Showing posts with label Rent seeking. Show all posts
Showing posts with label Rent seeking. Show all posts

Monday, March 27, 2017

विकास का हठयोग


उत्‍तरप्रदेश को विकास की प्रयोगशाला बनाने के लिए योगी आदित्‍यनाथ कौन सा जटिल दुष्‍चक्र तोड़ना होगा ?

योगी आदित्यनाथ क्या उत्तर प्रदेश को विकास की प्रयोगशाला बना सकते हैं?
विकास सिर्फ साफ सुथरा विकास ही पढि़ए और कुछ नहीं.
योगी को इस हठयोग की शुरुआत अपनी पार्टी से ही करनी होगी.
राजनीति के साथ गुंथकर, राज्यों में विकास का मॉडल टेढ़ा-मेढ़ा और बुरी तरह दागी हो चुका है. विकास कार्यों की कमान सियासी कार्यकर्ता ही संभालते हैं. यह पार्टी की तरफ से उनकी सेवाओं के बदले उनको मिलने वाली मेवा है. भाजपा के पास पहली बार विशाल कार्यकर्ता और समर्थक समूह जुटा है. इस मेवाको लेकर जिनकी उम्मीदें बल्लियों उछल रहीं हैं.

राज्यों में विकास को देखना अब उतना दुर्लभ भी नहीं रहा है. वित्त आयोग की सिफारिशों के बाद राज्यों के पास संसाधनों की कमी नहीं है. उत्तर प्रदेश के लगभग हर जिले में सरकारी पैसे से कुछ न कुछ बन रहा है. यही हाल देश के अन्य राज्यों में भी है. 

राज्यों में विकास पर अधिकांश खर्च सरकार करती है. सबसे बड़ा हिस्सा कंस्ट्रक्शन का है. मसलन, उत्तर प्रदेश में इस साल करीब 40,000 करोड़ रु. बुनियादी ढांचा निर्माणों के लिए रखे गए हैं

केंद्र और राज्य की परियोजनाओं की सीरत में बड़ा फर्क है. केंद्रीय परियोजनाएं अपेक्षाकृत बड़ी या बहुत बड़ी होती हैं, जिनमें निजी कंपनियों की निजी भागीदारी के नियम अपेक्षाकृत पारदर्शी हैं. इन पर ऑडिट एजेंसियों व नियामकों की निगहबानी रहती है.

राज्यों में परियोजनाएं छोटी होती हैं. मसलन, ग्रामीण सडक़ें, नलकूप, सिंचाई, बुनियादी ढांचा, सरकारी भवन, शहरों में छोटे पुल, सडक़ों का निर्माण और मरम्मत के ढेर सारे काम. लागत के आधार पर परियोजनाएं छोटी लेकिन संख्‍या यह परियोजनाएं वस्तुत: ठेके हैं, जिनमें पारदर्शी टेंडरिंग, जांच, ऑडिट की कोई जगह नहीं है. राज्यों का अधिकांश निर्माण विशाल कॉन्ट्रैक्टर राज के जरिए होता है. कॉन्ट्रैक्ट सत्तारूढ़ दल के लोगों या उनके शुभचिंतकों को मिलते हैं. समाजवादी पार्टी के दौर में अधिकांश निर्माण पार्टी के लोगों के हाथ में थे. बसपा के दौर में वर्ग विशेष के लिए ठेके आरक्षित कर दिए गए थे.

सरकार के विभागों को सामान की आपूर्ति और सरकार के बदले नागरिक सेवाओं (टोल, पार्किंग, राजस्व वसूली, बिजली बिल वसूली) का संचालन कारोबारों का अगला बड़ा वर्ग है, जिसके जरिए सत्तारूढ़ राजनैतिक दल अपने खैरख्वाहों को उनका मेहनताना देते हैं. करीब 29 गैर धात्विक खनिज राज्यों के मातहत हैं, जिनकी बिक्री में अकूत कमाई है. इनके ठेके हमेशा सत्ता के राजनैतिक चहेतों को मिलते हैं

निर्माण, सेवाओं और खनन के ठेके राज्यों में सबसे बड़े कारोबार हैं. राज्यों की राजनीति का बिजनेस मॉडल इन्हीं पर आधारित है. इन अवसरों को हासिल करने के लिए किसी को किसी भी पार्टी में जाने में कोई गुरेज नहीं है. राज्यों की राजनीति में समर्थक जुटाने, बढ़ाने और पालने का सिर्फ यही एक जरिया है.

राज्यों की राजनीति का बिजनेस मॉडल पिरामिड जैसा है, जिसमें शिखर पर चुने हुए प्रतिनिधि यानी सांसद और विधायक हैं. भाजपा के पास 323 विधायक और 71 सांसद हैं. व्यावहारिक सच यह है कि हर सांसद, विधायक और प्रमुख नेता के पास 15 से 20 लोग ऐसे हैं जिनकी मदद के बिना उनकी राजनीति मुमकिन नहीं है. यानी कि उत्तर प्रदेश भाजपा में लगभग 5 से 10,000 लोग सत्ता से सीधे फायदों की तरफ टकटकी लगाए हैं. इनके नीचे वे लोग आते हैं जिन्हें छोटे फायदों और अवसरों की उम्‍मीद है

सपा और बसपा ने उत्तर प्रदेश में अब तक इसी मॉडल के जरिए राजनीति की है जिसने राज्य के विकास को हर तरह से दागदार कर दिया. ध्यान रहे कि भाजपा से जुड़ रहे अधिकांश नए लोग इन्हीं अवसरों से आकर्षित हो रहे हैं. 

