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Monday, August 8, 2011

घोटालों की रोशनी


घोटालों के कीचड़ के बीच भी क्या हम उम्मीद के कुछ अंखुए तलाश सकते हैं? भ्रष्टाचार के कलंक की आंधी के बीच भी क्या कुछ बनता हुआ मिल सकता है? यह मुमकिन है। जरा गौर से देखिये घोटालों के धुंध के बीच हमारी संवैधानिक संस्थाओं की ताकत लौट रही है। कानूनों की जंग छूट रही है और आजादी के नए पहरुए नए ढंग से अलख जगा रहे हैं। घोटालों के अंधेरे के किनारों से झांकती यह रोशनी बहुत भली लगती है। यह रोशनी सिर्फ लोकतंत्र का सौभाग्य है।
संविधान की सत्ता
डा. अंबेडकर ने संविधान बनाते समय कैग (नियंत्रक व महालेखा परीक्षक) को देश के वित्तीय अनुशासन की रीढ़ कहा था मगर व्यावहारिक सच यही है कि पिछले छह दशक के इतिहास में, कैग एक उबाऊ, आंकड़ाबाज और हिसाबी किताबी संस्थान के तौर पर दर्ज था। ऑडिट रिपोर्ट बोरिंग औपचारिकता थीं और कैग की लंबी ऑडिट टिप्पणियों पर सरकारी विभाग उबासी लेते थे। कारगिल युद्ध के दौरान ताबूत खरीद, विनिवेश पर समीक्षा के कुछ फुटकर उदाहरण छोड़ दिये जाएं तो देश को यह पता भी नहीं था कि कैग के पास इतने पैने दांत हैं। एक ऑडिट एजेंसी को, मंत्रियों को हटवाते (राजा व देवड़ा), प्रधानमंत्री की कुर्सी हिलाते और मुख्यमंत्रियों (सीडब्लूजी) के लिए सांसत बनते हमने कभी नहीं देखा था। कैग अब भ्रष्टाचारियों को सीबीआई

Monday, February 14, 2011

सबसे बड़ा घाटा

अथार्थ
स बजट में अगर वित्तस मंत्री दस फीसदी विकास दर का दम भरें तो पलट कर खुद से यह सवाल जरुर पूछियेगा कि आखिर पांच फीसदी (सुधारों से पहले यानी 1989-90) से साढ़े आठ फीसदी तक आने में हम इतने हांफ क्यों गए हैं। ग्रोथ की छोटी सी चढ़ाई चढ़ने में ही गला क्यों सूख गया है, दो दशकों में सिर्फ तीन-चार फीसदी की छलांग इतनी भारी पड़ी कि कदम ही लड़खड़ा गए हैं। अचानक सब कुछ अनियंत्रित व अराजक सा होने लगा है। जमीन से लेकर अंतरिक्ष (एसबैंड) तक घोटालों की पांत खड़ी है। मांग महंगाई में बदलकर मुसीबत बन गई है। नियम, कानूनों और          व्यवस्था की वाट लग गई है। शेयर बाजार अब तेज विकास का आंकड़ा देखकर नाचता नहीं बल्कि कालेधन की चर्चा और महंगाई से डर कर डूब जाता है। यह बदहवासी बदकिस्मंती नहीं बावजह और बाकायदा है। दरअसल विकास की रफ्तार सुधारों पर ही भारी पड़ी है अर्थव्यंवस्था छलांग मारकर आगे निकल गई और सुधार बीच राह में छूट ही नहीं बल्कि बैठ भी गए। आर्थिक सुधारों का खाता जबर्दस्त घाटे ( रिफॉर्म डेफिशिट) में है इसलिए बजट को अब विकास की रफ्तार से पहले इस सबसे बड़े घाटे यानी सुधारों की बैलेंस शीट बात करनी चाहिए। क्यों कि सुधारों का बजट बिगड़ने से उम्मींद टूटती है।
सुधारों का अंधकार
बीस साल की तेज वृद्धि दर अब उन रास्तों पर फंस रही है जहां हमेशा से सुधारों का घना अंधेरा है। भारत अब आपूर्ति के पहलू पर गंभीर समस्याओं में घिरा है यह समस्या रोटी दाल से लेकर उद्योगों के कच्चे माल तक की है। खेती में सुधारों की अनुपस्थिति का अंधेरा सबसे घना है। कृषि उत्पादो की आपूर्ति की कमी ने महंगाई को जिद्दी और अनियंत्रित बना दिया है। अगर बजट सुधारों पर आधारित होगा तो यह पूरी ताकत के साथ खेती में सुधार शुरु करेगा। खेती में अब सिर्फ आवंटन बढ़ाने या

