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Sunday, March 19, 2023

सदि‍यों में होता है जो


 

अर्थव्‍यवस्‍थाओं को हमेशा के लिए कौन बदल सकता है .. 

मंदी

महामारी

युद्ध

राजनीत‍ि

शायद नहीं यह तो वक्‍त चादर की सलवटें हैं ...

अर्थव्‍यवस्‍थायें तो बदलते हैं लोग

बहुत से लोग

जनसंख्‍या की ताकत

दुन‍िया तो दरअसल संतानों का अर्थशास्‍त्र है

यह अर्थशास्‍त्र जब करवट लेता है तो महाप्रतापी समय भी नतमस्‍तक हो जाता है क्‍यों कि यह बदलाव सद‍ियों आते हैं और सदियों तक असर करते हैं.

अब दुनिया ठीक एसे ही एक महासंक्रमण की दहलीज पर है.

इसे समझने के लिए हमें कुछ पीछे जाना होगा

तो आइये बैठ‍िये एक टाइम मशीन में  और शुरु कीजिये तीन सौ साल का सफर. चलते हैं 18 वीं सदी से 21 वीं  सदी की तरफ यानी अतीत से वर्तमान की ओर

इस  यात्रा में सबसे पहले आपको दिखेगा यूरोप का बदलता नक्‍शा.  तीस साल लंबे युद्ध के बाद  यानी थर्टी इयर्स ऑफ वार के यूरोप के देशों के बीच वेस्‍टफीलिया की संध‍ि. 300 साल के सफर में आपको चीन में दो साम्राज्‍यों मिंग और क्‍व‍िंग का पतन नजर आएगा. नेपोल‍ियन के युद्ध मिलेंगे,  फ्रांस की क्रांति मिलेगी, यूरोप की औद्योगिक क्रांति मिलेगी. भारत मे मुगलों का पराभव मिलेगा. भारत और अमेरिका से कारोबार के लिए ब्रिटेन, पुर्तगाली, स्‍पेन, डच के बीच होड़ मिलेगी. फिर दिखेगी अमेरिका और भारत की गुलामी और आजादी का संघर्ष.  इस सफर में मिलेगा लाखों की जाने लेने वाला स्‍पेन‍िश फ्लू , महामंदी मिलेगी, दो महायुद्ध मिलेंगे.  ‍‍

अलबत्‍ता सम्राटों युद्धों और तबाही के इतिहास से अपनी नजरें हटायें तो आपको पता चलेगा कि यह दौर लोगों के लिए यानी आबादी के लिए सबसे बुरा था. गुलामी बर्बरता खून खच्‍चर गरीबी बदहाली . अध‍िकांश लोगों के पास इसके अलावा और कुछ नहीं था. यह दौर था जब दुनिया में औसत आयु केवल 27 साल थी. प्रजनन दन (फर्ट‍िल‍िटी रेट)  काफी ऊंची थी  एक महिला करीब छह बच्‍चों को जन्‍म देती थी लेक‍िन इनमें अधिकांश जीव‍ित नहीं रहते थे. आबादी की वृद्ध‍ि दर बमुश्‍क‍िल आधा फीसदी थी. 17 वीं 18 वीं सद‍ियां और 19 वीं सदी का बड़ा हिस्‍सा ऊंची जन्‍म दर, बड़ी संख्‍या में युवा आबादी, बदतर जीवन स्‍तर और ऊंची मृत्‍यु दर के साथ गुजरा था

फिर आप को म‍िलेगी 19 वीं सदी की शुरुआत जहां जिंदगी थोड़ी सी बदलने लगी. यूरोप में मृत्‍यु दर घटने लगी थी, जन्‍म दर भी कम हुई, फिर यह पूरी दुन‍िया में हुआ  और एक जनसंख्‍या संक्रमण आकार लेने लगा.  बीसवीं सदी की शुरुआत तक दुनिया की आबादी एक अरब के पास पहुंचने लगी थी. आबादी बढ़ने की रफ्तार रफ्ता रफ्ता तेज हो रही थी.

