Friday, April 30, 2021

हम थे जिनके सहारे

 

कोविड के दौरान अस्पताल, ऑक्सीजन, दवा तलाशते और गिड़गिड़ाते हुए भारतीयों को महसूस हुआ होगा-क्या डिजिटल इंडिया वाले ऐसा पोर्टल या ऐप नहीं बना सकते थे जो -कॉमर्स या टैक्सी सर्विस की तरह हमारी भौगोलिक स्थि (जीपीएस) के आधार पर यह बता देता कि कोविड जांच केंद्र, अस्पताल और बिस्तर, ऑक्सीजन, फार्मेसी, क्लिनिक आसपास कहां मिल सकते हैं और कब क्या मिलेगा?

कोविड के बाद दुनिया में कहीं भी रातोरात हजारों अस्पताल नहीं बन गए. अनेक देशों ने तकनीकों के योजनाबद्ध प्रयोग डाटा प्रबंधन से मौजूदा स्वास्थ्य ढांचा ठीक कर असंख्य जिंदगियां बचाई हैं.

भारत की भयानक असफलता पर तर्क देखि 100 करोड़ लोगों को अस्पताल कैसे दे सकते हैं? 100 करोड़ लोग मांग भी कहां रहे हैं. देश में सक्रिय मामले (135 करोड़ पर 30 लाख, 28 अप्रैल 2021 तक) एक फीसद से कम हैं. उनमें भी क्सीजन और गंभीर इलाज वाली दवाओं के जरूरतमंद 10 फीसद हैं. इनके लिए 29 राज्यों में 'सिस्टमयानी अस्पताल, ऑक्सीजन और दवाओं की कमी कभी नहीं थी.

फिर भी, उभरतेसुपरपॉवरऔर विश्व की फार्मेसी में मौतों की लाइन इसलिए लग गई क्योंकि हम डिजिटली अभागे भी साबि हुए हैं. प्रचार ऐप बनाने में मशगूल डिजिटल इंडिया कोविड प्रबंधन में नई तकनीकों का उतना इस्तेमाल भी नहीं कर सका जितना कोलंबिया, मैसेडोनिया, कुवैत, सऊदी अरब, पाकिस्तान जैसे देशों ने कर लिया. संकट के बाद आम लोगों ने ट्विटर सूचनाओं के डैशबोर्ड बनाकर जिस तरह मदद की, उसी के जरिए दसियों देशों में स्वाथ्य सेवाओं का डिजिटल पुर्नजन्म हो गया.

संयुक्त राष्ट्र वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम और मैकेंजी के अध्ययन बताते हैं कि सूचनाओं के प्रसारण, सेवाओं-संसाधनों की मॉनीटरिंग उपलब्धता, संक्रमण पर अंकुश, -हेल्थ मरीजों की मॉनीटरिंग में डिजिटल तकनीकों के प्रयोग ने महामारी से लड़ने का तरीका ही बदल दिया.

जर्मनी ने अचूक डाटा बेस प्रबंधन से अस्पतालों, बिस्तरों, ऑक्सीजन और दवा आपूर्ति की मॉनीटरिंग की. ब्रिटेन ने अपने पुराने नेशनल हेल्थ सिस्टम का कायाकल्प करते हुए इन्फ्लुएंजा नेट जैसे प्रयोगों से सामान्य जुकाम वालों के साथ पुराने बीमारों पर भी नजर रखी.

दक्षि कोरिया ने कोवि के बाद दो पखवाड़े में संपर्क रहित ड्राइव थ्रू टेस्टिंग शुरू कर दी, सिंगापुर सहित पूर्वी एशिया और यूरोप ने गूगल के नेटवर्क के सहारे कांटेक्ट्र ट्रेसिंग के अचूक मॉडल बनाए. कई देशों ने अपनी दवा दुकानों को जोड़कर जांच और साधनों की आपूर्ति सुचारू कर ली.

भारत का हेल्थ पोर्टल बीमारों के आंकड़ों से आगे नहीं निकल सका लेकिन फ्रांस जैसे बड़े देश ही नहीं, बुल्गारिया, युगांडा, क्यूबा, अफगानिस्तान, स्लोवाकिया, मलेशिया, किर्गिस्तान, कुवैत, इथियोपिया, ग्रीस जैसे अनेक देशों ने तकनीक का बेजोड़ इस्तेमाल किया. जबकि भारत में तो ऑक्सीजन और दवा की आपूर्ति की मॉनीटरिंग का तंत्र भी नहीं बन सका.

हमें चौंकना चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र ने डिजिटल गवर्नेंस के सफल प्रयोगों में पाकिस्तान को शामिल किया है, जिसके नेशनल इन्फार्मेशन टेक्नोलॉजी बोर्ड ने सभी जरूरतों को एक ऐप से जोड़ने के साथ देश में भर फैले कोवि सहायता संसाधनों (अस्तपाल, दवा) आदि की भौगोलिक मैपिंग कर ली. यहां तक कि दवा की कालाबाजारी रोकने का तंत्र भी जोड़ा गया.

अमेरिका में 80 टेलीहेल्थ सेवाओं को आपात मंजूरी मिली तो शंघाई ने 11 ऑनलाइन अस्पताल खड़े कर दिए जबकि भारत में दवा और ऑक्सीजन खरीदने के लिए सीएमओ की चिट्ठी जरूरी बना दी गई. पूरी दुनिया में ऑनलाइन फार्मेसी पलक झपकते दवा पहुंचा रही हैं लेकिन भारत में लोग इंजेक्शन के लिए लाइन में लगे हैं.

