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Friday, November 6, 2020

ध्यान किधर है?

 

भारतीय सीमा में किसी केघुसे होने या न होनेकी उधेड़बुन के बीच जब मंत्री-अफसर हथियारों की खरीद के लिए मॉस्को-दिल्ली एक कर रहे थे अथवा टिकटॉक पर पाबंदी के बाद स्वदेशी नारेबाज चीन की अर्थव्यवस्था के तहस-नहस होने की आकाशवाणी कर रहे थे या कि डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका को चीन के खतरे से डरा रहे थे, उस समय चीन क्या कर रहा था?

यह सवाल विभाजित, बीमार और मंदी के शिकार अमेरिका में नए राष्ट्रपति के सत्तारोहण के बाद होने वाली सभी व्याख्याओं पर हावी होने वाला है.

इतिहासकारों के आचार्य ब्रिटिश इतिहासज्ञ एरिक हॉब्सबॉम ने लिखा था कि हमारा भविष्य सबसे करीबी अतीत से सबसे ज्यादा प्रभावित होता है, बहुत पुराने इतिहास से नहीं.

कोविड की महामारी और चीन की महाशक्ति संपन्नता ताजा इतिहास की सबसे बड़ी घटनाएं हैं. बीजिंग दुनिया की नई धुरी है. अमेरिकी राष्ट्रपति को भी चीन के आईने में ही पढ़ा जाएगा. इसलिए जानना जरूरी है कि कोविड के बाद हमें कैसा चीन मिलने वाला है. 

मई में जब अमेरिका में कोविड से मौतों का आंकड़ा एक लाख से ऊपर निकल रहा था और भारत में लाखों मजदूर सड़कों पर भटक रहे थे, उस समय चीन सुन त्जु की यह सीख मान चुका था कि दुनिया की सबसे मजबूत तलवार भी नमकीन पानी में जंग पकड़ लेती है.

मई में चीन ने चोला बदल सुधारों की बुनियाद रखते हुए सालाना आर्थिक कार्ययोजना में जीडीपी को नापने का पैमाना बदल दिया. हालांकि मई-जून तक यह दिखने लगा था कि चीन सबसे तेजी से उबरने वाली अर्थव्यवस्था होगी लेकिन अब वह तरक्की की पैमाइश उत्पादन में बढ़ोतरी (मूल्य के आधार पर) से नहीं करेगा.

चीन में जीडीपी की नई नापजोख रोजगार में बढ़ोतरी से होगी. कार्ययोजना के 89 में 31 लक्ष्य रोजगार बढ़ाने या जीविका से संबंधित हैं, जिनमें अगले साल तक ग्रामीण गरीबी को शून्य पर लाने का लक्ष्य शामिल है.

चीन अब छह फीसद ग्रोथ नहीं बल्कि  जनता के लिए छह गारंटियां (रोजगार, बुनियादी जीविका, स्वस्थ प्रतिस्पर्धी बाजार, भोजन और ऊर्जा की आपूर्ति, उत्पादन आपूर्ति तंत्र की मजबूती और स्थानीय सरकारों को ज्यादा ताकत) सुनिश्चित करेगा.

चीन अपने नागरिकों को प्रॉपर्टी, निवास, निजता, अनुबंध, विवाह और तलाक व उत्तराधिकार के नए और स्पष्ट अधिकारों से लैस करने जा रहा है. 1950 से अब तक आठ असफल कोशिशों के बाद इसी जून में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने कानूनी नागरिक अधिकारों की समग्र संहिता को मंजूरी दे दी. यह क्रांतिकारी बदलाव अगले साल 1 जनवरी से लागू होगा.

चीन की विस्मित करने वाली ग्रोथ का रहस्य शंघाई या गुआंग्जू की चमकती इमारतों में नहीं बल्कि किसानों को खुद की खेती करने व उपज बेचने के अधिकार (ऐग्री कम्यून की समाप्ति) और निजी उद्यम बनाने की छूट में छिपा था. आबादी की ताकत के शानदार इस्तेमाल से वह निर्यात का सम्राट और दुनिया की फैक्ट्री बन गया. जीविका, रोजगार और कमाई पर केंद्रित सुधारों का नया दौर घरेलू खपत और मांग बढ़ाकर अर्थव्यवस्था की ताकत में इजाफा करेगा.

