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Monday, April 2, 2012

यूरोप की महासेल

रज यूरोप की मौज तीसरी दुनिया के नए अमीरों की! बिकवाल सरकारें और खरीददार भी सरकारें! माल चुनिंदा और बेशकीमती! कीमत बेहद आकर्षक। .... यूरोप में दुनिया की सबसे नायाब सेल शुरु हो चुकी है!! बिजली, तेल, गैस कंपनियां, वाटर वर्क्‍स, हवाई अड्डे, द्वीप, बैंक जैसी यूरोपीय संपत्तियों से सजा यह बाजार देखते ही बनता है । जहां तीसरी दुनिया के अमीर मुल्‍क यूरोप के कर्ज मारे देशों की अनमोल संपत्तियां खरीद रहे हैं। सॉवरिन डेट (संप्रभु कर्ज) से तबाह यूरोप को एशिया की सॉवरिन वेल्‍थ उबार रही है। अकूत मुद्रा भंडारों से लैस चीन और अरब देशों के लिए यह दोबारा न मिलने वाला मौका है, इसलिए इनके सॉवरिन (सरकारी) वेल्‍थ फंड इन बाजारों में चुन चुन कर माल उठा रहे हैं। इस खरीद के बाद जो बचेगा उसे साफ करने के लिए वित्‍तीय बाजार के गिद्ध तैयार हैं। अमेरिका के तमाम वल्‍चर फंड भी यूरोप पर मंडरा रहे हैं। परेशान हाल देशों व बैंकों की टोह ली जा रही है ताकि संपत्तियों को कौडि़यों के मोल खरीदा जा सके। कर्ज की कटार अब यूरोपीय प्रगति की जडे काट रही है।
कौड़ी मोल
पुर्तगाल की सबसे बड़ी बिजली कंपनी ईडीपी में 21 फीसदी हिस्‍सा चीन के पास पहुंच गया है। चीन की सार्वजनिक कंपनी थ्री गॉर्जेस (दुनिया की सबसे बड़ी प‍नबिजली परियोजना की मालिक) ने पुर्तगाल में यह शानदार हाथ मारने के लिए बीते साल के अंत में करीब 3.5 अरब डॉलर खर्च किये। कर्ज के मारे पुर्तगाल को यूरोपीय समुदाय व आईएमएफ ने जो मदद दी थी उसमें यह शर्त शामिल थी कि पुर्तगाल अपनी बिजली कंपनियों में हिस्‍सेदारी बेच कर पैसे जुटायेगा। पुर्तगाल अपने नेशनल बिजली‍ ग्रिड के 40 फीसदी हिस्‍से

Monday, February 21, 2011

एक बजट बने न्यारा

अर्थार्थ
गर आर्थिक सुधारों के लिए संकट जरुरी है तो भारत सौ फीसदी यह शर्त पूरी करता है। यदि संकट टालने के लिए सुधार जरुरी हैं तो हम यह शर्त भी पूरी करते हैं। और यदि संतुलित ढंग से विकसित होते रहने के लिए सुधार जरुरी हैं तो भारत इस शर्त पर भी पूरी तरह खरा है। यानी कि आर्थिक सुधारों की नई हवा अब अनिवार्य है। लेकिन कौन से सुधार ?? प्रधानमंत्री (ताजी प्रेस वार्ता) की राजनीतिक निगाहों में खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण स्वास्‍थ्‍य मिशन नए सुधार हैं लेकिन उद्योग कहता है उहं, यह क्या् बात हुई ? सुधारों का मतलब तो विदेशी निवेश का उदारीकरण, वित्तीसय बाजार में नए बदलाव, बुनियादी ढांचे में भारी निवेश आदि आदि है।... दरअसल जरुरत कुछ हाइब्रिड किस्म के सुधारों की है यानी सामाजिक व आर्थिक दोनों जरुरतों को पूरा करने वाले सुधार। हम जिन सुधारों की बात आगे करेंगे वह किसी बौद्धिक आर्थिक विमर्श से नहीं निकले बल्कि संकटों के कारण जरुरी हो गए हैं। यदि यह बजट इन्हें या इनकी तर्ज (नाम कोई भी हो) पर कुछ कर सके तो तय मानिये कि यह असली ड्रीम बजट होगा क्यों कि यह उन उम्मीदों और सपनों को सहारा देगा जो पिछले कुछ महीनों दौरान टूटने लगे हैं।
स्पेशल एग्रीकल्चर जोन
हम बडे नामों वाली स्कीमों के आदी हैं इसलिए इस सुधार को एसएजेड कह सकते हैं। मकसद या अपेक्षा खेती में सुधार की है। केवल कृषि उत्पादों की मार्केटिंग के सुधार की नहीं (जैसा कि प्रधानमंत्री सोचते हैं और खेती का जिम्मा राज्यों के खाते में छोड़ते हैं।) बल्कि खेती के कच्चे माल (जमीन, बीज, खाद पानी) से लेकर उत्पादन तक हर पहलू की। अब देश में फसलों के आधार पर विशेष् जोन