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Monday, December 26, 2011

ग्यारह का गुबार

मय हमेशा न्‍याय ही नहीं करता। वह कुछ देशों, जगहों, तारीखों और वर्षों के खाते में इतना इतिहास रख देता है कि आने वाली पीढि़यां सिर्फ हिसाब लगाती रह जाती हैं। विधवंसों-विपत्तियों, विरोधों-बगावतों, संकटों-समस्‍याओं और अप्रतयाशित व अपूर्व परिवर्तनों से लंदे फंदे 2011 को पिछले सौ सालों का सबसे घटनाबहुल वर्ष मानने की बहस शुरु हो गई है। ग्‍यारह की घटनायें इतनी धमाकेदार थीं कि इनके घटकर निबट जाने से कुछ खत्‍म नहीं हुआ बल्कि असली कहानी तो इन घटनाओं के असर से बनेगी। अर्थात ग्‍यारह का गुबार इसकी घटनाओं से ज्‍यादा बड़ा होगा
....यह रहे उस गुबार के कुछ नमूने, घटनायें तो हमें अच्‍छी तरह याद हैं।  
1.अमेरिका का शोध
अमेरिका की वित्‍तीय साख घटने से अगर विज्ञान की प्रगति की रफ्तार थमने लगे तो समझिये कि बात कितनी दूर तक गई है। अमेरिका में खर्च कटौती की मुहिम नए शोध के कदम रोकने वाली है। नई दवाओं, कंप्‍यूटरों, तकनीकों, आविष्‍कारों और प्रणालियों के जरिये अमेरिकी शोध ने पिछली एक सदी की ग्रोथ का नेतृत्‍व किया था। उस शोध के लिए अब अमेरिका का हाथ तंग है।  बेसिक रिसर्च से लेकर रक्षा, नासा, दवा, चिकित्‍सा, ऊर्जा सभी में अनुसंधान पर खर्च घट रहा है। यकीनन अमेरिका अपने भविष्‍य को खा रहा (एक सीनेटर की टिप्‍पणी) है। क्‍यों कि अमेरिका का एक तिहाई शोध सरकारी खर्च पर निर्भर है। हमें अब पता चलेगा कि 1.5 ट्रिलियन डॉलर का अमेरिकी घाटा क्‍या क्‍या कर सकता है। वह तो अंतरिक्ष दूरबीन की नई पीढ़ी (जेम्‍स बेब टेलीस्‍कोप- हबल दूरबीन का अगला चरण) का जन्‍म भी रोक सकता है।
2.यूरोप का वेलफेयर स्‍टेट
इटली की लेबर मिनिस्‍टर एल्‍सा फोरनेरो, रिटायरमेंट की आयु बढ़ाने की घोषणा करते हुए रो पड़ीं। यूरोप पर विपत्ति उस वक्‍त आई, जब यहां एक बड़ी आबादी अब जीवन की सांझ ( बुजुर्गों की बड़ी संख्‍या ) में  है। पेंशन, मुफ्त इलाज, सामाजिक सुरक्षा, तरह तरह के भत्‍तों पर जीडीपी का 33 फीसदी तक खर्च करने वाला यूरोप उदार और फिक्रमंद सरकारों का आदर्श था मगर