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Friday, October 21, 2022

आने से जिनके आए बहार



 

नागपुर के लालन जी अग्रवाल तपे हुए निवेशक हैं. उन्‍हें पता है कि किस्‍मत की हवा कभी नरम कभी गरम होती ही है लेक‍िन अगर भारत में लोगों का खर्च बढ़ता रहेगा तो तरक्‍की का पहिया चूं चर्र करके चलता रहेगा.

त्‍योहारों की तैयारी के बीच कुछ सुर्ख‍ियां उन्‍हें सोने नहीं देतीं.  भारत में छोटी कारें और कम कीमत वाले बाइक-स्‍कूटरों के ग्राहक लापता हो गए हैं सस्‍ते मोबाइल हैंडसेट की मांग टूट रही है.किफायती मकानों की‍ बिक्री नहीं बढ़ रही.

कहां फंस गई क्रांति

बीते चार बरस में एंट्री लेवल कारों की बिक्री 25 फीसदी कम हुई है. एसयूवी और महंगी (दस लाख से ऊपर) की कारों की मांग बढ़ी है. देश की सबसे बडी कार कंपनी मारुति के चेयरमेन आर सी भार्गव को कहना पड़ा कि छोटी कारों का बाजार खत्‍म हो रहा है.

जून 2022 की तिमाही में सस्‍ती (110 सीसी) बाइक की बिक्री करीब 42 फीसदी गिरी. 125 सीसी के स्‍कूटर का बाजार भी इस दौरान करीब 36 फीसदी सिकुड़ गया.. सिआम के मुताबिक वित्‍त वर्ष 2022 में भारत में दुपह‍िया वाहनों की बिक्री दस साल के न्‍यूनतम स्‍तर पर आ गई.

दुनिया में आटोमोबाइल क्रांति फोर्ड की छोटी कार मॉडल टी से ही शुरु हुई थी लेक‍िन इसका दरख्‍त भारत की जमीन पर उगा. 2010 तक दुनिया की सभी प्रमुख कार कंपनियां भारत में उत्‍पादन या असेंम्‍बल‍िंग करने लगीं.

वाहनों की बिक्री का आख‍िरी रिकॉर्ड 2017-18 में बना था जब 33 लाख कारें और दो करोड बाइक बिकीं. इसके बाद बिक्री ग‍िरने लगी.  फाइनेंस कंपनियां डूबीं, कर्ज मुश्‍क‍िल हुआ, सरकार ने प्रदूषण को लेकर नियम बदले. मांग सिकुड़ने लगी. इसके बाद आ गया कोविड.  अब छोटी कारों और सस्‍ती बाइकों बाजार सिकुड़ रहा है जबक‍ि महिंद्रा की प्रीमियम कार स्‍कॉर्प‍ियो एन को जुलाई में 30 मिनट में एक लाख बुकिंग ि‍मल गईं.

मोबाइल में यह क्‍या

मोबाइल बाजार में भी जून त‍िमाही में 40000 रुपये से ऊपर के  मोबाइल फोन की बिक्री करीब 83 फीसदी बढ़ी जबक‍ि सस्‍ते 8000 रुपये के मोबाइल की बिक्री में गिरावट आई. काउंटरप्‍वाइंट रिसर्च की रिपोर्ट और उद्योग के आंकड़े बताते हैं कि 10000 रुपये तक मोबाइल की बिक्री की करीब 25 फीसदी सिकुड गया है. पुर्जों की कमी कारण मोबाइल हैंडसेट महंगे हुए हैं.. ऑनलाइन शिक्षा का प्रचलन बढने के बाद भी सस्‍ते स्‍मार्ट फोन नहीं बिके.

घर का सपना

प्रॉपर्टी कंसल्टेंट एनारॉक ने बताया कि साल 2022 की पहली छमाही में घरों की कुल बिक्री में महंगे घरों (1.5 करोड़ से ऊपर) की मांग दोगुनी हो गई. साल 2019 में पूरे साल के दौरान घरों की बिक्र में लग्जरी घरों की हिस्सेदारी महज 7 फीसद थी.

देश के 7 प्रमुख शहरों में साल 2021 में लॉन्च 2.36 लाख नए मकानों में 63 फीसदी मकान मिड और हाई एंड सेगमेंट (40 लाख और 1.5 करोड़) के हैं. नई हाउसिंग परियोजनाओं में अफोर्डेबल हाउसिंग की हिस्सेदारी घटकर 26 फीसदी रह गई, जो वर्ष 2019 में 40 फीसद थी.