Monday, February 7, 2011

बड़े मौके का बजट

अर्थार्थ
चहत्तर साल के प्रणव मुखर्जी इकसठ साल के गणतंत्र को जब नया बजट देंगे तब भारत की नई अर्थव्यवस्था पूरमपूर बीस की हो जाएगी। ... है न गजब की कॉकटेल। हो सकता है कि महंगाई को बिसूरते, थॉमसों, राजाओं और कलमाडि़यों को कोसते या सरकार की हालत पर हंसते हुए आप भूल जाएं कि अट्ठाइस फरवरी को भारत का एक बहुत खास बजट आने वाला है। बजट यकीनन रवायती होते हैं लेकिन यह बजट बड़े मौके का है। यह बजट भारत के नए आर्थिक इंकलाब (उदारीकरण) का तीसरा दशक शुरु करेगा। यह बजट नए दशक की पहली पंचवर्षीय योजना की भूमिका बनायेगा जो उदारीकरण के बाद सबसे अनोखी चुनौतियों से मुकाबिल होगी क्यों कि खेत से लेकर कारखानों और सरकार से लेकर व्या पार तक अब उलझनें सिर्फ ग्रोथ लाने की नहीं बल्कि ग्रोथ को संभालने, बांटने और बेदाग रखने की भी हैं। हम एक जटिल व बहुआयामी अर्थव्यवस्था हो चुके हैं, जिसमें मोटे पैमानों (ग्रोथ, राजकोषीय संतुलन) पर तो ठीकठाक दिखती तस्वी्र के पीछे कई तरह जोखिम व उलझने भरी पडी हैं। इसलिए एक रवायती सबके लिए सबकुछ वाला फ्री साइज बजट उतना अहम नहीं है जितना कि उस बजट के भीतर छिपे कई छोटे छोटे बजट। देश इस दशकारंभ बजट को नहीं बलिक इसके भीतर छिपे बजटों को देखना चाहेगा, जहां घाटा बिल्कुल अलग किस्म का है।
ग्रोथ : रखरखाव का बजट
वित्त मंत्री को अब ग्रोथ की नहीं बलिक ग्रोथ के रखरखाव और गुणवत्ता की चिंता करनी है। बीस साल की आर्थिक वृद्धि ऊंची आय, असमानता, असंतुलन, निवेश, तेज उतपादन, भ्रष्टाचार, उपेक्षा, अवसर यानी सभी गुणों व दुर्गुणों के साथ मौजूद है। मांग के साथ महंगाई मौजूद है और आपूर्ति के साथ बुनियादी ढांचे की किल्लत लागत चौतरफा बढ़ रही है और ग्रोथ की दौड़ मे पिछड़ गए कुछ अहम क्षेत्र आर्थिक वृद्धि की टांग खींचने लगे हैं। कायदे से वित्त मंत्री को महंगाई से निबटने का बजट ठीक करते नजर आना चाहिए। महंगाई भारत की ग्रोथ कथा में खलनायक बनने वाली है। इस आफत को  टालने के लिए खेती को जगाना जरुरी है। यानी कि इस बजट को पूरी तरह