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Sunday, March 19, 2023

ढोल में पोल


 


 

बीते पंद्रह साल में दुनिया में कहीं भी किसी जगह कंप्‍यूटर की पढ़ाई कर रहा कोई छात्र छात्रा अगर थक कर सो जाता था  तो उसका अवचेतन उसके जगा कर कहता था आराम मत करपढ़ क्‍यों कि गूगलफेसबुकट‍ि्वटरअमेजनमाइक्रोसॉफ्ट की नौकरी तेरा इंतजार कर रही है  और वह फिर उठ कर कोडिंग के मंत्र रटने लगता था.

यह करोड़ों उम्‍मीदें अब माकायोशी सनोंसैम बैंकमैन फ्रायड (एफटीएक्‍स क्रिप्‍टो एक्‍सचेंज वाले) मार्क ज़कबरर्गोंजेफ बेजोसोंइलॉन मस्‍कोंसत्‍या नाडेलासुंदर पि‍चाइयोंबायजू रविद्रन आदि को किस नाम से बुलाना चाहेंगी...जिन्‍होंने मिलकर हजारों नौकर‍ियां खत्‍म कर दीं. इनके भारतीय सहोदर यानी चमकदार स्‍टार्ट अप सैंकडों कर्मचारियों का काम से निकाल चुके हैं र पठा चुके हैं. और उस पर तुर्रा यह कि बेरोजगारी की यह हैलोवीन पार्टी तो अभी शुरु हुई है

न्‍यू इकोनॉमी के यह  सितारे और दूरदर्श‍िता प्रेरणा पुंज इन निवेशकों के बीच किस नाम इन्‍हें पुकारेंगे जाएंगे ज‍िनकी भारी पूंजी इनमें से कई कंपनियों के शेयर खरीदकर स्‍वाहा हो गई.

क्‍या आप इन सब कीर्त‍ि कहानियों के नायकों को ठग कहना चाहेंगे

क्‍या आपने कारोबारों को विराट तमाशा कहना चाहेंगे जो दरअसल एक फर्जीवाड़ा है

ठह‍िरये

गुस्‍सा मत करिये

हम आपकी भावनायें समझते हैं

जॉन केनेथ गॉलब्रेथ नाम के बड़े अर्थशास्‍त्री गुज़रे हैं यह ठगी या फर्जीवाड़े  वाली थ्‍योरी हमें उन्‍हीं ने बताई थी

गॉलब्रेथ 1940 के दशक में फॉरच्‍यून पत्रि‍का के संपादक थे. वह  हार्वर्ड के प्रोफेसर थे. जॉन एफ केनेडी के एडवाइजर थे. उनका भारत से करीबी रिश्‍ता था. वह 1960 के दशक में भारत में अमेरिका राजदूत रहे थे

गॉलब्रेथ ने एक किताब ल‍िखी थी.  नाम है द ग्रेट क्रैश1929

गॉलब्रेथ ने इस किताब में बताया था कि कुछ ऐसे कारोबार हैं जिनकी एक कृत्रिम वैल्‍यू बनाई जाती है और लंबे वक्‍त तक लाखों लोग उसमें भरोसा करते रहे हैं. गॉलब्रेथ ने इस कारोबारी मॉडल के लिए ‘बेजल’ शब्‍द का प्रयोग किया . बेजल अंग्रेजी के ‘इंबेजलमेंट’ से बना है जिसका मतलब है ठगीगबन या पैसों का चोरी. अंग्रेजी शब्‍दकोषों में बेज़ल का भी अर्थ कुछ ठगी लूट जैसा ही मिलता है

क्‍या दुनिया की सबसे प्रख्‍यातसंभावनामय कंपरियां गॉलब्रेथ की बेजल थ्‍योरी को सच साबित कर रही हैं. ? मांग में जरा गिरावटआर्थ‍िक उठापटक का एक छोटा सा दौर या पूंजी की जरा सी महंगाई से इनकी चूलें क्‍यों हिल गईंक्‍या हमारी सदी के सबसे चमकदार कारोबार भीतर से इतने खोखले हैं कि हजारों की संख्‍या में नौकर‍ियां खत्‍म करने लगे?  क्‍या दरअसल इनके बिजनेस मॉडल दुनिया का सबसे दिलचस्‍प आर्थि‍क अपराध हैं जैसा कि बेजल ने कहा था ?

