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Tuesday, October 20, 2015

उलटा तीर



विदेश में जमा काला धन को लेकर एक बेसिर-पैर के चुनावी वादे को पूरा करने की कोशिश में भारतीय टैक्स सिस्टम की विश्वसनीयता पर गहरी खरोंचें लग गई हैं.

यह कहावत शायद टैक्सेशन की दुनिया के लिए ही बनी होगी कि आम माफी उन अपराधियों के प्रति सरकार की उदारता होती है जिन्हें सजा देना बहुत महंगा पड़ता है. टैक्स चोरों और काले धन वालों को आम माफी (एमनेस्टी?) का फैसला सरकारें हिचक के साथ करती हैं, क्योंकि कर चोरों को बगैर सजा के बच निकलने की सुविधा देना हमेशा से अनैतिक होता है. इसलिए अगर इस सहूलियत के जरिए पर्याप्त काला धन भी न आए तो सरकार की साख क्षत-विक्षत हो जाती है. एनडीए सरकार के साथ यही हुआ है, विदेश में जमा काला धन को लेकर एक बेसिर-पैर के चुनावी वादे को पूरा करने की कोशिश में भारतीय टैक्स सिस्टम की विश्वसनीयता पर गहरी खरोंचें लग गई हैं. आधी-अधूरी तैयारियों और जल्दबाजी में लिए गए फैसलों के कारण, सजा से माफी देकर विदेश में जमा काला धन बाहर निकालने की कोशिश औंधे मुंह गिरी है. टैक्स चोरों ने भी सरकार की उदारता पर भरोसा नहीं किया है.
आम चुनावों के दौरान विदेश से काला धन लाकर लोगों के खाते में जमा करने के वादे पर सवालों में घिरने के बाद सरकार ने बजट सत्र में संसद से एक कानून (अनडिस्क्लोज्ड फॉरेन इनकम ऐंड एसेट्स बिल, 2015) पारित कराया था, जिसके तहत सरकार ने विदेश में काला धन रखने वालों को यह सुविधा दी थी कि 1 जुलाई से 1 अक्तूबर के बीच यदि विदेश में छिपाया धन घोषित करते हुए टैक्स (30 फीसद) और पेनाल्टी (टैक्स का शत प्रतिशत) चुकाई जाती है तो कार्रवाई नहीं होगी. तीन महीने में इस अवधि के खत्म होने पर केवल 4,147 करोड़ रु. का काला धन घोषित हुआ है, जिस पर सरकार को अधिकतम 2,000 करोड़ रु. का टैक्स मिलेगा.
इस साल मार्च में इसी स्तंभ में हमने लिखा था कि 1997 की काला धन स्वघोषणा (वीडीआइएस) स्कीम में गोपनीयता के वादे के बाद भी कंपनियों पर कार्रवाई हुई थी, इसलिए कानून के तहत बड़ी घोषणाएं होने पर शक है लेकिन यह अनुमान कतई नहीं था कि विदेश में काला धन होने के अभूतपूर्व राजनैतिक आंकड़ों के बावजूद इतनी कम घोषणाएं होंगी.
एमनेस्टी स्कीम की विफलता की तह में जाना जरूरी है. काले धन को लेकर इस बड़ी पहल की नाकामी सरकार को नौसिखुआ व जल्दबाज साबित करती है. 