बीसवीं सदी की शुरुआत के साथ सब कुछ बदल गया जीवन प्रत्‍याशा दर बढ़ी. जन्‍म दर घटी और 21 वीं सदी की शुरुआत तक दुनिया की आबादी 1800 की तुलना में छह गुना बढ़ गई. बच्‍चों की तुलना में बुजुर्गों का अनुपात तीन गुना बढ़ा. करीब सौ साल पहले महिलायें अपने युवा जीवन का 70 फीसदी हिस्‍सा बच्‍चों जन्‍म देने और पालने में गुजारती थीं वह 21 वीं सदी की शुरुआत तक घटकर 14 फीसदी रह गया.

यही वह दौर था जब संतानों अर्थशास्‍त्र ने अर्थव्‍यवस्‍थाओं की सीरत और सूरत बदल दी. अमेरिका में बेबी बूमर्स (1946 से 1964 के बीच जन्मे) ने अमेरिका को 30 साल की सबसे तेज विकास दर की नेमत बख्शी, जिसे 2000 में बिल क्लिं‍टन ने नई अर्थव्यवस्था कहा था। (इन बेबी बूमर्स के हाथ अमेरिका की 70 फीसदी एसी कमाई (खर्च योग्य आय) है जिस पर बाजार झूम उठते हैं है). अमेरिका को एक और बड़े जनसंख्या संक्रमण का लाभ मिला जो 2000 की पीढ़ी थी जिन्हें मिलेनियल्स कहा गया हालांकि यह मिलेन‍ियल्‍स ठीक उस वक्‍त अर्थव्‍यवस्‍था में आए जब 2008 की मंदी आ धमकी थी. इधर 1980 के बाद चीन और भारत जैसी अर्थव्यवस्थाओं ने अपनी जनसंख्या को खपत, उत्पादन और श्रम शक्ति‍ का बाजार बनाया जबकि यूरोप में बुढापा घ‍िरने लगा  

आबादी की चक्‍की

कहते हैं जनसंख्‍या की चक्‍की इतनी धीमी चलती है और इतना महीन पीसती है हम अक्‍सर भूल ही जाते है लोगों से अर्थव्‍यवस्‍था बनती है है अर्थव्‍यवस्‍था से लोग नहीं.  यह पहिया अपना सबसे बड़ा संक्रमण करने जा रहा है. दुनिया में जनसंख्‍या का संतुलन स्‍थायी तौर पर बदलने जा रहा है. यह संक्रमण तीन सौ  साल में सबसे बड़ा बदलाव शुरु हो चुका है पहली बार होगा. आने वाले में दशकों में दुनिया को चाहे जो राजनीति बर्दाश्‍त करनी पड़े, चाहे जो  सरकारें आए या जाएं , विज्ञान और तकनीक के नए श‍िखर कितने भी ऊंचे हों जनसंख्‍या का यह परिवर्तन  कामागारों की कमी , वेतन बढ़ने के दबाव, उत्‍पादन में कमी और जिद्दी महंगाई लेकर आएगा

चौंक गए न !

यह चारों बदलाव अर्थव्‍यवस्‍था के बारे में हमारी मौजूदा समझ को उलट पलट कर सकते हैं लेक‍िन आबादी और अर्थव्‍यवस्‍था को रिश्‍तों को करीब से पढ़ने वाले इस संक्रमण की शुरुआत का बिगुल बजा रहे हैं. महामारी की चीख पुकार के बीच दुनिया के विशेषज्ञ जनसंख्‍या की नई करवट को समझ रहे हैं चार्ल्‍स गुडहार्ट और मनोज प्रधान की ताजा किताब द ग्रेट डेमोग्राफ‍िक रिवर्सल – एजिंग सोसाईटीज, वैनिंग इनइक्‍व‍िलिटीज एंड एन इन्‍फेलशन रिवाइवल इस संक्रमण पर नई रोशनी डालती है

 काम होगा कामगार नहीं

भारत की तपती बेरोजगारी के बीच यह बात कुछ अटपटी सी लगेगी लेक‍िन दुनिया की आबादी की नई करवट समझने वाले इस अनोखी किल्‍लत की तैयारी कर रहे हैं.

