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Sunday, March 19, 2023

चीन का सबसे सीक्रेट प्‍लान


 

 

चीन ने अपनी नई बिसात पर पहला मोहरा तो इस सितंबर में ही चल दिया था, उज्‍बेकिस्‍तान के समरकंद में शंघाई कोआपरेशन ऑर्गनाइजेशन की बैठक की छाया में चीन, ईरान और रुस ने अपनी मुद्राओं में कारोबार का एक अनोखा त्र‍िपक्षीय समझौता किया.  यह  अमेरिकी  डॉलर के वर्चस्‍व को  चुनौती देने के लिए यह पहली सामूहिक शुरुआत थी. इस पेशबंदी की धुरी है  चीन की मुद्रा यानी युआन.

नवंबर में जब पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ के बीज‍िंग में थे चीन और पाकिस्‍तान के केंद्रीय बैंकों ने युआन में कारोबार और क्‍ल‍ियर‍िंग के लिए संध‍ि पर दस्‍तखत किये. पाकिस्‍तान को चीन का युआन  कर्ज और निवेश के तौर पर मिल रहा है. पाक सरकार इसके इस्‍तेमाल से  रुस से तेल इंपोर्ट करेगी.

द‍िसंबर के दूसरे सप्‍ताह में शी जिनप‍िंग सऊदी अरब की यात्रा पर थे. चीन, सऊदी का अरब का सबसे बडा ग्राहक भी है सप्‍लायर भी. दोनों देश युआन में तेल की खरीद‍ बिक्री पर राजी हो गए. इसके तत्‍काल बाद जिनपिंग न गल्‍फ कोआपरेशन काउंस‍िल की बैठक में शामिल हुए  जहां उन्‍होंने शंघाई पेट्रोलियम और गैस एक्‍सचेंज में युआन में तेल कारोबार खोलने का एलान कर दिया.

डॉलर के मुकाबिल कौन

डॉलर को चुनौती देने के लिए युआन की तैयार‍ियां सात आठ सालह पहले शुरु हुई थीं केंद्रीय बैंक के तहत  युआन इंटरनेशनाइलेजेशन का एक विभाग है. जिसने 2025 चीनी हार्ब‍िन बैंक और रुस के साबेर बैंक से वित्‍तीय सहयोग समझौते के साथ युआन के इंटरनेशनलाइजेशन की मुहिम शुरु की थी. इस समझौते के बाद दुनिया की दो बड़ी अर्थव्‍यवस्थाओं यानी रुस और चीन के बीच रुबल-युआन कारोबार शुरु हो गया. इस ट्रेड के लिए हांगकांग में युआन का एक क्‍ल‍ियर‍िंग सेंटर बनाया गया था.

2016 आईएमएफ ने युआन को इस सबसे विदेशी मुद्राओं प्रीम‍ियम क्‍लब एसडीआर में शामिल कर ल‍िया.  अमेरिकी डॉलर, यूरो, येन और पाउंड इसमें पहले से शामिल हैं. आईएमएफ के सदस्‍य एसडीआर का इस्‍तेमाल करेंसी के तौर पर करते हैं.

चीन की करेंसी व्‍यवस्‍था की साख पर गहरे सवाल रहे हैं  लेक‍िन कारोबारी ताकत के बल पर एसडीआर  टोकरी में चीन का हिस्‍सा, 2022 तक छह साल में करीब 11 फीसदी बढ़कर 12.28  फीसदी हो गया.

कोविड के दौरान जनवरी 2021 में चीन के केंद्रीय बैंक ने ग्‍लोबल इंटरबैंक मैसेजिंग प्‍लेटफार्म स्‍व‍िफ्ट से करार किया. बेल्‍ज‍ियम का यह संगठन दुनिया के बैंकों के बीच सूचनाओं का तंत्र संचालित करता है  इसके बाद चीन में स्‍व‍िफ्ट का डाटा सेंटर बनाया गया.

चीन ने  बैंक ऑफ इंटरनेशनल सेटलमेंट के लिक्‍व‍िड‍िटी कार्यक्रम के तहत इंडोन‍िश‍िया, मलेश‍िया, हांगकांग , सिंगापुर और चिली के साथ मिलकर 75 अरब युआन का फंड भी बनाया है जिसका इस्‍तेमाल कर्ज परेशान देशों की मदद के लिए  के लिए होगा.