अंधेरे में तीर दरअसल, वित्त मंत्रालय के पास विदेश में जमा काले धन की कोई ठोस जानकारी ही नहीं थी. ऐसी कोशिशें कम ही देशों ने की है क्योंकि इनकी विफलता का खतरा ज्यादा होता है. भारत की पिछली सफल स्कीमें भी देशी काले धन पर केंद्रित थीं. हाल में इटली और अमेरिका ने विदेश में जमा काले धन पर एमनेस्टी स्कीमें सफलता से पूरी की हैं जिनके लिए विदेश से सूचनाएं जुटाकर मजबूत जमीन तैयार की गई थी जबकि अपना वित्त मंत्रालय इस मामले में बिल्कुल अंधेरे में है. सरकार ने दुनिया के तमाम देशों व टैक्स हैवेन को पिछले महीनों में करीब 3,200 अनुरोध भेजकर सूचना हासिल करने की कोशिश शुरू की है, जिनके जवाब अभी आने हैं. सरकार के पास जो जानकारियां उपलब्ध हैं, वे ठोस नहीं थीं, इसलिए तीर उलटा आकर लगा है. वह पार्टी जो विदेश में भारी काला धन जमा होने का दावा कर रही थी, उसके वित्त मंत्री को इस स्कीम की भव्य विफलता के बाद कहना पड़ा कि विदेश में भारत का काला धन है नहीं. 
रणनीतिक चूकः एमनेस्टी स्कीमों का लाभ लेने की कोशिश वही लोग करते हैं जिन्हें सजा का डर होता है. लेकिन वित्त मंत्रालय ने विदेश में जमा धन को लेकर विभिन्न मामलों में सक्रिय कार्रवाइयां, यहां तक सर्वे भी इस स्कीम से बाहर कर दिए थे. इसलिए जो लोग कार्रवाई के डर से स्कीम में आ सकते थे उन्हें भी मौका नहीं मिला. यह एक बड़ी रणनीतिक चूक है.
भरोसे का सवालः आयकर विभाग को मालूम था कि पुराने तजुर्बों की रोशनी में इस सुविधा पर लोग आसानी से विश्वास नहीं करेंगे. स्कीम को सफल बनाने के लिए कर प्रशासन पर भरोसा बढ़ाने की कोशिश होनी चाहिए थी, लेकिन एक तरफ सरकार काला धन घोषित करने के लिए एमनेस्टी दे रही थी तो दूसरी तरफ निवेशकों व कंपनियों को मैट (मिनिमम ऑल्टरनेटिव टैक्स) और पुराने मामलों के लिए नोटिस भेजे जा रहे थे. इस असंगति ने कर प्रशासन पर भरोसे को कमजोर किया और स्कीम की विफलता सुनिश्चित कर दी.
अधूरी तैयारीः वित्त मंत्रालय ने एमनेस्टी के लिए तैयारी नहीं की थी. स्कीम को लेकर स्पष्टीकरण देर से आए और सबसे बड़ी बात, प्रचार में बहादुर सरकार ने अपनी महत्वाकांक्षी स्कीम का कोई प्रचार नहीं किया, खास तौर पर विदेश में तो कतई नहीं, जहां बसे भारतीय इसके सबसे बड़े ग्राहक थे. अंतरराष्ट्रीय तजुर्बे बताते हैं कि इस तरह की स्कीमों को लेकर प्रत्यक्ष व परोक्ष अभियान चलते हैं ताकि अधिक से अधिक लोग इसका हिस्सा बन सकें और सफलता सुनिश्चित हो सके.
काले धन पर आम माफी की असफलता की तुलना 18 साल पहले की वीडीआइएस स्कीम से की जाएगी. तब इसके तहत 36,697 करोड़ रु. काले धन की घोषणा हुई थी, जो मौजूदा स्कीम में की गई घोषणाओं का दस गुना है. यही नहीं, इसे विदेश से काला धन निकालने में अमेरिका (5 अरब डॉलर) और इटली (1.4 अरब यूरो) की ताजा सफलताओं की रोशनी में भी देखा जाएगा.