उम्‍मीदों के विपरीत

कोविड से पहले तक बताया जाता कि आटोमबाइल, मोबाइल फोन और मकान ही रोजगार और तरक्‍की इंजन हैं.  

भारत में कारों (प्रति 1000 लोगों पर केवल 22 कारें) वाहनों का बाजार छोटा है केवल 49 फीसदी परिवारों के पास दो पहिया वाहन थे इस के बावजूद 2018 तक आटोमोबाइल भारत की मैन्‍युफैक्‍चरिंग में 49 फीसदी और जीडीपी का 7.5 फीसदी हिस्‍सा ले चुका था. करीब 32 लाख रोजगार यहीं से निकल रहे थे.

सहायक उद्योगों व सेवाओं के साथ 2018 में, भारतीय आटोमोबाइल उद्योग 100 अरब डॉलर के मूल्‍यांकन के साथ दुनिया में चौथे नंबर पर पहुंच गया था. लेक‍िन अब मारुति के चेयरमैन कहते हैं कि छोटी कारें ब्रेड एंड बटर थीं बटर खत्‍म हो गया अब ब्रेड बची है.

आटोमेाबाइल क्रांति सस्‍ती बाइक और छोटी कारों पर केंद्रित थी. यदि इनके ग्राहक नहीं बचे तो भारत में महंगी या इलेक्‍ट्र‍िक कारें में निवेश क्‍यों बढेगा?

मंदी की हवेल‍ियां

हाउसिंग की मंदी  2017 से शुरु हुई थी, नोटबंदी के बाद 2017 में (नाइट फ्रैंक रिपोर्ट) मकानों की बिक्री करीब 7 फीसदी और नई परियोजनाओं की शुरुआत 41 फीसदी कम हुई. मकानों की कीमतें नहीं टूटीं्. जीएसटी की गफलत, एनबीएफसी का संकट, मांग की कमी और  आय कम होने कारण कोविड आने तक यहां    करीब 6.29 लाख मकान ग्राहकों का  इंतजार कर रहे थे.

बड़ी आबादी के पास अपना मकान खरीदने की कुव्वत भले ही  हो लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था में कंस्ट्रक्शन का हिस्सा 15 फीसद (2019) है जो अमेरिकाकनाडाफ्रांस ऑस्ट्रेलिया जैसे 21 बड़े देशों (चीन शामिल नहींसे भी ज्यादा हैयह खेती के बाद रोजगारों का सबसे बड़ा जरिया है.

तो कैसा डिज‍िटल इंड‍िया

2019 तक फीचर फोन बदलने वाले स्‍मार्ट फोन खरीद रहे थे. इसी से डिज‍िटल लेन देन और मोबाइल इंटरनेट का इस्‍तेमाल भी बढ़ा. सस्‍ते फोन की बिक्री घटने से डि‍ज‍िटल सेवाओं की मांग पर असर पड़ेगा. 5जी आने के बाद तो यह बाजार महंगे फोन और महंगी सेवा वालों पर केंद्रित हो जाएगा.

 

कहां गया मध्‍य वर्ग

भारत का उभरता बाजार मध्‍य वर्ग पर केंद्रित था. जिसमें नए परिवार शामिल हो रहे थे.  यही मध्य वर्ग बीते 25 साल में भारत की प्रत्येक चमत्कारी कथा का शुभंकर रहा है नए नगर (80 फीसद मध्य वर्ग नगरीयऔर 60 फीसदी जीडीपी इन्‍हीं की खपत से आता है बीसीजी का आकलन है कि इस वर्ग ने में ने करीब 83 ट्रिलियन रुपए की एक विशाल खपत अर्थव्यवस्था तैयारकी है. मगर प्‍यू रिसर्च ने 2020 में बताया था कि की कोविड की ामर से भारत के करीब 3.2 करोड़ लोग मध्य वर्ग से बाहर हो गए.

क्‍या यही लोग हैं जिनके कारण कारें मकान मोबाइल की बिक्री टूट गई है ? भारी महंगाई और टूटती कमाई इनकी वापसी कैसे होगी?