ड‍ि‍ज‍िटल युआन का ग्‍लोबल प्‍लान

इस साल जुलाई में चीन शंघाई, गुएनडांग, शांक्‍सी, बीजिंग, झेजियांग, शेनजेन, क्‍व‍िंगादो और निंग्‍बो सेंट्रल बैंक डि‍ज‍िटल युआन पर केंद्र‍ित एक पेमेंट सिस्‍टम की परीक्षण भी शुरु कर दिया. यह सभी शहर चीन उद्योग और व्‍यापार‍ के केंद्र हैं. इस प्रणाली से विदेशी कंपनियां को युआन में भुगतान और निवेश की सुपिवधा देंगी. यह अपनी तरह की पहला ड‍ि‍ज‍िटल करेंसी क्‍ल‍ियरिंग सिस्‍टम है हाल में ही बीजिंग ने ने हांगकांग, थाईलैंड और अमीरात के साथ  डिजिटल करेंसी में लेन देन के परीक्षण शुरु कर दिये हैं.

पुतिन भी चाहते थे मगर ...

2014 में यूक्रेन पर शुरुआती हमले के बाद जब अमेरिका ने प्रतिबंध  लगाये थे तब रुस ने डॉलर से अलग रुबल में कारोबार बढाने के प्रयास शुरु किये थे. और 2020 तक अपने विदेशी मुद्रा भंडार में अमेरिकी डॉलर का हिस्‍सा आधा घटा दिया. जुलाई 2021 में रुस के वित्‍त मंत्री ने एलान किया कि डॉलर आधार‍ित विदेशी कर्ज को पूरी तरह खत्‍म किया जाएगा. उस वक्‍त तक यह कर्ज करीब 185 अरब डॉलर था.

रुस ने 2015 में अपना क्‍लियरिंग सिस्‍टम मीर बनाया.  यूरोप के स्‍व‍िफ्ट के जवाब मे रुस ने System for Transfer of Financial Messages (SPFS) बनाया है जिसे दुनि‍या के 23 बैंक जुड़े हैं.

अलबत्‍ता युद्ध और कड़े प्रतिबंधों से रुबल की आर्थि‍क ताकत खत्‍म हो गई. रुस अब युआन की जकड़ में है. ताजा आंकडे बताते हैं कि रुस के विदेशी मुद्रा भंडार में युआन का हिस्‍सा करीब 17 फीसदी है. चीन फ‍िलहाल रुस का सबसे बड़ा तेल गैस ग्राहक और संकटमोचक है.

यूरोप की कंपनियों की वि‍दाई के बाद चीन की कंपनियां रुस में सस्‍ती दर पर खन‍िज संपत्‍त‍ियां खरीद रही हैं.रुस का युआनाइेजशन शुरु हो चुका है.

भारत तीसरी अर्थव्‍यवस्‍था है जिसने अपनी मुद्रा यानी रुपये में कारोबार भूम‍िका बना रहा है. रुस पर प्रतिबंधों के कारण  भारतीय बैंक दुव‍िधा में हैं. भारत सबसे बड़े आयातक (तेल गैस कोयला इलेक्‍ट्रानिक्‍स) जिन देशों से होते हैं वहां भुगतान अमेरिकी डॉलर में ही होता है.

 

युआन की ताकत

 युआन ग्‍लोबल करेंसी बनने की शर्ते पूरी नहीं करता. लेक‍िन यह  चीन की मुद्रा कई देशों के लिए वैकल्पि‍क भुगतान का माध्‍यम बन रही है. चीन के पास दो बडी ताकते हैं. एक सबसे बडा आयात और निर्यात और दूसरा गरीब देशों को देने के लिए कर्ज. इन्‍ही के जरिये युआन का दबदबा बढा है. 

