Monday, May 23, 2011

अब तो ग्रोथ पर बन आई

मुंबई में रिजर्व बैंक की छत से एक कौए ने ब्याज दरें बढ़ने के ऐलान के साथ महंगाई से डराने वाली प्रभाती सुनाई, तो दिल्ली में वित्त मंत्रालय की मुंडेर पर बैठे दूसरे कौए ने पेट्रो कीमतों में बढ़ोत्तडरी की हांक लगाते हुए कहा कि यह कैसी रही भाई? ... यह सुनकर स्टॉक एक्सचेंज की छत पर बैठा एक दिलजला कौआ चीखा, चुप करो अब तो ग्रोथ पर बन आई। यकीनन, अब भारत के तेज आर्थिक विकास पर बन आई है। महंगाई ने सात साल में कमाई गई सबसे कीमती पूंजी पर दांत गड़ा दिये हैं। तमाम संकटों के बावजूद टिकी रही हमारी चहेती ग्रोथ अब खतरे में है। रिजर्व बैंक कह चुका है कि महंगाई अब विकास को खायेगी। सरकार भी ग्रोथ बचाने के बजाय महंगाई बढ़ाने (पेट्रो मूल्य वृद्धि) में मुब्तिला है। ग्रोथ, बढ़ती कमाई और रोजगार के  सहारे ही पिछले तीन साल से महंगाई को झेल रहे थे लेकिन मगर हम महंगाई को अपनी तरक्की खाते देखेंगे। दहाई की (दस फीसदी) की विकास दर का ख्वाब चूर होने के करीब है।
हारने की रणनीति
हम दुनिया की सबसे ज्यादा महंगाई वाली अर्थव्यवस्थाओं में एक है और यह हाल के इतिहास का सबसे लंबी और जिद्दी महंगाई है। महंगाई के इन वर्षों में चुनाव न आते तो शायद सरकारें महंगाई से निचुडते आम लोगों को ठेंगे पर ही रखतीं। क्यों कि महंगाई से मुकाबला सियासत की गणित के तहत हुआ है। तभी तो बंगाल में वोट पड़ते पेट्रोल पांच रुपये बढ़ गया। बढ़ोत्तंरी अगर क्रमश: होती तो शायद दर्द कुछ कम रहता। पिछले तीन साल की महंगाई ने केंद्र के आर्थिक प्रबंधकों की दरिद्र दूरदर्शिता को उघाड़ दिया है। ताजा महंगाई ने हमें 2008-09 में पकड़ा था। याद कीजिये कि तब से प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री, योजना आयोग के मुखिया, रिजर्व बैंक गवर्नर आदि ने कितनी बार यह नहीं कहा कि तीन माह में महंगाई काबू में होगी मगर तीन माह खत्म होने से पहले ही इन्हों ने अपनी बात वापस चबा कर निगल
ली। कीमतों में बढोत्तरी खाद्य उत्पा्दों से शुरु होकर ईंधन से होते हुए फैक्ट्रियों (मैन्युफैक्चर्ड उत्पादों) तक फैल चुकी है। अब तो खाद्य कीमतों में कमी से इसे कोई फर्क नहीं पड़ता। पिछले पांच माह में खाद्य उत्पादों का सूचकांक दो बार नीचे जा चुका है लेकिन सरकार कीमतें फिर ऊपर चढ़ने से रोक नहीं सकी। पिछला मानसून खराब नहीं था, रबी में खेती बेहतर दिखी है फिर भी खाद्य उत्पारदों का बाजार अराजक रुप से महंगा है, अलबत्ता सरकार इसे मौसमी उतार-चढ़ाव मानती है। सरकार का महंगाई मैनेजर यानी रिजर्व बैंक दो साल में नौ बार ( अनोखा और अनदेखा) ब्याज दरें बढ़ा चुका है, मगर महंगाई न थमी अलबत्तां अर्थव्यावस्था के कदम जरुर थमने लगे। भारत का महंगाई प्रबंधन अंतरविरोधों, औंधे मुंह गिरते आकलनों और तदर्थ नीतियों का लॉफ्टर शो है, अब जिसकी कीमत तेज आर्थिक विकास चुकायेगा।
हार का ऐलान
रिजर्व बैंक की ताजी मौद्रिक नीति महंगाई से हार का ऐलान थी। वित्तं मंत्रालय ने तो बजट के बाद ही महंगाई के सामने घुटने टेक दिये थे। मतलब यह है कि महंगाई को बुझाने के लिए तेज विकास दर कुर्बान करनी होगी। हाल के वर्षों में यह पहला मौका जब है भारत की ग्रोथ स्टोरी खतरे में हैं। रिजर्व बैंक व इस काम में सिर्फ महंगाई की सिर्फ मदद कर सकती है। क्यों कि महंगाई अगर न थमी तो रिजर्व बैंक ब्यारज दरें बढ़ाता रहेगा। अंतरराष्ट्रीय बाजार अस्थि‍र है, अर्थात कच्चे तेल से लेकर तमाम जिंसों की कीमतें ग्रोथ पर ग्रहण को और गहरा करेंगी। रिजर्व