2047 में विकसित देश होने के लक्ष्‍य की रोशनी में यह जान लेना जरुरी है भारत में 2020 में प्रति व्‍यक्‍ति‍ आय (पीपीपी आधार पर) का जो स्‍तर था अमेरिका ने वह 1896 में और यूके ने 1894 में ही हासि‍ल कर लिया था. 2019 के हाउसहोल्‍ड प‍िरामिड सर्वे आंकडो के मुताबिक आज भारत में प्रति परिवार जितनी कारें है वह स्‍तर अमेरिका में 1915 में आ गया था. जीवन स्‍तर की बेहतरी के अन्‍य पैमाने जैसे फ्रिज ,एसी वाश‍िंग मशीन, कंप्‍यूटर ,भारत इन सबमें अमेरिका 75 से 25 साल तक पीछे है

बाकी आप कुछ समझदार हैं ...

Saturday, July 2, 2022

अच्‍छी नौकर‍ियों के बुरे द‍िन


 

 

स्‍टार्ट अप में फ‍िर छंटनी शुरु हो गई थी. फरवरी से मई के बीच कार 24, वेदंतु, अनअकाडमी, व्‍हाइट हैट जून‍ियर, मीशो, ओ के क्रेड‍िट सहित करीब आधा दर्जन स्‍टार्ट अप ने 8500 कर्मचारी निकाल दिये

यह सुर्ख‍ियां पढ़कर श्रुति का दिल बैठने लगा. वह तो अगले यूनीकॉर्न में नौकरी का आवेदन करने वाली थी. अच्‍छी नौकरियों के अकाल के बीच स्‍टार्ट अप नखलिस्‍तान की तरह उभरे थे. अगर भारत में हर महीने के एक यूनीकॉर्न बन रहा है तो  नौकरियां क्‍यों जा रही हैं? सरकार कह रही है कि भारत में स्‍टार्ट अप क्रांति हो रही है  तो रिजर्व बैंक गवर्नर स्‍टार्ट अप में जोखिम को लेकर चेतावनी दे रहे हैं, शेयर बाजार में स्‍टार्ट अप शेयरों की बुरी गत बनी है. सेबी इन पर बड़ी सख्‍ती कर रहा है.

यदि आपको यह लगता है कि स्‍टार्ट अप केवल मुट्ठी भर नौकर‍ियों की बात है यह तथ्‍य समझना जरुरी है कि भारत में अच्‍छी नौकर‍ियां हैं ही क‍ितनी?  श्रम  मंत्रालय का ताजा तिमाही रोजगार सर्वे (अक्‍टूबर दिसंबर 2021) बताता है कि गैर सरकारी क्षेत्र में फॉर्मल या औपचार‍िक नौकरियां केवल 3.14 करोड़ हैं. श्रम मंत्रालय के नियमों के मुताबिक दस से अध‍िक कामगारों वाले प्रतिष्‍ठान संगठित, स्‍थायी या औपचारिक नौकरियों में गिने जाते हैं बाकी रोजगार असंगठ‍ित और अस्‍थायी हैं.

वित्‍त आयोग, संसद को दी गई जानकारी और आर्थ‍िक सर्वेक्षण 2018 के आंकड़ो के अनुसार केंद्र (सार्वहजनिक कंपनियों सहित), राज्‍य और सुरक्षा बलों को  मिलाकर करीब कुल संगठ‍ित क्षेत्र की  नौकर‍ियां (निजी व सरकारी) 5.5 से छह करोड़ को बीच हैं. यानी कि कुल  48 करोड़ की कामगार आबादी यानी लेबर फोर्स (सीएमआईई अप्रैल 2022) के लिए चुटकी भर रोजगार.

क्‍या हुआ स्‍टार्ट अप को

महंगे होते कर्ज के साथ स्‍टार्ट अप निवेश यानी वेंचर कैपिटल और प्राइवेंट फंड‍िंग घट रही है क्रंच बेस की रिपोर्ट बताती है कि मई तक पूरी दुनिया में  स्‍टार्ट अप में निवेश सालाना आधार पर 20 फीसदी और मासिक आधार पर 14 फीसदी गिरा है. सबसे तेज ग‍िरावट स्‍टार्ट अप के लेट स्‍टेज और टेक्‍नॉलॉजी ग्रोथ वर्ग में आई है. यानी चलते हुए स्‍टार्ट अप को पूंजी नहीं मिल रही है. सीड स्‍टेज यानी शुरुआती स्‍तर पर निवेश अभी बना हुआ है.