चीन के केंद्रीय बैंक का आंकड़ा बताता है कि युआन में व्‍यापार भुगतानों में सालाना 15 फीसदी की बढ़ोत्‍तरी हो रही है. 2021 में युआन में गैर वित्‍तीय लेन देन करीब 3.91 ट्र‍िल‍ियन डॉलर पर पहुंचा गए हैं. 2017 से युआन के बांड ग्‍लोबल बांड इंडेक्‍स का हिस्‍सा हैं. प्रतिभूत‍ियों में निवेश में युआन का हिस्‍सा 2017 के मुकाबले दोगुना हो कर 20021 में 60 फीसदी हो गया है.

दूसरे विश्‍व युद्ध के बाद से अमेर‍िकी डॉलर व्‍यापार और निवेश दोनों की केंद्रीय करेंसी रही है. अब चीन दुन‍िया का सबसे बड़ा व्‍यापारी है इसलिए बीते दो बरस में चीन के केंद्रीय बैंक ने यूरोपीय सेंट्रल बैंक, बैंक ऑफ इंग्‍लैंड, सिंगापुर मॉनेटरी अथॉरिटी, जापान, इंडोनेश‍िया, कनाडा, लाओस, कजाकस्‍तान आद‍ि देशों के साथ युआन में क्‍ल‍िर‍िंग और स्‍वैप के करार किये हैं.दुनिया के केंद्रीय बैकों के रिजर्व में युआन का हिस्‍सा बढ़ रहा है.

इस सभी तैयार‍ियों के बावजूद चीन की करेंसी व्‍यवस्‍था तो निरी अपारदर्शी है फिर भी क्‍या दुनिया चीन की मुद्रा प्रणाली पर भरोसे को तैयार है? करेंसी की बिसात युआन चालें दिलचस्‍प होने वाली हैं

Saturday, October 6, 2018

रुपए के राहु-केतु



कोई कला नहीं चली सरकार की!

रुपया इस बार गिरा तो गिरता चला गया,

डॉलर के मुकाबले रुपया74 के करीब है. 75 रुपए वाले डॉलर की मंजिल दूर नहीं दिखती.

कमजोरी शायद भीतरी है! 

कमजोरी!

सात फीसदी की विकास दररिकॉर्ड विदेशी निवेश (दावों के मुताबिक)शेयर बाजार में भरपूर विदेशी पूंजीमूडीज की बेहतर रेटिंगमजबूत सरकार के बाद भी
कहां गए सारे विटामिन?

रुपया जनवरी से अब तक 14 फीसदी टूट चुका है. ताजा दशकों मेंएक साल में ऐसी गिरावट केवल दो बार नजर आई. पहला—1998 के पूर्वी एशिया मुद्रा संकट के दौरान रुपया एक साल में 13.63 फीसदी टूटा था. दूसरा—2012 में तेल के 100 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंचने पर रुपया 14.51 फीसदी गिरा था.

अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध एक चुनौती है लेकिन माहौल 1998 के मुद्रा संकट या 2008 के बैंकिंग संकट जैसा हरगिज नहीं है.

तो फिर?

डॉलर मजबूत हुआ है!

लेकिन डॉलर तो 2012 में अमेरिकी फेड रिजर्व की ब्याज दरें बढ़ाने के संकेत के बाद से मजबूत हो रहा है! 

दरअसलरुपए की जड़ और तना कमजोर हो गया है. पिछले चार वर्षों के 'अच्छे दिनों' के दौरान चालू खाते का घाटा (विदेश से संसाधनों की आमद और निकासी के बीच अंतर) बढ़ता गया है. चालू खाते (करंट अकाउंट) के घाटे में रुपए की जान बसती है.

जून की तिमाही में यह घाटा जीडीपी के अनुपात में 2.4 फीसदी पर पहुंच गया जो कि 15.8 अरब डॉलर (पिछले साल इसी दौरान 15 अरब डॉलर) है. घाटे की यह आगतेल की कीमतों में तेजी से पहले ही लग चुकी थी.
घाटा बढऩे की वजहें हरगिज बाहरी नही हैं.