चुनावी वादे पर फजीहत से लेकर निवेशकों को नोटिस और उनकी वापसी और एमनेस्टी स्कीम की विफलता तक, पिछले सोलह माह में भारत के कर प्रशासन की साख तेजी से गिरी है. बैंकों के जरिए काला धन विदेश ले जाने के ताजा मामले ने कर प्रशासन की निगहबानी के दावों को भी धो दिया है. सरकार की आम माफी पर लोगों का भरोसा न होना एक बड़ी विफलता है, जिसका असर कर प्रशासन की विश्वसनीयता व मनोबल पर लंबे अर्से तक रहेगा. भारत के टैक्स सिस्टम को इस हादसे से उबरने में लंबा वक्त लग सकता है. 

Monday, March 30, 2015

कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है


सरकार से यह उम्मीद कतई न थी विदेश में काला धन रखने वालों के लिए बचने की खिड़की खोल दी जाएगी और इंस्पेक्टर राज से लैस एक कानून थोप दिया जाएगा.
खिर सरकार की नीयत पर लोग शक क्यों न करें? देश जब काले धन पर कुढ़ रहा हो तब ऐसा विधेयक लोकसभा में पेश किया गया है जो विदेश में अवैध पैसा रखने वालों को कानूनी सख्ती से पहले टैक्स और पेनाल्टी देकर बच निकलने का मौका देने जा रहा है. माना कि विदेश से काला धन लाने में विफलता, मोदी सरकार की किरकिरी करा रही है लेकिन इतनी भी क्या बेताबी कि काला धन रोकने की कोशिशों पर संसद में पर्याप्त चर्चा भी न हो सके. विदेश में जमा काला धन पर सख्ती के लिए बीते सप्ताह लोकसभा में पेश विधेयक (अनडिस्क्लोज्ड फॉरेन इनकम ऐंड एसेट्स बिल 2015) दरअसल मनी बिल है, जिस पर देश में तो छोडिय़े, संसद में भी पर्याप्त बहस नहीं होगी, क्योंकि इसे संसदीय समितियों को भी नहीं दिया जा सकता. इतनी जल्दबाजी और पर्दादारी का मकसद क्या हो सकता है?
अनडिस्क्लोज्ड फॉरेन इनकम ऐंड एसेट्स (यूएफआइए) बिल 2015 को पढऩे के बाद टैक्स का कोई सामान्य विशेषज्ञ भी बता देगा कि यह दूरदर्शी या नायाब कानून नहीं है. अगर विदेश में जमा अघोषित संपत्ति पर सख्ती करनी थी तो इसके लिए नया कानून लादने की जरूरत शायद नहीं थी. नए कानून मैक्सिमम गवर्नेंस की पहचान हैं जो दुरुपयोग का खतरा बढ़ाते हैं.
विदेश में जमा काले धन पर शिकंजे के लिए मौजूदा आयकर कानून में कुछ संशोधन हो सकते थे क्योंकि विदेशी संपत्ति सहित कर योग्य संपत्ति छिपाने पर सात साल की सजा का प्रावधान पहले से मौजूद है. नया विधेयक विदेश में धन छिपाने का दोषी पाए जाने पर भारत में संपत्ति जब्त करने, सख्त सजा और कानूनी बचाव के रास्ते सीमित करने से लैस है. ये प्रावधान मौजूदा आयकर कानून में जोड़े जा सकते थे. सिर्फ इतने के लिए आनन-फानन में नया कानून लाने की भला क्या जरूरत आन पड़ी थी?
इस विधेयक के प्रावधानों पर अचरज से ज्यादा शक इसे लाने के तरीके और पारित कराने की रणनीति पर है. यह विधेयक एक मनी बिल है जिसे संविधान की धारा117 और 274 के तहत पेश किया गया है. धारा 117 के तहत, राष्ट्रपति को पूर्व सूचना देकर खास तरह के मनी बिल पेश किए जाते हैं. यह राज्यसभा भी नहीं जाएगा,जहां सरकार अल्पमत में है. मनी बिल होने के नाते इसे संसदीय समितियों के पास भेजने की जरूरत भी नहीं बल्कि लोकसभा को 75 दिन में इसे पारित करना होगा. विदेश में काले धन के खातों पर सख्ती के कानून को लेकर यह पेशबंदी बताती है कि इस पर बहस को सीमित रखने की कोशिश की जा रही है.
