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Monday, April 11, 2016

एक लाख करोड़ का सवाल


सब्सिडी गरीबी की नहीं बल्कि अमीरी की राजनीति का शिकार है. सब्सिडी पर नए तथ्य सबूत हैं कि निम्न तो छोड़िए, मध्यम वर्ग भी अब सब्सिडी के बड़े हिस्से के दायरे में नहीं है. 

गर आप यह मानते हैं कि सब्सिडी की पूरी राजनीति केवल निम्न व मध्यम वर्ग के लिए है तो अगली पंक्तियां ध्यान से पढ़िए. भारत में हर साल एक लाख करोड़ रु. की सब्सिडी अमीरों की जेब में जाती है और वह भी केवल सात बड़ी सेवाओं पर. सभी तरह की सेवाओं पर आंकड़ा और बड़ा हो सकता है. भारत में छोटी बचतों पर कर रियायतों का फायदा उठाने वाले 62 फीसदी लोग चार लाख रुपए से ज्यादा की सालाना आय वाले हैं यानी छोटी आय वाले हरगिज नहीं.
सब्सिडी की बहस में अब सिर्फ गरीब-गुरबों और मझोले तबके को कोसने से काम नहीं चलने वाला. इस पेचीदगी की समझने के लिए रियायतों के उस दालान में उतरना होगा जहां अमीरी का राज है.  2015-16 की आर्थिक समीक्षा ने सब्सिडीखोरी के इस तपकते फोड़े को छूने की कोशिश की है. इससे अमीरों को जा रही सब्सिडी की एक छोटी-सी तस्वीर हमारे सामने आई, जिसमें साफ नजर आता है कि छोटी बचत स्कीमें, सोना, बिजली, केरोसिन, रेलवे किराया और विमान ईंधन जैसी सेवाएं जिन पर सरकार सब्सिडी देती है, उनका फायदा समाज के खाए-अघाए लोग उठाते हैं. यहां गरीबों से हमारा मतलब 30 फीसदी लोगों से है जो आबादी में खपत और आमदनी के हिसाब से सबसे नीचे हैं. शेष 70 फीसदी लोगों को बेहतर माना जा सकता है. 
दुनिया की किसी सभ्यता में सोना (गोल्ड ) गरीबी से कोई रिश्ता नहीं रखता. सोना ऐसी वस्तु हरगिज नहीं है जिसकी खरीद के लिए टैक्स में रियायत दी जाए बल्कि हकीकत में तो सोने पर ऊंचे व भरपूर टैक्स की दरकार होती है. लेकिन भारत में सोने पर टैक्स का ढांचा हमारी पूरी टैक्स समझ पर अट्टहास करता है. हम दुनिया के उन कुछ चुनिंदा देशों में होंगे जहां सोने पर दो फीसदी से कम टैक्स लगता है. केंद्र व राज्य दोनों मिलकर सोने पर महज 1 से 1.6 फीसदी टैक्स लगाते हैं जबकि इसके बदले खाने-पीने की सामान्य चीजों से लेकर पेट्रोल-डीजल पर लोग 12.5 फीसदी से 25 फीसदी तक टैक्स चुकाते हैं. सोने पर अगर टैक्स की आदर्श दर 25 फीसदी मान ली जाए तो करीब पूरा देश जरूरी चीजों पर भारी टैक्स चुकाकर और अमीरी तथा समृद्धि के इस प्रतीक पर करीब 23 फीसदी टैक्स सब्सिडी देता है जिसका 98 फीसदी फायदा समृद्ध तबकों को जाता है. समीक्षा मानती है कि सोने पर टैक्स सब्सिडी 4,000 करोड़ रु. से ज्यादा है.
समृद्ध तबके के फायदे के मामले में एलपीजी सिलेंडर सोने से कम नहीं है. एक सिलेंडर बाजार मूल्य की तुलना में 36 फीसदी सस्ता मिलता है. भारत में 91 फीसदी एलपीजी कनेक्शन मझोले व उच्च वर्ग के पास हैं इसलिए एलपीजी पर अमीरों की सब्सिडीखोरी 40,000 करोड़ रु. की है.
