Showing posts with label Yen devolution. Show all posts
Showing posts with label Yen devolution. Show all posts

Monday, April 15, 2013

तीसरी ताकत की वापसी



शिंजो एबे ग्‍लोबल बाजारों के लिए सबसे कीमती नेता हैं। दुनिया की तीसरी आर्थिक ताकत यदि जागती है तो ग्‍लोबल बाजारों का नक्‍शा ही बदल जाएगा। विश्‍व की आर्थिक मुख्‍यधारा में जापान की वापसी बहुत मायने रखती है।

कोई दूसरा मौका होता तो जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबे दुनिया में धिक्‍कारे जा रहे होते। लोग उन्‍हें जिद्दी और मौद्रिक तानाशाह कहते क्‍यों कि विश्‍व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था और चौथा सबसे निर्यातक, जब निर्यात बढ़ाने के लिए अपनी मुद्रा का अवमूल्‍यन करने लगे तो मंदी के दौर किसे सुहायेगा। लेकिन हठी व दो टूक शिंजों इस समय दुनिया के सबसे हिम्मती राजनेता बन गए हैं। उन्‍होंने येन के अवमूल्‍यन के साथ जापान की पंद्रह साल पुरानी जिद्दी मंदी के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया है और मुद्रा कमजोरी को ताकत बनाने में हिचक रहे अमेरिका व यूरोप को नेतृत्‍व दे दिया है। परंपरावादी, जटिल और राजनीतिक अस्थिरता भरे जापान में सस्‍ता येन, महंगाई और मुक्‍त आयात जैसे रास्‍ते वर्जित हैं अलबत्‍ता शिंजों की एबेनॉमिक्‍स ने इन्‍हीं को अपनाकर जापानी आर्थिक दर्शन को सर के बल खड़ा कर दिया है। यहां से मुद्राओं के ग्‍लोबल अवमूल्‍यन यानी मुद्रा संघर्ष की शुरुआत हो सकती है लेकिन दुनिया को डर नहीं है क्‍यों कि शिंजो मंदी से उबरने की सूझ लेकर आए हैं।
याद करना मुश्किल है कि जापान से अच्‍छी आर्थिक खबर आखिरी बार कब सुनी गई थी। पंद्रह साल में पांच मंदियों का मारा जापान डिफ्लेशन यानी अपस्‍फीति  का शिकार है। वहां कीमतें बढती ही नहीं, इसलिए मांग व मुनाफों में कोई ग्रोथ नहीं है। बीते दो दशक में चौतरफा ग्रोथ के बावजूद जापान की सुस्‍ती नहीं टूटी। 1992 में जापान ने भी, आज के सपेन या आयरलैंड की तरह कर्ज संकट