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Monday, November 28, 2016

मैले हाथों से सफाई!

इस स्‍वच्‍छता अभियान की लगाम जिनके हाथ हैपारदर्शिता के मामले में उनका रिकॉर्ड भारत में सबसे संदिग्ध है.
काला धन नकद में है या सोने मेंजमीन में बोया गया है या फिर इमारतें बनकर खड़ा हैनोटबंदी से कितनी कालिख बाहर आएगीइन कयासों के बीच इस पर भी चर्चा हो जानी चाहिए कि काला धन कहां बन रहा है और किस वजह से.
काली कमाई के मामले में हम निहायत दिलचस्प देश हो चले हैं. ईमानदार लोग अपनी बचत निकालने के लिए पुलिस से पिट रहे हैं जबकि दूसरी ओर सरकार के अभियान की लगाम जिनके हाथ हैपारदर्शिता के मामले में उनका रिकॉर्ड भारत में सबसे संदिग्ध है.
बैंक और टैक्स विभाग मोदी सरकार के स्वच्छता अभियान के शुभंकर हैंलेकिन काले धन की पैदावार में सबसे बड़ी भूमिका टैक्स सिस्टम की है और इसे छिपाने या धुलाने में बैंकिंग व वित्तीय तंत्र सबसे कारगर है और यही दोनों ईमानदारी के सर्टिफिकेट बांट रहे हैं
सभी अध्ययन और काले धन पर 2012 का सरकारी श्वेत पत्र मानते हैं कि भारत का टैक्स सिस्टम काले धन की बुनियादी वजह है. ज्यादातर टैक्स खपत पर लगते हैं जो व्यापार पर आधारित है इसलिए ट्रेड काले धन का निर्माता भी हैधारक भी और शिकार भी. भारत में व्यापार का बहुत बड़ा हिस्सा नकद पर आधारित हैइसलिए अधिकांश अनअकाउंटेड नकद (जो पूरी तरह काला धन नहीं है) ट्रेड में है.
कुछ आंकड़ों पर गौर फरमाना जरूरी हैः
  • व्यापार व उससे जुड़ी गतिविधियांमसलनट्रांसपोर्ट व विभिन्न वित्तीय सेवाएं जीडीपी में 30-35 फीसदी हिस्सा रखती हैं. यह जीडीपी में खेती के हिस्से का दोगुनाउद्योग के हिस्से से 10 फीसदी ज्यादा है.
  • 12 फीसदी अर्थव्यवस्था नकद पर चलती है. अधिकांश व्यापार नकद में है. कर्ज पर निर्भरता सीमित है इसलिए व्यापार का अपना क्रेडिट सिस्टम (उधारी) हैजिसमें थोक खरीद पहले होती है और भुगतान बाद में. इसके जरिए व्यापारी कैश फ्लो संतुलित करते हैं. 
  • राजस्व का बड़ा हिस्सा उपभोग पर लगने वाले टैक्सों से आता है. टैक्स की अधिकांश वसूली प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर व्यापार केंद्रित है.

भारत उपभोग पर सबसे अधिक टैक्स लगाने वाले देशों में है. आयकर की दरें भी ऊंची हैं. अधिकांश काला धन खपत यानी ट्रेड पर लगने वाले टैक्सों की चोरी से बनता है. व्यापारी टैक्स देना चाहते हैं लेकिन चोरी इसलिए होती है क्योंकि एककारोबारी लागत ऊंची हैटैक्स का बोझ लाभ के मार्जिन सीमित कर देता हैंदोखपत की विशालता के सामने टैक्स  सिस्टम की क्षमताएं बहुत सीमित हैं और तीनटैक्स नियमों के पालन की लागत यानी कंप्लाययंस कॉस्ट बहुत ज्यादा है. यही वजह है कि व्यापार का मुनाफा टैक्स चोरी से निकलता हैजिसमें भ्रष्ट टैक्स सिस्टम मददगार है. 

बैंक और वित्तीय सेवाएं भी पीछे नहीं हैं. बैंक न केवल आम लोगों की जमा पूंजी को बड़े कॉर्पोरेट कर्जों में डुबाने के लिए कुख्यात हैं बल्कि नोटबंदी के बाद इन बैंकों में काले धन की धुलाई से रिजर्व बैंक भी परेशान है.

बहुत बड़े पैमाने पर काला धन कानूनी गतिवधियों के जरिये बनता है. कॉर्पोरेटसेल्स और कारोबारी एकाउंटिंग में दर्जनों रास्ते छिपे हैं. कागजी कंपनियांआउट ऑफ बुक ट्रांजैक्शानकैश इन हैंडकई एकाउंट बुकउत्पादन कम दिखाकरखर्च में बढ़ोतरीबिक्री की रसीदों में हेरफेर करके बहुत-सा काला धन घुमायाखपाया और छिपाया जाता है. अकाउंटिंग का यह मकडज़ाल बैंकों की निगाह में है क्योंकि अधिकतर कारोबारी गतिविधियों का कोई न कोई हिस्सा बैंकों के नेटवर्क में है.