इस विधेयक का छठा खंड विवादित होगा और इसे बहस को रोकने की रोशनी में देखा जाएगा. इस खंड के तहत व्यवस्था दी गई है कि इस नए कानून के प्रभावी होने से पहले अगर विदेश में छिपाया धन घोषित करते हुए टैक्स (30 फीसद) और पेनाल्टी (टैक्स का शत प्रतिशत) चुकाई जाती है तो कार्रवाई नहीं होगी. वकीलों से मिलें तो वे 1997 की वीडीआइएस स्कीम के तजुर्बे को आधार बनाकर माफी के प्रावधान पर भी शक करते हुए बताएंगे कि कंपनियां शायद ही इस कानून के तहत काला धन घोषित करने आएं. वजह? वीडीआइएस में गोपनीयता के वादे के बावजूद कई मामलों में कर जांच शुरू हुई थी. यह नया कानून इस तथ्य को भी स्पष्ट नहीं करता कि अगर काली कमाई जरायम से निकली है तो संपत्ति घोषित करने वाले पर कार्रवाई होगी या नहीं.
फिर भी विदेश में जमा काला धन धोने के लिए यह लांड्री नुकसान का सौदा नहीं है. टैक्स हैवेन में पैसा रखने पर एक या दो फीसद का ब्याज मिलता है, दर्जनों जोखिम अलग से. इस नई व्यवस्था में कर और पेनाल्टी चुकाने के बाद भी 100 रु. में से 40 रु. बचेंगे जो साफ-सुथरे होंगे. माफी देने पर विवाद होना तय है क्योंकि कर चोरों को बच निकलने का मौका मिलना ईमानदार करदाताओं के साथ अन्याय है. शायद यही वजह है कि सरकार इस विधेयक पर बड़ी बहस नहीं चाहती, बस किसी तरह संसद की दहलीज पार करा देना चाहती है ताकि कुछ काला धन वापस लाकर दिखाया जा सके और एक अतार्किक चुनावी वादे से मुकरने की कालिख कम की जा सके.
जिस देश में सख्त कानून के बावजूद बलात्कारियों को सजा न हो पाती हो वहां विदेश में जमा काले धन पर आधे-अधूरे कानून के असरदार होने की कोई गारंटी नहीं है. आयकर, सीमा और उत्पाद शुल्क के लंबित अभियोजनों का इतिहास बताता है कि टैक्स प्रशासन कितना बोदा है. कहने को तो प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉड्रिंग कानून2012 भी सख्त है लेकिन अब तक इसमें न तो कोई बड़ा मामला बना और न ही बड़ी रिकवरी हुई. इसलिए नया कथित सख्त कानून सिर्फ एक नए इंस्पेक्टर राज का खतरा पैदा करता है जैसा कि इस प्रजाति के दूसरे कानूनों में है जो सजा तो नहीं दिला पाते अलबत्ता भ्रष्टाचार के नाखून पैने कर देते हैं. कानून को गौर से पढऩे पर इसमें कई और तकनीकी कमजोरियां निकलती हैं जो इसे उदार अर्थव्यवस्था और पारदर्शिता के माफिक साबित नहीं करतीं. इसे व्यावहारिक बनाने के लिए देश और संसद में इस पर पर्याप्त बहस हर तरह से जरूरी है.
विदेश में जमा काला धन काली अर्थव्यवस्था का आधा फीसद भी नहीं है. इस मुद्दे पर चुनावी और न्यायिक सक्रियता के बाद काले धन की पैदावार को सीमित करने,खपत के तौर-तरीकों को रोकने, देश से बाहर लाने-ले जाने के रास्तों और राजनीतिक चंदे सहित विभिन्न आयामों पर समग्र प्रयासों की अपेक्षा की गई थी. सरकार से यह उम्मीद कतई न थी कि काला धन रोकने के उपायों को विदेशी खातों तक सीमित करते हुए विदेश में काला धन रखने वालों के लिए बचने की खिड़की खोल दी जाएगी और इंस्पेक्टर राज से लैस एक कानून थोप दिया जाएगा.
सरकारें अक्सर यह भूल जाती हैं कि आम लोग नीयत पढऩे में चूक नहीं करते. विदेश में जमा कितनी काली कमाई इस कानून के जरिए आएगी, यह तय नहीं है. अलबत्ता इसमें कोई शक नहीं कि इसके प्रावधान और इसे लाने का तरीका, काले धन को लेकर सरकार की नीयत पर उठने वाले सवालों को बड़ा और पैना जरूर कर देंगे.