पहली वजहः मेक इन इंडिया के झंडाबरदारों को खबर हो कि भारत का उत्पादन प्रतिस्पर्धा की होड़ में पिछड़ रहा है. बिजलीईंधनजमीनकर्ज की महंगाई और श्रमिकों की उत्पादकता में गिरावट के कारण अर्थव्यवस्था ठीक उस समय पिछड़ रही है जब नई तकनीकों (ऑटोमेशन) के कारण प्रतिस्पर्धात्मकता के मायने बदल रहे हैं. भारत में मैन्युफैक्चरिंग का जीडीपी में हिस्सा 16-17 फीसदी पर अटका है. चीनकोरिया या थाईलैंड की तरह 25-29 फीसदी करने के लिए जबरदस्त प्रतिस्पार्धात्मक होना होगा.

रुपया डॉलर के मुकाबले हर साल तीन से चार फीसदी टूटता है ताकि भारतीय उत्पाद बाजार में टिक सकें. जिस साल ऐसा नहीं हुआउस वर्ष भारतीय निर्यात औंधे मुंह गिरा है.

दूसरी वजहः मोदी सरकार के कूटनीतिक अभियान चाहे जितने आक्रामक रहे हों लेकिन भारत के निर्यात को सांप (या ड्रैगन) सूंघ गया है. 2013 से पहले दो वर्षों में 40 और 22 फीसदी की रफ्तार से बढऩे वाला निर्यात बाद के पांच वर्षों में नकारात्मक से लेकर पांच फीसदी ग्रोथ के बीच झूलता रहा. 
पिछले दो वर्षों में दुनिया की आर्थिक और व्यापार वृद्धि दर तेज रही है. 

लगभग एक दशक बाद विश्व व्यापार तीन फीसदी की औसत विकास दर को पार कर (2016 में 2.4 फीसदी) 2017 में 4.7 फीसदी पर पहुंच गया लेकिन भारत विश्व व्यापार में तेजी का कोई लाभ नहीं ले सका. निर्यात की निरंतर गिरावट ने इस घाटे की आग में पेट्रोल डाल दिया है.

तीसरी वजहः चालू खाते का घाटाबुनियादी तौर पर देश में निवेश योग्य संसाधनों की कमी यानी विदेशी संसाधनों पर निर्भरता बढऩे का पैमाना भी है. भारत में इस समय जीडीपी के अनुपात में जमा बचत का अंतर 4.2 फीसदी के स्तर पर है जो 2013 के बाद सबसे ऊंचा है. रिजर्व बैंक के मुताबिक2018 में भारत में आम लोगों की बचत के अनुपात में उनकी वित्तीय देनदारियों में बढ़ोतरी 2012 के बाद रिकॉर्ड ऊंचाई पर है. सरकारों की बचत शून्य है और घाटे नया रिकॉर्ड बना रहे हैं.

रुपया अब दुष्चक्र में फंसा दीखता है. अमेरिका में मंदी खत्म होने के ऐलान के साथ डॉलर की मजबूती बढ़ती जानी है. कच्चा तेल 100 डॉलर के ऊपर निकलने के लिए बेताब है. रुपए को थामने के लिए सरकार ने आयात को महंगा कर महंगाई की आग में एक तरह से बारूद डाल दी. अब ब्याज दरें बढ़ेंगी और निवेशक बिदकेंगे.



कमजोर रुपया, महंगा तेल, महंगाई और घाटे... भारतीय अर्थव्यवस्था की सभी बुनियादों में अचानक दरारें उभर आई हैं. प्रचार के अलावा, इन क्षेत्रों में पिछले चार साल में कोई बड़े ढांचागत सुधार नहीं हुए. चुनाव तो आते-जाते रहेंगे, लेकिन अगली छमाही देश की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद संवेदनशील होने वाली है.