युद्ध और महंगाई के बीच अचानक फट पड़ी बेरोजगारी से बदहवास दुनिया समझने की कोशि‍श कर रही है उसे बताया गया है वह सच है या फिर जो छ‍िपाया गया था वही सच था.

आइये समझते हैं कि दुनिया को गॉलब्रेथ ही नहीं  वॉरेन बफे के साथी और बर्कशायर हैथवे  वाली चार्ली मुंगेर के भी कुछ सूत्र याद आ रहे है जो सामूहिक भ्रम में भुला दिये गए थे.

 

सबसे बड़ी उलटबांसी 

दुनिया को आर्थ‍िक संकटों का इतिहास भर तजुर्बा है. इन संकटों के दो परिवार हैं. पहला काल्‍पनिक मांग या कमॉड‍िटी की कीमतें चढ़ जाने से फूले गुब्‍बारे जैसे कि  17 वीं नीदरलैंड में ट्यूलिप खरीदने दौड़ पड़े कारोबारी हों या फिर  ब्रिटेन में साउथ सी कंपनी के शेयरों की तेजी या फिर असंख्‍य पोंजी स्‍कीमें या दूसरा जरुरत से कहीं ज्‍यादा निवेश जैसे 18 वीं सदी के यूरोप में रेलवे और कैनाल बबल से लेकर 1980 में जापान और 2006 में अमेरिका का रियल इस्‍टेट बबल और 2002 का डॉट कॉम बबल.. दोनों किस्‍म के संकटों के पीछे पूंजी बैंकों से या शेयर बाजार से आती है तो यही डूबते हैं

इस बार कुछ एसा हो रहा है जिसकी प्रकृति और तरीका देखकर सर चकरा जाता है. महामारी के दो साल के दौरान दुनिया इस बात मुतमइन पर हो चुकी थी कि टेकएज आ गई है. यानी तकनीकों का स्‍वर्ण युग शुरु हो गया है. यह युग तो महामारी से पहले से ही तैयार था लेक‍िन घरों में बंद लोगों के आर्थ‍िक और सामाजिक व्‍यवहार  बाद बीते साल तक अगर होई यह कहता कि स्‍टार्ट अप डूब जाएंगे या फेसबुक छंटनी करेगी तो शायद उसे सोशल मीडिया पर शहीद कर‍ दिया जाता

लेक‍िन 2022 के आख‍िरी महीने तरफ बढ़ रही दुनिया यह मान रही है कि तकनीकी उद्योग में डॉटकॉम बबल से बड़ा गुब्‍बारा फूट गया है. चौतरफा हाय तोबा मची है. कहीं क्रिप्‍टो एक्‍सचेंज डूब रहे हैं ड‍ि फाई यानी ड‍िसेंट्रालाइज फाइनेंस की मय्यत उठाई जा रही है तो कहीं ई वाहन वाली कंपनियों के माल‍िक फ्रॉड में पकड़े जा रहे हैं तो कहीं सॉफ्टवेयर क्‍या हार्डवेयर तक बनाने वाली कंपनियां नया निवेश बंद कर रही हैं. भारत के मशहूर यूनीकॉर्न पूंजी की कमी से कॉक्रोच में बदल रहे हैं.

कम से कम यह टेकएज तो नहीं जिसका सपना देखते हुए दुनिया महामारी का भवसागर पार कर आई है.