Monday, November 3, 2014

सबसे बड़ा ‘स्वच्छता’ मिशन

काले धन के खिलाफ देश में गुस्सा है। अदालतें सक्रिय हैं। पारदर्शिता के ग्‍लोबल अाग्रह बढ़ रहे हैं।  अर्थव्यवस्था से कालिख की सफाई के एक संकल्पबद्ध अभियान के लिए उपयुक्‍त मौका है लेकिन भारत के इतिहास का सबसे भव्य व महंगा चुनाव लडऩे वाली पार्टी की सरकार क्या इतनी साहसी साबित होगी? 
न् 1963. अमेरिकी सीनेट कमेटी की सुनवाई. जोसेफ वेलाची यानी अमेरिका के पहले घोषित माफिया डॉन ने जैसे ही कबूला कि मुल्क में अपराधियों की समानांतर सरकार (कोजा नोस्त्रा) चलती है तो सांसद समझ गए कि आर्थिक व सामाजिक अपराध के विशाल नेटवर्क के सामने अब मौजूदा कानून बोदे हैं. वेलाची की गवाही के बाद अमेरिका में एक तरफ माफिया की दंतकथाएं बन रहीं थी तो दूसरी तरफ नीति-निर्माता, कानूनविद रॉबर्ट ब्लेकी की मदद से, एक बड़े कानून की तैयारी में जुटे थे. मारियो पुजो के क्लासिक उपन्यास गॉड फादर (1969) के प्रकाशन के ठीक साल भर बाद 1970 में रैकेटियर इन्फ्लुएंस्ड ऐंड करप्ट ऑर्गेनाइजेशंस (रीको) ऐक्ट पारित हुआ. रीको कानून माफिया तक ही सीमित नहीं रहा. हाल में मेक्सिको की खाड़ी में तेल रिसाव से हर्जाना वसूलने से लेकर पोंजी स्कीम चलाने वाले रॉबर्ट मैडॉफ को घेरने तक में इसका इस्तेमाल हुआ है. विदेशों में जमा काले धन का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचने के बाद, भारत में भी श्रीको मूमेंट्य आ गया है और अगर नहीं, तो आ जाना चाहिए. भारत में अब काले धन को थामने के उपायों की एक बड़ी मुहिम शुरू हो सकती है जिसके कारखाने व ठिकाने तमाम कारोबारों, वित्तीय संस्थानों, जमीन-जायदाद से लेकर राजनैतिक दलों के चंदे तक फैले हैं. यह सबसे बड़ा स्वच्छता मिशन होगा, जिसका इंतजार  दशकों से हो रहा है और पीढिय़ों तक याद किया जाएगा. 
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Monday, September 23, 2013

जनता की नब्‍ज


पश्चिम में वित्‍तीय पारदर्शिता की निर्णायक मुहिम शुरु हो चुकी है लेकिन भारत में भ्रष्‍टाचार के खिलाफ जनांदोलन से कुछ नहीं बदला। भारतीय सियासत काले धन के प्रयोग का सबसे बड़ा उत्‍सव मनाने जा रही है जिसे आम चुनाव कहते हैं। 
सियासत की चमड़ी मोटी जरुर होती है लेकिन यह पूरी दुनिया में एक जैसी सख्‍त हरगिज नहीं है। कहीं एक दो आवाजें ही राजनीति की कठोर जिल्‍द पर बदलाव की तहरीर छाप देती हैं तो कहीं आंदोलनों की आंधी और जनता के सतत आग्रहों के बावजूद सियासत की छाल पर सिलवटें नहीं आतीं। बदलावों के ताजा आग्रह सिर्फ जनता की बैचैनी ही नहीं बताते बल्कि यह भी जाहिर करते हैं कि किस मुलक की सियासत कितनी जिद्दी और रुढि़वादी या प्रगतिशील व संवेदनशील है। जनता की नब्‍ज समझन में पश्चिम की सियासत एक बार फिर हमसे इक्‍कीस साबित हुई है। यह वित्‍तीय पारदर्शिता को लेकर ग्‍लोबल अपेक्षाओं की जीत ही थी कि सीरिया के संकट के बावजूद बीते पखवारे जी 20 शिखर बैठक में दुनिया के अगुआ देशों ने टैक्‍स हैवेन पर नकेल डॉलने व टैक्‍स पारदर्शिता के अब तक के सबसे बडे अभियान को मंजूरी दे दी। यूरोप के देश व अमेरिका अगले कुछ माह में जब टैक्‍स की विश्‍वव्‍यापी चोरी रोकने के नए कानून लागू कर रहे होंगे तब भारत की मोदियाई और दंगाई राजनीति, काले धन पर रोक व पारदर्शिता के आग्रहों को कोने में टिकाकर चुनावों की दकियानूसी सियासत में लिथड़ रही होगी। 
सेंट पीटर्सबर्ग में जी20 की ताजा जुटान से काली कमाई के जमाघरों यानी टैक्‍स हैवेन के नकाब नोचने की सबसे दूरदर्शी मुहिम शुरु हुई है। यूरोपीय समुदाय सहित करीब पचास देश 2015 से एक स्‍वचालित प्रक्रिया के तहत कर सूचनाओं का आदान प्रदान करेंगे ताकि कर चोरी और टैक्‍स हैवेन में छिपने के रास्‍ते बंद हो सकें। इस सहमति के बाद दुनिया के कई मुल्को में अमेरिका के फॅारेन अकाउंट टैक्‍स कंप्‍लायंस एक्‍ट (एफएटीसीए) जैसे