इसी तरह रेलवे में अगर सामान्य व ऊंची श्रेणी के दर्जों की यात्रा पर लागत व सब्सिडी का हिसाब किया जाए तो किराए में मिल रही रियायत का करीब 34 फीसदी फायदा अमीरों को जाता है जो 3,671 करोड़ रु. है. बिजली दरों पर दी जा रही सब्सिडी का करीब 32 फीसदी (दिल्ली व तमिलनाडु के सैंपल) फायदा ऊपरी तबकों को जाता है. बिजली दरों पर अमीरों को मिल रही सब्सिडी 37,170 करोड़ रु. तक हो सकती है.
ईंधनों पर सब्सिडी की उलटबांसी में सबसे दिलचस्प मामला है विमानन ईंधन (एविएशन टर्बाइन फ्यूल-एटीएफ) का. भारत में एटीएफ पर औसतन 20 फीसदी टैक्स है जबकि पेट्रोल और डीजल पर अधिकतम 55 और 61 फीसदी. लिखना जरूरी नहीं है कि एटीएफ का इस्तेमाल किस वर्ग के परिवहन के लिए होता है. एटीएफ पर करीब 762 करोड़ रु. सब्सिडी समृद्ध तबके को जाती है. सरकार के अपने सर्वेक्षण मानते हैं कि सस्ता और सब्सिडीवाला 50 फीसदी केरोसिन अमीर तबके को जाता है और साथ में करीब 5,500 करोड़ रु. की सब्सिडी ले जाता है.
आर्थिक समीक्षा की मानी जाए तो इस साल के बजट में प्रॉविडेंट फंड की निकासी पर टैक्स लगाने को लेकर सरकार सही थी लेकिन अगर कोई समझता है कि इस फैसले पर यू-टर्न मध्यम वर्ग की जरूरत को ध्यान में रखकर हुआ तो वह गफलत में है. दरअसल, 12,000 करोड़ रु. की यह सब्सिडी भी करदाताओं में ऊंचे आय वर्गों के फायदे में दर्ज होती है. भारत में छोटी बचतों पर टैक्स छूट विवादित रही है क्योंकि इसके फायदे उठाने वालों की पैमाइश नहीं हो पाती. लेकिन ताजा आंकड़े आयकर की धारा 80 सी (बचत पर छूट) से फायदों की पड़ताल पर नई रोशनी डालते हैं. भारत में 30 फीसदी टैक्स के दायरे में आने वाले लोगों की औसत आय 24.7 लाख रु. सालाना है. कुल करदाताओं में इनका हिस्सा 1.1 फीसदी है. करदाताओं की यह जमात कमाई के आधार पर देश की आबादी में केवल 0.5 फीसदी बैठती है. बीस फीसदी के टैक्स की सीमा में आने वाले कुल करदाता, आबादी के महज 1.6 फीसदी हैं. पीपीएफ सहित छोटी बचतों पर ज्यादातर टैक्स छूट का लाभ इन्हीं दो वर्गों को मिलता है और उसमें भी सबसे ज्यादा सुपर रिच को.
सब्सिडीखोरी की यह सूची अंतिम नहीं है. एक लाख करोड़ रु. की इस सूची में सिर्फ छह जिंस या सेवाएं शामिल हैं और लघु बचतों के एक छोटे वर्ग को गिना गया है जो सब्सिडी, कर रियायतों, और किस्म-किस्म की छूट की विशाल दुनिया का एक सैंपल मात्र है. इसमें राज्यों में दी जाने वाली अलग-अलग तरह की रियायतें शामिल नहीं हैं, जिनमें पेयजल, सड़क परिवहन, संपत्ति कर, हाउस टैक्स और विभिन्न स्थानीय कर हैं. इनमें तमाम कर लागत से कम दर पर इसलिए लगाए जाते हैं ताकि उनका लाभ गरीबों और मझोले तबके को मिल सके.
समझना मुश्किल नहीं है कि भारत में सब्सिडी को संतुलित और तर्कसंगत बनाने की बहसें राजनैतिक जड़ क्यों नहीं पकड़तीं? दरअसल, सब्सिडी गरीबी की नहीं बल्कि अमीरी की राजनीति का शिकार है. सब्सिडी पर नए तथ्य सबूत हैं कि निम्न तो छोड़िए, मध्यम वर्ग भी अब सब्सिडी के बड़े हिस्से के दायरे में नहीं है. इसकी मलाई तो सिर्फ शहरी उच्च व उच्च मध्यम वर्ग काट रहा है जबकि गरीब व मझोले बेसबब ही सब्सिडी की तोहमत और लानत ढो रहे हैं.