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Monday, December 31, 2012

जागते समाज से हारती सियासत


हरीर स्‍क्‍वायर पर जुटी भीड़ का नेता कौन था ? आकुपायी वालस्‍ट्रीट की अगुआई कौन कर रहा था ? ब्‍लादीमिर पुतिन के खिलाफ मास्‍को की सड़कों पर उतरे लोगों ने किसे नेता चुना था? लेकिन भारत के गृह मंत्री और नेता इंडिया गेट पर उतरे युवाओं में एक नेता तलाश रहे थे। भारतीय की सठियाई सियासत हमेशा जिंदाबादी या मुर्दाबादी भीड़ से खिताब जो करती रही है। इन युवाओं में उन्‍हें नेता न मिला तो लाठियां मार कर लोगों को खदेड़ दिया गया। भारत नए तरह के आंदोलनों के दौर में है। यह बदले हुए समाज के आंदोलन हैं। समकालीन राजनीति इसके सामने अति पिछड़ी, लगभग पत्‍थर युग की, साबित होती है। हमारे नेता या तो सिरफिरे हैं या फिर जिद में हैं। दुख व क्षोभ में भरे युवाओं को नक्‍सली या महिलाओं को डेंटेड पेंटेड कहने वाली राजनीति अब भी यह नहीं समझ रही है कि क्षुब्‍ध समाज एक बिटिया की जघन्‍य हत्‍या पर इंसाफ पाकर चुप नहीं होगा। वह तो भारतीय सियासत के पुराने व बुनियादी चरित्र को ही खारिज कर रहा है। 
भारत के युवा रोजगार मांगने के लिए इस तरह कब सड़क पर उतरे थे? महंगाई से त्रस्‍त लोगों ने कभी इस तरह स्‍व स्‍फूर्त राष्‍टपति भवन नहीं घेरा। लोग क्‍या मांगने के लिए इंडिया गेट पर लाठियां खा रहे थे ? कानून व्‍यवस्‍था ? ? पिछले साल लोग यहां रिश्‍वतखोरी से छुटकारा मांगने आए। याद कीजिये कि किस राजनीतिक दल के चिंतन शिविर या कार्यकारिणी में कब कानून बदलने या भ्रष्‍टाचार पर चर्चा हुई। नेता  भौंचक है कि लोग कानून व्‍यवस्‍था या पारदर्शिता को लेकर इतने आंदोलित हो गए हैं ? राजनीति अब तक जो भीड जुटाती रही है वह तख्‍त ताज यानी सरकार बदलने की बात करती है कानून