चीन की वैश्विक महत्वाकांक्षाएं गोपनीय नहीं हैं. नए सुधारों की पृष्ठभूमि में विशाल विदेशी मुद्रा भंडार, दुनिया में सबसे बड़ी उत्पादन क्षमताएं, विशाल कंपनियां, आधुनिक तकनीक और जबरदस्त रणनीतिक पेशबंदी मौजूद है. लेकिन उसे पता है कि बेरोजगार और गरीब आबादी सबसे बड़ी कमजोरी है. दुनिया पर राज करने के लिए अपने करोड़ों लोगों की जिंदगी बेहतर करना पहली शर्त है, वरना तकनीक से लैस आबादी का गुस्सा सारा तामझाम ध्वस्त कर देगा.

कोविड के बाद दुनिया को जो अमेरिका मिलेगा वह पहले से कितना फर्क होगा यह कहना मुश्किल है लेकिन जो चीन मिलने वाला है वह पहले से बिल्कुल अलग हो सकता है. अपनी पहली छलांग में चीन ने पूंजीवाद का विटामिन खाया था. अब दूसरी उड़ान के लिए उसे लोकतंत्र के तौर-तरीकों से परहेज नहीं है. नया उदार चीन मंदी के बोझ से घिसटती दुनिया और विभाजित अमेरिका के लिए रोमांचक चुनौती बनने वाला है.

चीन के इस बदलाव में भारत के लिए क्या नसीहत है?
सुन त्जु कहते हैं कि दुश्मन को जानने के लिए पहले अपना दुश्मन बनना पड़ता है यानी अपनी कमजोरियां स्वीकार करनी होती हैं. निर्मम ग्रोथ सब कुछ मानने वाला चीन भी अगर तरक्की की बुनियाद बदल रहा है तो फिर भयानक संकट के बावजूद हमारी सरकार नीतियों, लफ्फाजियों, नारों, प्रचारों का पुराना दही क्यों मथ रही है, जिसमें मक्खन तो दूर महक भी नहीं बची है.
 

इतिहास बड़ी घटनाओं से नहीं बल्किउन पर मानव जाति की प्रतिक्रियाओं से बनता है. महामारी और महायुद्ध बदलाव के सबसे बड़े वाहक रहे हैं. लेकिन बड़े परिवर्तन वहीं हो सकते हैं जहां नेता अगली पीढ़ी की फिक्र करते हैं, अगले चुनाव की नहीं.

सनद रहे कि अब हमारे पास मौके गंवाने का मौका भी नहीं बचा है.