2021 में भारत के स्‍टार्ट अप 38.5 अरब डॉलर का वेंचर कैपिटल निवेश आया था. सीबी इनसाइट का आंकड़ा बताता है कि भारत के स्‍टार्ट अप में वेंचर फंडिंग इस साल की दूसरी ति‍माही में अब तक केवल 3.6 अरब डॉलर का निवेश आया जो जनवरी से मार्च के दौरान आए निवेश  का आधा और बीते बरस की इसी अवध‍ि करीब एक तिहाई है.

कई स्‍टार्ट अप फंडि‍ंग में देरी का सामना कर रहे हैं. अगर पैसा मिलता भी है तो वैल्‍यूएशन से समझौता करना होगा. पूंजी की कमी के कारण स्‍टार्ट अप अध‍िग्रहण तेज हुए हैं. फिनट्रैकर के अनुसार 2021 में 250 से अध‍िक स्‍टार्ट अप अध‍िग्रहण पर 9.4 अरब डॉलर खर्च हुए. सबसे बडा हिस्‍सा ई कॉमर्स, एडुटेक, फिनटेक और हेल्‍थटेक स्‍टार्ट अप का था.

अच्‍छी नौकर‍ियों के बुरे दिन

स्‍टार्ट अप में नौकर‍ियां जाना गंभीर है बकौल श्रम मंत्रालय भारत में मैन्‍युफैक्‍चर‍िंग, भवन निर्माण, व्‍यापार, परिवहन, श‍िक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, होटल रेस्‍टोरेंट, सूचना तकनीक और वित्‍तीय सेवायें यानी केवल कुल नौ उद्योग या सेवाओं में अधिकांश स्‍थायी या अच्‍छी नौकर‍ियां मिलती हैं

इन नौकरियों के बाजार की हकीकत डरावनी है. बैंक ऑफ बड़ोदा के अर्थशास्‍त्र‍ियों ने भारत में बीते पांच छह (2016-21) के दौरान  27 प्रमुख उद्योगों की करीब 2019 शीर्ष कंपनियों बैलेंस शीट में कर्मचारी भर्ती और खर्च के आंकडों का व‍िश्‍लेषण किया है. ताक‍ि भारत में अच्‍छे रोजगारों की हकीकत पता चल सके.

-         27 उद्योगों की दो हजार से अध‍िक कंपन‍ियों में  मार्च 2016 में कर्मचारियों की संखया 54.5 लाख थी जो मार्च 2021 में बढ़कर 59.8 लाख हो गई. यह बढ़ोत्‍तरी केवल 1.9% फीसदी थी यानी इस दौरान जीडीपी की सालाना विकास दर औसत 3.5 से कम.  कोविड के दौरान छंटनी को निकालने के बाद भी रोजगार बढ़ने की दर केवल 2.5 फीसदी नजर आती है जब कि कोविड पूर्व तक पांच वर्ष में जीडीपी दर 6 फीसदी के आसपास रही है

 

 -         27 उद्योगों में केवल नौ उद्योगों या सेवाओं ने  औसत  वृद्ध‍ि दर (1.9 फीसदी) से से बेहतर रोजगार दर हास‍िल की.  सूचना तकनीक, बैंकिंग व फाइनेंस, रियल इस्‍टेट और हेल्‍थकेयर में रोजगार बढ़े लेक‍िन जीडीपी की रफ्तार से कम.

-         कोविड के कारण सबसे ज्‍यादा रोजगार  शिक्षा, होटल और रिटेल में खत्‍म हुए. 

-         बीते पांच साल में प्रति कर्मचारी वेतन में औसत सालाना केवल 5.7 फीसदी की बढ़त हुई है. जो महंगाई की दर से कम है.

नई उम्‍मीद का सूखना 

संगठित रोजगारों के सिकुड़ते बाजार में स्‍टार्ट अप  छोटी सी उम्‍मीद बनकर उभरे थे.

इसी मार्च में संसद को बताया गया था कि देश में करीब 66000 स्‍टार्ट अप ने 2014 से मार्च 2022 तक करीब सात लाख रोजगार तैयार किये. इनमें से कई  रोजगार तो कोविड के दौरान बंद हुए कारोबारों के साथ खत्‍म हो गए.

