बाजार खोलने वाले हाथ यदि गंदे हैं तो उदार बाजार, स्वस्थ प्रतिस्पर्धा, सबको समान अवसर और पारदर्शिता की गारंटी नहीं होता।
हैदराबाद की जीएमआर दिल्ली में एयरपोर्ट बनाकर यात्रियों
से फीस वसूलती है लेकिन सरकार उसे 1.63 लाख करोड़ रुपये की जमीन लगभग मुफ्त में दे
देती है, भारत में निजी निवेश के तरीके को सावर्जनिक निजी भागीदारी यानी पीपीपी कहते
हैं। कोयला उद्योग सरकारी नियंत्रण में है लेकिन नवीन जिंदल जैसों को पिछले दरवाजे
से खदानें मिल जाती हैं यह निजीकरण का नया इंडियन मॉडल है। भारत से ढेर सारी
उड़ानों की सरकारी गारंटी के बाद अबूधाबी की सरकारी विमान कंपनी इत्तिहाद, जेट
एयरवेज में हिस्सेदारी खरीदती है और भारत के उभरते अंतरराष्ट्रीय एयर ट्रैफिक
बाजार में शेखों की कंपनी को निर्णायक बढ़त मिल जाती है। यह विदेशी निवेश की आधुनिक
हिंदुस्तानी पद्धति है, जो प्रतिस्पर्धा को खत्म कर देती है। भारत अब मैक्सिको
व इजिप्ट जैसे निजीकरण की राह पर बढ़ चला है जहां खुले बाजार के फायदे सत्ता की चहेती
देशी विदेशी कंपनियों ने बांट लिये और अधिकांश मुल्क गरीब का गरीब रहा।
कोयला खदान आवंटन व 2 जी लाइसेंसों की तरह ही जेट
इत्तिहाद की सौदे की पूरी दाल ही काली है, क्यों कि दागी निजीकरण की संस्कृति अब
विदेश निवेश तक आ गई है। दो मुल्कों के बीच एयर सर्विस एग्रीमेंट ग्लोबल विमानन
बाजार की बुनियाद हैं इनके तहत दो देशों की विमान कंपनियां परस्पर उड़ानें शुरु
करती हैं और विमानन बाजार में कारोबारी हितों की अदला बदली करती हैं। अलबत्ता जब किसी
देश की कंपनी दूसरे मुल्क की कंपनी में निवेश करती हैं तो यह निजी कारोबारी फैसला
होता है जिस पर बाजार व निवेश के नियम लागू होते हैं। जेट इत्तिहाद अनुबंध एक
अनोखी मिसाल है जिसमें
दुतरफा एयर सर्विस एग्रीमेंट व विदेश निवेश एक दूसरे से जोड़ दिये गए, ताकि अबूधाबी की सरकारी विमान कंपनी, इत्त्िाहाद एयरवेज को फायदा मिल सके। 24 अप्रैल को विमानन मंत्री अजीत सिंह ने एयर सर्विस एग्रीमेंट के तहत अबूधाबी को अगले तीन साल तक प्रति सप्ताह भारत 37,000 अतिरिक्त यात्री ले जाने की छूट दी और ठीक उसी दिन इत्तिहाद ने भारत की सबसे बड़ी निजी एयरलाइंस जेट एयरवेज में 32 फीसद प्रीमियम पर 24 फीसद हिससा खरीद लिया। एयर सर्विस एग्रीमेंट से मिली सीटों व जेट के पास पहले से उपलब्ध सुविधाओं की बदौलत भारत के अंतरराष्ट्रीय एयर ट्रैफिक बाजार में, इत्तिहाद पहले दिन से बड़ी ताकत बन गई।
दुतरफा एयर सर्विस एग्रीमेंट व विदेश निवेश एक दूसरे से जोड़ दिये गए, ताकि अबूधाबी की सरकारी विमान कंपनी, इत्त्िाहाद एयरवेज को फायदा मिल सके। 24 अप्रैल को विमानन मंत्री अजीत सिंह ने एयर सर्विस एग्रीमेंट के तहत अबूधाबी को अगले तीन साल तक प्रति सप्ताह भारत 37,000 अतिरिक्त यात्री ले जाने की छूट दी और ठीक उसी दिन इत्तिहाद ने भारत की सबसे बड़ी निजी एयरलाइंस जेट एयरवेज में 32 फीसद प्रीमियम पर 24 फीसद हिससा खरीद लिया। एयर सर्विस एग्रीमेंट से मिली सीटों व जेट के पास पहले से उपलब्ध सुविधाओं की बदौलत भारत के अंतरराष्ट्रीय एयर ट्रैफिक बाजार में, इत्तिहाद पहले दिन से बड़ी ताकत बन गई।
जैसे निजी कंपनियां पिछले दरवाजे से कोयला खदाने
ले उड़ीं ठीक उसी तरह इत्तिहाद विदेशी निवेशक का तमगा हासिल करने से पहले दरअसल पिछले
दरवाजे से भारतीय बाजार में आ चुक थी। जेट इत्तिहाद सौदे का खुला खेल सबको दिख रहा
है। यही वजह है कि सेबी व प्रतिस्पर्धा आयोग इस करार पर स्पष्टीकरण मांग चुके
