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Monday, June 13, 2011

सरकारें हैं कि मानती नहीं

स ट्यूनीशियाई ने जुलूस में फूटा अपना सर चीनी को दिखाया तो चीन वाले के चेहरे पर जमीन छिनने का दर्द उभर आया। इजिप्टयन ने कराहते हुए अपनी व्यथा सुनाई तो यमन वाले को भी पुलिस की मार याद आई। चुटहिल ग्रीक, हैरान आयरिश, नाराज सीरियाई, खफा स्पेनिश और गुस्सा भारतीय सभी एक साथ बड़बड़ाये कि सरकारें अगर गलत हों तो सही होना बहुत खतरनाक है। (वाल्तेयर)..... यह सरकारों के विरोध का अंतरराष्ट्रीय मौसम है। एक चौथाई दुनिया सरकार विरोधी आंदोलनों से तप रही है। रुढि़वादी अरब समाज ने छह माह में दुनिया को दो तख्ता पलट ( इजिप्ट और ट्यूनीशिया) दिखा दिये। चीन में विरोध अब पाबंदियों से नहीं डरता। अमीर यूरोप में जनता सड़क पर हैं तो पिछड़े अफ्रीका में लोग सामंती राज से भिड़े हुए हैं। लगभग हर महाद्वीप के कई प्रमुख देशों में आम लोगों की बददुआओं पर अब केवल सरकारों का हक है। सरकारों के यह भूमंडलीय दुर्दिन हैं और देशों व संस्कृंतियों से परे सभी आंदोलन महंगाई और भ्रष्टांचार जैसी पुरानी समस्या ओं के खिलाफ शुरु हुए हैं जो बाद में किसी भी सीमा तक चले गए। लेकिन सरकारें कभी वक्त पर नसीहत नहीं लेतीं क्यों कि उन्हें इतिहास बनवाने का शौक है।
चीन का भट्टा पारसौल
जमीनों में विरोध कई जगह उग रहा है। चीन फेसबुक या ट्विटर छाव विरोध (जास्मिन क्रांति) से नहीं बल्कि हिंसक आंदोलनों से मुकाबिल है। जमीन बचाने के लिए चीन के किसान कुछ भी करने को तैयार हैं। जिआंग्शी प्रांत के फुझोउ शहर में जानलेवा धमाकों के बाद चीन में अचल संपत्ति पर कब्जे की होड़ का भयानक चेहरा सामने आ गया। फुझोउ से सटे ग्रामीण इलाकों जमीन बचाने के लिए आत्मेहत्याओं से शुरु हुइ बात सरकार पर जानलेवा हमलों तक जा पहुंची है। चीन का विकास हर साल करीब 30 लाख किसानों से जमीन छीन रहा है। विरोध से हिले बीजिंग ने जमीन अधिग्रहण के लिए नया कानून बना लिया मगर लागू नहीं हुआ अलबत्ता चीन में नेल हाउसहोल्ड नाम एक ऑनलाइन गेम