Monday, April 18, 2011

डॉलर-राज से बगावत

मौद्रिक बाजार के बादशाह के खिलाफ बगावत हो गई है। दुनिया की नई आर्थिक ताकतों (ब्रिक्सं) ने मिलकर अमेरिकी डॉलर के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद कर दिया है और यूरो सेना को सदमें में डाल दिया है। विकसित दुनिया को इसकी उम्मीद नहीं थी ब्राजील,रुस,भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका यह अनोखा गुट अपने जन्म के दो साल ( 2009 में येकतरिनबर्ग से शुरुआत) के भीतर अपनी मुद्राओं में आपसी कारोबार का अद्भुत पैंतरा चल देगा। मतलब यह कि दुनिया के उभरते बाजारों से अमेरिकी डॉलर अब लगभग बेदखल हो जाएगा। 4.6 ट्रिलियन डॉलर के साझा उत्पादन वाले इन नए सूरमाओं ने यह मुनादी कर दी है कि उभरती अर्थव्यवस्थायें अमेरिकी डॉलर की पालकी ढोने को तैयार नहीं है। ब्रिक्स ने दरअसल दुनिया को एक नई रिजर्व करेंसी देने की बहस को जड़, जमीन व आसमान दे दिया है।
डगमग डालर
विश्व के सरकारी विदेशी मुद्रा भंडारों में 61 फीसदी अमेरिकी डॉलर हैं जबकि 85 फीसदी विदेशी विनिमय सौदे, 45 फीसदी अंतरराष्ट्रीय निवेश और लगभग 50 फीसदी निर्यात डॉलर में होता है। यानी डॉलर बेशक दुनिया रिजर्व करेंसी व मौद्रिक प्रणाली का आधार है। डॉलर को यह ताज किस्मत से मिला था। दूसरे विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन की मुद्रा धराशायी थी और दुनिया का 50 फीसदी उत्पादन अमेरिका के हाथ में था, इसलिए डॉलर कारोबार की प्रमुख मुद्रा बन गया और क्रमश: अपने वित्तीय बाजारों की गहराई और मजबूत वैश्विक मुद्राओं की कमी ने इसे दुनिया की रिजर्व करेंसी बना दिया। विकसित होती दुनिया को ऐसी मुद्रा चाहिए थी जो

Monday, November 15, 2010

संकटों के नए संस्करण

अर्थार्थ
दुनिया की आर्थिक फैक्ट्रियों से संकटों के नए संस्करण फिर निकलने लगे हैं। ग्रीस के साथ ही यूरोप की कष्ट कथा का समापन नहीं हुआ था, अब आयरलैंड दीवालिया होने को बेताब है और इधर मदद करने वाले यूरोपीय तंत्र का धैर्य चुक रहा है। बैंकिंग संकट से दुनिया को निकालने के लिए हाथ मिलाने वाले विश्व के 20 दिग्गज संरक्षणवाद को लेकर एक दूसरे पर गुर्राने लगे हैं यानी कि बीस बड़ों की (जी-20) बैठक असफल होने के बाद करेंसी वार और पूंजी की आवाजाही पर पाबंदियों का नगाड़ा बज उठा है। सिर्फ यही नहीं, मंदी में दुनिया की भारी गाड़ी खींच रहे भारत, चीन, ब्राजील आदि का दम भी फूल रहा है। यहां वृद्धि की रफ्तार थमने लगी है और महंगाई के कांटे पैने हो रहे हैं। दुनिया के लिए यह समस्याओं की नई खेप है और चुनौतियों का यह नया दौर पिछले बुरे दिनों से ज्यादा जटिल, जिद्दी और बहुआयामी दिख रहा है। समाधानों का घोर टोटा तो पहले से ही है, तभी तो पिछले दो साल की मुश्किलों का कचरा आज भी दुनिया के आंगन में जमा है।