टेक एज की नई सुर्ख‍ियां

दुनिया में बहुत से लोग यह मानते थे कार कंपनियां बंद हो सकती हैं , सिनेमाघरों का वक्‍त खत्‍म हो सकता हैकिसी मौसम की फसल कहीं भी उगाई जा सकती है लेक‍िन तकनीकों की दुनिया में कभी मंदी नहीं आएगी. यह उद्योग फ्यूचर प्रूफ है यानी भविष्‍य की गारंटी है. अब यहां कुछ एसी सुर्ख‍ियां बन रही हैं

-    अमेरिका की हर बड़ी तकनीक कंपनी या तो रोजगार में छंटनी कर रही है या नही भर्त‍ियां बंद कर चुकी है.  केवल अक्‍टूबर महीने‍ में अमेरिका को आईटी उद्योग में करीब 50000 नौकर‍ियां गईं है. इनमें से कई लोग एसे हैं जिन्‍हें दो महीने पहले ही नौकरी में रखा गया था. फेसबुक टि‍्टवरअमेजनटेस्‍लानेटफ‍ि्लक्‍स , कई क्रिप्‍टो एक्‍चेंजईवेहक‍िन कंपनियां नौकर‍ियां खत्‍म कर रही हैं भारत में भी सभी बड़े स्‍टार्ट अप छंटनी कर रही हैं. अब तक  20000 लोगों को गुलाबी पर्ची थमाई जा चुकी है

-    क्रिप्‍टो की दुनिया डूब रही है. वॉयजल और सेल्‍स‍ियस के बाद तीसरा बडा एक्‍सचेंज एफटीएक्‍स दीवालिया हो गया है. इसके मालिक सैम बैंकमैन फ्रायड को पत्र‍िकाओं ने नए युग का जे पी मोर्गन कहा था. जिन्‍होंने 1907 अमेरिका की सरकार को कर्ज देकर संकट से उबारा था.  

-    मासायोशी सन के सॉफबैंक को इस साल अप्रैल जून की त‍िमाही में 913 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है. मासायोशी सन ने स्‍टार्ट अप निवेश से तौबा कर ली है. कई कंपनियों में वह अपनी हिस्‍सेदारी बेचना चाहते हैं. सन का सॉफ्बैंक वेंचर कैपिटल बाजार के आव‍िष्‍कारक था. उसने सिल‍िकॉन वैली स्‍टार्ट अपर 100 अरब डॉलर के साथ  स्‍टार्ट अप इन्‍वेस्‍ट‍िंग का नया युगशुरु कर दिया था.  बहुतों ने सन को वन मैन बबल मेकर की उपाध‍ि से नवाजा था. यह उपाध‍ि अब सही साबित हो रही है.  

-    2022 की तीसरी तिमाही में वेंचर कैपिटल फंड‍िंग बीते साल के मुकाबले 53 फीसदी और पिछली त‍िमाही से 33 फीसदी घटी है. इस सितंबर तक भारत में स्‍टार्ट अप फंडिंग बीते साल की तुलना में 80 फीसदी कम हो गई है

 

-    पूरी दुनिया में यूनीकॉर्न की संख्‍या कम हो रही है. जो मौजूद हैं वह बुरी तरह लहूलुआन हैं. भारत में ओयो प्रति मिनट 76000 रुपयेपेटीएम 60000 रुपयेस्‍व‍िगी करीब 25000 रुपयेपीबी फिनटेक करीब 22000 रुपये और जोमाकोकार ट्रेड नायकमोबीक्‍व‍िक 2000 से 5000 रुपये प्रति म‍िनट का नुकसान उठा रहे हैं.

-    तकनीकी शेयरों का प्रतिनिध‍ि अमेरिकी सूचकांक नैसडैक गहरी मंदी में है. यह बीते बरस से 35 फीसदी टूट चुका है. बीते साल दस साल में यह सबेस तेज गिरावट है.  

क्‍या बदल गया अचानक?

