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Monday, February 7, 2022

क्‍या से क्‍या हो गया !

 




महंगाई का आंकड़ा चाहे जो कलाबाजी दिखाये लेकिन क्‍या आपने ध्‍यान दिया है कि बीते छह सात सालों से इलेक्‍ट्रानिक्‍स, बिजली के सामान,आटो पुर्जों और भी कई तरह जरुरी चीजें लगातार महंगी होती जा रही हैं.

यह महंगाई पूरी तरह  प्रायोज‍ित है और नीतिगत है. भारत की सरकार जिद के साथ महंगाई का आयात कर रही है यानी इंपोर्टेड महंगाई हमें बुरी तरह कुचल रही है. आने वाले बजट में एक बार फिर कई चीजों पर कस्‍टम ड्यूटी बढाये जाने के संकेत हैं. इनमें स्‍टील और इलेक्‍ट्रानिक्‍स यानी पूरी की पूरी सप्‍लाई चेन महंगी हो सकती है.

यह चाबुक हम पर क्‍यों चल रहा है ,बजट से पहले इसे समझना बहुत जरुरी है.

नई  पहचान

भारत की यह नई पहचान परेशान करने वाली है.  भारत को व्‍यापार‍िक दरवाजे बंद करने वाले, आयात शुल्‍क बढ़ाने वाले और संरंक्षणवादी देश के तौर पर संबोध‍ित कि‍या जा रहा है. देशी उद्योगों के संरंक्षण के नाम पर भारत की सरकार ने 2014 से कस्‍टम ड्यूटी बढ़ाने का अभि‍यान शुरु कर दिया था. इस कवायद से कितनी आत्‍मनिर्भरता आई इसका कोई हिसाब सरकार ने नहीं दिया अलबत्‍ता भारत सरकार की इस  कच्‍छप मुद्रा, छोटे  उद्येागों का कमर तोड़ दी और अब उपभोक्‍ताओं का जीना मुहाल कर रही है

2022 के बजट दस्‍तावेज के मुताबिक एनडीए सरकार ने बीते छह बरस में भारत के करीब एक तिहाई आयातों यानी टैरिफ लाइन्‍स पर बेसिक कस्‍टम ड्यूटी बढ़ाई . यानी करीब 4000 टैरिफ लाइंस पर सीमा शुल्‍क बढ़ा या उन्‍हें महंगा किया गया. टैरिफ लाइन का मतलब वह सीमा शुल्‍क दर जो किसी एक या अध‍िक सामानों पर लागू होती है.

इस बढ़ोत्‍तरी का नतीजा था कि उन देशों से आयात बढ़ने लगा जिनके साथ भारत का मुक्‍त व्‍यापार समझौता है या फिर व्‍यापार वरीयता की संध‍ियां है. सरकार ने और सख्‍ती की ताकि संध‍ि वाले इन देशों के रास्‍ते अन्‍य देशों का सामान  न आने लगे. करीब 80 सामानों पर कस्‍टम ड्यूटी रियायत खत्‍म की गई और 400 से अध‍िक अन्‍य सीमा शुल्‍क प्रोत्‍साहन रद कर दिये गए.

डब्लूटीओ की रिपोर्ट के अनुसार 2019 तक भारत में औसत सीमा शुल्‍क या कस्‍टम ड्यूटी दर 17.6 फीसदी हो गई थी जो कि 2014 में 13.5 फीसदी थी. जब ट्रेड वेटेड एवरेज सीमा शुल्‍क जो 2014 में केवल 7 फीसदी था वह 2018 में बढ़कर 10.3 फीसदी हो गया. ट्रेड वेटेड औसत सीमा शुल्‍क की गणना के ल‍िए क‍िसी देश के कुल सीमा शुल्‍क राजस्‍व से उसके कुल आयात से घटा दिया जाता है.