हैं और परिवहन संबंधी संसदीय समिति सवाल उठा चुकी है क्यों कि इस अनुबंध से भारत
और उत्तर अमेरिका-यूरोप-खाड़ी के बीच अंतरराष्ट्रीय एयर ट्रैफिक सेक्टर में प्रतिस्पर्धा
का संतुलन बिगड़ना तय है। भारत की मरती हुई नेशनल कैरियर एयर इंडिया के पास बढ़ते अंतरराष्ट्रीय
ट्रैफिक के लिए क्षमता ही नहीं है। अधिकांश भारतीय अमेरिका, यूरोप व अफ्रीका व लैटिन
अमेरिका जाने के लिए विदेशी एयर लाइंस का इस्तेमाल करते हैं। एमीरेट्स एयरलाइंस को
मजाक में भारत की नेशनल एयरलाइंस कहा जाने लगा है। एमीरेट्स के 70 फीसद भारतीय यात्री
यूरोप,अमेरिका, अफ्रीका जाने के लिए दुबई से एमीरेट्स की उड़ानें पकड़ते हैं। इत्तिहाद
भी इसी तैयारी में है और दुबई के बाद अबूधाबी भारत से ट्रैफिक बटोरने का नया हब बनेगा।
विमानन में विदेश निवेश के इस नए तरीके के बाद अन्य निवेशक भी यही स्वीटहार्ट
डील मांगेंगे, क्यों कि कुछ देशों को छोड़ कर अधिकांश विमानन कंपनिया दरअसल नेशनल
कैरियर ही हैं। यह पूरा सौदा विवादों का टाइम बम है। जिसमें विमानन मंत्री अजीत सिंह
ने न केवल प्रधानमंत्री कार्यालय की आपत्तियों की अनदेखी की है, बल्कि खाड़ी से
निवेश में सुरक्षा संबंधी सवाल भी नकारे गए हैं।
भार त में निजीकरण का हर पहलू अब दागी हो
गया है और विवादों की कालिख प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन से लेकर विदेशी निवेश तक
फैल गई है। चहेती कंपनियों को पिछले दरवाजे से नवाजने की शुरुआत सार्वजनिक निजी
भागीदारी (पीपीपी) से हुई थी जिसके भारतीय मॉडल को संयुक्त राष्ट्र संघ के ड्रग एंड
क्राइम ऑफिस ने अपनी ताजा रिपोर्ट में बुरी तरह भ्रष्ट ठहराया है। पिछले कुछ
वर्षों में मंजूर, चार लाख करोड़ की पीपीपी परियोजनाओं में हर स्तर पर भ्रष्टाचार
है। पीपीपी के लिए केंद्रीय कानून नहीं है, सरकारी खरीद में पारदर्शिता का कानून
संसद में अटका है और पीपीपी में शामिल निजी कंपनियां सूचना के अधिकार के दायरे से
बाहर हैं जबकि भ्रष्टाचार के इस सबसे उपजाऊ मॉडल में प्रधानमंत्री 1.15 लाख करोड़
रुपये के नए प्रोजेक्ट लाने वाले हैं।
भारत के वर्तमान पर मैक्सिको व इजिप्ट की काली
छाया तैर रही है, जहां उदार बाजार मुट्ठी भर लोगों के हाथ में सिमट गया। कार्लोस
स्लिम बेहद औसत उद्यमी था लेकिन 1990 में मैक्सिको में निजीकरण उसने राजनीतिक रसूख
के सहारे सरकारी दूरसंचार कंपनी हथिया ली और सरकारी एकाधिकार, निजी एकाधिकार में
बदल गया। ठीक इसी दौरान इजिप्ट ने भी बाजार खोला था मगर अहमद इज्ज, मोहम्मद
नूसीर, अहमद जयात, उस्मान अब्जा, रशीद मोहम्मद जैसे चुनिंदा उद्योगपति राष्ट्रपति
होस्नी मुबारक से मिलकर इजिप्ट के कृषि, स्टील, पर्यटन, मीडिया, उपभोक्ता उत्पाद,
आटोमोबाइल बाजार पर काबिज हो गए नतीजतन मैक्सिको पिछड़ा ही रहा और मुबारक के सत्ता
से उतरने के बाद भी इजिप्ट का अभिशाप जारी है। बाजार खोलने वाले हाथ यदि गंदे हैं
तो उदार बाजार, स्वस्थ प्रतिस्पर्धा, सबको समान अवसर और पारदर्शिता की गारंटी नहीं
होता। मनमोन सोनिया के निजाम ने उदारीकरण, निजीकरण व भूंडलीकरण का एक नया संस्करण
तैयार किया है जिसमें सरकार व निजी क्षेत्र के गठजोड़ से बेधड़क लूट का नया रास्ता
खुल जाता है जबकि विदेशी निवेश बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की मौत बन कर आता
है। जेट इत्तिहाद अनुबंध के साथ चोरदरवाजों से निजीकरण का भारतीय मॉडल अब ग्लोबल
हो गया है।
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