टैक्स चोरी और फर्जी अकाउंटिंग से बने काले धन के नेता व अधिकारियों तक पहुंचने की यात्रा दिलचस्प है. भारत का अधिकांश भ्रष्टाचार सेवाओं व सुविधाओं की कमी से उपजा है. उदारीकरण के बाद इनकी मांग बढ़ीआपूर्ति नहीं. रेलवे रिजर्वेशन से लेकर अनापत्ति प्रमाण पत्र तकस्कूल दाखिले से लेकर मकान बनाने तक हर जगह सेवाओं की मांग व आपूर्ति में भारी अंतर है. जहां यह अंतर घटावहां भ्रष्टाचार (टेलीफोनगैसकारें) खत्म हो गया.

इस किल्लत के बीच अफसर और नेताओं की एक छोटी-सी जमात के पास अकूत ताकत हैजो बेहद सामान्य सुविधाएं देने से लेकर हक और न्याय बांटने तक फैली है. 
भ्रष्टाचार पर कई सर्वे बताते रहे हैं कि भारत में 76 फीसदी रिश्वत 2.5 लाख रु. से कम की होती है. 77 फीसदी रिश्वत काम वक्त पर कराने या कारोबारी नुक्सान से बचने के लिए दी जाती है. कारोबारी हानि बचाने और प्रतिस्पर्धा में बढ़त लेने की सबसे ज्यादा नियमित जरूरत उद्योग व व्यापार को है. यही वजह है कि टैक्स चोरी से बना काला धन नेता-अधिकारियों तक पहुंचता हैजो अवसर बांटने के अधिकारों से लैस हैं. ईज आफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में 189 देशों के बीच भारत की रैंकिंग 130वीं है और टैक्स के मामले में 187वीं. यही कठिनाइयां रिश्वतों का आधार बनती हैं.

भारत में सरकारें बेतकल्लुफ खर्च करती हैं. उन्हें खूब ऊंची दर पर टैक्स और खूब कर्ज चाहिए. यही वजह है कि बैंक और टैक्स पूरे तंत्र की सबसे महत्वपूर्ण लेकिन घटिया कड़ी हैं.

बड़े नोट बंद करने से अर्थव्यवस्था इसलिए ठप है क्योंकि ट्रेड बंद है जो अर्थव्यवस्था का इंजन है और इस इंजन का ईंधन नकदी (कैश जीडीपी रेशियो) है. हमें पता नहीं कि भारत का विशाल व्यापार तंत्र जो बीजेपी का वोटर भी है वह सरकार के फैसले पर कैसी प्रतिक्रिया करेगा लेकिन इतना जरूर पता है कि
  • व्यापार अर्थव्यवस्था बुरी तरह टूट गई है. इसके कैश और क्रेडिट फ्लो को भारी नुक्सान हुआ है. 
  • इस फैसले के साथ आयकरउत्पाद शुल्क के छापे शुरू हो गए हैं. आने वाले वक्त में इंस्पेक्टर राज कई गुना बढ़ सकता है. 
  • कई टैक्स दरों और दर्जनों रजिस्ट्रेशन पंजीकरण से लैस जीएसटी आश्वस्त करने के बजाए डराने लगा है.

बड़े नोट बंद होने से काला धन घटने की गारंटी नहीं है. इसके लिए तो बैंकिंग सिस्टम की सफाई और टैक्स में कमी व सहजता जरूरी है. नहीं तो रिश्वतें चलती रहेंगी और काला धन बनता-खपता रहेगा. फिलहाल तो नोटबंदी ने सिर्फ व्यापारखपत और रोजगार को बुरी तरह भींच दिया है. मंदी दरवाजा खटखटा रही है.

