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Monday, September 3, 2018

पर्दा अभी उठा नहीं है


वह 2016 नवंबर का दूसरा सप्ताह था. नोटबंदी को केवल दस दिन बीते थे और जनता के पास मौजूद बड़े नोटों का लगभग 40 फीसदी हिस्सा बैंकों में पहुंचा चुका था. बची हुई नकदी पेट्रोल पंपोंस्कूलोंअस्पतालों में पहुंच रही थी जहां उसे स्वीकार करने की इजाजत थी. इसी दौरान रिजर्व बैंक ने यह बताना बंद कर दिया कि बैंक खातों में जमा किस तरह बढ़ रहा है और इसके साथ ही यह तय हो गया कि शायद अधिकांश नकदी बैंकों में वापस हो रही है.

बंद किए गए 99 फीसदी नोटों की बैंकों में वापसी का संकेत तो पिछले साल जून में ही मिल गया था. अब इन खिसियाये स्पष्टीकरणों का कोई अर्थ नहीं है कि नोटबंदी के बाद आयकर रिटर्न या टैक्स भरने वाले बढ़े हैं. क्या नोटबंदी जैसे विराट और मारक जोखिम का मकसद आयकर रिटर्न भरने की आदत ठीक करना था?

और बाजार में नकदी तो इस कदर बढ़ चुकी है कि कैशलेस या लेसकैश अर्थव्यवस्था की बहस ही अब बेसबब हो गई.

दरअसलनोटबंदी के बड़े रहस्य अभी भी पोशीदा हैं. रिजर्व बैंक व सरकार अगर देश को कुछ सवालों के जवाब देंगे तो हमें पता चल सकेगा कि भारत के आर्थिक इतिहास की सबसे बड़ी उथल पुथल के दौरान क्या हुआ था और शायद इसी में हमें काले धन के कुछ सूत्र मिल जाएंजिन के लिए यह इतना जान-माललेवा जोखिम उठाया गया था.

- कौन थे वे "गरीब'' जिन्होंने लाखों की तादाद में जनधन खाते खोले और नोटबंदी के दौरान पुराने और नए खातों में करोड़ों रुपए जमा किएनोटबंदी के ठीक बाद 23.30 करोड़ नए जन धन खाते खोले गए. इनमें से 80 फीसदी सरकारी बैंकों में खुले. नोटबंदी के वक्त (9 नवंबर 2016) को इन खातों में कुल 456 अरब रुपए जमा थे जो 7 दिसंबर 2016 को 746 अरब रुपए पर पहुंच गए.

जनधन खातों के दुरुपयोग की खबरों के बीच सरकार ने 15 नवंबर 2016 को जनधन खातों में रकम जमा करने के लिए 50,000 रुपए की ऊपरी सीमा तय कर दी थी. वित्त मंत्री ने पिछले साल फरवरी में संसद को बताया था कि विभिन्न खाताधारकों (जनधन सहित) को आयकर विभाग ने 5,100 नोटिस भेजे हैंइसके बाद नोटबंदी में जनधन के इस्तेमाल की जांच कहीं गुम हो गई!

- क्या हमें कभी यह पता चल पाएगा कि नोटबंदी के दिनों में सरकारी (केंद्र और राज्य) खजानों और  बैंकों में सरकारी/पीएसयू खातों के जरिए कितनी रकम का लेनदेन हुआसनद रहे कि सरकारी विभागों और सेवाएं नोटबंदी या नकद लेनदेन की तात्कालिक सीमा से मुक्त थे. कई सरकारी सेवाओं को प्रतिबंधित नोटों में भुगतान लेने की इजाजत दी गई थी. सरकारी सेवाओं के विभागों के नेटवर्क जरिए कितनी पुरानी नकदी बदली गईक्या इसका आंकड़ा देश को नहीं मिलना चाहिए?

