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Monday, April 22, 2013

लम्‍हों की खता और सदियों की सजा



महिलाओं के खिलाफ अपराध रोकने के ताजा कानून के पीछे संवेदना और सजगता की राजनीतिक चेतना नहीं थी बस कानून फेंककर लोगों को किसी तरह चुप करा दिया गया। इसलिए डरावने बताये गए कानून से कोई दुष्‍कर्मी नहीं डरा।


इंसाफ कोई बेरोजगारी भत्‍ता, लैपटॉप या साइकिल नहीं है जिसे बांटकर वोट लिये जा सकें। न्‍याय विशेष राहत पैकेज भी नहीं हैं जिनसे सियासत चमकाई जा सके। इंसाफ में समाज का भरोसा कानून के शब्‍दों से नहीं बल्कि कानून की चेतना से तय होता है। एक कथित सख्‍त कानून से कुछ भी बदला। महिलाओं के खिलाफ अपराध और जघन्‍य हो गए और लोग फिर सड़क पर उतर कर इंसाफ के लिए नेताओं का घर घेर रहे हैं। कानून बेअसर इसलिए हुआ है क्‍यों कि कानून बनाने वालों की सोच ने उसकी भाषा से ज्‍यादा असर किया है। एक बिटिया की हत्‍या के खिलाफ उबले जनआक्रोश के बदले जो कानून मिला उसके पीछे दर्द, संवेदना और सजगता की राजनीतिक चेतना नहीं थी बल्कि कानून फेंकर लोगों को किसी तरह चुप करा दिया गया। पूरे देश ने देखा कि क्रूर अपराधी को अविस्‍मरणीय दंड की बहस, चलाकी के साथ  सहमति से सेक्‍स की उम्र की बहस में बदल गई। नतीजतन इस कथित सख्‍त कानून के शब्‍दों से न अपराधी डरे, न तेज फैसले हुए और  न न्‍याय मिला। हम वहीं खड़े हैं जहां से चले थे।