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Monday, July 8, 2013

निजीकरण के चोरदरवाजे


बाजार खोलने वाले हाथ यदि गंदे हैं तो उदार बाजार, स्‍वस्‍थ प्रतिस्पर्धा, सबको समान अवसर और पारदर्शिता की गारंटी नहीं होता।

हैदराबाद की जीएमआर दिल्‍ली में एयरपोर्ट बनाकर यात्रियों से फीस वसूलती है लेकिन सरकार उसे 1.63 लाख करोड़ रुपये की जमीन लगभग मुफ्त में दे देती है, भारत में निजी निवेश के तरीके को सावर्जनिक निजी भागीदारी यानी पीपीपी कहते हैं। कोयला उद्योग सरकारी नियंत्रण में है लेकिन नवीन जिंदल जैसों को पिछले दरवाजे से खदानें मिल जाती हैं यह निजीकरण का नया इंडियन मॉडल है। भारत से ढेर सारी उड़ानों की सरकारी गारंटी के बाद अबूधाबी की सरकारी विमान कंपनी इत्तिहाद, जेट एयरवेज में हिस्‍सेदारी खरीदती है और भारत के उभरते अंतरराष्‍ट्रीय एयर ट्रैफिक बाजार में शेखों की कंपनी को निर्णायक बढ़त मिल जाती है। यह विदेशी निवेश की आधुनिक हिंदुस्‍तानी पद्धति है, जो प्रतिस्‍पर्धा को खत्‍म कर देती है। भारत अब मैक्सिको व इजिप्‍ट जैसे निजीकरण की राह पर बढ़ चला है जहां खुले बाजार के फायदे सत्‍ता की चहेती देशी विदेशी कंपनियों ने बांट लिये और अधिकांश मुल्‍क गरीब का गरीब रहा।
कोयला खदान आवंटन व 2 जी लाइसेंसों की तरह ही जेट इत्तिहाद की सौदे की पूरी दाल ही काली है, क्‍यों कि दागी निजीकरण की संस्‍कृति अब विदेश निवेश तक आ गई है। दो मुल्‍कों के बीच एयर सर्विस एग्रीमेंट ग्‍लोबल विमानन बाजार की बुनियाद हैं इनके तहत दो देशों की विमान कंपनियां परस्‍पर उड़ानें शुरु करती हैं और विमानन बाजार में कारोबारी हितों की अदला बदली करती हैं। अलबत्‍ता जब किसी देश की कंपनी दूसरे मुल्‍क की कंपनी में निवेश करती हैं तो यह निजी कारोबारी फैसला होता है जिस पर बाजार व निवेश के नियम लागू होते हैं। जेट इत्तिहाद अनुबंध एक अनोखी मिसाल है जिसमें