भारत के महंगा आयात अभ‍ियान का पूरा असर समझने के लिए कुछ और भीतरी उतरना होगा. डब्‍लूटीओ के तहत सीमा शुल्‍क दरों के दो बड़े वर्ग हैं एक है एमएफएन टैरिफ यानी वह रियायती दर जो डब्लूटीओ के सदस्‍य देश एक दूसरे से व्‍यापार पर लागू करते हैं. यही बुनियादी डब्‍लूटीओ समझौता था. दूसरी दर है बाउंड टैरिफ जिसमें किसी देश अपने आयातों को अध‍िकतम आयात शुल्‍क लगाने की छूट मिलती है, चाहे वह आयात कहीं से हो रहा है. भारत के बाउंड टैरिफ सीमा शुल्‍क दर बढ़ते बढ़ते 2018 में  48.5 फीसदी की ऊंचाई पर पहुंच गई  जबकि एमएफएन सीमा शुल्‍क दरें औसत 13.5 फीसदी हैं. इसके अलावा कृष‍ि उत्‍पादों आदि पर सीमा शुल्‍क तो 112 फीसदी से ज्‍यादा है.

यही वजह थी कि बीते बरसों में मोदी ट्रंप दोस्‍ती के दावों बाद बावजूद व्‍यापार को लेकर अमेरिका और भारत के रिश्‍तों में खटास बढ़ती गई जो अब तक बनी हुई है. इसी संरंक्षणवाद के कारण प्रधानमंत्री मोदी के तमाम ग्‍लोबल अभ‍ियानों के बावजूद भारत सात वर्षों में एक नई व्‍यापार संध‍ि नहीं कर सका.

किसका नुकसान

आयातों की कीमत बढ़ाने की यह पूरी परियोजना इस बोदे और दकियानूसी तर्क के साथ गढ़ी गई कि यद‍ि आयात महंगे तो होंगे  देश में माल बनेगा. पर दरअसल एसा हुआ नहीं क्‍यों कि एकीकृत दुनिया में. उत्‍पादन की चेन को पूरा करने के लिए भारत को इलेक्‍ट्रानिक्‍स, पुर्जे, स्‍टील, मशीनें, रसायन आदि कई जरुरी चीजें आयात ही करनी हैं.

उदाहरण के लिए इलेक्‍ट्रानिक्‍स को लें जहां सबसे ज्‍यादा आयात शुल्‍क बढ़ा. बीते तीन साल में इलेक्‍ट्रानिक पुर्जों जैसे पीसीबी आदि का एक तिहाई आयात तो अकेले चीन से हुआ 2019-20 ज‍िसकी कीमत करीब 1.15 लाख करोड़ रुपये थी. शेष जरुरत ताईवान फिलीपींस आद‍ि से पूरी हुई.

स्‍वदेशीवाद की इस नीति ने भारत छोटे उद्योागें के पैर काट दिये हैं जिनकी सबसे बड़ी निर्भरता आयात‍ित कच्‍चे माल पर है. इंपोर्टेड महंगाई इन्‍हें सबसे ज्‍यादा भारी पड़ रही है. स्‍टील तांबा अल्‍युम‍िन‍ियम जैसे उत्‍पादों और मशीनरी पर आयात शुल्‍क बढ़ने से भारत के बड़े मेटल उत्‍पादकों ने दाम बढ़ा दि‍ये. गाज गिरी छोटे उद्योगों पर, यह धातुएं जिनका कच्‍चा माल हैं. इधर  सीधे आयात होने वाले पुर्जें व अन्‍य सामान पर सीमा शुल्‍क बढ़ने से पूरी उत्‍पादन चेन को महंगी हो गई.

भारत में अध‍िकांश छोटे उद्योगों के 2017 से कच्‍चे माल की महंगाई से जूझना शुरु कर दिया था. अब तो इस महंगाई का विकराल रुप उन के सर पर नाच रहा है. कुछ छोटे उद्योग बढ़ी कीमत पर कम कारोबार को मजबूर हैं जब कई दुकाने बंद हो रही हैं

ताजा खबर यह है कि इंपोर्टेड महंगाई का अपशकुन सरकार की बहुप्रचार‍ित मैन्‍युफैक्‍चरिंग प्रोत्‍साहन योजना (पीएलआई) का दरवाजा घेर कर बैठ गया है. चीन वियमनाम थाईलैंड और मैक्‍सिकों के टैरिफ लाइन और भारत की तुलना पर आधार‍ित, आईसीईए और इकध्‍वज एडवाइजर्स की एक ताजा रिपोर्ट बताती है कि भारत इलेक्‍ट्रान‍िक्‍स पुर्जों के आयात के मामले में सबसे ज्‍यादा महंगा है. यानी भारत की तुलना में इन देशों दोगुने और तीन गुना उत्‍पादों पुर्जों का सस्‍ता आयात संभव है. इसलिए उत्‍पादन के ल‍िए नकद प्रोत्‍साहन के बावजूद कंपनियों की निर्यात प्रतिस्‍पर्धात्‍मकता टूट रही है.