योगी आदित्यनाथ की शुरुआत भव्य थी लेकिन चमकदार नहीं. दूसरे दलों से आए प्रमुख नौ नेता एक मुश्त मंत्री बन गए, जो भाजपा को लेकर पिछले नजरिए और बयानों के बारे में पूछने पर बेशर्मी से हंस देते हैं. यह नेता सिर्फ नए अवसरों की तलाश में या अवसरों को बचाने की गरज से भाजपा में आए और रेवडिय़ां पा गए.

क्या योगी उत्तर प्रदेश में सियासी कॉन्ट्रैक्टर राज खत्म कर पाएंगे?

क्या वे भाजपा के नेताओं-कार्यकर्ताओं को ठेका, पट्टा कारोबार और सरकारी मेवे से दूर रख पाएंगे?

योगी ने सरकारी निगमों व समितियों से सपा के लोगों को बेदखल कर दिया है. क्या भाजपा के लोगों को इन पर बिठाने से खुद को रोक पाएंगे?
दरअसल, उन्हें उत्तर प्रदेश में विकास के इस मॉडल को शीर्षासन कराना होगा.


योगी आदित्यनाथ यदि ऐसा कर सके तो उत्तर प्रदेश विकास के उस आंदोलन की पहली प्रयोगशाला बन जाएगा जिसकी पुकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगाई है. 

Monday, October 22, 2012

मौत बांटने वाली लूट


हाराष्‍ट्र में पवारों, गडकरियों, कांग्रेस और शिव सेना मौसरे भाई वाले रिश्‍तों पर क्‍या चिढ़ना,  भ्रष्‍टाचार का दलीय कोआपरेटिव तो मराठी राजनीति का स्‍थायी भाव है, गुस्‍सा तो सियासत की निर्ममता पर आना चाहिए। जिसने भारत के इतिहास के सबसे नृशंस भ्रष्‍टाचार को अंजाम दिया है। मत भूलिये कि अब हम राजनीतिक भ्रष्‍टाचार के एक जानलेवा नमूने से मुखातिब हैं। महाराष्‍ट्र को दुनिया भारत में सबसे अधिक किसान आत्‍महत्‍या वाले राज्‍य के तौर पर जानती है। सिंचाई के पैसे, बांध की जमीनों और कीमती पानी की लूट का इन आत्‍महत्‍याओं से सीधा रिश्‍ता है। महाराष्‍ट्र का सिंचाई घोटाला दरअसल देश की सबसे बड़ी खेतिहर त्रासदी की पटकथा है।
पानी की लूट
महाराष्‍ट्र देश का इकलौता राज्‍य है जहां पिछले कई दशकों में सिंचाई पर किसी भी राज्‍य से ज्‍यादा खर्च हुआ है। राज्‍य की पिछली डेवलपमेंट रिपोर्ट बताती है कि नवीं योजना तक महाराष्‍ट्र में सिंचाई पर खर्चपूरे देश में कुल सिंचाई खर्च का 18 फीसदी था। आगे की योजनाओं में यह और तेजी से बढ़ा। खेतों को पानी देने पर खर्च के मामले में उत्‍तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े खेतिहर राज्‍य यकीनन महाराष्‍ट्र के सामने पानी भरते हैं। महाराष्‍ट्र में राजनेताओं के लिए सिंचाई सबसे मलाईदार विभाग

Monday, September 3, 2012

सीनाजोरी का अर्थशास्‍त्र



मेरी कमाई देश में है। एक भी पैसा देश से बाहर से नहीं गया यानी सरकार को कोई घाटा नहीं हुआ। क्‍या मैं टैक्‍स देने से मना कर सकता हूं ?? कंपनियों को मुफ्त में कोयला खदान देने से देश को नुकसान न होने की सरकारी दलील पर अगर आपके दिमाग में ऐसा कोई सवाल उठे तो आप कतई गलत नहीं हैं। कंपनियों को मिली खदानों कोयला धरती के गर्भ में सुरक्षित होने से सरकार को कोई यदि नुकसान नहीं दिखता तो फिर आप भी कमाइये, देश में खर्च कीजिये और टैक्‍स मत दीजिये। सरकार को क्‍या नुकसान हो रहा है। पैसा तो देश में ही है। कोयला खदानों की मुफ्त बंदरबांट में देश को हानि न होने की यह सूझ उस नए अर्थशास्‍त्र का हिस्‍सा है जिसे प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की टीम देश के गले उतारना चाहती है। यह दागदार हिसाब संपत्तियों के मूल्‍यांकन के शास्‍त्रीय से लेकर बाजारवादी सिद्धांतों तक का गला घोंट देता है और राजस्‍व का नुकसान आंकने के बजटीय सिद्धांतों को दफ्न कर देता है। सरकार के समझदार मंत्री देश को शर्मिंदा करने वाला यह अर्थशास्‍त्र सिर्फ इसलिए पढ़ा रहे हैं ताकि प्राकृतिक संसाधनों को बांटने के अधिकार की कीमत वसूलने वाले नेताओं (रेंट सीकिंग) और उनकी चहेती कंपनियों (क्रोनी कैपटिलिज्‍म) के बीच  गठजोड़ को सही साबित किया जा सके। यह चोरी के बाद सीनाजोरी का अर्थशास्‍त्र है।
दागी गणित 
सरकार और कांग्रेस देश को शायद सिरे से मूर्ख समझती है। वह देश के सामान्‍य आर्थिक ज्ञान का मखौल बना रही है। सदियों से बाजारी, कारोबारी और संपत्ति के हिसाब  में तपे हुए इस देश का एक अदना सा किसान भी जानता है कि