बीते दो साल में दो बड़े बदलाव हुए और आश्‍चर्य है कि इनका सबसे ज्‍यादा असर उस क्षेत्र पर हो रहा है जो शायद मंदी की संभावना से परे था

पहला - अब तक यह रहस्‍य नहीं रह गया है कि दुनिया में कर्ज महंगा होने से पूंजी की आपूर्ति कम हुई है.  2010 के बाद आमतौर पर कर्ज दरें न्‍यूनतम रहीं. बीच एक बार कुछ बढ़त आई तो प्राइवेट फंड आना शुरु हो गए. सस्‍ती पूंजी अब लौटने के साथ प्राइवेट फंड भी लौटने लगे हैं

 

 

 

दूसरा -  ऑनलाइन कारोबारों को नियम बदल रहे हैं या नियामकों की सख्‍ती कर रहे हैं. क्र‍िप्‍टो फिनटेक इसकी नजीर हैं. अमेर‍िका से लेकर भारत तक अमेजनगूगलफेसबुक आदि के बाजार एकाध‍िकार पर निर्णायक कार्रवाई शुरु हो गइ है. यूरोपीय जीडीपीडीआर उपभोक्‍ताओं को राइट टू बी फॉरगॉटेन दे रहा है यानी उसकी सूचना सिस्‍टम में नहीं रहनी चाहिए.    सूचना तकनीक कंपन‍ियों को इस बात के लिए बाध्‍य किया जा रहा है वह उपभोक्‍ताओं को इस बात का अध‍िकार दें कि उन्‍हें ट्रैक किया जा या नहीं

इसका नतीजा यह है कि  न्‍यू इकोनॉमी दुनिया बदल रही है. टारगेटेड विज्ञापन जो डाटा मार्केटिंग की बुनियाद है अब वही डगमगा गई है. मेकेंजी का मानना है कि  कुकीज और  आइडेंट‍िफायर फॉर एडवरटाइजर्स (आईडीएफ) के बंद होने के बादइस सेवाओं का इस्‍तेमाल करने वाली कंपनियों को मार्केट‍िंग पर 10 से 20 फीसदी ज्‍यादा खर्च करना होगा.

बस इतने से हिल गया सब ?

कुछ परेशान करने वाले सवाल हैं      

पहला - क्‍या ब्‍याज दर बढ़ना इतना बड़ा बदलाव था जिससे फेसबुक जैसों का पूरा कारोबार ही लडखड़ा जाए. इन कंपन‍ियों को प्रति कर्मचारी राजस्‍व और मुनाफे में अग्रणी माना जाता है. जैसे कि 2021 में फेसबुक का प्रति कर्मचारी मुनाफा पांच लाख डॉलर था और राजस्‍व करीब 16 लाख डॉलर.

 

  

दूसरा – कंपनियों को पहले से पता था कानून बदलेंगे. पूरी दुनिया के नियामक बीते एक पांच छह साल से सूचना तकनीक कंपन‍ियों को  निजता के अधकिारों की सुरक्षा से लैस करने की कोशि‍श कर रहे हैं. भविष्‍य की तैयारी करने वाली कंपनियों के लिए नियमों का बदलाव इतना बड़ा झटका था कि सब बिखर जाए

यहां हम वापस जॉन केनेथ गॉलब्रेथ की तरफ लौटते हैं. उनकी बेजेल थ्‍योरी कहती है कि किसी संपत्‍त‍ि कारोबार का संभावना या कृत्रि‍म कीमत को बढ़ाने का फर्जीवाड़ा लंबा चल सकता है. क्‍यों कि इससे यह कारोबारी मॉडल इसके नियंता को मुनाफा देता है जबक‍ि गंवाने वाले नुकसान को महसूस नहीं कर पाते.  यही बेजल है. यानी इंबेजलमेंट.

यह सबको पता था है कि बीते एक दशक में  65 फीसदी वेंचर कैपिटल निवेश डूब गए (कोर‍िलेशन वेंचर्स का अध्‍ययन) डूब गए. केवल 2 से 3 फीसदी निवेश पर दस से बीस गुना रिटर्न दियाकेवल एक फीसदी से 20 फीसदी से ज्‍यादा और आधा फीसदी ने 50 गुना या अध‍िक रिटर्न दिया है. 2014 तक कुल वेंचर कैपिटल फाइनेंस 482 अरब डॉलर था जिसमें केवल दस कंपनियों के पास का वैल्‍यूएशन 213 अरब डॉलर था यानी कुल निवेश का आधा.