1950 के बाद दुनिया तीन धीमे लेक‍िन बड़े बदलाव हुए हैं. प्रजनन दर यानी फर्टि‍ल‍िटी रेट बीते शताब्‍दी की तुलना मेंआधी करीब 2.7 फीसदी रह गई. जिंदगी लंबी हुई. 2000 तक 50 साल में दुनिया की आबादी दोगुनी हो गई और युवा आबादी का अनुपात मजबूती से बढ़ने लगा. इस बदलाव ने दुनिया में कार्यशील आयु वाली लोगों की संख्‍या में तेज बढ़ोत्‍तरी की. यह चार्ट इस अभूतपूर्व बदलाव की नजीर है

श्रमिकों का आपूर्त‍ि का स्‍वर्ण युग आया 1990 के बाद. तब तक बेबी बूमर्स यानी 1950 से 1964 के बीच जन्‍मे लोग बाजार में आ गए थे. 1991 से 2018 विकस‍ित अर्थव्‍यवस्‍थाओ में श्रमिकों की आूपर्ति दो गुनी से ज्‍यादा हो गई. काम तो मिला लेक‍िन वेतन बहुत नहीं बढ़े क्‍यों कि श्रमिक आपूर्ति ज्‍यादा थी. चीन की विकास कथा इसी दौर मे बनती है. भारत और एश‍िया की अर्थव्‍यवस्‍थाओं ने भी इस संक्रमण को पूरा लाभ लिया. अलबत्‍ता उत्‍पादन बढ़ा और दुनिया ने करीब 28 साल तक महंगाई नहीं देखी. जिसका लाभ जीवन स्‍तर बेहतर होने के तौर पर सामने आया.

बीते करीब 60 सालों में दुनिया का हर परिवार बीती सदी के तुलना में अमीर हुआ है. छोटे परिवार रखना कमाई की गारंटी थी और लंबे समय तक काम करने का मौका था इसलिए आय में बढ़ोत्‍तरी हुई हालांकि यह पूरी दुनिया में असमान थी. क्‍यों कि एक छोटी सी आबादी की आय ज्‍यादा तेजी से बढ़ी.

अब यह पूरा पर‍िदृश्‍य  बदलने वाला है.  एक नई दुनिया हमारे सामने होगी.

दुनिया के ज्‍यादातर देशों में कार्यशील आबादी कम होती जाएगी. अब उतने श्रमिक नहीं होंगे. जापान, कोरिया, जर्मनी, रुस, चीन, इटली, फ्रांस, चीन  में अब बुढ़ापा घिर रहा है. चीन ने 1990 से 2015 के करीब 29 करोड लोग कार्यशील आबादी में जोडे.  अब 2050 तक 22 करोड़ लोग श्रम बाजार से बाहर हो जाएंगे क्‍यों कि उनकी उम्र काम के लायक नहीं रहेगी.

इसका असर धीमी आर्थ‍िक विकास दर के तौर पर सामने आएगा. विशेषज्ञ मान रहे हैं कि उत्‍पादन घटेगा क्‍यों कि श्रमिकों की कमी भी होगी, खपत भी गिरेगी. बहुत तेज विकास दर के दिन अब गए. अगले करीब तीन दशकों में भारत चीन जैसे एश‍ियाई अर्थव्‍यवस्‍थायें औसत 6 से 8 फीसदी के बीच विकास दर हासिल कर पाएंगी. यूरोप की अर्थव्‍यवस्‍थाओं कीविकास दर तो तीन फीसदी से भी नीचे रहेगी. यह संक्रमण  ग्‍लोबलाइजेशन की रफ्तार को भी धीमा कर सकता क्‍यों कि श्रमिकों आपूर्ति सीमित होगी. प्रवासी श्रमिकों को रोजगार देना राजनीतिक रुप से मुफीद नहीं होगा. इसलिए दुनिया को देशों के जो सामान सेवायें आयात करते थे उनमें से कई मामलेां उन्‍हें अपने यहां नई क्षमतायें बनानी होंगी

 महंगाई की वापसी

सन 2000 के बाद यहां युवा और बुजर्ग आबादी का अनुपात बदल रहा है. आबादी का का ड‍िपेंडेंसी रेश‍ियो कमजोर हो रहा है यह इस वक्‍त अर्थव्‍यवस्‍था का सबसे प्रभावी फार्मूला है. यह अनुपात बताता है कि आबादी कार्यशील लोगों पर कितने बच्‍चे और बुजुर्ग निर्भर हैं.

