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Monday, October 14, 2013

सुनहली दुविधा



 सोना इस साल की सबसे बड़ी वित्‍तीय पहेली है और विश्‍व के सबसे ताकतवर मौद्रिक‍ मुखिया बर्नाके, फेड रिजर्व के प्रमुख की कुर्सी छोड़ते हुए इस पहेली को और उलझा गए हैं।

... और फिर दुनिया के सबसे बड़े बैंकर ने विनम्रता के साथ कहा कि माफ कीजिये, मैं सोने की कीमतों का रहस्‍य नहीं समझता, सोने के महंगा ससता होने वजह शायद ही कोई समझ या समझा सके आप ठीक समझ रहे हैं, यह अमेरिकी फेड रिजर्व के मुखिया बेन बर्नांके ही हैं जो पिछले दिनों अमेरिकी संसद की समि‍ति के सामने सोने के समझने में अपनी असमर्थता का बयान कर रहे थे। सोना इस साल की सबसे बड़ी वित्‍तीय पहेली है और विश्‍व के सबसे ताकतवर मौद्रिक‍ मुखिया बर्नाके, फेड रिजर्व के प्रमुख की कुर्सी छोड़ते हुए इस पहेली को और उलझा गए हैं। 2013 का साल सोने कीमतों में तूफानी उतार-चढ़ाव का गोल्‍डेन इयर है सोने के अनोखे मिजाज ने इस आम निवेशकों वित्‍तीय बाजारों से लेकर सरकारों और केंद्रीय बैंकों तक के ज्ञान बल्‍ब फ्यूज कर दिये हैं। सोना अब एक ग्‍लोबल नीतिगत चुनौती है यह चिदंबरम जैसे वित्‍त मंत्रियों की भी मुसीबत है जिनके देश में सोने की मांग और आयात थमता ही नहीं। और यह उन बैंकरों की भी उलझन है जिन्‍होंने ग्‍लोबल बाजारों में संशय के कारण बीते बरस सोने की काफी खरीद की है या सोने पर आधारित वित्‍तीय उपकरणों में निवेश किया है।
अक्‍टूबर के पहले मंगलवार को सोना जब एक घंटे में 40 डॉलर प्रति आउंस टूटा तो सोने को समझने के दावे भी ध्‍वस्‍त हो गए। अप्रैल,जून और अक्‍टूबर की तगड़ी गिरावट के बीच इस साल सोने की अंतररराष्‍ट्रीय कीमतों ने (लंदन) में 1693 डॉलर प्रति औंस ऊंचाई भी देखी और 1232 डॉलर की गर्त भी। अमेरिका की मौद्रिक नियंता बेन बर्नाकें  की हैरत जायज है क्‍यों कि सीमित दायरे में घूमने वाले सोने का यह स्‍वभाव

Monday, October 1, 2012

बड़े दांव और गहरे जोखिम



ह इतिहास बनते देखने का वक्‍त है, जो आर या पार के मौके पर बनता है। दोहरी मंदी और वित्‍तीय संकटों की अभूतपूर्व त्रासदी में खौलते अटलांटिक के दोनों किनारों में ऐतिहासिक फैसले शुरु हो गए हैं। यूरोप और अमेरिका में ग्रोथ को वापस लाने की निर्णायक मुहिम शुरु हो चुकी है। जिसकी कमान सरकारों के नहीं बल्कि प्रमुख देशों के केंद्रीय बैंकों के हाथ है। अमेरिकी फेड रिजर्व और यूरोपीय केंद्रीय बैंक अब मंदी और संकट से मुकाबले के आखिरी दांव लगा रहे हैं। केंद्रीय बैंकों के नोट छापाखाने ओवरटाइम में काम करेंगे। मंदी को बहाने के लिए बाजार में अकूत पूंजी पूंजी छोड़ी जाएगी। यह एक नया और अनदेखा रास्‍ता है जिसमें कौन से मोड और मंजिले आएंगी, कोई नहीं जानता। क्‍या पता मंदी भाग जाए या फिर यह भी सकता है कि  सस्‍ते डॉलर यूरो दुनिया भारत जैसी उभरती अर्थव्‍यवस्‍थाओं के बाजार में पहुंच कर नई धमाचौकड़ी मचाने लगें। या ग्‍लोबल महंगाई नई ऊंचाई छूने लगे। .... खतरे भरपूर हैं क्‍यों कि इतने बड़े जोखिम भी रोज रोज नहीं लिये जाते।
पूंजी का पाइप 
बीते 15 सितंबर को दुनिया के बाजारों में लीमैन ब्रदर्स की तबाही की चौथी बरसी अलग ढंग से मनाई गई। फेड रिजर्व के मुखिया बेन बर्नांके ने अमेरिका के ताजा इतिहास का सबसे बड़ा जोखिम लेते हुए बाजार में हर माह 40 अरब डॉलर झोंकने का फैसला किया, यानी क्‍वांटीटिव ईजिंग का तीसरा दौर। तो दूसरी तरफ यूरोपीय सेंट्रल बैंक ने कर्ज संकट में ढहते यूरोपीय देशों के बांड खरीदने का ऐलान कर दिया। बैंक ऑफ जापान  ने भी बाजार में पूंजी का पाइप खोल दिया। इन खबरों से शेयर बाजार जी उठे और यूरोप और अमेरिका के बांड निवेशकों के चेहरे खिल गए।
अमेरिका को मंदी से उबारने के लिए शुरु हुआ फेड रिजर्व का आपरेशन ट्विस्‍ट कई मामलों में अनोखा और क्रांतिकारी है। पहला मौका है जब