Arthaat
A different accent of politconomy
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Monday, December 6, 2021
वाह सुधार, आह सुधार
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इतिहास स्वयं को हजार तरीकों से दोहराता रह सकता है. लेकिन संदेश हमेशा बड़े साफ होते हैं. इतने साफ कि हम माया सभ्यता की स्मृतियों को भ...
Friday, December 11, 2020
धुआं-सा यहां से उठता है
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एक गांव के लोग भरपूर पैदावार के बाद भी गरीब होते जा रहे थे . मांग थी नहीं , सो कीमत नहीं मिलती थी . नि जाम ने कहा बाजार में नए कारोबारी आए...
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