Monday, May 20, 2013

संकट की सफलता



ब्रिटेन ने आधा दर्जन टैक्‍स हैवेन पर नकेल डाल दी है। लक्‍जमबर्ग व आस्ट्रिया कर गोपनीयता बनाये रखने की जिद छोड़ने पर मजबूर हुए हैं। यह पारदर्शिता के ग्‍लोबल आग्रहों की पहली बड़ी जीत है।
माज यदि जागरुक व संवेदनशील है तो संकट सुधारों को जन्‍म देते हैं। सितंबर 2011 में अमेरिका पर अलकायदा का हमला न हुआ होता तो दुनिया आतंक को पोसने वाले वित्‍तीय तंत्र से गाफिल ही रहती। डब्‍लूटीसी के ढहने के साथ ही संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ से लेकर फाइनेंशियल एक्‍शन टास्‍क फोर्स जैसी संस्‍थाओं के नेतृत्‍व में आतंक की ग्‍लोबल आर्थिक नसें काट दी गईं और आतंक की रीढ़ काफी हद तक टूट गई। ठीक इसी तरह अगर कर्ज संकट न आया होता तो शायद यूरोप टैक्‍स हैवेन को हमेशा की तरह पालता रहता।  यूरोप की सरकारें खुद ब खुद काली कमाई के जमाघरों के पर्दे नोच रही है। ब्रिटेन ने आधा दर्जन टैक्‍स हैवेन पर नए नियमों की नकेल डाल दी है और यूरोपीय संघ ने अपने दिग्‍गज सदस्‍यों लक्‍जमबर्ग व आस्ट्रिया को कर गोपनीयता बनाये रखने की जिद छोड़ने पर मजबूर किया है। यह पारदर्शिता के ग्‍लोबल आग्रहों की पहली बड़ी जीत है।
यूरोप में नैतिक दबावों और वित्‍तीय गोपनीयता के बीच के निर्णायक रस्‍साकशी शुरु हो चुकी है। टैक्‍स हैवेन, यूरोप की सरकारों को एक गहरी ग्‍लानि में धकेल रहे हैं। कर्ज संकट के कारण जनता की सुविधायें काटते और टैकस लादते हुए यूरोप के हाकिमो को  यह स्‍वीकार करना पड़ा है कि काले धन के टैक्‍स फ्री जमाघरों को संरंक्षण और जनता पर सख्‍ती एक साथ नहीं चल सकतीं, क्‍यों कि ताजे आंकडों के मुताबिक इन जन्‍नतों में करीब 32 खरब डॉलर की काली कमाई जमा है। टैक्‍स हैवेन यूरोपीय वित्‍तीय तंत्र के अतीत व वर्तमान  का मजबूत हिस्‍सा हैं। स्विटजरलैंड ने टैक्‍स हैवेन का धंधा, 1930 की मंदी से डर कर शुरु किया था। ऑस्ट्रिया व स्विटजरलैंड के बीच मौजूदा छोटी सी रियासत लीचेंस्‍टीन भी तब तक अपने कानून बदल कर टैक्‍स हैवेन बन चुकी थी। ज्‍यूरिख-जुग-लीचेंस्‍टीन की तिकड़ी को