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Monday, November 24, 2014

मोदी के भारतवंशी


भारतवंशियों पर मोदी के प्रभाव को समझने के लिए शेयर बाजार को देखना जरुरी है. यहां इस असर की ठोस पैमाइश हो सकती है. इन अनिवासी भारतीय पेश्‍ोवरों की अगली तरक्की, अब प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भारत की सफलता से जुड़ी है.
मोदी सरकार बनाने जा रहे हैं इसमें रत्ती भर शक नहीं है. आप यह बताइए कि आर्थिक सुधारों पर स्वदेशी के एजेंडे का कितना दबाव रहेगा?” यह सवाल भारतीय मूल के उस युवा फंड मैनेजर का था जो इस साल मार्च में मुझे हांगकांग में मिला था, जब नरेंद्र मोदी का चुनाव अभियान में देश को मथ रहा था. वन एक्सचेंज स्क्वायर की गगनचुंबी इमारत के छोटे-से दफ्तर से वह, ऑस्ट्रेलिया और जापान के निवेशकों की भारी पूंजी भारतीय शेयर बाजार में लगाता है. हांगकांग की कुनमुनी ठंड के बीच इस 38 वर्षीय फंड मैनेजर की आंखों में न तो भावुक भारतीयता थी और न ही बातों में सांस्कृतिक चिंता या जड़ों की तलाश, जिसका जिक्र विदेश में बसे भारतवंशियों को लेकर होता रहा है. वह विदेश में बसे भारतवंशियों की उस नई पेशेवर पीढ़ी का था जो भारत की सियासत और बाजार को बखूबी समझता है और एक खांटी कारोबारी की तरह भारत की ग्रोथ से अपने फायदों को जोड़ता है. भारतवंशियों की यह प्रोफेशनल और कामयाब जमात प्रधानमंत्री मोदी की ब्रांड एंबेसडर इसलिए बन गई है क्योंकि उनके कारोबारी परिवेश में उनकी तरक्की प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भारत की सफलता से जुड़ी है. यही वजह है कि भारत को लेकर उम्मीदों की अनोखी ग्लोबल जुगलबंदी न केवल न्यूयॉर्क मैडिसन स्क्वेयर गार्डन और सिडनी के आलफोंस एरिना पर दिखती है बल्कि इसी फील गुड के चलते, शेयर बाजार बुलंदी पर है. इस बुलंदी में उन पेशेवर भारतीय फंड मैनेजरों की बड़ी भूमिका है जिनमें से एक मुझे हांगकांग में मिला था.
भारत के वित्तीय बाजारों में विदेशी निवेश की एक गहरी पड़ताल उन मुट्ठी भर भारतीयों की ताकत बताती है जो मोदी की उम्मीदों के सहारे