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Tuesday, January 27, 2015

जिनपिंग का स्वच्छता मिशन

जिनपिंग का शुद्धिकरण अभियानग्लोबल कूटनीति को गहरे रोमांच से भर रहा है.
शी जिनपिंग को क्या हो गया है? ग्रोथ को किनारे लगाकर भ्रष्टाचार के पीछे क्यों पड़ गए हैं? यह झुंझलाहट एक बड़े विदेशी निवेशक की थी जो हाल में बीजिंग से लौटा था और चीन के नए आर्थिक सुधारों पर बुरी तरह पसोपेश में था. कोई सरकार अपनी ही पार्टी के 1.82 लाख पदाधिकारियों पर भ्रष्टाचार को लेकर कार्रवाई कर चुकी हो, यह किसी भी देश के लिए सामान्य बात नहीं है. उस पर भी अगर चीन की सरकार अपनी कद्दावर कम्युनिस्ट पार्टी के बड़े नेताओं व सेना अधिकारियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ स्वच्छता अभियान चला रही हो तो अचरज कई गुना बढ़ जाता है, क्योंकि भ्रष्टाचार चीन की विशाल आर्थिक मशीन का तेल-पानी है.
निवेशकों के लिए यह कतई अस्वाभाविक है कि चीन बाजार में एकाधिकार रोकने व पारदर्शिता बढ़ाने के लिए बड़े जतन से हासिल की गई ग्रोथ को न केवल 24 साल के सबसे कम स्तर पर ला रहा है बल्कि इसे सामान्य (न्यू नॉर्मल) भी मान रहा है. यकीनन, भारतीय प्रधानमंत्री की कूटनीतिक करवट दूरगामी है. अमेरिका व भारत के रिश्तों की गर्मजोशी नए फलसफे लिख रही है, अलबत्ता ग्रोथ की तरफ लौटता अमेरिका दुनिया में उतनी उत्सुकता नहीं जगा रहा है जितना कौतूहल, पारदर्शिता के लिए ग्रोथ को रोकते चीन को लेकर है. चीन की महाशक्ति वाली महत्वाकांक्षाएं रहस्य नहीं हैं, हालांकि सुपर पावर बनने के लिए जिनपिंग का भीतरी शुद्धिकरण अभियान, ग्लोबल कूटनीति को गहरे रोमांच से भर रहा है.
चीन में भ्रष्टाचार मिथकीय है. बीते मार्च में जब चाइना पीपल्स आर्मी के कद्दावर जनरल ग्यु जुनशान को भ्रष्टाचार में धरा गया तो चीन को निओहुलु होशेन (1799) याद आ गया. सम्राट क्विएनलांग का यह आला अफसर इतना भ्रष्ट था कि उसके यहां छापा पड़ा तो चांदी के 80 करोड़ सिक्के मिले जो सरकार के दस साल के राजस्व के बराबर थे, 53 साल की उम्र में उसे मौत की सजा हुई. चीन की सरकारी न्यूज एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक, जनरल ग्यु जुनशान के यहां 9.8 करोड़ डॉलर की संपत्ति मिली और अगर पश्चिमी मीडिया की खबरें ठीक हैं तो जुनशान के घर से बरामद नकदी, शराब, सोने की नौका और माओ की स्वर्ण मूर्ति को ढोने के लिए चार ट्रक लगाए गए थे.
मुहावरा प्रिय भारतीयों की तरह, 2013 में शी जिनपिंग ने कहा था कि भ्रष्टाचार विरोधी अभियान सिर्फ मक्खियों (छोटे कारकुनों) के खिलाफ नहीं चलेगा बल्कि यह शेरों (बड़े नेताओं-अफसरों) को भी पकड़ेगा. जाहिर है, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता, सरकारी मंत्री, सेना और सार्वजनिक कंपनियों के प्रमुख विशाल भ्रष्ट तंत्र के संरक्षक जो हैं. बड़े रिश्वतखोरों को पकड़ता और नेताओं को सजा देता, सेंट्रल कमिशन फॉर डिसिप्लनरी ऐक्शन (सीसीडीआइ) पूरे चीन में खौफ का नया नाम है. इसने चीनी राजनीति के तीन बड़े गुटों—'पेट्रोलियम गैंग’, 'सिक्योरिटी गैंग और 'शांक्सी गैंग’ (बड़े राजनैतिक नेताओं का गुट) पर हाथ डाला है, जो बकौल शिन्हुआ 'टाइगर्स कहे जाते हैं. दिलचस्प है कि जिनपिंग के करीबी वैंग क्विशान के नेतृत्व में सीसीडीआइ का अभियान गोपनीय नहीं है बल्कि खौफ पैदा करने के लिए यह अपने ऐक्शन का खूब प्रचार कर रहा है और भ्रष्टाचार को लेकर डरावनी चेतावनियां जारी कर रहा है. ग्लोबल निवेशकों की उलझन यह है कि जिनपिंग, निर्यात आधारित ग्रोथ मॉडल को जारी रखने को तैयार नहीं हैं. वे अर्थव्यवस्था से कालिख की सफाई को सुधारों के केंद्र में लाते हैं. पिछले नवंबर में जी20 शिखर बैठक के बाद बीजिंग लौटते ही जिनपिंग ने कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल इकोनॉमिक वर्क कॉन्फ्रेंस में नया आर्थिक सुधार कार्यक्रम तय किया था, जो कंपनियों का एकाधिकार खत्म करने, सही कीमतें तय करने, पूंजी व वित्तीय बाजारों के उदारीकरण, निजीकरण और सरकारी कामकाज में पारदर्शिता पर केंद्रित होगा.
मंदी से उबरने की जद्दोजहद में जुटी दुनिया के लिए चीन के ये शुद्धतावादी आग्रह मुश्किल बन रहे हैं. चीन दुनिया की सबसे बड़ी फैक्ट्री है जो ग्लोबल ग्रोथ को अपने कंधे पर लेकर चलती है और इस समय दुनिया में मांग व तेज विकास की वापसी का बड़ा दारोमदार चीन पर ही है. जबकि मूडीज के मुताबिक पारदर्शिता की इस मुहिम से शुरुआती तौर पर चीन में खपत, निवेश व बचत घटेगी. महंगे रेस्तरांओं की बिक्री गिर रही है, बैंकों में सरकारी कंपनियों का जमा कम हुआ है और अचल संपत्ति में निवेश घटा है. चीनी मीडिया में राष्ट्रपति की ऐसी टिप्पणियां कभी नहीं दिखीं कि वे 'भ्रष्टाचार की सेना’ से लडऩे को तैयार हैं और इसमें 'किसी व्यक्ति को जिंदगी-मौत अथवा यश-अपयश की फिक्र’ नहीं होनी चाहिए. लेकिन जिनपिंग की टिप्पणियों (भ्रष्टाचार पर उनके भाषणों का नया संग्रह इसी माह जारी) को देखकर यह समझा जा सकता है कि चीन के राष्ट्रपति इस तथ्य से पूरी तरह वाकिफ हैं कि भ्रष्टाचार महंगाई बढ़ाता है और अवसर सीमित करता है, इसलिए आर्थिक तरक्की का अगला दौर इसी स्वच्छता से निकलेगा और इसी राह पर चलकर चीन को महाशक्ति बनाया जा सकता है.
भ्रष्टाचार उन्मूलन अभियान, जिनपिंग की सबसे बड़ी ग्लोबल पहचान बन रहा है जैसे कि देंग श्याओ पेंग आर्थिक उदारीकरण से पहचाने गए थे. हू जिंताओ ने राष्ट्रपति के तौर पर अपने अंतिम भाषणों में चेताया था कि लोगों के गुस्से की सबसे बड़ी वजह सरकारी लूट है. जिनपिंग को पता है कि यह लूट रोककर न केवल ग्रोथ लाई जा सकती है बल्कि अकूत सियासी ताकत भी मिलेगी.
ग्लोबल कूटनीति और निवेश के संदर्भ में नरेंद्र मोदी का भारत और जिनपिंग का चीन कई मायनों में एक जैसी उम्मीदों व अंदेशों से लबरेज है. ओबामा ग्लोबल राजनीति से विदा होने वाले हैं, दुनिया की निगाहें अब मोदी और जिनपिंग पर हैं. आकाश छूती अपेक्षाओं के शिखर पर सवार मोदी, क्या पिछले नौ माह में ऐसा कुछ कर सके हैं, जो उन्हें बड़ा फर्क पैदा करने वाला नेता बना सके? दूरदर्शी नेता हमेशा युगांतरकारी लक्ष्य चुनते हैं. मोदी को अपने लक्ष्यों का चुनाव करने में अब देर नहीं करनी चाहिए.