बाकी केवल बेजल है ?

तकनीकी शेयरों के सूचकांक नैसडक का करीब 51 फीसदी रिटर्न केवल पांच कंपनियों से आता है. जबकि केवल 25 कंपनियां इस सूचकांक के कुल 75 फीसदी रिटर्न की जिम्‍मेदार हैं.

बाकी स‍ब क्‍या बेजल है ?

गालब्रेथ कहते थे कि इस पूरे प्रपंच कुछ बडे संकट छिपे रहते हैं जो बाद में फटते हैं जैसे कि  क्रिप्‍टो कंपनियों और एक्‍सचेंज के एदीवालिया होने का अंदाज नहीं है जब दिन अच्‍छे होते हैंकारोबारों का सही मूल्‍य छ‍िपा रहता है. प्राइस डिस्‍कवरी नहीं होती. लोग समझते हैं कि पूंजी तो आ‍ती रहेगी. जब वक्‍त का पह‍िया दूसरी तरफ जाता है तो सच उभरते हैं. जांच पड़ताल होती है कारोबारी नैतिकता के सवाल उठते हैं.

बेजल का गुब्‍बारा फूट जाता है.

अदर पीपुल्‍स मनी के लेखक जॉन के कहते हैं यह बेजल बड़ा मजेदार है इसमें कई लोग एक साथ एक ही संपत्‍त‍ि का इस्‍तेमाल करते रहते हैं. उन्‍हे पता भी नहीं होता कोई दूसरा भी यही कर रहा है.

क्‍या पूरे सूचना तकनीक कारोबार में यही होता रहा है

किसे नहीं पता था कि

क्‍यों कि चैनलों चर्चाओं में सुर्ख‍ियों में रहने वाले सभी आईटी सूरमाओं को  पता था कि डिज‍टिल अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा हिस्सा तो हमारे खाने-पीनेपहनने-ओढ़नेखरीदने-बेचनेतलाशने-मिटानेसुनने कहने की खरबों की सूचनाओं पर केंद्रित हैइन्‍हीं की वजह से यह सेवायें मुफ्त थीं मगर हम बेचे जा रहे थे और इस कारोबार के आकाश छूते वैल्‍यूएशन बताये जा रहे थे.

यह पूरा आभासी कारोबार वास्‍तव‍िक खरीद को बढ़ाने पर केंद्र‍ित था. ताकि ज्‍यादा से ज्‍यादा लोग खरीद कर सकें. अब मांग ही नहीं होगी यात्रा ही घट जाएगीाहोटल ही नहीं बुक होंगे तो इन्‍हे इन्‍हें लेकर हमारी  सूचनाओं का क्‍या होगा.

सन 2000 में चार्ली मुंगेर ने कहा था कि अगर किसी संपत्‍ति‍ का कृत्रि‍म बाजार मूल्‍य उसके वास्‍तविक आर्थ‍िक मूल्‍य से ज्‍यादा बढाते हुए इस सीमा तक ले जाया जाता है जहां उसे रखने वाले खुद को अमीर मानने लगे. स्‍टार्ट अप में यही हुआ है. मुंगेर इसे ‘फेबजल’ कहा था है. किसी कारोबार की संभावनाओं का एक मूल्‍य हो सकता है लेक‍िन जब वास्‍तविक अर्थव्‍यवस्‍था से यह पूरी तरह कट जाता है तो फिर यह पोंजी में बदल जाता है. क्र‍िप्‍टो इसका उदाहरण बन रहा है

 

सूचना तकनीक बाजार में नौक‍र‍ियों का जो कत्‍ले आम मचा है. कंपनियां जिस तरह अपने कारोबारी विस्‍तार रोक रही हैं उसके बाद असल‍ियत से बाबस्‍ता होने का वक्‍त आ गया है. देा बडे बदलाव सामने दिख रहे हैं