किसी भी जनसंख्‍या में बच्‍चे और बुजुर्ग शुद्ध उपभोक्‍ता हैं. वह कार्यशील लोगों पर निर्भर हैं. यह आबादी उत्‍पादन करती है खपत करती है और बचत करती है. इसलिए इस अनुपात में गिरावट अर्थव्‍यवस्‍था के अचछी मानी जाती है. 1950 तक यह अनुपात संतुलित था. बाद के दशकों में इसमें बढोत्‍तरी हुई.  1990 के इसमें बढ़त हुई है. कार्यशील आबादी घट रही है जबकि उस पर निर्भर आबादी बढ़ रही है.

1990 के बाद  श्रम बाजार में औसत श्रमिकों की कार्यशील आयु स्‍थि‍र होने लगी थी. बाद मे वर्षों में इसमें तेज गिरावट आई. इसी के साथ सभी बडी अर्थव्‍यवस्‍थाओं में ड‍िपेंडेसी रेश‍ियो बढ़ने लगा

 आबादी का ड‍िपेंडेसी रेश‍ियो महंगाई के लिए सबसे जरुरी कारक है. 1870 से 2016 के बीच दुनिया के 22 प्रमुख देशों में महंगाई और जनसंख्‍या के रिश्‍तों पर अध्‍ययन बताता है कि कार्यशील आबादी कम होने से वेतन बढ़ने का दबाव बनता है. यद‍ि खपत करने वाली आबादी , उत्‍पादक आबादी से ज्‍यादा है तो मतलब है कि आबादी का एक  बड़ा हिस्‍सा  उतादन नहीं करेगा बल्‍क‍ि केवल उपभोग करेगा. इस उत्‍पादन के ल‍ि कम लोगों को ज्‍यादा वेतन देने होंगे जिसका असर उत्‍पादन लागत पर दिखता है. और इससे बढ़ती है महंगाई. आबादी में आयु का संतुलन बदलने के बाद खपत भी कम होती है जो उत्‍पादकों के कम बिक्री पर ज्‍यादा कीमत वसूलने का मौका देती है.

 जनसंख्‍या की चक्‍की धीमा पीसती है इसलिए सब कुछ तुरंत नहीं बदलेगा अलबत्‍ता लंबी अवध‍ि में कई बडे असर होने वाले हैं

-         महंगाई बढ़ने के साथ खपत में कमी और उपभोग में भी कमी क्‍योंकि बुढ़ाती आबादी की खपत कम होती है. इसका मतलब यह कि अब बल्‍ल‍ियों उछली विकास दर की जरुरत नहीं होगी क्‍यों कि मांग कम रहेगी

-         बुजर्ग आबादी अपनी पुरानी बचतों पर जियेगी नई बचतें नहीं होगी इसलिए  निवेश को कर्ज पर निर्भर रहना होगा. महंगाई के बीच यह पर‍िस्‍थ‍िति‍ ब्‍याज दरों को ऊंचा रख सकती है.

-         निवेश में कमी होने की संभावना कम है क्‍यों कि आबादी का संतुलन बदलने के साथ आवासों पर सबसे जयादा निवेश चाहिए. बुजुर्गों को रहने के लिए घर चाहिए. गुडहार्ट और प्रधान अपने अध्‍ययन बता रहे हैं कि पूरी दुनिया में हाउस‍िंग की मांग बढेगी अलबत्‍ता इसके लिए कर्ज भी जरुरत में भी इजाफा होगा

-         कर्ज इसल‍िए भी महंगा रह सकता है क्‍यों कि सरकारों को बुजुर्ग कल्‍याण पर खर्च बढ़ाना होगा. यह स्‍वास्‍थ्‍य पेंशन शहरी सुव‍िधाओं पर होगा. बीते करीब 40 सालों से सरकारों ने इस तरफ सोचा नहीं. अब बुजुर्ग आबादी सबसे बडी राजनीतिक मजबूरी बनती जाएगी.

-         सरकारों को पेंशन के पूरे ढांचे बदलने होगे. सेवानिवृत्‍त‍ि की आयु बढ़ाना जरुरी होगा क्‍यों कि जीवन प्रत्‍याशा बढ़ने से लोग 70 साल तक काम कर सकते हैं. यह पेंशन बजटों के संतुल‍ित करेगा

-          स्वास्थ्य सेवाओं को सड़कबिजलीदूरसंचार की तर्ज पर विकसित करना होगा ताकि कार्यशील आयु बढ़ाई जा सके और 65 की आयु वाले लोग 55 साल वालों के बराबर उत्पादक हो सकें.