ट्रेजडी पार्ट टू
यूरोप के पिग्स (पुर्तगाल, आयरलैंड, ग्रीस, स्पेन) में दूसरा यानी आयरलैंड ढहने के करीब है। 1990 के दशक की तेज विकास दर वाला सेल्टिक टाइगर बूढ़ा होकर बैठ गया है और यूरोपीय समुदाय से लेकर आईएमएफ तक सब जगह उद्धार की गुहार लगा रहा है। डबलिन, दुबई जैसे रास्ते से गुजरते हुए यहां तक पहुंचा है। जमीन जायदाद के धंधे को कर्ज देकर सबसे बड़े आयरिश बैंक एंग्लो आयरिश और एलाइड आयरिश तबाह हो गए, जिसे बजट से 50 बिलियन यूरो की मदद देकर बचाया जा रहा है। आयरलैंड का घाटा जीडीपी का 32 फीसदी हो रहा है, सरकार के पास पैसा नहीं है और बाजार में साख रद्दी हो गई है। इसलिए बांडों को बेचने का इरादा छोड़ दिया गया है। आयरलैंड के लिए बैंकों को खड़ा करने की लागत 80 बिलियन यूरो तक जा सकती है। करदाताओं को निचोड़कर (भारी टैक्स और खर्च कटौती वाला बजट) यह लागत नहीं निकाली जा सकती। इसलिए ग्रीस की तर्ज पर यूरोपीय समुदाय की सहायता संस्था (यूरोपियन फाइनेंशियल स्टेबिलिटी फैसिलिटी) या आईएमएफ से मदद मिलने की उम्मीद है। लेकिन यह मदद उसे दीवालिया देशों की कतार में पहुंचा देगी। यूरोपीय समुदाय की दिक्कत यह है कि

Monday, November 8, 2010

असमंजस की मुद्रा

अर्थार्थ
साख बचे तो (आर्थिक) सेहत जाए? ताज मिले तो ताकत जाए? एक रहे तो भी कमजोर और बिखर गए तो संकट घोर?? बिल्कुल ठीक समझे आप, हम पहेलियां ही बुझा रहे हैं, जो दुनिया की तीन सबसे बड़ी मुद्राओं अर्थात अमेरिकी डॉलर, चीन का युआन और यूरो (क्रमश:) से जुड़ी हैं। दरअसल करेंसी यानी मुद्राओं की पूरी दुनिया ही पेचीदा उलटबांसियों से मुठभेड़ कर रही है। व्यापार के मैदान में अपनी मुद्रा को कमजोर करने की जंग यानी करेंसी वार का बिगुल बजते ही एक लंबी ऊहापोह बाजार को घेर को बैठ गई है। कोई नहीं जानता कि दुनिया की रिजर्व करेंसी का ताज अमेरिकी डॉलर के पास कब तक रहेगा? युआन को कमजोर रखने की चीनी नीति पर कमजोर डॉलर कितना भारी पड़ेगा? क्या माओ के उत्तराधिकारियों की नई पीढ़ी युआन को दुनिया की रिजर्व करेंसी बनाने का दांव चलेगी? यूरो का जोखिम कितना लंबा खिंचेगा। क्या दुनिया में अब कई रिजर्व करेंसी होंगी? दुनिया के कुछ हिस्से आठवें दशक के लैटिन अमेरिका की तरह दर्जनों विनिमय दरों का अजायबघर बन जाएंगे? ... सवालों की झड़ी लगी है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार असमंजस में नाखून चबा रहा है।
दुविधा का नाम डॉलर
विश्व के करीब 60 फीसदी विदेशी मुद्रा भंडारों में भरा ताकतवर अमेरिकी डॉलर ऊहापोह की सबसे बड़ी गठरी है। अमेरिकी नीतियों ने डॉलर को हमेशा ताकत की दवा दी ताकि अमेरिकी उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति महंगाई से महफूज रहे। मजबूत डॉलर, सस्ते आयात व नियंत्रित मुद्रास्फीति अमेरिका के मौद्रिक प्रबंधन की बुनियाद है। सस्ते उत्पादन और अवमूल्यित मुद्रा के महारथी चीन ने इसी नीति का फायदा लेकर अमेरिकी बाजार को अपने उत्पादों से पाटकर अमेरिका को जबर्दस्त व्यापार घाटे का तोहफा दिया है। सस्ते आयात को रोकने के लिए विश्व व्यापार में डॉलर को प्रतिस्पर्धात्मक रखना अमेरिकी नीति का दूसरा पहलू है। अलबत्ता 1980-90 में जापान ने इसे सर के बल खड़ा किया था और अब चीन इसे दोहरा रहा है। इस अतीत को पीठ पर लादे विश्व की यह सबसे मजबूत रिजर्व करेंसी अब तक की सबसे जटिल चुनौतियों से मुकाबिल है। जीडीपी के अनुपात में 62 फीसदी विदेशी कर्ज (अमेरिकी बांडों में विदेशी निवेश) अमेरिका के भविष्य पर