Monday, November 25, 2013

चीन का चोला बदल

दुनिया का सबसे बड़ा अधिनायक मुल्‍क तीसरी क्रांति का बटन दबाकर व्‍यवस्‍था को रिफ्रेश कर रहा है।
देंग श्‍याओं पेंग ने कहा था आर्थिक सुधार चीन की दूसरी क्रांति हैं लेकिन यह बात चीन को सिर्फ 35 साल में ही समझ आ गई कि हर क्रांति की अपनी एक एक्‍सपायरी डेट भी होती है और घिसते घिसते सुधारों का मुलम्‍मा छूट जाता है। तभी तो शी चिनफिंग को सत्‍ता में बैठते यह अहसास हो गया कि चमकदार ग्रो‍थ के बावजूद एक व्‍यापक चोला बदल चीन की मजबूरी है। चीनी कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के तीसरे प्‍लेनम से बीते सप्‍ताह, सुधारों का जो एजेंडा निकला है उसमें विदेशी निवेशकों को चमत्‍कृत करने वाला खुलापन या निजीकरण की नई आतिशबाजी नहीं है बल्कि चीन तो अपना आर्थिक राजनीतिक डीएनए बदलने जा रहा है। दिलचस्‍प्‍ा है कि जब दुनिया का सबसे ताकतवर लोकतंत्र अमेरिका अपने राजनीतिक वैर में फंस कर थम गया है और विश्‍व की सबसे बड़ी लोकशाही यानी भारत अपनी विभाजक व दकियानूसी सियासत में दीवाना है तब दुनिया का सबसे बड़ा अधिनायक मुल्‍क तीसरी क्रांति का बटन दबाकर व्‍यवसथा को रिफ्रेश कर रहा है।
चीन की ग्रोथ अब मेड इन चाइना की ग्‍लोबल धमक पर नहीं बल्कि देश की भीतरी तरक्‍की पर केंद्रित होंगी। दो दशक की सबसे कमजोर विकास दर के बावजूद चीन अपनी ग्रोथ के इंजन में सस्‍ते युआन व भारी निर्यात का ईंधन नहीं डालेगा। वह अब देशी मांग का ईंधन चाहता है और धीमी विकास दर से उसे कोई तकलीफ