बचे हुए स्‍टार्ट अप नई पूंजी की मुश्‍क‍िल में हैं. ई कॉमर्स,एडुटेक, ईरिटेल  जैसे स्‍टार्ट अपन जिनके बिजनेस मॉडल उपभोक्‍ता खपत पर आधारित थे जिसमें तेज बढ़त नहीं हुई. बदलते नियम और महंगा कर्ज फिनटेक डि‍ज‍िटल लेंड‍िंग कंपन‍ियों पर भारी पड़ रहे  हैं

सरकारी रोजगारों की बहस ध्‍यान बंटाने वाली है. सरकारी रिपोर्ट और आंकड़े बताते हैं कि केंद्र सरकार ( 2014-15 से से 2020-21 3.3 से 3.1 मिल‍ियन) और सरकारी उपक्रमों  ( 2017-18 -2020-21 1.08 से 0.86 मिल‍ियन) में  नौकर‍ियां घट  रही हैं.    दरअसल अच्‍छी नौकरियों  के अवसर चुनिंदा उद्योग या सेवाओं तक सीम‍ित हैं. 2016 से 2020 तक कंपनि‍यों के मुनाफे बढ़ने की रफ्तार छह फीसदी रही है. खूब टैक्‍स रियायतें, सस्‍ता कर्ज मिला लेक‍िन रोजगार नहीं बढे

नई नौकर‍ियां बाजार से आएंगे सरकार के खजाने से नहीं. इस सच को  समझने में जितनी देरी होगी बेरोज़गारों का मोहभंग उतना ही बढ़ता जाएगा.

 

 

 

Friday, April 24, 2020

इक आग का दरिया है...


अपनी पूंजी और बचत का सरेआम खून खच्चर देखकर एक भोले निवेशक ने एक चतुर ब्रोकर से पूछा, गुरु ये सब क्या हो रहा है? 40 दिन की बंदी में सब डूब ही जाएगा! ग्रोथ जीरो हो जाएगी! हमारे खून-पसीने की कमाई पर पलने वाली यह भीमकाय सरकार किस दिन काम आएगी?

ब्रोकर ने कहा कुछ लोड तुम भी लेना सीखो. संकट में घिरते तो सब हैं, नतीजे इस पर निर्भर करते हैं कि कोई उनसे उबरता कैसे है. यह 2009 नहीं है. हमारी महान सरकार हमारी तरह ही बेबस है.

हमें अब तक पता नहीं है कि कोरोना हमारी सेहत की क्या गत करेगा लेकिन वायरसग्रस्त अर्थव्यवस्था का बिल तैयार है.

► 40 दिन के लॉकडाउन से 17 से 20 लाख करोड़ रुपए का सीधा नुक्सान (एचडीएफसी, बार्कलेज आदि के अनुमान) यानी कि केंद्र सरकार के साल भर के कुल राजस्व से ज्यादा. यह नुक्सान संचित होकर बढ़ता जाएगा इसलिए आर्थिक विकास दर पूरी शून्य या अधिकतम 1-1.5 फीसद

► मरे उद्योगों को जिलाने के लिए भारी रियायतों या संसाधनों की जरूरत. बैंकों को नई पूंजी

► राज्यों को चाहिए दस लाख करोड़ रुपए की मदद  

► अगर देनी पड़ी तो गरीबों को नकद सहायता

यानी कि संकट जितना बढ़ेगा सरकार से मदद की उम्मीदें फूलती जाएंगी. इस हाल में कम से कम 10 लाख करोड़ रुपए का (जीडीपी का 5 फीसद) के सीधे पैकेज के बिना तबाही रोकना असंभव है. केंद्र और राज्यों ने मिलाकर अर्थव्यवस्था को उबारने पर अभी जीडीपी का 1 फीसद तक खर्च नहीं किया है.

यह रकम आएगी कहां से?

