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Saturday, April 4, 2020

जिंदगी बनाम जीविका


जिन्हें लगता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद बेहद मजबूत हैकोरोना बंदी के बाद देश के हर प्रमुख शहर से पलायन को देखकरउन्हें खुद को चिकोटी काटनी चाहिएयह श्रमिक कोरोना से डर कर नहींरोजगार गंवाकर रोते हुए घरों को लौटे हैं.

जो यह मानते हैं कि लोग सरकारों में गहरा भरोसा रखते हैंउन्हें भी खुद को झिंझोड़ना चाहिएभारत के ताजा इतिहास का यह सबसे बड़ा पलायन ठीक उस दिन शुरू हुआजिस दिन लोग ताली-थाली पीट रहे थेऔर जब सरकार कोरोना राहत पैकेजों के बीच हजारों लोग अपने घरों की तरफ पैदल चल पडे़ थे.

महामारी रोकने की बंदी के पहले तीन दिन के भीतर ही भारतीय अर्थव्यवस्था की ‘मजबूत  बुनियाद दरक गई और सिर पर गठरियां रखेरोता-कलपता विराट अदृश्य भारतदुनिया के सामने  गया.
भारत की आर्थिक बुनियाद दरअसल है क्या और क्यों वह एक आपदा भी नहीं झेल सकी?

छठी आर्थि गणना (2016) बताती है कि

भारत में कुल 5.85 करोड़ प्रतिष्ठान हैं जिनमें करीब 78 फीसद गैर कृषि‍ गतिविधियों (प्रशासनप्रतिरक्षाघरेलू सहायक आदि शामिल नहींमें लगे हैंइनमें 58 फीसद सेवा क्षेत्र में हैं

करीब 60 फीसद प्रतिष्ठान या तो घर से चलते हैं या उनके पास कोई स्थायी कारोबारी ढांचा नहीं हैइनमें करीब 54 फीसद प्रतिष्ठान के पास कर्मचारी नहीं हैं यानी कि वे स्वरोजगार हैं

इस अदृश्य अर्थव्यवस्था में प्रति प्रतिष्ठान कर्मचारी संख्या केवल 2.18 है. 1998 से प्रतिष्ठान छोटे होते जा रहे हैं यानी हर कारोबार में कर्मचारियों की संख्या घट रही है और स्वरोजगार बढ़ रहे हैं

असंगठित क्षेत्र पर श्रम मंत्रालय की रिपोर्ट (2013-14) बताती है कि गैर कृषि‍ गतिविधियों में लगे 67 फीसद प्रतिष्ठानों में कर्मचारियों की संख्या छह से कम हैजबकि 82 फीसद के पास कोई रोजगार अनुबंध नहीं है
इस अर्थव्यवस्था को पिछले पांच साल में चौथी बड़ी चोट लगी हैनोटबंदी ने बिजनेस मॉडल तोड़ दिएजीएसटी ने घुटनों के बल कर दियाकर्ज और कानूनी पेच (रेराने भवन निर्माण (जीडीपी का 8 फीसदखत्म कर दिया और अब कोरोना बंदी के बाद इनके पास  पूंजी बची है  दोबारा खड़े होने की ताकत.

पिछले 40 वर्षों में भारत को जिस विराट आंतरिक प्रवास की अदृश्य ताकत ने गढ़ा है वह इन्हीं लाखों छोटे उद्योगों पर केंद्रित हैआर्थिक सर्वेक्षण (2017) के अनुसार, 2011 से 2016 के बीच करीब 90 लाख लोगों ने प्रति वर्ष आंतरिक प्रवास किया हैभारत में करीब 10 करोड़ आंतरिक प्रवासी शहरों में काम कर रहे हैंअगर ये 10,000 रुपए प्रति माह (न्यूनतम मजदूरीभी कमाते हैं तो भी यह कमाई करीब 170 अरब डॉलर हैअगर इसमें एक-तिहाई पैसा भी गांवों में जाता है तो यह धन हस्तांतरण जीडीपी का दो फीसद है.

यह अदृश्य बुनियादी अर्थव्यवस्था उद्योग मेलों या प्रधानमंत्री की बैठकों का हिस्सा नहीं होतीमंदी से निबटने की राहत भी सरकारों की दोस्त कंपनियां खा गईंउलटे नीति निर्माताओं में इन बुनियादी छोटों को लेकर वितृष्णा दिखती हैअसंगठित क्षेत्र को वे काले धन की खान मानते हैंसरकार इन्हें पीटकर बदलना चाहती हैयह पिटाई इन्हें खत्म कर रही है जिसका फायदा बड़ी कंपनियों को है.

कोरोना के बाद अर्थव्यवस्था की तामीर नए सिरे से करनी होगी.

भारतीय अर्थव्यवस्था 49 क्लस्टर (उद्योगनगरबाजारमें फैली है जो जीडीपी में 70 फीसद का योगदान करते हैंसियासी चंदे देने वालों की जगह यहां रोजगार देने वालों के लिए नीति बनानी होगी

छोटे उद्योगों के लिए उत्पाद आरक्षण की वापसी जरूरी हैवह खुदरा सामान तो बना सकते हैं जो हम आयात करते हैं

बैंकों को छोटे उद्योगों को पूंजी और कर्ज देने के नए उत्पाद विकसित करने होंगे

सरकारों के भव्य वादों के बावजूद वे लाखों लोग कौन थे जो अपने वर्षों पुराने रोजगार छोड़कर अचानक गांवों की ओर चल दिए?

ताजा अध्ययनों (सेंटर फॉर इनफॉर्मल सेक्टर ऐंड लेबर स्टडीजजेएनएयूके मुताबिकरोजगार प्राप्त करीब 46.5 करोड़ लोगों में से करीब 13.6 करोड़ लोगों के पास कोई रोजगार अनुबंध नहीं हैयानी कि इतने तो रोजगारों पर सीधा खतरा है. 

ये ही लोग कोरोना बंदी के अपने घरों को चल पड़े हैंउन्हें कोरोना से मरने का डर भी नहीं था क्योंकि जीवन से जीविका प्यारी होती हैयह पलायन दरअसल सरकारों और व्यवस्था से मोहभंग का सबसे संगठित प्रमाण हैलोग उस गरीबी में वापस लौट रहे हैं जहां से उनका निकलना इस सदी में भारत की सबसे बड़ी सफलता रही थी.

भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद पहले से कमजोर हैकोरोना की विदाई के बाद यह सपाट मैदान हो जाएगीसीमित साधनों वाले गांव इन प्रवासियों का पेट भी नहीं भर पाएंगेकोरोना के जाने के बाद अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण करना होगाअगर आंखें खुल चुकी हों तो यह नया निर्माण नीचे से शुरू होना चाहिए.