 नोटबंदी के दौरान बड़ी कंपनियों व कारोबारियों के चालू खातों और नकद लेनदेने के जरिए बैंकों में कितने पुराने नोट पहुंचेइसकी हमें कोई जानकारी नहीं है. बाद की पड़ताल में कई छद्म (शेल) कंपनियां मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल पाई गईं. ऐसे में यह उम्मीद करना जायज है कि सरकार के पास कारोबारी नकद खातों के इस्तेमाल के बारे में काफी जानकारी होगी. नोटबंदी के दौरान बड़ी कंपनियों में नकदी की आवाजाही की पड़ताल की जानकारी उन लोगों को मिलनी चाहिए जो अपने कुछ सैकड़ा रुपए बदलवाने के लिए नोटबंदी की लाइनों में बिलख रहे थे. 

- क्या देश को यह जानने का हक नहीं है कि नोटबंदी के दौरान राजनैतिक पार्टियों के खातों में कितने लेनदेन हुए और उस वक्त जब लोगों के पास  अस्पतालों में दवा खरीदने के लिए नकदी नहीं थीतब सियासी धूम-धड़ाकों पर कहां और कैसे खर्च किया गयासनद रहे कि आम लोग जब नोटबंदी की अग्निपरीक्षा दे रहे थे तब सरकार ने सियासी पार्टियों को अपने खातों में 500 रुपए और 1,000 रुपए के पुराने नोट जमा करने की इजाजत दी थीजिसे हर तरह का जांच से बाहर रखा गया था.

- देश के लिए यह भी जानना जरूरी है कि नोटबंदी के दौरान बैंकों में जो भ्रष्टाचार हुआ उसकी जांच आखिर कहां रुकी हुई है.

रिजर्व बैंक ने अपनी बात कह दी है. अब सरकार को सवालों से आंख मिलाना ही होगा. ऐसा कहां लिखा है कि सरकारें गलत नहीं हो सकतीं. दुनिया के हर देश में सरकारें किस्म-किस्म की गलतियां करती हैं लेकिन वे उन्हें स्वीकार भी करती हैं. भारत के करोड़ों आम लोगों ने नोटबंदी में तपकर अपनी ईमानदारी साबित की है. अब अग्नि परीक्षा से गुजरने की बारी सरकार की है.



Sunday, February 12, 2017

नोटबंदी का बजट


नोटबंदी के नतीजों पर सरकार में सन्‍नाटे के बावजूद कुछ तथ्‍य

 सामने आ ही गए हैं

हिम्मतवर सरकारें अगर बड़े फैसले लेती हैं तो उन्हें फैसलों के नतीजे बताने से हिचकना नहीं चाहिए. नोटबंदी ने रोजगार से लेकर कारोबार तक सबका बजट बिगाड़ दिया तो इससे सरकार को भरपूर टैक्स या फिर रिजर्व बैंक से मोटा लाभांश जरूर मिलने वाला होगा! लेकिन बजट भी गुजर गया अलबत्ता नोटबंदी के फायदे-नुक्सान को लेकर न तो सरकार का बोल फूटा, न ही रिजर्व बैंक ने आंकड़े बताने की जहमत उठाई.