सरकार के पास यही ही स्रोत हैः

बैंकों के पास 135 लाख करोड़ रुपए के डिपॉजिट हैं, जिनमें 103 लाख करोड़ रुपए के कर्ज दिए जा चुके हैं. संकट कालीन नकदी (सीआरआर) के बाद बची रकम सरकार के बॉन्ड ट्रेजरी बि में लगी है

एलआइसी के 30.55 लाख करोड़ रुपए शेयर बाजार और सरकार के बॉन्ड में लगे हैं

कर्मचारी भविष्य निधिके 10 लाख करोड़ रुपए भी सरकार कर्ज के तौर पर इस्तेमाल कर रही है 

और छोटी बचत स्कीमों के 15 लाख करोड़ रुपए जिसमें राज्यों को कुछ कर्ज देने के बाद बचा अधिकांश पैसा सरकारी बॉन्ड में लगा है

इस साल तो सरकारी कंपनियां बेचकर, बैंकों लाभांश और रिजर्व बैंक के रिजर्व से भी कुछ नहीं मिलेगा

विदेशी मुद्रा भंडार है, जो आयात के लिए है

अमेरिका अगर डॉलर और ब्रिटेन पाउंड, यूरोपीय संघ अगर यूरो छाप रहे हैं तो हम रुपया क्यों नहीं छाप सकते?

करेंसी छपाई देश की अर्थव्यवस्था के आकार के आधार पर तय होती है. 100 रुपए के उत्पादन के लिए 500 रुपए नहीं छापे जा सकते, नहीं तो कीमतें बेतहाशा बढ़ेंगी. भारत की अर्थव्यवस्था दिखने में ही बड़ी है, जरा-सी किल्लत पर कीमतें आसमान छूती हैं. अगर करेंसी छापते हैं तो भारत की साख कचरा (जंक) हो जाएगी, जो पहले ही न्यूनतम है.

रिजर्व बैंक महंगाई पर निगाह रखते हुए मनी सप्लाई को क्रमश: ही बढ़ा सकता है. कमजोर रुपए और खराब वित्तीय हालत के साथ विदेशी कर्ज महंगा होगा और जुगाड़ने की गुंजाइश कम है. 
इसलिए अब जो हो रहा है वह जोखि भरा है.

केंद्र सरकार इस साल लंबे अवधिके बॉन्ड की बजाए ज्यादा पैसा (2.6 ट्रिलियन रुपए) छोटी अवधि‍ (60 से 90 दिन) के बैंक कर्ज (वेज ऐंड मीन्स एडवांस, ट्रेजरी बिल) से उठाएगी. जब मांग खपत ही नहीं है तो 90 दिन के बाद यह कर्ज चुकाया कैसे जाएगा? बैंक दुबले हुए जा रहे हैं.

राज्य सरकारों को 8 से 9 फीसद पर कर्ज मिल रहा है. उनकी साख किसी सामान्य नौकरीपेशा से ज्यादा खराब है, जिसे सस्ता होम लोन मिल जाता है. राज्यों को छोटी अवधिके कर्ज लेने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. पता नहीं, तीन माह बाद वे चुकाएंगे कैसे?

तस्वीर कुछ इस तरह है कि केंद्र और राज्यों के पास राहत पैकेज के लिए पैसा नहीं है. करेंसी छापने की सहूलत नहीं है. बैंक सरकारों को कर्ज देते हुए अर्थव्यवस्था के कर्ज हिस्से में कटौती करेंगी. सरकारों का कर्ज उनके घाटे का दूसरा रूप है, जिसे एक सीमा से अधि बढ़ाने पर पूरा संतुलन ढह जाएगा.

तो होगा क्या?

जल्दी उबरने की एक मुश्त दवा नहीं मिल पाएगी. जो चूरन-चटनी मिलेगी, उसके लिए सरकार को कर्ज लेना होगा, जिसे लौटाने के लिए तत्काल जुगाड़ भी करना होगा. 

बेकारी का जो भी हाल हो लेकि लॉकडाउन हटते ही कोरोना राहत पैकेज के लिए नए टैक्स लगेंगे. राज्य सरकारें पेट्रोल-डीजल पर वैट बढ़ाने जा रही हैं. केंद्र कुछ नए सेस की तैयारी में है. कई सारी सेवाएं महंगी होंगी यानी छुरी खरबूजे पर गिरे या खरबूजा छुरी पर, कटेगा खरबूजा ही.

चाणक्य बाबा ठीक कहते थे, कुप्रबंध के कारण जब राजकोष दरिद्र होता है वहां का शासन प्रजा और देश की चेतना को खा जाता है.