Showing posts with label India change. Show all posts
Showing posts with label India change. Show all posts

Monday, October 21, 2013

संक्रमण की रोशनी

राजनीतिक सुधारों का एक नया दौर अनोखे तरीके से उतर आया है और कुछ जटिल आर्थिक सुधारों की बरसों पुरानी हिचक भी बस यूं ही टूट गई है। भारत का ताजा संक्रमण अचानक व अटपटे ढंग से सार्थक हो चला है।  
सुधार हमेशा लंबी तैयारियों, बड़े बहस मुबाहिसों या विशेषज्ञ समितियों से ही नहीं निकलते। भारत में गुस्‍साते राजनेता, झगड़ती संवैधानिक संस्‍थायें, आर्थिक संकटों के सिलसिले, सिविल सोसाइटी की जिद और खदबदाता समाज क्रांतिकारी सुधारों को जन्‍म दे रहा है। पिछले दो साल की घटनाओं ने भारत को संक्रमण से गुजरते एक अनिश्चित देश में बदल दिया था लेकिन कुछ ताजा राजनीतिक आर्थिक फैसलों से इस संक्रमण में सकारात्‍मक बदलावों की चमक उभर आई है। राजनीतिक सुधारों का एक नया दौर अनोखे व अपारंपरिक तरीके से अचानक उतर आया है और कुछ जटिल आर्थिक सुधारों की बरसों पुरानी हिचक भी बस यूं ही टूट गई है।  दागी नेताओं को बचाने वाले बकवास अध्‍यादेश की वापसी और चुनाव में प्रत्‍याशियों को नकारने के अधिकार जैसे फैसले अप्रत्‍याशित मंचों से निकलकर लागू हो गए और ठीक इसी तरह बेहद अस्थिर माहौल के बीच सब्सिडी राज के खात्‍मे और नए नियामक राज शुरुआत हो गई। यह भारत की ताजा अराजकता में एक रचनात्‍मक टर्निंग प्‍वाइंट है।
भारत में ग्रोथ का पहिया इसलिए नहीं पंक्‍चर नहीं हुआ कि बाजार सूख गया था बल्कि मंदी इस‍लिए आई क्‍यों कि राजनीति के मनमानेपन ने आर्थिक नीतियों को संदेह से भर दिया है।   उद्योगों को यह पता ही नहीं है कि कब सरकार के किस फैसले से उनकी कारोबारी योजनायें चौपट हो जांएगी। निवेशकों की बेरुखी के बाद अब निवेश की राह का सबसे बडा कांटा