नोटबंदी को बिसारने की तमाम कोशिशों के बावजूद बजट और आर्थिक समीक्षा नोटबंदी से जुड़े कुछ तथ्य सामने लाती है. अगर उन्हें एक सूत्र में बांधा जाए तो हमें एहसास हो जाएगा कि नोटबंदी पर बेखुदी बेसबब नहीं है, कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है.
तीर!
कहावत है जिसकी नाप-जोख नहीं हो सकती, उसे संभालना भी असंभव है. वित्त मंत्री कह चुके हैं कि नकद काले धन का कोई ठोस आकलन उपलब्ध नहीं है. तो 500 और 1000 के नोट बंद करने और 86 फीसदी नकदी को एकमुश्त अवैध करार देने का इतना बड़ा निर्णय किस आकलन पर आधारित था?
आर्थिक समीक्षा की मानें तो करेंसी नोटों का सॉयल रेट (नोटों के गंदे होने और कटने-फटने की दर) इस फैसले का आधार था. सॉयल रेट नोटों के इस्तेमाल की जानकारी देता है. रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, 500 रु. से नीचे के मूल्य वाले नोट में सॉयल रेट 33 फीसदी सालाना है यानी 33 फीसदी गंदे कटे-फटे नोट हर साल बदल जाते हैं. 500 रु. के नोट में सॉयल रेट 22 और 1000 रु. के नोट में 11 फीसदी है.
समीक्षा ने दुनिया के अन्य देशों में सॉयल रेट को भारत में बड़े नोटों के प्रचलन पर लागू करते हुए निष्कर्ष निकाला है कि नोटबंदी से पहले करीब 3 लाख करोड़ रु. के बड़े नोट ऐसे थे जिनका भरपूर इस्तेमाल लेन-देन में नहीं होता था. इस राशि को क्या काली नकदी माना जा सकता है जो जीडीपी के दो फीसदी के बराबर है?
इस सवाल पर समीक्षा मौन है अलबत्ता वह नकदी के दो आयाम बताती है.
सफेद धनः रसीद काटकर और टैक्स की घोषणा के बाद कर्मचारियों को दिया गया नकद वेतन या घरों में आकस्मिकता के लिए रखा गया धन.
काला धनः छोटी कंपनियां या व्यापारी नकद में धन रखते हैं और चुनाव में चंदा देते हैं. 
निशाना!
बजट के आंकड़े नोटबंदी के निशाने पर बैठने का प्रमाण नहीं देते. टैक्स के आंकड़ों में एकमुश्त कोई बहुत बड़ी रकम मिलने का आकलन नहीं है, अलबत्ता आंकड़े इतना जरूर बताते हैं कि आयकर संग्रह में बढ़त की दर तेज रहेगी. नोटबंदी के बाद एडवांस टैक्स भुगतान लगभग 35 फीसदी बढ़ा है. अगले साल आयकर संग्रह में लगभग 25 फीसदी की बढ़त की उम्मीद है. यदि आकलन सही उतरे तो दो साल में करीब 1.5 लाख करोड़ रु. का अतिरिक्त आयकर मिल सकता है.
रिजर्व बैंक ने नहीं बताया है कि बड़े नोटों में कितना धन बैंकिंग सिस्टम से बाहर रह गया है इसलिए रिजर्व बैंक से मोटा लाभांश मिलने का आकलन उपलब्ध नहीं है
नुक्सान 
''नोटबंदी से नहीं कोई मंदी" का दम भरने के बावजूद सरकार ने मान लिया है कि ग्रोथ की गाड़ी पटरी से उतर गई है. आर्थिक समीक्षा बताती है कि नोटबंदी के चलते इस साल आर्थिक विकास दर में करीब एक फीसदी (पिछले साल 7.6) की गिरावट होगी. अगले साल भी विकास दर सात फीसदी से नीचे रहेगी. नोटबंदी से रोजगार घटा है, खेती में आय को चोट लगी है और नकद पर आधारित असंगठित क्षेत्र में बड़ा नुक्सान हुआ, लेकिन इसके आंकड़े सरकार के पास उपलब्ध नहीं हैं.
सरकार मान रही है कि नकदी का प्रवाह सामान्य होने के बाद बैंकों से जमा तेजी से बाहर निकलेगी, नोटबंदी से सरकार-रिजर्व बैंक की साख को धक्का लगा है और लोगों में भविष्य के प्रति असमंजस बढ़ा है.
हिसाब-किताब
नोटबंदी मौद्रिक फैसला था इसलिए फायदे-नुक्सान को आंकड़ों में नापना होगा. बजट और समीक्षा को खंगालने पर हमें इसके सिर्फ दो ठोस आंकड़े मिलते हैं.
फायदा
नोटबंदी के बाद इस साल के चार महीनों में और अगले साल के दौरान आयकर संग्रह में लगभग 1.5 लाख करोड़ रु. की बढ़त हो सकती है.
नुक्सान  
2016-17 में नोटबंदी से जीडीपी में एक फीसदी की कमी आएगी जो कि 1.5 लाख करोड़ रु. के आसपास है. रिजर्व बैंक के लिए नोटों की छपाई की लागत और बाजार में नकदी का प्रवाह संतुलित करने के लिए जारी बॉन्डों पर ब्याज को भी इसमें जोडऩा होगा.

अगर परोक्ष नुक्सान को गिनती में न लिया जाए तो  भी आयकर राजस्व में बढ़ोतरी का अनुमान जीडीपी के नुक्सान के बिल्कुल बराबर है.

