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Monday, January 6, 2014

भ्रष्‍टाचार वाली महंगाई

भारत की कितनी मूल्‍य वृद्धि ऐसी है जो केवल भ्रष्‍टाचार की गोद में पल रही है ?

भारत में कितने उत्पाद इसलिए महंगे हैं कि क्‍यों कि उनकी कीमत में कट- कमीशन का खर्च शामिल होता है ? बिजली को महंगा करने में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का भ्रष्‍टाचार कितना जिम्‍मेदार है ? कितने स्‍कूल सिर्फ इसलिए महंगे हैं क्‍यों कि उन्‍हें खोलने चलाने की एक अवैध लागत है ? कितनी महंगाई सरकारी स्‍कीमों भ्रष्‍ट तंत्र पर खर्च के कारण बढी है जिसके लिए सरकार कर्ज लेती है और रिजर्व बैंक से करेंसी छापता  है।.... पता नहीं भारत की कितनी मूल्‍य वृद्धि ऐसी है जो केवल भ्रष्‍टाचार की गोद में पल रही है ? ताजा आर्थिक-राजनीतिक बहसों से यह सवाल इसलिए नदारद हैं क्‍यों कि भ्रष्‍टाचार व महंगाई का सीधा रिश्‍ता स्‍थापित होते ही राजनीति के हमाम में हड़बोंग और तेज हो जाएगी। अलबत्‍ता सियासी दलों की ताल ठोंक रैलियों के बीच जनता ने भ्रष्‍टाचार व महंगाई के रिश्‍ते को जोड़ना शुरु कर दिया है।
 महंगाई एक मौद्रिक समस्या है, जो मांग आपूर्ति के असंतुलन से उपजती है जबकि भ्रष्‍टाचार निजी फायदे के लिए सरकारी ताकत का दुरुपयोग है। दोनों के बीच सीधे रिश्‍ते का रसायन जटिल है लेकिन अर्थविद इस समझने पर, काम कर रहे हैं। इस रिश्‍ते को परखने वाले कुछ ग्‍लोबल पैमानों की रोशनी में भारत की जिद्दी महंगाई की जड़

Monday, November 22, 2010

भ्रष्टाचार का मुक्त बाजार

अर्थार्थ
राजाओं, कलमाडिय़ों, मधु कोड़ाओं और ललित मोदियों के शर्मनाक संसार को देखकर क्या सोच रहे हैं ... यही न कि आर्थिक खुलेपन की हवा भ्रष्टाचार के पुराने इन्फेक्शन को खूब रास आ रही है ? वेदांतो, सत्यमों व तमाम वित्तीय कंपनियों के कुकर्मों में आपको एक आर्थिक अराजकता दिखती होगी। कभी कभी यह कह देने का मन होता होगा कि आर्थिक उदारीकरण ने भारत में भ्रष्टाचार का उदारीकरण कर दिया है !!.... माना कि यह ऊब, खीझ और झुंझलाहट है मगर बेसिर पैर नहीं है। मान भी लीजिये कि हम मुक्त बाजार की विकृतियों को संभाल नहीं पा रहे हैं। रिश्वत, कार्टेल, फर्जी एकाउंटिंग, कारपोरेट फ्रॉड, लॉबीइंग, नीतियों में मनमाना फेरबदल, ठेके, निजीकरण का इस्तेमाल .... उदार बाजार का हर धतकरम भारत में खुलकर खेल रहा है। राजा व कोड़ा जैसे नेताओं की नई पीढ़ी अब राजनीतिक अवसरों में कमाई की संभावनाओं को चार्टर्ड अकाउंटेंट की तरह आंकती है, इसलिए भ्रष्टाजचार भी अब सीधे नीतियों के निर्माण में पैठ गया है। सातवें आठवें दशक के नेता अपराधी गठजोड़ की जगह अब नेता-कंपनी गठजोड़ ले ली है। यह जोड़ी ज्यादा चालाक, आधुनिक, रणनीतिक, बेफिक्र और सुरक्षित है। मुक्त बाजार में ताली दोनों हाथ से बज रही है।
खुलेपन का साथ
मुट्ठी में दुनिया (मोबाइल) लिये घूम रही भारत की एक बड़ी आबादी को मालूम होना चाहिए कि यह सुविधा बहुतों की मुट्ठयां गरम होने के बाद मिली है। सुखराम से राजा तक, दूरसंचार क्षेत्र का उदारीकरण अभूतपूर्व भ्रष्टा्चार से दागदार है। सिर्फ यही क्यों पूंजी बाजार, खनन, अचल संपत्ति व निर्माण, बैंकिंग, वायु परिवहन, सरकारी अनुबंध ... हर क्षेत्र में उदारीकरण के बाद बडे घोटाले दर्ज हुए हैं। उदारीकरण और भ्रष्टाचार रिश्ते की सबसे बड़ी पेचीदगी यही है कि