Tuesday, January 27, 2015

जिनपिंग का स्वच्छता मिशन

जिनपिंग का शुद्धिकरण अभियानग्लोबल कूटनीति को गहरे रोमांच से भर रहा है.
शी जिनपिंग को क्या हो गया है? ग्रोथ को किनारे लगाकर भ्रष्टाचार के पीछे क्यों पड़ गए हैं? यह झुंझलाहट एक बड़े विदेशी निवेशक की थी जो हाल में बीजिंग से लौटा था और चीन के नए आर्थिक सुधारों पर बुरी तरह पसोपेश में था. कोई सरकार अपनी ही पार्टी के 1.82 लाख पदाधिकारियों पर भ्रष्टाचार को लेकर कार्रवाई कर चुकी हो, यह किसी भी देश के लिए सामान्य बात नहीं है. उस पर भी अगर चीन की सरकार अपनी कद्दावर कम्युनिस्ट पार्टी के बड़े नेताओं व सेना अधिकारियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ स्वच्छता अभियान चला रही हो तो अचरज कई गुना बढ़ जाता है, क्योंकि भ्रष्टाचार चीन की विशाल आर्थिक मशीन का तेल-पानी है.
निवेशकों के लिए यह कतई अस्वाभाविक है कि चीन बाजार में एकाधिकार रोकने व पारदर्शिता बढ़ाने के लिए बड़े जतन से हासिल की गई ग्रोथ को न केवल 24 साल के सबसे कम स्तर पर ला रहा है बल्कि इसे सामान्य (न्यू नॉर्मल) भी मान रहा है. यकीनन, भारतीय प्रधानमंत्री की कूटनीतिक करवट दूरगामी है. अमेरिका व भारत के रिश्तों की गर्मजोशी नए फलसफे लिख रही है, अलबत्ता ग्रोथ की तरफ लौटता अमेरिका दुनिया में उतनी उत्सुकता नहीं जगा रहा है जितना कौतूहल, पारदर्शिता के लिए ग्रोथ को रोकते चीन को लेकर है. चीन की महाशक्ति वाली महत्वाकांक्षाएं रहस्य नहीं हैं, हालांकि सुपर पावर बनने के लिए जिनपिंग का भीतरी शुद्धिकरण अभियान, ग्लोबल कूटनीति को गहरे रोमांच से भर रहा है.
चीन में भ्रष्टाचार मिथकीय है. बीते मार्च में जब चाइना पीपल्स आर्मी के कद्दावर जनरल ग्यु जुनशान को भ्रष्टाचार में धरा गया तो चीन को निओहुलु होशेन (1799) याद आ गया. सम्राट क्विएनलांग का यह आला अफसर इतना भ्रष्ट था कि उसके यहां छापा पड़ा तो चांदी के 80 करोड़ सिक्के मिले जो सरकार के दस साल के राजस्व के बराबर थे, 53 साल की उम्र में उसे मौत की सजा हुई. चीन की सरकारी न्यूज एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक, जनरल ग्यु जुनशान के यहां 9.8 करोड़ डॉलर की संपत्ति मिली और अगर पश्चिमी मीडिया की खबरें ठीक हैं तो जुनशान के घर से बरामद नकदी, शराब, सोने की नौका और माओ की स्वर्ण मूर्ति को ढोने के लिए चार ट्रक लगाए गए थे.
मुहावरा प्रिय भारतीयों की तरह, 2013 में शी जिनपिंग ने कहा था कि भ्रष्टाचार विरोधी अभियान सिर्फ मक्खियों (छोटे कारकुनों) के खिलाफ नहीं चलेगा बल्कि यह शेरों (बड़े नेताओं-अफसरों) को भी पकड़ेगा. जाहिर है, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता, सरकारी मंत्री, सेना और सार्वजनिक कंपनियों के प्रमुख विशाल भ्रष्ट तंत्र के संरक्षक जो हैं. बड़े रिश्वतखोरों को पकड़ता और नेताओं को सजा देता, सेंट्रल कमिशन फॉर डिसिप्लनरी ऐक्शन (सीसीडीआइ) पूरे चीन में खौफ का नया नाम है. इसने चीनी राजनीति के तीन बड़े गुटों—'पेट्रोलियम गैंग’, 'सिक्योरिटी गैंग और 'शांक्सी गैंग’ (बड़े राजनैतिक नेताओं का गुट) पर हाथ डाला है, जो बकौल शिन्हुआ 'टाइगर्स कहे जाते हैं. दिलचस्प है कि जिनपिंग के करीबी वैंग क्विशान के नेतृत्व में सीसीडीआइ का अभियान गोपनीय नहीं है बल्कि खौफ पैदा करने के लिए यह अपने ऐक्शन का खूब प्रचार कर रहा है और भ्रष्टाचार को लेकर डरावनी चेतावनियां जारी कर रहा है. ग्लोबल निवेशकों की उलझन यह है कि जिनपिंग, निर्यात आधारित ग्रोथ मॉडल को जारी रखने को तैयार नहीं हैं. वे अर्थव्यवस्था से कालिख की सफाई को सुधारों के केंद्र में लाते हैं. पिछले नवंबर में जी20 शिखर बैठक के बाद बीजिंग लौटते ही जिनपिंग ने कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल इकोनॉमिक वर्क कॉन्फ्रेंस में नया आर्थिक सुधार कार्यक्रम तय किया था, जो कंपनियों का एकाधिकार खत्म करने, सही कीमतें तय करने, पूंजी व वित्तीय बाजारों के उदारीकरण, निजीकरण और सरकारी कामकाज में पारदर्शिता पर केंद्रित होगा.
मंदी से उबरने की जद्दोजहद में जुटी दुनिया के लिए चीन के ये शुद्धतावादी आग्रह मुश्किल बन रहे हैं. चीन दुनिया की सबसे बड़ी फैक्ट्री है जो ग्लोबल ग्रोथ को अपने कंधे पर लेकर चलती है और इस समय दुनिया में मांग व तेज विकास की वापसी का बड़ा दारोमदार चीन पर ही है. जबकि मूडीज के मुताबिक पारदर्शिता की इस मुहिम से शुरुआती तौर पर चीन में खपत, निवेश व बचत घटेगी. महंगे रेस्तरांओं की बिक्री गिर रही है, बैंकों में सरकारी कंपनियों का जमा कम हुआ है और अचल संपत्ति में निवेश घटा है. चीनी मीडिया में राष्ट्रपति की ऐसी टिप्पणियां कभी नहीं दिखीं कि वे 'भ्रष्टाचार की सेना’ से लडऩे को तैयार हैं और इसमें 'किसी व्यक्ति को जिंदगी-मौत अथवा यश-अपयश की फिक्र’ नहीं होनी चाहिए. लेकिन जिनपिंग की टिप्पणियों (भ्रष्टाचार पर उनके भाषणों का नया संग्रह इसी माह जारी) को देखकर यह समझा जा सकता है कि चीन के राष्ट्रपति इस तथ्य से पूरी तरह वाकिफ हैं कि भ्रष्टाचार महंगाई बढ़ाता है और अवसर सीमित करता है, इसलिए आर्थिक तरक्की का अगला दौर इसी स्वच्छता से निकलेगा और इसी राह पर चलकर चीन को महाशक्ति बनाया जा सकता है.
भ्रष्टाचार उन्मूलन अभियान, जिनपिंग की सबसे बड़ी ग्लोबल पहचान बन रहा है जैसे कि देंग श्याओ पेंग आर्थिक उदारीकरण से पहचाने गए थे. हू जिंताओ ने राष्ट्रपति के तौर पर अपने अंतिम भाषणों में चेताया था कि लोगों के गुस्से की सबसे बड़ी वजह सरकारी लूट है. जिनपिंग को पता है कि यह लूट रोककर न केवल ग्रोथ लाई जा सकती है बल्कि अकूत सियासी ताकत भी मिलेगी.
ग्लोबल कूटनीति और निवेश के संदर्भ में नरेंद्र मोदी का भारत और जिनपिंग का चीन कई मायनों में एक जैसी उम्मीदों व अंदेशों से लबरेज है. ओबामा ग्लोबल राजनीति से विदा होने वाले हैं, दुनिया की निगाहें अब मोदी और जिनपिंग पर हैं. आकाश छूती अपेक्षाओं के शिखर पर सवार मोदी, क्या पिछले नौ माह में ऐसा कुछ कर सके हैं, जो उन्हें बड़ा फर्क पैदा करने वाला नेता बना सके? दूरदर्शी नेता हमेशा युगांतरकारी लक्ष्य चुनते हैं. मोदी को अपने लक्ष्यों का चुनाव करने में अब देर नहीं करनी चाहिए.