बाकी आप खुद समझदार हैं.


Sunday, December 4, 2016

कैशलेस कतारों का ऑडिट

स्कीम का एक महीना बीतने से पहले ही टैक्‍स देकर काले धन को सफेद  
करने का मौका देने की जरूरत क्यों आन पड़ी
ह मजाक सिर्फ सरकारें ही कर सकती हैं कि काले धन को नेस्तनाबूद करने के मिशन के दौरान ही कालिख धोने का मौका भी दे दिया जाए. भारत दुनिया का शायद पहला देश होगा जो काला धन रखने वालों को बच निकलने के लिए दो माह में दूसरा मौका दे रहा है और वह भी काले धन की सफाई के नाम पर.

डिमॉनेटाइजेशन ने 8 नवंबर से अब तक इतने पहलू बदले हैं कि सरकार और रिजर्व बैंक भी भूल गए होंगे कि शुरुआत कहां से हुई थी. अलबत्ता टैक्स वाली कलाबाजी बेजोड़ है. स्कीम का एक महीना बीतने से पहले ही काले धन को सफेद (टैक्स चुकाकर) करने का मौका देने की जरूरत क्यों आन पड़ी

दरअसलनोटबंदी के पहले सप्ताह में जो सबसे बड़ी सफलता थीवही अगले कुछ दिनों में चुनौती और असफलता में बदलने लगी. डिमॉनेटाइजेशन के बाद बैंकों में डिपॉजिट की बाढ़ से काली नकदी का आकलन और नोटबंदी का मकसद ही पटरी से उतरने लगा है. रिजर्व बैंक के मुताबिक, 10 से 27 नवंबर तक डिपॉजिट और पुराने नोटों की अदला-बदली 8.44 लाख करोड़ रु. पर पहुंच गई. अपुष्ट आंकड़ों के अनुसार, 30 नवंबर तक डिपॉजिट 11 लाख करोड़ रु. हो गए थे.
  • ·    8 नवंबर को नोटबंदी से पहले बाजार में लगभग 14 लाख करोड़ रु. ऊंचे मूल्य (500/1000) के नोट सर्कुलेशन में थे. यानी कि 30 नवंबर तक 63 से 75 फीसदी नकदी बैंकों में लौट चुकी है.
  • ·        जमा करीब 49,000 करोड़ रु. प्रति दिन से बढ़े हैं. स्कीम 30 दिसंबर तक खुली है. आम लोगों के बीच हुए सर्वे बताते हैं कि अभी करीब 23 फीसदी लोगों ने अपने वैध पुराने नोट बैंकों में नहीं जमा कराए हैं.
  • ·        डिमॉनेटाइजेशन के बाद करीब 30 लाख नए बैंक खाते खुले हैं. 
  • ·        बैंकों से पुराने नोटों का एक्सचेंज बंद हो गया हैइसलिए अब डिपॉजिट ही होंगे. बैंकर मान रहे हैं कि करेंसी इन सर्कुलेशन का 90 फीसदी हिस्सा बैंकों में लौट सकता है.

डिपॉजिट की बाढ़ के दो निष्कर्ष हैः 
एकनकदी के रूप में काला धन था ही नहीं. आम लोगों की छोटी नकद बचत और खर्च का पैसा ही डिपॉजिट हुआ है. इसे बैंकों में लाना था तो इतनी तकलीफ बांटने की क्या जरूरत थी
अथवा
दोबैंकों की मिलीभगत से काला धन  खातों में पहुंच गया है. जन धन खातों के दुरुपयोग की खबरें इस की ताकीद करती हैं.

ध्यान रहे कि नोटबंदी की सफलता के दो पैमाने हैं. एककितना नकद बैंकों के पास आया और कितना बाहर रह कर बेकार हो गया. दोनोटबंदी से हुए नुक्सान के मुकाबले सरकार को कितनी राशि मिली है.
अब एक नजर नुक्सान के आंकड़ों परः
  •     सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसाररोजगारटोल की माफीकरेंसी की छपाई की लागत आदि के तौर पर 1.28 लाख करोड़ रु. का नुक्सान हो चुका है.
  •      इसमें जीडीपी का नुक्सान शामिल नहीं हैजो काफी बड़ा है.
  •      कंपनियों के मुनाफेशेयर बाजार में गिरावटबैंकों के नुक्सान अभी गिने जाने हैं.

