे हैं शेयर बाजारों में कोई बड़ी गिरावट नहीं है.
कमॉडिटी कीमतों में कोई तेज गिरावट भी नहीं हो रही है. तेल और
नेचुरल गैस तो खैर खौल ही ही रहे हैं लेकिन अन्य कमॉडिटी भी कोई बहुत कमजोर पड़ी
हैं. ब्लूबमर्ग का कमॉडिटी सूचकांक सितंबर तक तीन माह में केवल चार फीसदी नीचे आ
आया है.
तो अब
संभावना क्या हैं
मौजूदा
कारकों की रोशनी में अब मंदी को लेकर दो आसार हैं.
एक
या तो मंदी बहुत सामान्य रहेगी
या
फिर आने में लंबा वक्त लेगी
मंदी
न आना अच्छी खबर है या चिंताजनक
मंदी
का देर से आना यानी महंगाई का टिकाऊ होना
है
तो
फिर ब्याज दरों में बढ़त लंबी चलेगी
और
डॉलर की मजबूती भी
जिसकी
मार से दुनिया भर की मुद्रायें परेशान हैं
तो
आगे क्या
दुनिया
ने मंदी नहीं तो स्टैगफ्लेशन चुन ली है
यानी
आर्थिक विकास दर में गिरावट और महंगाई एक साथ
क्या
स्टैगफ्लेशन मंदी से ज्यादा बुरी होती है ..
महंगाई
क्यों मजबूत दिखती है
No comments:
Post a Comment