एक – सूचना तकनीक सेवाओं के मुफ्त का युग खत्‍म होगा. इलॉन मस्‍क यही करने जा रहे हैं. महंगाई के बीच कौन कौन ई मेल या सोशल मीड‍िया सेवाओं को पैसा देगा इससे इन कारोबारों की वास्‍तविक वैल्‍यू तय होगी. यानी गालब्रेथ और मुंगेर इनकी कारेाबारे में जमीनी आर्थि‍क सच का असर दिखेगा

दूसरा- दुनिया को बहुत जल्‍दी इस सवाल का जवाब तलाशना होगा कि क्‍या कारोबार के इस तौर तरीके और कृत्र‍िम वैल्‍यूएशन से जीडीपी को बढ़ाकर दिखाया गया. अब अगर स्‍टार्ट डूबेंगे तो क्‍या दुनिया की आर्थ‍िक विकास दर और गिरेगी?

 

तकनीकी कारोबारों की दुनिया का नया युग शुरु होता है अब ..  

 

 


Friday, May 29, 2020

आत्मनिर्भरता मेड इन चाइना !



आत्मनिर्भरता की हुंकार से उत्साहित एक स्वदेशी भक्त ने अपने गुरु को जूम की वीडियो कॉल पर जोड़ा और दहाड़ा कि अब बजेगा चीन का बैंड!
गुरु ने शांत भाव से कहा बच्चा, पाखंड से बचो और पता करो कि चीन को कोसने के ताजा दौर की शुरुआत से पहले बीते एक साल में भारतीय स्टार्ट अप कंपनियों में चीन के 1.4 अरब डॉलर कैसे गए थे? फरवरी तक इनमें 54 बार चीनी निवेश हो चुका था. (रेफिनिटि रिपोर्ट)

अगर बीते वर्षों में भारत की मैन्युफैक्चरिंग चीन पर निर्भर हो गई थी तो पिछले पांच साल में चीन की पूंजी ने भारत के डिजिटल भविष्य को जकड़ लिया है. हकीकत यह है कि बीते वर्षों में जब हमें आत्मनिर्भरता के झंडे पकड़ाकर चीनी लड़ियों-फुलझडि़यों के विरोध के लिए उकसाया जा रहा था तब पर्दे के पीछे डिजिटल इंडिया को मेड इन चाइना बनाने का अभियान चल रहा था.

कॉर्पोरेट मंत्रालय, स्टॉक एक्सचेंज (भारत हांगकांग) में दिए गए ब्योरे, कॉर्पोरेट घोषणाओं और विदेशी निवेश के आंकड़ों पर आधारि, गेटवेहाउस (इंडियन काउंस‍िल ऑन ग्लोबल रिलेशंस) की ताजा रिपोर्ट बताती है कि भारत अब चीन के वर्चुअल बेल्ट ऐंड रोड प्रोजेक्ट (पूंजी निवेश के दम पर एशिया से यूरोप तक फैला चीन का प्रभाव क्षेत्र) का हिस्सा बन चुका है

स्टार्ट अप, मोबाइल ऐप्लिकेशन, ब्राउजर, बिग डेटा, फिनटेक, कॉमर्स, सोशल मीडिया, ऑनलाइन मनोरंजन आदि नई अर्थव्यवस्था का हिस्सा हैं. कोविड के बाद के भारतीय भविष्य की योजनाओं में चीन गहराई तक पैठ गया है.

चीन के तकनीक निवेशकों ने मार्च 2020 तक पांच वर्षों में भारतीय स्टार्ट अप कंपनियों में करीब 4 अरब डॉलर का निवेश किया. भारत के 30 यूनीकॉर्न (एक अरब डॉलर से अधि के वैल्यूएशन) स्टार्ट अप में से 18 में चीन का निवेश है. चीन की दो दर्जन तकनीकी कंपनियां भारत के 92 बड़े स्टार्ट अप में पूंजी डाल चुकी हैं

शियोमी भारतीय बाजार की सबसे बड़ी मोबाइल कंपनी है और हुआवे सबसे बड़ी दूरसंचार उपकरण सप्लायर है