प्रक्रिया पूरी होने के बाद रद्द हुई नकदी पर्याप्त मात्रा में नहीं होती है तो नुक्सान का आंकड़ाफायदों के आकलन पर भारी पड़ेगा.

डिपॉजिट की बाढ़ और नुक्सानों का ऊंचा आंकड़ा देखते हुए सरकार के पास पहलू बदलने के अलावा कोई रास्ता नहीं था. इसलिए काले धन को सफेद करने की नई खिड़की खोली गईजिसके तहत काला धन की घोषणा पर 50 फीसदी कर लगेगा और डिपॉजिट का 25 फीसदी चार साल तक सरकार के पास जमा रहेगा. पकड़े जाने के बाद टैक्स की दर ऊंची हो जाएगी.

इनकम टैक्स की नई कवायद के दो स्पष्ट लक्ष्य दिखते हैः

पहला— बेहिसाब डिपॉजिट पर भारी टैक्स से लोग हतोत्साहित हो जाएंगे और जमा में कमी आएगी. इससे कुछ नकदी बैंकिंग सिस्टम से बाहर रह जाएगी जो कामयाबी में दर्ज होगी.

दूसराअगर डिपॉजिट नहीं रुके तो जमा पर टैक्स और खातों में रोकी गई राशि सफलता का आंकड़ा होगी. 

डिमॉनेटाइजेशन आर्थिक फैसला हैजिसकी तात्कालिक सफलता आंकड़ों से ही साबित होगीवह चाहे नकदी को बैंकिंग से बाहर रखकर हासिल किया जाए या फिर टैक्स से. सरकार को काली नकदी के रद्द होने या टैक्स से मिली राशि का खासा बड़ा आंकड़ा दिखाना होगा जो इस प्रक्रिया से होने वाले ठोस नुन्न्सान (जीडीपी में गिरावटरोजगार में कमीबैंकों पर बोझ) पर भारी पड़ सके.

यह आंकड़ा आने में वक्त लगेगा लेकिन पहले बीस दिनों में नोटबंदी के खाते में कुछ अनोखे निष्कर्ष दर्ज हो गए हैंजिनकी संभावना नहीं थी.
  • ·        भारत का बैंकिंग सिस्टम बुरी तरह भ्रष्ट है. यह सिर्फ कर्ज देने में ही गंदा नहीं है बल्कि इसका इस्तेमाल काले धन की धुलाई में भी हो सकता है. सरकार इसे कब साफ करेगी?
  •    इनकम टैक्स का चाबुक तैयार है. टैक्स टेरर लौटने वाला है और साथ ही भ्रष्टाचार और टैक्स को लेकर कानूनी विवाद भी. 
  •       एक बेहद संवेदनशील सुधार को लागू करते हुए हर रोज होने वाले बदलावों ने लोगों में विश्वास के बजाए असुरक्षा बढ़ाई है.
  •     भारत के वित्तीय बाजार के पास बड़े बदलावों को संभालने की क्षमता नहीं है. नौ लाख करोड़ रु. बैंकों में सीआरआर बनकर बेकार पड़े हैंजिनके निवेश के लिए पर्याप्त बॉन्ड तक नहीं हैं और न ही कर्ज के लिए इसका इस्तेमाल हो सकता है. नई नकदी आने तक इसे लोगों को लौटाना भी संभव नहीं है. यह आम लोगों का उपभोग का खर्च हैअर्थव्यवस्था की मांग है जो बैंक खातों में बेकार पड़ी हैबैंक इसे संभालने की लागत से दोहरे हुए जा रहे हैं जबकि लोग अपनी बचत निकालने बैंकों की कतार में खड़े होकर लाठियां खा रहे हैं.

जरा सोचिएअगर डिमॉनेटाइजेशन न होता तो क्या हम सचाइयों से मुकाबिल हो पातेइसलिए इन तीन निष्कर्षों को नोटबंदी के मुनाफे के तौर पर दर्ज किया जा सकता है

बाकी हिसाब-किताब 30 दिसंबर के बाद.