· भारत में सबसे ज्यादा निजी निवेश उस वक्त आया जब कॉर्पोरेट इनकम टैक्स की दर 39 से 34 फीसद के बीच (2000 से 2010) थी. सनद रहे कि कंपनियां मांग देखकर निवेश करती हैं, टैक्स तो वे उपभोक्ताओं के साथ बांट देती हैं
· पिछले चार साल में खपत को विश्व रिकॉर्ड बनाना चाहिए था क्योंकि महंगाई रिकॉर्ड न्यूनतम स्तर पर है
· ऊंचा टैक्स, अगर, लोगों को खरीद से रोकता है तो फिर जीएसटी के तहत टैक्स में कटौती के बाद मांग कुलांचे भरनी चाहिए थी
· जनवरी 2016 में वेतन आयोग, 2018-19 में लोगों के हाथ में तीन लाख करोड़ रुपए (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर—बीते बरस से 60 फीसद ज्यादा) दिए और नकद किसान सहायता व मनरेगा—मगर मांग नहीं बढ़ी
· कर्ज पर ब्याज की दर पिछले एक साल से घटते हुए अब पांच साल के न्यूनतम स्तर पर है
· 2014-19 के बीच केंद्र का खर्च 17 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर करीब 24 लाख करोड़ रुपए हो गया. वित्त आयोग की सिफारिशों के तहत राज्यों को ज्यादा संसाधन मिले
· बकौल प्रधानमंत्री, पिछले पांच साल में रिकॉर्ड विदेशी निवेश हुआ है, शेयर बाजारों में बड़े पैमाने पर विदेशी पूंजी आई है
... लेकिन 2017 में भारत की अर्थव्यवस्था जो 8.2 फीसद से दौड़ रही थी अब पांच फीसद पर है.
ताजा मंदी कठिन पहेली बन रही है. पिछले छह-सात वर्ष में आपूर्ति के स्तर पर वह सब कुछ हुआ है जिसके कारण खपत को लगातार बढ़ते रहना चाहिए था. लेकिन 140 करोड़ उपभोक्ताओं के बाजार की बुनियाद यानी मांग टूट गई है.
कार-मकान को उच्च मध्य वर्ग की मांग मानकर परे रख दें तो भी साबुन-तेल-मंजन की खपत में 15 साल की (क्रेडिट सुइस रिपोर्ट) सबसे गहरी मंदी! क्यों?
उत्पादों की बिक्री, टैक्स, जीडीपी और आम लोगों की कमाई के आंकड़ों का पूरा परिवार गवाह है कि यह मंदी विशाल ग्रामीण, कस्बाई अर्थव्यवस्था में आय और रोजगार में अभूतपूर्व गिरावट से निकली है.
2019 में कृषि जीडीपी 15 साल के न्यूनतम स्तर पर (3 फीसद) पर आ गया. नोटबंदी ने गांवों को तोड़ दिया. 2016 के बाद से फसलों के वाजिब दाम नहीं मिले. महंगाई के आंकड़ों में उपज की कीमतें दस साल के निचले स्तर पर हैं. अनाजों की उपज कृषि जीडीपी में केवल 18 फीसद की हिस्सेदार हैं, इसलिए समर्थन मूल्य बढ़ने का असर सीमित रहा.
2016 के बाद से ग्रामीण आय (14 करोड़ खेतिहर श्रमिक) केवल दो फीसद बढ़ी जबकि शेष अर्थव्यवस्था में 12 फीसद. नतीजतन गांवों में आय बढ़ने की दर दस साल के सबसे निचले स्तर पर है.
जीडीपी की नई शृंखला (ग्रॉस वैल्यू एडिशन) के मुताबिक, 2012-17 के बीच खेती में बढ़ी हुई आय का केवल 15.7 फीसद हिस्सा श्रम करने वालों को मिला जबकि 84 फीसद उनके पास गया जिनकी पूंजी खेती में लगी थी. इस दौरान हुई पैदावार का जितना मूल्य बढ़ा उसका केवल 2.87 फीसद हिस्सा मजदूरी बढ़ाने पर खर्च हुआ. इंडिया रेटिंग्स मानती है कि इस दौरान गरीबी बढ़ी है.
2012-18 के बीच भारत में कम से कम 2.9 करोड़ रोजगार बनने चाहिए थे. जो खेती, रोजगार गहन उद्योगों (भवन निर्माण, कपड़ा, चमड़ा, व्यापार, सामुदायिक सेवाएं) से आने थे. इस बीच नोटबंदी और जीएसटी ने छोटी-मझोली (कुल 585 लाख प्रतिष्ठान—95.5 फीसद में पांच से कम कामगार—छठी आर्थिक जनगणना 2014) असंगठित अर्थव्यवस्था को तोड़ दिया, जो भारत में लगभग 85 फीसद रोजगार देता है. गांवों को शहरों से जाने वाले संसाधन भी रुक गए, जबकि शहरों से बेकार लोग गांव वापस पहुंचने लगे.
कर्ज में फंसने, प्रतिस्पर्धा सिकुड़ने और नियमों में बदलाव (ईकॉमर्स) के कारण बड़ी कंपनियों के बंद होने से नगरीय मध्य वर्ग भी बेकारी में फंस गया. यही वजह थी कि 2017-18 में बेकारी की दर 6.1 फीसद यानी 45 साल के सबसे ऊंचे स्तर (एनएएसओ) पर पहुंच गई जबकि जीडीपी 7.5 फीसद की ऊंचाई पर था.
भारत का श्रम बाजार अविकसित है. वेतन-मजदूरी कम है. जीडीपी (जीवीए) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, अर्थव्यवस्था में जितनी आय बनती है उसका केवल एक-तिहाई वेतन और मजदूरी में जाता है. ग्रामीण और अर्धनगरीय उपभोक्ता बढ़ती मांग का आधार हैं. उनकी अपेक्षाओं पर बैठकर कंपनियां नए उत्पाद लाती हैं. कमाई घटने के बाद नकद बचतें टूटीं क्योंकि जमीन का बाजार पहले से मंदी में था, जहां ज्यादातर बचत लगी है.
यह मंदी नीचे से उठकर ऊपर तक यानी (कार-मकान की बिक्री और सरकार के टैक्स में गिरावट) तक पहुंची है. कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती के बाद अब कंपनियों के मुनाफे तो बढ़ेंगे लेकिन रोजगार, मांग या खपत नहीं. घाटे की मारी सरकार अब खर्च भी नहीं कर पाएगी.
अगर सरकारें अपनी पूरी ताकत आय बढ़ाने वाले कार्यक्रमों में नहीं झोकतीं तो बड़ी आबादी को निम्न आय वर्ग में खिसक जाने का खतरा है यानी कम आय और कम मांग का दुष्चक्र. जो हमें लंबे समय तक औसत और कमजोर विकास दर के साथ जीने पर मजबूर कर सकता है.
The Income of Companies depend on Sale, Demand and Consumption. After decrease in corporate tax, Profit will increase but for few quarters. Profit of Companies = Income of Companies - Expenditure of Companies.
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