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Monday, January 13, 2014

निजीकरण का ऑडिट

निजी कंपनियों का सीएजी ऑडिट,  निजीकरण से उपभोक्‍ताओं के लाभ की थ्‍योरी को सवालों में घेरने वाला है, जो पिछले एक दशक में निजीकरण के फैसलों का आधार रही है।

भारत के आर्थिक सुधार पुरुष बीते हफ्ते जब इतिहास से दया के लिए चिरौरी कर रहे थे तब तारीख डा. मनमोहन सिंह को केवल एक असफल प्रधानमंत्री के तौर पर ही दर्ज नहीं कर रहा था तारीख यह भी लिख रही थी कि भारत की दूसरी आजादी उसी व्‍यकित की अगुआई में दागी हो गई जिसे खुद  उसने ही गढ़ा था। अनोखा संयोग है कि मनमोहन सिंह का रिटायरमेंट सफर और देश के उदारीकरण दूसरा ऑडिट एक साथ शुरु हो रहे हैं। देश का संवैधानिक ऑडीटर निजी कंपनियों के खातों को खंगालेगा और जरुरी सेवाओं की कीमतें तय करने के फार्मूले परखेगा। इस पड़ताल में घोटालों का अगला संस्‍करण निकल सकता है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की पहली जांच में देश को प्राकृतिक संसाधनों की बंदरबांट व नेता कंपनी गठजोड़ का पता चला था जबकि दूसरा ऑडिट , निजीकरण से उपभोक्‍ताओं के लाभ की थ्‍योरी को सवालों में घेरने वाला है, जो पिछले एक दशक में निजीकरण के फैसलों का आधार रही है। भारत के सुधार पुरोधा का यह परम दुर्भाग्‍य है कि उनके जाते जाते भारत के खुले बाजार की साख कुछ और गिर चुकी होगी।

Monday, January 6, 2014

भ्रष्‍टाचार वाली महंगाई

भारत की कितनी मूल्‍य वृद्धि ऐसी है जो केवल भ्रष्‍टाचार की गोद में पल रही है ?

भारत में कितने उत्पाद इसलिए महंगे हैं कि क्‍यों कि उनकी कीमत में कट- कमीशन का खर्च शामिल होता है ? बिजली को महंगा करने में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का भ्रष्‍टाचार कितना जिम्‍मेदार है ? कितने स्‍कूल सिर्फ इसलिए महंगे हैं क्‍यों कि उन्‍हें खोलने चलाने की एक अवैध लागत है ? कितनी महंगाई सरकारी स्‍कीमों भ्रष्‍ट तंत्र पर खर्च के कारण बढी है जिसके लिए सरकार कर्ज लेती है और रिजर्व बैंक से करेंसी छापता  है।.... पता नहीं भारत की कितनी मूल्‍य वृद्धि ऐसी है जो केवल भ्रष्‍टाचार की गोद में पल रही है ? ताजा आर्थिक-राजनीतिक बहसों से यह सवाल इसलिए नदारद हैं क्‍यों कि भ्रष्‍टाचार व महंगाई का सीधा रिश्‍ता स्‍थापित होते ही राजनीति के हमाम में हड़बोंग और तेज हो जाएगी। अलबत्‍ता सियासी दलों की ताल ठोंक रैलियों के बीच जनता ने भ्रष्‍टाचार व महंगाई के रिश्‍ते को जोड़ना शुरु कर दिया है।
 महंगाई एक मौद्रिक समस्या है, जो मांग आपूर्ति के असंतुलन से उपजती है जबकि भ्रष्‍टाचार निजी फायदे के लिए सरकारी ताकत का दुरुपयोग है। दोनों के बीच सीधे रिश्‍ते का रसायन जटिल है लेकिन अर्थविद इस समझने पर, काम कर रहे हैं। इस रिश्‍ते को परखने वाले कुछ ग्‍लोबल पैमानों की रोशनी में भारत की जिद्दी महंगाई की जड़