Monday, March 11, 2013

वो और हम



 क्‍या हम दुनिया को यह बताना चाहते हैं कि एक उदार तानाशाही हमारे जैसे लोकतंत्र से ज्‍यादा बेहतर है?

म्‍मीद की रोशनी की तलाशती दुनिया ने महज एक सप्‍ताह के भीतर विश्‍व की दो उभरती ताकतों की दूरदर्शिता को नाप लिया। भारत व चीन अपने भविष्‍य को कैसे गढ़ेंगे और उनसे क्‍या उम्‍मीद रखी जानी चाहिए, इसका ब्‍लू प्रिंट सार्वजनिक हो गया है। भारत में बजट पेश होने तीन दिन बाद ही चीन की संसद में वहां की आर्थिक योजना पेश की गई। जो चीन के आर्थिक सुधारों के नए दौर का ऐलान थी। ग्‍लोबल बाजारों ने रिकार्ड तेजी के साथ एडि़यां बजाकर इसे सलाम भेजा। अमेरिकी बाजार व यूरोपीय बाजारों के लिए यह चार साल की सबसे बड़ी तेजी थी। दूसरी तरफ भारत के ठंडे व मेंटीनेंस बजट पर रेटिंग एजेंसियों ने  उबासी ली और उम्‍मीदों की दुकान फिलहाल बढ़ा दी
यथार्थ को समझना सबसे व्‍यावहारिक दूरदर्शिता है और ग्‍लोबल बाजार दोनों एशियाई दिग्‍गजों से इसी सूझ बूझ उम्‍मीद कर रहे थे। हू जिंताओं व वेन जियाबाओ ने ली शिनपिंग और ली केक्विंग को सत्‍ता सौंपते हुए जो आर्थिक योजना पेश की, वह चीन की ताजा चुनौतियों को स्‍वीकारते हुए समाधानों की सूझ सामने लाती है। जबकि इसके बरक्‍स भारत का डरा व बिखरा बजट केवल आंकड़ों की साज संभाल में लगा था। महंगाई, बड़ी आबादी, ग्रोथ, बराबरी, भूमि का अधिकार, खेती, नगरीकरण, ऊर्जा, अचल संपत्ति और व्‍यापक भ्रष्‍टाचार... चुनौतियों के मामले भारत व चीन स्‍वाभाविक