Monday, June 6, 2011

कालिख का फंदा

ब्रह्म को काले धन की भांति अनुभव करो। अदृश्य, निराकार काला धन हमारे भीतर परम सत्ता की तरह धड़कता है।....जिज्ञासु भक्त बाबा के वचनों से कृतार्थ हुआ और ब्रह्म को छोड़ काले धन के जुगाड़ में लग गया। क्योंक कि इस कालिख को जानने लिए किसी तप की जरुरत नहीं है, यह तो सरकार है जो काला धन तलाशने के लिए समितियां छोड़ रही है। हमें खुद पर तरस आना चाहिए कि सरकार उस ऐलानिया सच पर आजादी के चौंसठ साल बाद, अब कसमसा रही है जो नागरिक, प्रशासनिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन के पोर पोर में भिद कर हमारी लत बन चुका है। मत कोसिये लाइसेंस परमिट राज को, काले धन की असली ग्रोथ स्टोरी उस बदनाम दौर के बाद लिखी गई है। मत बिसूरिये बंद अर्थव्यवस्था को, उदार आबो हवा ने कालिख को पंख लगा सर्वव्यापी कर दिया है। मत रहिए इस गफलत में कि ग्रोथ और आय बढ़ना हर मुश्किल का हल है, विकास के साथ लूट भी बढ़ती है। भारत में काले धन की पैदावार के लिए तरक्की का मौसम ज्यादा माफिक बैठा है। कानून काला धन पैदा कराते हैं। बाजार इसे छिपाता है और न्याय का तंत्र इसे पोसता है। हम अब चिंदी चोर तरीकों से लेकर बेहद साफ सुथरे रासतों तक से काला धन बनाने में महारथ रखते हैं। काला धन तो कब का अपराध, शर्म या समस्या की जगह सुविधा, स्वभाव,  संस्कार और आवश्यकता बन चुका है।
किल्लत की कालिख
भारत की 99.5 फीसदी आबादी कोटा, लाइसेंस, परमिट नहीं चाहती। सांसद विधायक मंत्री, राजदूत बनने की उसे तमन्ना नहीं है। उसे तो सही कीमत व समय पर बुनियादी सुविधायें और जीविका व बेहतरी के न्यायसंगत मौके चाहिए जिनकी सबसे ज्यादा किल्लत है। भारत का अधिकांश भ्रष्टाचार सेवाओं की कमी से उपजता है। उदारीकरण में सुविधाओं और सेवाओं की मांग बढ़ी, आपूर्ति नहीं। रेलवे रिजर्वेशन से लेकर अनापत्ति प्रमाण पत्र तक, सकूल दाखिले से लेकर, इलाज तक हर जगह मांग व आपूर्ति में भयानक अंतर है, जो कुछ लोगों के हाथ में देने और कुछ को उसे खरीदने की कुव्वत दे देता है। हमारी 76 फीसदी रिश्‍वतें

Monday, January 31, 2011

हम सब काले, कालिख वाले !


अर्थार्थ
कसठ का हो चुका गणतंत्र अपनी सबसे गहरी कालिख को देखकर शर्मिंदा है। सराहिये इस शर्मिंदगी को, यही तो वह काला (धन) दाग है जो हर आमो-खास के धतकरम, चवन्नी छाप रिश्वंतखोरी से लेकर कीर्तिमानी भ्रष्टाचार और हर किस्म के जरायम अपने अंदर समेट लेता है। यह धब्बा हर क्षण बढ़ता है महसूस होता है मगर नजर नहीं आता। सरकार की साख में अभूतपूर्व गिरावट के बीच काले धन की कालिख भी चमकने लगी है। दिल्ली से स्विटजरलैंड तक भारत के काले (धन) किस्से कहे सुने जा रहे हैं। वैसे अगर टैक्स हैवेन की पुरानी और रवायती बहस को छोड़ दिया जाता तो हकीकत यह है कि काली अर्थव्यवस्था हमारे संस्कार में भिद चुकी है। आर्थिक अपराध का यह अदृश्‍य चरम अब हम हिंदुस्ता्नियों की नंबर दो वाली आदत है। अर्थव्‍यवस्था इसकी चिकनाई पर घूमती है। टैक्सन हैवेन के रहस्यों पर सरकार का असमंजस लाजिमी है क्यों कि पिछले साठ वर्षों में इस कालिख के उत्पावदन को हर तरह से बढ़ावा दिया गया है। भारत में साल दर साल काले धन के धोबी घाट( मनी लॉड्रिंग के रास्ते ) बढ़ते चले गए हैं। काला धन हमारी मजबूर और मजबूत आर्थिक विरासत बन चुका है।
कालिख के कारखाने
अब टैक्स के डर से और काली कमाई कोई नहीं छिपाता बल्कि काले धन का उत्पादन सुविधा, स्‍वभाव और सु‍नोयजित व्यवस्था के तहत होता है। भारत कुछ ऐसे अजीबोगरीब ढंग से उदार हुआ है कि एनओसी, अप्रूवल, नाना प्रकार के फॉर्म, सार्टीफिकेट, डिपार्टमेंटल क्लियरेंस, इंस्पेक्शन रिपोर्ट, तरह तरह की फाइलों, दस्तावेजों, इंसपेक्टेर राज आदि से गुंथी बुनी सरकारी दुनिया में हर सरकारी दफ्तर एक प्रॉफिट सेंटर