बैंक ने विकास दर का लक्ष्यक आधा फीसदी घटा दिया है। योजना आयोग भी ग्रोथ में गिरावट पर राजी है। सरकार की यह हार उद्योगों का उत्सायह तोड़ रही है, आर्थिक विकास के लगभग सभी आकलन अब ग्रोथ के लक्ष्य को घटाकर आठ फीसदी के इर्द गिर्द ला रहे हैं। हैरत की बात है कि सरकार और रिजर्व बैंक, जो इस साल की शुरुआत तक महंगाई को मौसमी व आपूर्ति की समस्या बता रहे थे वह अचानक यह कहने लगे हैं कि तेज ग्रोथ के कारण बढ़ी मांग ने महंगाई के नाखून तेज किये हैं और ग्रोथ की बलि ही एक रास्ता है। सरकार की गफलत में हम आम लोग दोनों तरफ से मारे गए हैं, सरकार न तो महंगाई रोक सकी और न ही ग्रोथ बचा पा रही है। महंगाई ने हमारी बचत और हमारी क्रय शक्ति को निचोड़ लिया था और ग्रोथ में कमी अब जीवन स्तर में बेहतरी की कोशिशों को ले डूबेगी।
हार का मतलब
सरकार के तर्कवीर अर्थशासत्रियों ने पैंतरा बदल लिया है। उनकी राय में ऊंची मुद्रास्फीडति और विदेश से भारी निवेश का मतलब है कि भारत का आर्थिक इंजन गरम ( ओवरहीट इकोनॉमी) हो गया है और जरुरत से ज्याादा मांग पैदा कर रहा है। रिजर्व बैंक कहता है कि ऊंची मुद्रास्फी ति और तेज विकास साथ साथ नहीं चल सकते। जरा याद तो कीजिये ताजे कि आर्थिक सर्वेक्षण और बारहवीं योजना के मसौदे में तो 9 से 9.5 की विकास दर की बात की गई थी, तीन माह में ही सारी गणित, गोबर हो गई। अलबत्ता महंगाई के मुकाबले ग्रोथ को गंवाने का जोखिम गहरा है। सरकार में भी भीतर कहीं गहरी धुक धुक है इसलिए आठ फीसदी की विकास दर को भी शानदार कहा जा रहा है। उद्योगों ने बीते कुछ वर्षों में भारी निवेश से क्षमतायें तैयार की हैं, मांग घटी तो उत्पादन कम होगा और बेकारी बढ़ेगी और निवेश का पलायन होगा। इसी ग्रोथ के सहारे टैक्स संग्रह बढ़ाकर केंद्र व राज्यों को अपना खजाना सुधारा है, कम उत्पा दन कम राजस्वी का मतलब ज्यादा घाटा और सरकार का भारी बाजार कर्ज है मुद्रास्फी ति व ब्याज दरें बढ़ाने के काम आएगा। डरना जरुरी है अगर आर्थिक सुस्ती और मुद्रास्फीति साथ साथ ( स्टैगफ्लैशन) अर्थव्यवस्था में पैठ गए तो निजात पाने में लंबा समय निकल जाएगा।
महंगाई का जोखिम बहुत बड़ा है इसलिए चीन ने कीमतें बढते ही महंगाई गले से पकड़ लिया है।  कीमतें बढ़ाने का ऐलान करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनीलीवर पर चीन में तीन लाख डॉलर का जुर्माना ठोंक दिया गया है, हमें जब ऐसा करना था तब हमारे रहनुमा महंगाई को पोस रहे थे और प्रशासनिक दुर्बलता सिद्ध कर रहे थे। महंगाई का मोर्चा हम पहले ही हारे बैठे हैं फिर भी बढ़ी कीमतों की जलन इसलिए बर्दाश्त् हो गई क्यों कि ग्रोथ के कारण बढी आय मलहम बन रही थी मगर अब विकास दर घटने से तो बेकारी बढ़ेगी और आय घटेगी। लेकिन हैरत है कि सरकार को ग्रोथ गंवाकर महंगाई रोकने के इस दांव में राजनीतिक जोखिम नहीं दिखता है। .... वक्‍त जरा मुश्किल है। सरकार की साख बुरी तरह दागी है और प्रशासनिक कमजोरियों के कारण फजीहत रोज की बात है। इस माहौल में केवल तेज आर्थिक विकास में एक रोशनी दिख रही थी मगर अब तो वह भी दांव पर लग गया है ।
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अर्थार्थ पर महंगाई ....

तख्ता पलट महंगाई


हमने कमाई महंगाई




2 comments:

  1. I LIKE YOUR STARTING. IT IS ALWAYS GOOD.

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  2. I AM SURPRISED WHY THE GOVT IS NOT READING YOUR ARTICALS?

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