-         मेकेंजी का मानना है कि स्वास्थ्य में नई तकनीकें लाकरबेहतर प्राथमि‍क उपचारसाफ पानी और समय पर इलाज देकर बडी आबादी की सेहत 40 फीसदी तक बेहतर की जा सकती है. स्वास्‍थ्य पर प्रति 100 डॉलर अतिरिक्त खर्च हों जीवन में प्रति वर्षएक स्वस्थ वर्ष बढाया जा सकता है. स्वास्थ्य सुविधायें संभाल कर, 2040 तक दुनिया के जीडीपी में 12 ट्रि‍ि‍लयन डॉलर जोडे जा सकते हैं जो ग्लोबल जीडीपी का 8 फीसदी होगा यानी कि करीब 0.4 फीसदी की सालाना बढ़ोत्तरी

-         विशेषज्ञ मान रहे हैं कि वेतन बढ़ने की संभावनाओं के बीच यह  बदलाव अगले कुछ दशकों में आय असमानता कम कर सकता है लेक‍िन यहां तस्‍वीर बहुत धुंधली है, वक्‍त ही बतायेगा कि क्‍या हुआ.

 

अर्थशास्‍त्र का सबसे लोहा लाट नियम किसी बैंक बजट या मुद्रा पर आधारित नहीं है. यह तो लोगों पर आधार‍ित है

आर्थ‍िक विकास = लोगों की संख्‍या में कमी बेशी+लोगों की उत्‍पादकता में बढ़ोत्‍तरी

 कोई भी अर्थव्‍यवस्‍था अर्थव्‍यवस्‍था लोगों की संख्‍या और उनकी उत्‍पादकता बढाकर ही आगे बढती है. यह फार्मूला मांग बचत और टैक्‍स का फार्मूला है

यही फार्मूला अब नई करवट ले रहा है

अगली सदी की दुनिया नई दुनिया होगी

 

 

Saturday, October 19, 2019

वक्त की करवट


 ‘‘भविष्य हमेशा जल्दी आ जाता है और वह भी गलत क्रम में यानी कि भविष्य उस तरह कभी नहीं आता जैसे हम चाहते हैं.’’

मशहूर फ्यूचरिस्ट यानी भविष्य विज्ञानी (भविष्य वक्ता नहींएल्विन टॉफलर ने यह बात उन सभी समाजों के लिए कही थी जो यह समझते हैं कि वक्त उनकी मुट्ठी में हैभारतीय समाज की राजनीति बदले या नहीं लेकिन भारत के लिए उसके सबसे बड़े संसाधन या अवसर गंवाने की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है.

भारत बुढ़ाते हुए समाज की तरफ यात्रा प्रारंभ कर चुका हैअगले दस साल में यानी 2030 से यह रफ्तार तेज हो जाएगी.

भारत की युवा आबादी अगले एक दशक में घटने लगेगीविभिन्न राज्यों में इस संक्रमण की गति अलग-अलग होगी लेकिन इस फायदे के दिन अब गिने-चुने रह गए हैंसनद रहे कि पिछले दो-तीन दशकों में भारत की तरक्की का आधार यही ताकत रही हैइसी ने भारत को युवा कामगार और खपत करने वाला वर्ग दिया है.

2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण ने बताया है किः
  •       भारत की जनसंख्या विकास दर घटकर 1.3 फीसद (2011-16) पर आ चुकी है जो सत्तर-अस्सी के दशकों में 2.5 फीसद थी  
  •    बुढ़ाती जनसंख्या के पहले बड़े लक्षण दक्षिण के राज्योंहिमाचल प्रदेशपंजाबपश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में दिखने लगे हैंअगर बाहर से लोग वहां नहीं बसे तो 2030 के बाद तमिलनाडु में जनसंख्या वृद्धि दर घटने लगेगीआंध्र प्रदेश में यह शून्य के करीब होगीअगले दो दशकों में उत्तर प्रदेशराजस्थानमध्य प्रदेश और बिहार में आबादी बढ़ने की दर आधी रह जाएगी
  •    टोटल फर्टिलिटी रेट यानी प्रजनन दर में तेज गिरावट के कारण भारत में 0-19 साल के आयु वर्ग की आबादी सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई हैदेश में प्रजनन दर अगले एक दशक में घटकर 1 फीसद और 2031-41 के बीच आधा फीसद रह जाएगीजो आज यूरोप में जर्मनी और फ्रांस की जनसंख्या दर के लगभग बराबर होगी
  •  2041 तक 0-19 आयु वर्ग के लोग कुल आबादी में केवल 25 फीसद (2011 में 41 फीसदीरह जाएंगेतब तक भारत की युवा आबादी का अनुपात अपने चरम पर पहुंच चुका होगा क्योंकि कार्यशील आयु (20 से 59 वर्षवाले लोग आबादी का करीब 60 फीसद होंगे
  •    आर्थिक समीक्षा बताती है कि 2021 से 2031 के बीच भारत की कामगार आबादी हर साल 97 लाख लोगों की दर से बढ़ेगी जबकि अगले एक दशक में यह हर साल 42 लाख सालाना की दर से कम होने लगेगी 