भारत का आरोग्य सेतु सुर्खियां बनाकर विलीन हो गया. इसमें सूचनाओं की सुरक्षा बेहद कमजोर थी लेकिन प्रामाणि अध्ययन मानते हैं कि ज्यादातर देशों में कोविड के वक्त जो डिजिटल सेवाएं बनाई गईं उनमें निजता और गोपनीयता को पूरी तरह सुरक्षि किया गया था. भारत में जब थोथी आत्मप्रशंसा के महोत्सव चल रहे थे, तब कोवि आते ही कई देशों में प्रमुख तकनीकी कंपनियां और सरकारी नियामक, सूचना प्रबंधन, सेवा डिलिवरी और मॉनीटरिंग की नई प्रणालियां लागू कर रहे थे. इस तैयारी ने कोविड से उनकी लड़ाई तरीका ही बदल दिया.

दवा, ऑक्सीजन के लिए गिड़गिड़ाना और दयावानों से मदद की गुहार करना हरगिज जनभागीदारी नहीं है. जान बचाने की ये आखिरी कोशिशें, गर्व के नहीं शर्म के लायक हैं. महामारी ने बताया है कि हमारी तकनीकी तरक्की पूरी तरह पाखंड है. भारत का सिस्टम असफल नहीं हुआ, क्षमताएं नहीं चुकी हैं. सिस्टम तो जड़ है, जीवंत तो इसे चलाने वाले होते हैं लेकिन उन्होंने उपलब्ध तकनीकों का इस्तेमाल राजनैतिक प्रचार के लिए किया, व्यवस्था बनाने के लिए नहीं. और बढ़ते संक्रमण के बावजूद जीत का ऐलान कर दिया. 

गुस्से और दुख के संदेशों से भड़कने वाला भारतीय निजाम यह सोच ही नहीं पाता कि जिन आंकड़ों को छिपाया जा रहा है, उन्हीं के जरिए तो संसाधन और संक्रमण के प्रबंधन मॉनीटरिंग का अचूक तंत्र बना कर महामारी के मारों को दर-दर भटक कर मरने से बचाया जा सकता था.

10 comments:

  1. अंशुमन जी अलग अलग देशों की कैसे स्टडी हमारे सामने रखने के लिए धन्यवाद। अर्थात में आपके आर्थिक विश्लेषण और उनसे भविष्य में पूर्वानुमानों को मैने लगातार देखा है और सही भी पाया। कोरोना के संबंध में इन्ही पूर्वानुमानों को बड़े तौर पर अनदेखा किया गया। इसके कारण आवश्यक तैयारी का किया जाना नकात्मक तौर पर प्रभावित हुआ। अस्पतालों में बेड ,आईसीयू ,वेंटिलेटर ,ऑक्सीजन और दवाओं की उपलब्धता की आवश्यक जानकारी के लिए एकीकृत पोर्टल का अभाव लोगों में डर दे गया। और उस एकीकृत पोर्टल की कमी अब भी महसूस हो रही है। है।

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  2. Thanku so much sir... Outstanding solution point..

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  3. इस देश का स्थापित सत्य

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  4. सर्वप्रथम आप का आभार कि पूरे विश्व में कोरोना को लेकर क्या तैयारियाँ की गयी है उनसे रूबरू करवाने के लिए, हमारी सरकार पिछले वर्ष ही कोरोना के ख़त्म होने की घोषणा करके ना सिर्फ़ आत्मप्रशंसा में लीन हो गयी बल्कि उसने कई आपराधिक निर्णय लिए जैसे चुनाव, मेले आदि। अस्पताल, इलाज, ओक्सिजन, दवाइयाँ, वेक्सिन तो दूर की बात हमने टेस्टिंग और ट्रेसिंग का ढाँचा भी ढहा दिया।

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  5. Excellent information. Your article tells that governments are successful advertising in its politics but failed to use when people need it

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  6. One of the best sir ...
    Parturition sir desh ki government ki jvabdihi nhi hai . Enko sir vote 🗳chahiye
    . Gish hai gidh🙏
    Apne but hi aache se smjya hai ki srkaro ko kya krna chahiye tha or ye sirf vote ke chkr main lge the....Gidh

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  7. Nice article , it debunks govt's policy towards corona

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  8. I found this article very best seriously cause it shows a lot about how our government had done nothing in the field of Digital Technology.

    Why dont you look on my website
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  9. देश की राजधानी दिल्ली में मुख्यमंत्री के खिलाफ बयानबाजी और सिर्फ आलोचना करने में अपनी ऊर्जा खर्च करने के बजाय चिकित्सा सुविधाएं ठीक और मजबूत करने के लिए तालमेल के साथ काम किया होता तो आज का नजारा कुछ और होता. दिल्ली-एनसीआर में आने वाले भाजपा शासित राज्यों के शहरों की स्वास्थ्य सेवाएं चरमराई हुईं हैं. इसलिए अड़ोस-पड़ोस के शहरों के बेहाल मरीजों के परिजनों ने बड़ी संख्या में दिल्ली का रुख किया है क्योंकि बेहतर इलाज पाना सभी का मूलभूत अधिकार है. यही वजह है कि दिल्ली की आबादी के हिसाब से की गईं व्यवस्थाएं कम पड़ गई.इसे ऐसे समझा जा सकता है कि अगर आपने अपने परिवार के लिए एक महीने के राशन का इंतजाम किया हो और अचानक 10 मेहमान आ जाएं तो क्या होगा? अंशुमानजी हमारे पुराने साथी हैं, इसलिए उनकी विश्लेषण क्षमता से परिचित हूं जो उनके नियमित कालम अर्थ का अर्थ यानी 'अर्थार्थ' में दिखती भी है.

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