निर्यात के लिए व्‍यापार संध‍ियां करने  और बाजारों का लेन देन करने की जरुरत होती है आयात महंगा करने से आत्‍मनिर्भरता तो खैर क्‍या ही बढ़ती महंगाई को नए दांत मिल गए. उदाहरण के लिए भारत के ज्‍यादातर उद्येाग जहां पीएलआई में निवेश का दावा किया गया वहां उत्‍पादों की कीमतें कम नहीं हुई बल्‍क‍ि बढ़ी हैं. मोबाइल फोन इसका सबसे बड़ा नमूना है जहां सेमीकंडक्‍टर की कमी से पहले ही महंगाई आ गई थी.

जो इतिहास से नहीं सीखते

बात 15 वीं सदी की है. क्रिस्टोफर कोलम्बस की अटलांटिक पार यात्रा में अभी 62 साल बाकी थेमहान चीनी कप्तान झेंग हे अपने विराट जहाजी बेडे के साथ अफ्रीका तक की छह ऐतिहासिक यात्राओं के बाद चीन वापस लौट रहा था.  झेंग हे का बेड़ा कोलम्बस के जहाजी कारवां यानी सांता मारिया से पांच गुना बड़ा था. झेंग हे की वापसी तक मिंग सम्राट योंगल का निधन हो चुका थाचीन के भीतर खासी उथल पुथल थी. इस योंगल के उत्‍तराध‍िकारों ने एक अनोखा काम क‍िया. उन्‍होंने समुद्री यात्राओं पर पाबंदी लगाते हुए दो मस्तूल से अधिक बड़े जहाज बनाने पर मौत की सजा का ऐलान कर दिया

इसके बाद चीन का विदेश व्यापार अंधेरे में गुम गया. उधर स्पेन, पुर्तगाल, ब्रिटेन, डच बंदरगाहों पर जहाजी  बेड़े सजने लगे जिन्‍होंने अगले 500 साल में दुनिया को मथ डाला और व्‍यापार का तारीख बदल दी.

चीन को यह बात समझने में पांच शताब्‍द‍ियां लग गईं क‍ि कि जहाज बंदरगाह पर खड़े होने के लिए नहीं बनाए जातेदूसरी तरफ अमेर‍िका अपनी स्‍थापना के वक्‍त पर ही यानी 18 वीं सदी की शुरुआत ग्‍लोबल व्‍यापार की अहम‍ियत समझ गया था तभी तो अमेरिका के संस्‍थापन पुरखे बेंजामिन फ्रैंकलिन ने कहा था कि व्यापार से दुनिया का कोई देश कभी बर्बाद नहीं हुआ है 

अलबत्‍ता चीन ने जब एक बार ग्लोबलाइजेशन का जहाज छोड़ा तो फ‍िर दुन‍िया को अपना कारोबारी उपन‍िवेश बना ल‍िया लेक‍िन बीते 2500 साल में मुक्त व्यापार के फायदों से बार बार अमीर होने वाले भारत ने बीते छह साल में उलटी ही राह पकड़ ली.

एक पुराने व्‍यापार कूटनीतिकार ने कभी मुझसे कहा था कि सरकारें कुछ भी करें लेक‍िन उन्‍हें महंगाई का आयात नहीं करना चाहिए. वे हमेशा इस पर झुंझलाये रहते थे कि कोई भी समझदार सरकार जानबूझकर अपना उत्‍पादन महंगा क्‍यों करेगी. लेकि‍न सरकारें कब सीखती हैं, नसीहतें तो जनता को मिलती है, इंपोर्टेड महंगाई हमारी सबसे ताजी नसीहत है.   