युवा आबादी की उपलब्धि खत्म होने को बेरोजगारी के ताजा आंकड़ों की रोशनी में पढ़ा जाना चाहिएएनएसएसओ के चर्चित सर्वेक्षण (2018 में 6.1 फीसद की दर से बढ़ती बेकारीमें चौंकाने वाले कई तथ्य हैं:
  • ·       शहरों में बेकारी दर राष्ट्रीय औसत से ज्यादा यानी 7.8 फीसद हैविसंगति यह कि शहरों में ही रोजगार बनने की उम्मीद है
  •     2011 से 2018 के बीच खेती में स्वरोजगार पाने वाले परिवारों की संख्या बढ़ गईलक्ष्य यह था कि शहरों और उद्योगों की मदद से खेती के छोटे से आधार पर रोजगार देने का बोझ कम होगायानी कि शहरों से गांवों की तरफ पलायन हुआ है बावजूद इसके कि गांवों में मजदूरी की दर पिछले तीन साल में तेजी से गिरी है
  •     कामगारों में अशिक्षितों और अल्पशिक्षितों (प्राथमिक से कमकी संख्या खासी तेजी से घट रही हैयानी कि रोजगार बाजार में पढ़े-लिखे कामगार बढ़ रहे हैं जिन्हें बेहतर मौकों की तलाश है
  •  लवीश भंडारी और अमरेश दुबे का एक अध्ययन बताता है कि 2004 से 2018 के बीच गैर अनुबंध रोजगारों का हिस्सा 18.1 फीसद से 31.8 फीसद हो गयायानी कि रोजगार असुरक्षा तेजी से बढ़ी हैलगभग 68.4 फीसद कामगार अभी असंगठित क्षेत्र में हैं
  •      सबसे ज्यादा चिंता इस बात पर होनी चाहिए कि देश में करीब लगभग आधे (40-45 फीसदकामगारों की मासिक पगार 10 से 12,000 रुपए के बीच हैउनके पास भविष्य की सुरक्षा के लिए कुछ नहीं है

भारतीय जनसांख्यिकी में बुढ़ापे की शुरुआत ठीक उस समय हो रही है जब हम एक ढांचागत मंदी की चपेट में हैंबेरोजगारों की बड़ी फौज बाजार में खड़ी हैभारत के पास अपने अधिकांश बुजर्गों के लिए वित्तीय सुरक्षा (पेंशनतो दूरसामान्य चिकित्सा सुविधाएं भी नहीं हैं.

सात फीसद की विकास दर के बावजूद रिकॉर्ड बेकारी ने भारत की बचतों को प्रभावित किया हैदेश की बचत दर जीडीपी के अनुपात में 20 साल के न्यूनतम स्तर (20 फीसदपर हैयानी भारत की बड़ी आबादी इससे पहले कि कमा या बचा पातीउसे बुढ़ापा घेर लेगा

भारत बहुत कम समय में बहुत बड़े बदलाव (टॉफलर का ‘फ्यूचर शॉक’) की दहलीज पर पहुंच गया हैकुछ राज्यों के पास दस साल भी नहीं बचे हैंहमें बहुत तेज ग्रोथ चाहिए अन्यथा दो दशक में भारत निम्न आय वाली आबादी से बुजुर्ग आबादी वाला देश बन जाएगा और इस आबादी की जिंदगी बहुत मुश्किल होने वाली है.