बाजार खुल गया है। अब सौदे शुरु होने का वक्त है। भारत की सियासत ने अपने सबसे बड़े कारोबार को विदेशी पूंजी के लिए ऐसे अनोखे अंदाज में खोला है कि अब बाजार के भीतर नए बाजार खुलने वाले हैं। अरबों के डॉलर के खुदरा खेल में देश के मुख्यमंत्री सबसे बडी ताकत बन गए हैं। विदेशी पूंजी के बड़े फैसले अब राज्यों की राजधानियों में होंगे जहां वाल मार्ट, टेस्को, कार्फू जैसे ग्लोबल रिटेल दिग्गज, नीतियों को ‘प्रभावित ’ करने की अपनी क्षमता का इम्तहान देंगे और नतीजे इस बात पर निर्भर होंगे कौन सा मुख्यमंत्री ‘कब और कैसे’ प्रभावित होता है। सौदों का दूसरा बाजार खुद देशी रिटेल उद्योग होने वाला है। ताजा बहस में हाशिये पर रहे करीब 1150 अरब रुपये के देशी संगठित रिटेल उद्योग में कंपनियों व ब्रांडों की मंडी लगने वाली है जिसमें ग्लोबल रिटेलर कंपनियां ही ग्राहक होंगी।
मंजूरियों का बाजार
खुदरा कारोबार में विदेशी पूंजी पर संसद की बहस का से देश का इतना तो अंदाज हो ही गया है कि ग्लोबल रिटेल का सौदा फूल और कांटों का मिला जुला कारोबार है। बाजार खुलने के बाद अब विदेशी पूंजी के गुण दोष की बहस बजाय इन फूल कांटों का हिसाब करना ज्यादा समझदारी है। विदेशी निवेश को लेकर यह शायद यह पहला फैसला है जिसमें राज्य सरकारें विदेशी कंपनियों की आमद तय करेंगी। खुदरा कारोबार में विदेशी निवेश पर जो फैसला संसद की दहलीज से बाहर आया है उसे भारत के नक्शे पर रखकर देखने के बाद रिटेल की राजनीतिक तस्वीर
मुकम्मल होती है।
मुकम्मल होती है।
इस फैसले को दस लाख से अधिक आबादी वाले 53 शहरों पर लागू होना है। ताजी राजनीतिक सहमति आंध्र प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान, जम्मू कश्मीर व चंडीगढ़ तक सीमित है, जिनकी सीमा में आने वाले 16 बड़े शहरों में वाल मार्टों, कार्फू आदि का स्वागत हो सकता है। यकीनन इनमें दिल्ली मुंबई, पुणे हैदराबाद, फरीदाबाद, जयपुर हैं लेकिन ग्लोबल कंपनियों के लिए इतना छोटा बाजार नुकसान का सौदा है। यदि महाराष्ट्र बाजार खोलने में हिचका तो बाजार और सिकुड़ जाएगा। रिटेल के ताजा राजनीतिक नक्शे से बड़े राज्य नदारद हैं, जिनके दायरे में दस लाख की आबादी वाले ज्यादातर शहर आते हैं। उत्तर प्रदेश के सात, केरल के सात, मध्य प्रदेश के चार गुजरात व तमिलनाडु के चार चार शहरों अर्थात कोलकाता चेन्नई, कानपुर, लखनऊ, गाजियाबाद, अहमदाबाद, सूरत, कोच्चि, मल्लापुरम, कोयंबटूर, भोपाल, इंदौर आदि के बिना ग्लोबल रिटेल दिग्गजों की दुकान नहीं जमेगी। वाल मार्ट, कार्फू, टेस्को जैसी कंपनियों के कारोबारी मॉडलों की सफलता का आधार उनका भीमकाय संचालन है जो भारत में तभी संभव है जब अखिलेश यादव, ओमन चांडी, जयललिता, शिवराज सिंह और नरेंद्र मोदी इन कंपनियों पर मेहरबान होंगे। मुख्यमंत्रियों के दफ्तर अब ग्लोबल रिटेलरों की लामबंदी का नया केंद्र होने वाले हैं।
कंपनियों की मंडी