ये डर है क़ाफ़िले वालो कहीं गुम कर दे

मिरा ही अपना उठाया हुआ ग़ुबार मुझे 



 

Sunday, June 23, 2019

सबसे बड़ा तक़ाज़ा


अपनी गलतियों पर हम जुर्माना भरते हैं लेकिन जब सरकारें गलती करती हैं तो हम टैक्स चुकाते हैंइसलिए तो हम टैक्स देते नहींवे दरअसल हमसे टैक्स ‘वसूलते’ हैंरोनाल्ड रीगन ठीक कहते थे कि लोग तो भरपूर टैक्स चुकाते हैंहमारी सरकारें ही फिजूल खर्च हैं.

नए टैक्स और महंगी सरकारी सेवाओं के एक नए दौर से हमारी मुलाकात होने वाली हैभले ही हमारी सामान्य आर्थिक समझ इस तथ्य से बगावत करे कि मंदी और कमजोर खपत में नए टैक्स कौन लगाता है लेकिन सरकारें अपने घटिया आर्थिक प्रबंधन का हर्जाना टैक्स थोप कर ही वसूलती हैं.

सरकारी खजानों का सूरत--हाल टैक्स बढ़ाने और महंगी सेवाओं के नश्तरों के लिए माहौल बना चुका है.

·       राजस्व महकमा चाहता है कि इनकम टैक्स व जीएसटी की उगाही में कमी और आर्थिक विकास दर में गिरावट के बाद इस वित्त वर्ष (2020) कर संग्रह का लक्ष्य घटाया जाए.

·       घाटा छिपाने की कोशिश में बजट प्रबंधन की कलई खुल गई हैसीएजी ने पाया कि कई खर्च (ग्रामीण विकासबुनियादी ढांचाखाद्य सब्सिडीबजट घाटे में शामिल नहीं किए गएपेट्रोलियमसड़करेलवेबिजलीखाद्य निगम के कर्ज भी आंकड़ों में छिपाए गएराजकोषीय घाटा जीडीपी का 4.7 फीसद है, 3.3 फीसद नहींनई वित्त मंत्री घाटे का यह सच छिपा नहीं सकतींबजट में कर्ज जुटाने का लक्ष्य हकीकत को नुमायां कर देगा. 

·       सरकार को पिछले साल आखिरी तिमाही में खर्च काटना पड़ानई स्कीमें तो दूरकम कमाई और घाटे के कारण मौजूदा कार्यक्रमों पर बन आई है.

·       हर तरह से बेजारजीएसटी अब सरकार का सबसे बड़ा ‌सिर दर्द हैकेंद्र ने इस नई व्यवस्था से राज्यों को होने वाले घाटे की भरपाई की जिम्मेदारी ली हैजो बढ़ती ही जा रही है.

सरकारें हमेशा दो ही तरह से संसाधन जुटा सकती हैंएक टैक्स‍ और दूसरा (बैंकों सेकर्जमोदी सरकार का छठा बजट संसाधनों के सूखे के बीच बन रहा हैबचतों में कमी और बकाया कर्ज से दबेपूंजी वंचित बैंक भी अब सरकार को कर्ज देने की स्थिति में नहीं हैं.

इसलिए नए टैक्सों पर धार रखी जा रही हैइनमें कौन-सा इस्तेमाल होगा या कितना गहरा काटेगायह बात जुलाई के पहले सप्ताह में पता चलेगी.

        चौतरफा उदासी के बीच भी चहकता शेयर बाजार वित्त मंत्रियों का मनपसंद शिकार हैपिछले बजट को मिलाकरशेयरों व म्युचुअल फंड कारोबार पर अब पांच (सिक्यूरिटी ट्रांजैक्शनशॉर्ट टर्म कैपिटल गेंसलांग टर्म कैपिटल गेंसलाभांश वितरण और जीएसटीटैक्स लगे हैंइस बार यह चाकू और तीखा हो सकता है.

        विरासत में मिली संपत्ति (इनहेरिटेंसपर टैक्स आ सकता है.

        जीएसटी के बाद टैक्स का बोझ नहीं घटानए टैक्स (सेसबीते बरस ही लौट आए थेकस्टम ड्यूटी के ऊपर जनकल्याण सेस लगाडीजल-पेट्रोल पर सेस लागू है और आयकर पर शिक्षा सेस की दर बढ़ चुकी हैयह नश्तर और पैने हो सकते हैं यानी नए सेस लग सकते हैं.