अलीबाबा, टेनसेंट, शनवेई कैपिटल (शियोमी) और बाइटडांस भारतीय बाजार में सबसे बड़े निवेशक हैं

पेटीएम, बिग बास्केट, डेलीहंट, टिकटनाउ, विडूली, रैपिडो, जोमैटो, स्नैपडील में निवेश के साथ अलीबाबा, कॉमर्स, फिनटेक मनोरंजन क्षेत्र का सबसे बड़ा निवेशक है

बायजूज, ओला, ड्रीम 11, गाना, माइगेट, स्विगी आदि में निवेश के साथ शिक्षा, गेमिंग, लॉजस्टिक्स, सोशल मीडिया, फिनटेक के स्टार्ट अप टेनसेंट की पूंजी पर चल रहे हैं

शनवेई कैपिटल ने सिटी मॉल, हंगामा डिजिटल, ओय! रिक्शा, रैपिडो, शेयरचैट, जेस्टमनी में निवेश किया है
यानी कि बीते पांच बरस में डिजिटल इंडिया के प्रत्येक शुभंकर की कीर्ति कथा चीन की पूंजी से बनी है

गूगल प्ले और आइओएस पर सबसे ज्यादा डाउनलोड होने वाले ऐप्लिकेशन में 50 फीसद चीन की कंपनियों के हैं. बाइटडांस का टिकटॉक 20 करोड़ सब्सक्राइबर के साथ भारत में यूट्यूब को पीछे छोड़ चुका है. बाइटडांस का वीगो वीडियो और अलीबाबा का शेयरइट इसी फेहरिस्त का हिस्सा हैं

अलीबाबा का यूसी ब्राउजर भारत के मोबाइल ब्राउजर बाजार में करीब 20 फीसद हिस्सा रखता है. टेनसेंट ने वीडियो नेटफ्लिक्स जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म मैक्स प्लेयर में पैसा लगाया है

चीन की कंपनियों का अगला लक्ष्य (अब तक 57.5 करोड़ डॉलर का निवेश) इलेक्ट्रिक वाहन हैं. चीन की बीवाइडी इलेक्ट्रिक बस लाने जा रही है. वोल्वो और एमजी हेक्टर के जरिए चीन भारत के ऑटोमोबाइल बाजार में दखल बढ़ाएगा (गेटवेहाउस)

डिजिटल इंडिया पर चीन का नियंत्रण भारत को पेचीदा मुकाम पर ले आया है.

♦ पाकिस्तान, श्रीलंका, म्यान्मार, बांग्लादेश की तुलना में भारत में चीन का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नगण्य (6.2 अरब डॉलर) है पर स्टार्ट अप निवेश के जरिए उसने देश के डिजिटल भविष्य को घेर लिया है

♦ स्टार्ट अप शुरुआत में नुक्सान उठाते हैं. यहां ऐसे निवेश की पूंजी नहीं है. तभी अलीबाबा, टेनसेंट, बाइटडांस ने मोर्चा मार लिया है

♦ अधिकतर चीनी कंपनियां, फिनटेक, कॉमर्स, सोशल मीडिया, जैसे क्षेत्रों में सक्रिय हैं जहां उपभोक्ताओं के डेटा का अंबार है.

चीन की पूंजी निकलते ही स्टार्ट अप क्रांति बैठ जाएगी. आत्मनिर्भर भविष्य के लिए स्टार्ट अप पूंजी के स्रोत तैयार करने होंगे जो नुक्सान के बावजूद आती रहे. ऐसी उत्पादन क्षमताएं बनानी होंगी जो चीन से सस्ता उत्पादन कर सकें.
यह सब कुछ आत्मनिर्भरता की नारेबाजी जितना आसान नहीं है

जॉन मिल्टन ठीक कहते थे कि परमात्मा के बाद केवल पाखंड ही है जो अदृश्य होकर मौजूद रहता है. चीन को लेकर  पाखंड अगर खत्म हो तो शायद हम भारत की क्षमताओं और संभावनाओं का कहीं ज्यादा बेहतर इस्तेमाल कर सकेंगे.