सियासत को मनाने में वक्त लगेगा इसलिए देशी रिटेल कंपनियों में हिस्सेदारी खरीदने व अधिग्रहणों की मंडी सबसे पहले खुलेगी। जिनके सहारे विदेशी दिग्गज आसानी से बाजार में उतर सकते हैं। 435 अरब डॉलर (फिक्की रिपोर्ट 2010) के देशी रिटेल बाजार में घरेलू संगठित रिटेलर करीब पांच फीसदी के हिस्सेदार हैं यानी कि 21 अरब डॉलर का बाजार उनके पास है। किशोर बियानी के फ्यूचर ग्रुप की पैंटालून बिग बाजार 71 शहरों में 1000 स्टोर, शॉपर्स स्टॉप 15 शहर 35 स्टोर, आरपीजी समूह की स्पेंसर रिटेल 66 शहरों में 250 स्टोर, आदित्य बिरला समूह का मोर 60 शहरों में 500 स्टोर, रिलायंस रिटेल करीब 100 स्टोर , भारती रिटेल की इजी डे,टाटा ट्रेंट व ग्लोबस, लैंडमार्क समूह की लाइफस्टाइल अन्य कंपनियां हैं।
भारत के संगठित रिटेल की दासतान बहुत सुहावनी नहीं है। देशी खुदरा की चमत्कारी कंपनी सुभिक्षा का दीवालिया होना बाजार की यादों में ताजा है, ज्यादातर देशी रिटेल ब्रांड घाटे में या दबाव में हैं और सेवाओं की क्वालिटी खराब है। देशी कंपनियों की अधिकांश बिक्री कपड़ों, जूतों आदि से आ रही है। फूड और ग्रॉसरी इसके बाद हैं लेकिन खाद्य उत्पादों के घरेलू बाजार में संगठित रिटेलरों का हिस्सा बहुत छोटा है। इसलिए मार्जिन कमजोर हैं। रिलायंस, बिरला आदि को छोड़ देश की सभी रिटेल कंपनियां पूंजी की तलाश में हैं। देशी बाजार की सबसे बडी कंपनी पैंटालून 5000 करोड़ रुपये के कर्ज से दबी है। विदेशी दिग्गज इन कंपनियों में निवेश या इनके अधिग्रहण से पहला रास्ता बनायेंगे। तमाम छोटे क्षेत्रीय रिटेल चेन भी इनके निशाने पर होंगे। अचल संपत्ति इस धंधे का बुनियादी और सबसे महंगा कच्चा माल है। संगठित रिटेल के ज्यादातर विदेशी दिग्गज पहले से भारत में आ चुके हैं। अमेरिकी कंपनी वाल मार्ट भारती समूह के साथ, ब्रिटिश रिटेलर टेस्को टाटा के साथ, मार्कस् एंड स्पेंसर रिलायंस के साथ भारत आ चुके हैं जबकि फ्रेंच कंपनी कार्फू व जर्मन कंपनी मेट्रो कैश एंड कैरी स्वतंत्र रुप से भारत में हैं।
खुदरा कारोबार बहुत भारी और लंबे निवेश का धंधा है इसलिए कुछ ही कंपनियां पूरी दुनिया पर राज कर पाती हैं। अचल संपत्ति यानी स्टोर स्पेस इस कारोबार का मुख्य और सबसे महंगा कच्चा माल है। ग्लोबल रिटेलरों अगले दस साल में 700 लाख वर्ग फिट की जगह का जुगाड़ करना है इसलिए करीब 200 लाख वर्ग फिट की जगह संभालने वाले देशी रिटेलर इनके पहला निशाना होंगे। पूरी सप्लाई चेन का नियंत्रण और कारोबार का बड़ा आकार संगठित रिटेल में फायदे का सूत्र है। इस सूत्र के दो सिरे हैं। जिसका एक सिरा मुख्यमंत्रयों के दफ्तर में खुलता है और दूसरा देशी रिटेलरों की खराब होती बैलेंस शीट में। देश के खुदरा बाजार के भीतर अब दो बाजार खुलने हैं। सरकारी मंजूरियों का एक बाजार पर्दे के पीछे चलेगा जबकि दूसरी तरह के सौदे वित्तीय और शेयर बाजार की दुकानों पर होंगे। बाजार खुल गया है यकीनन अब बड़े सौदों की बारी है।
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