        लंबे अरसे बाद पिछले बजटों में देसी उद्योगों को संरक्षण के नाम पर आयात को महंगा (कस्टम ड‍्यूटीकिया गयायह मुर्गी फिर कटेगी और महंगाई के साथ बंटेगी. 
    और कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत में कमी के सापेक्ष पेट्रोल-डीजल पर टैक्स कम होने की गुंजाइश नहीं है.

जीएसटी ने राज्यों के लिए टैक्स लगाने के विकल्प सीमित कर दिए हैंनतीजतनपंजाबमहाराष्ट्रकर्नाटकगुजरात और झारखंड में बिजली महंगी हो चुकी हैउत्तर प्रदेशमध्य‍ प्रदेशराजस्थान में करेंट मारने की तैयारी हैराज्यों को अब केवल बिजली दरें ही नहीं पानीटोलस्टॉम्प ड‍्यूटी व अन्य सेवाएं भी महंगी करनी होंगी क्योंकि करीब 17 बड़े राज्यों में दस राज्य, 2018 में ही घाटे का लाल निशान पार कर गए थे. 13 राज्यों पर बकाया कर्ज विस्फोटक हो रहा है. 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के बाद राज्यों का आधा राजस्व केंद्रीय संसाधनों से आता है.

जीएसटी के बावजूद अरुण जेटली ने अपने पांच बजटों में कुल 1,33,203 करोड़ रुके नए टैक्स लगाए यानी करीब 26,000 करोड़ रुप्रति वर्ष और पांच साल में केवल 53,000 करोड़ रुकी रियायतें मिलीं. 2014-15 और 17-18 के बजटों में रियायतें थींजबकि अन्य बजटों में टैक्स के चाबुक फटकारे गएकरीब 91,000 करोड़ रुके कुल नए टैक्स के साथजेटली का आखिरी बजटपांच साल में सबसे ज्यादा टैक्स वाला बजट था.

देश के एक पुराने वित्त मंत्री कहते थेनई सरकार का पहला बजट सबसे डरावना होता हैसो नई वित्त मंत्री के लिए मौका भी हैदस्तूर भीलेकिन बजट सुनते हुए याद रखिएगा कि अर्थव्यवस्था की सेहत टैक्स देने वालों की तादाद और टैक्स संग्रह बढ़ने से मापी जाती हैटैक्स का बोझ बढ़ने से नहीं.



Sunday, February 11, 2018

टैक्स सत्यम्, बजट मिथ्या

सत्य कब मिलता है ?

लंबी साधना के बिल्कुल अंत में.

जब संकल्प बिखरने को होता है तब अचानक चमक उठता है सत्य. 

ठीक उसी तरह जैसे कोई वित्त मंत्री अपने 35 पेज के भाषण के बिल्कुल अंत में उबासियां लेते हुए सदन पर निगाह फेंकता है और बजट को सदन के पटल पर रखने का ऐलान करते हुए आखिरी पंक्तियां पढ़ रहा होता है, तब ...
अचानक कौंध उठता है बजट का सत्य.

टैक्स ही बजट का सत्य है, शेष सब माया है.

एनडीए सरकार के आखिरी पूर्ण बजट की सबसे बड़ी खूबी हैं इसमें लगाए गए टैक्स.

करीब 90,000 करोड़ रु. के कुल नए टैक्स के साथ यह पिछले पांच साल में सबसे ज्यादा टैक्स वाला बजट है.

पिछले पांच साल में अरुण जेटली ने 1,33,203 करोड़ रु. के नए टैक्स लगाए औसतन करीब 26,000 करोड़ रु. प्रति वर्ष. पांच साल में केवल 53,000 करोड़ रु. की रियायतें मिलीं. 2014-15 और 17-18 के बजटों में रियायतें थीं, जबकि अन्य बजटों में टैक्स के चाबुक फटकारे गए. जेटली के आखिरी बजट में टैक्सों का रिकॉर्ड टूट गया. 

टैक्स तो सभी वित्त मंत्री लगाते हैं लेकिन यह बजट कई तरह से नया और अनोखा है.

ईमानदारी की सजा

वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में जानकारी दी थी कि देश में आयकरदाताओं की तादाद 8.67 करोड़ (टीडीएस भरने वाले लेकिन रिटर्न न दाखिल करने वालों को मिलाकर) हो गई है. टैक्स बेस बढऩे से (2016-17 और 2017-18) में सरकार को 90,000 करोड़ रु. का अतिरिक्त राजस्व भी मिला. लेकिन हुआ क्या? ईमानदार करदाताओं का उत्साह अर्थात् टैक्स बेस बढऩे से टैक्स दर में कमी नहीं हुई.
याद रखिएगा कि इसी सरकार ने अपने कार्यकाल में कर चोरों को तीन बार आम माफी के मौके दिए हैं. एक बार नोटबंदी के बीचोबीच काला धन घोषणा माफी स्कीम लाई गई. तीनों स्कीमें विफल हुईं. कर चोरों ने सरकार पर भरोसा नहीं किया.
आर्थिक सर्वेक्षण ने बताया कि जीएसटी आने के बाद करीब 34 लाख नए करदाता जुड़े हैं लेकिन वह सभी जीएसटीएन को बिसूर रहे हैं और टैक्स के नए बोझ से हलकान हैं.

ताकि सनद रहे: टैक्स बेस में बढ़ोतरी यानी करदाताओं की ईमानदारी, सरकार को और बेरहम कर सकती है.  

सोने के अंडे वाली मुर्गी

भारतीय शेयर बाजारों में अबाधित तेजी को पिछले चार साल की सबसे चमकदार उपलब्धि कहा जा सकता है. मध्य वर्ग ने अपनी छोटी-छोटी बचतों से एक नई निवेश क्रांति रच दी. म्युचुअल फंड के जरिए शेयर बाजार में पहुंची इस बचत ने केवल वित्तीय निवेश की संस्कृति का निर्माण नहीं किया बल्कि भारतीय बाजार पर विदेश निवेशकों का दबदबा भी खत्म किया.
इस बजट में वित्त मंत्री ने वित्तीय निवेश या बचत को नई रियायत तो नहीं उलटे शेयरों में निवेश पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस और म्युचुअल फंड पर लाभांश वितरण टैक्स लगा दिया. शेयरों व म्युचुअल फंड कारोबार पर अब पांच (सिक्यूरिटी ट्रांजैक्शन, शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस, लांग टर्म कैपिटल गेंस, लाभांश वितरण और जीएसटी) टैक्स लगे हैं. बाजार गिरने के लिए नए गड्ढे तलाश रहा है.

ताकि सनद रहे: वित्तीय निवेश को प्रोत्साहन नोटबंदी का अगला चरण होना चाहिए था. ये निवेश पारदर्शी होते हैं. भारत में करीब 90 फीसदी निजी संपत्ति भौतिक निवेशों में केंद्रित है. नए टैक्स के असर से बाजार गिरने के बाद अब लोग शेयरों से पैसा निकाल वापस सोना और जमीन में लगाएंगे जो दकियानूसी निवेश हैं और काले धन के पुराने ठिकाने हैं. 

लौट आए चाबुक

उस नेता को जरूर तलाशिएगा, जिसने यह कहा था कि जीएसटी के बाद टैक्स का बोझ घटेगा और सेस-सरचार्ज खत्म हो जाएंगे. इस बजट ने तो सीमा शुल्क में भी बढ़ोतरी की है, जो करीब एक दशक से नहीं बढ़े थे. नए सेस और सरचार्ज भी लौट आए हैं. सीमा शुल्क पर जनकल्याण सेस लगा है और डीजल-पेट्रोल पर 8 रु. प्रति लीटर का सेस. आयकर पर लागू शिक्षा सेस एक फीसदी बढ़ गया है. यह सब इसलिए कि अब केंद्र सरकार ऐसे टैक्स लगाना चाहती है जिन्हें राज्यों के साथ बांटना न पड़े. ऐसे रास्तों से 2018-19 में सरकार को 3.2 लाख करोड़ रु. मिलेंगे.

जीएसटी ने खजाने की चूलें हिला दी हैं. इसकी वजह से ही टैक्स की नई तलवारें ईजाद की जा रही हैं. जीएसटी के बाद सभी टैक्स (सर्विस, एक्साइज, कस्टम और आयकर) बढ़े हैं, जिसका तोहफा महंगाई के रूप में मिलेगा.


सावधान: टैक्स सुधारों से टैक्स के बोझ में कमी की गारंटी नहीं है. इनसे नए टैक्स पैदा हो सकते हैं.