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Friday, March 27, 2020

कौन उतारे पार !



मानव इतिहास में ऐसे मौके कम मिलते हैं जब एक बड़ा संकट, आने वाले दूसरे संकट के प्रशिक्षण सत्र में बदल गया हो. कोरोना वायरस के पंजे में थरथराती दुनिया सीख रही है कि बदतर को रोकने की कोशिश ही फिलहाल सबसे सफल संकट प्रबंधन है.

इस वायरस से तीन माह की जंग बाद तीन बातें स्पष्ट हो गई हैं. एकवायरस अमर नहीं है. इसका असर खत्म होगा. दोइस वायरस से न सब इटली हो जाएंगे और न ही सिंगापुर (न एक मौत न लॉकडाउन). सब अपने तरीके से भुगतेंगे. तीनवायरस से जिंदगी बचाने की कोशिशें लोगों की जीविका और कारोबारों पर इस शताब्दी का सबसे बड़ा संकट बनेंगी.

कोरोना से लड़ाई अब दोहरी है. ज्यादातर देश सेहत और अर्थव्यवस्था, दोनों का विनाश सीमित करने में जुटे हैं. भारत में संक्रमण रोकने की कवायद जोर पकड़ रही है लेकिन आर्थ‍िक राहत में भारत पिछड़ गया है सनद रहे कि 2008 में लीमन बैंक के डूबने के पंद्रह दिन के भीतर पुनरोद्धार  पैकेज (सीआरआर और उत्पाद शुल्क में कमी) आ गया था. लेकिन बेहद तंग आर्थ‍िक विकल्पों के बीच सहायता जारी करने में देरी हुई. सरकार और रिजर्व बैंक ने इस सप्ताह जो दो पैकेज घोषि‍त किये हैं जिनका आकार अन्य देशों और भारतीय अर्थव्यवस्था को होने नुकसान की तुलना में इस बहुत छोटा है, और इनके असर भी सीमित रहने वाले हैं.

भारत के कोरोना राहत पैकेंजों का जमीनी असर समझने से पहले यह जानना जरूरी है कि दुनिया के अन्य देश और केंद्रीय बैंक कोरोना का आर्थिक कोहराम से निबटने के लिए क्या कर रहे हैं.  

अमेरिका को मंदी से बचाने के लिए डोनाल्ड ट्रंप, अपनी संसद दो ट्रिलियन डॉलर के पैकेज पर मना रहे हैं. अमेरीकियों को एक मुश्त 3,000 डॉलर (करीब 2.25 लाख रुपए) दिए जाने का प्रस्ताव है. केंद्रीय बैंक (फेडरल रिजर्व) ब्याज दरें शून्य करते हुए बाजार में सस्ती पूंजी (4 ट्रिलियन डॉलर तक छोड़ने की तैयारी) का पाइप खोल दिया है.

ब्रिटेन की सरकार टैक्स रियायतों, कारोबारों को सस्ता कर्ज, तरह-तरह के अनुदान सहित 400 अरब डॉलर का पैकेज लाई है जो देश के जीडीपी के 15 फीसद बराबर हैं. बैंक ऑफ इंग्लैंड ब्याज दरें घटाकर बाजार में पूंजी झोंक रहा है. कोरोना से बुरी तरह तबाह इटली की सरकार ने 28 अरब डॉलर का पैकेज घोषित किया है, जिसमें विमान सेवा एलिटालिया का राष्ट्रीयकरण शामिल है.

इमैनुअल मैकरां के फ्रांस का कोरोना राहत पैकेज करीब 50 अरब डॉलर (जीडीपी का 2 फीसद) का है. स्पेन का 220 अरब डॉलर, स्वीडन 30 अरब डॉलर, ऑस्ट्रेलिया 66 अरब डॉलर और न्यूजीलैंड का पैकेज 12 अरब डॉलर (जीडीपी का 4 फीसद) का है. सिंगापुर अपनी 56 लाख की आबादी के लिए 60 अरब डॉलर का पैकेज लाया है.

अन्य देशों के कोरोना राहत पैकेजों के मोटे तौर पर चार हिस्से हैं.

एकरोजगार या धंधा गंवाने वालों को सीधी सहायता
दोडूबते कारोबारों की सीधी मदद 
तीनसस्ता कर्ज 
और चारचिकित्सा क्षेत्र में निवेश.

भारत सरकार का करीब 1.7 लाख करोड़ रुपये का पैकेज कोरोना प्रभावितों को सांकेतिक मदद पर केंद्रित है. जिसमें सस्ता अनाज प्रमुख है. जिसके लिए पर्याप्त भंडार है. रबी की की खरीद से नया अनाज आ जाएगा. किसान सहायता निधि‍ और अन्रय नकद भुगतान स्कीमों की किश्तें जल्दी जारी होंगी. इसके लिए बजट में आवंटन हो चुका है. उज्जवला के तहत मुफ्त एलपीजी सिलेंडर के लिए तेल कंपनियों को सब्स‍िडी भुगतान रोका जाएगा.

भारत में भविष्य निधि‍ पीएफ का संग्रह करीब 11 लाख करोड़ रुपये का है. इससे एडवांस लेने की छूट और छोटी कंपनियों में नियोक्ताओं के अंशदान को तीन माह के टालने के लिए इस नि‍धि‍ का भरपूर इस्तेमाल होगा.

रि‍जर्व बैंक
सरकार के मुकाबले रिजर्व बैंक ने ज्यादा हिम्मत दिखाई है. सभी बैंकों से सभी कर्जों (हाउसिंग, कार, क्रेडिट कार्ड सहित) पर तीन माह तक कि‍श्तों का भुगतान टालने को कहा है. ब्याज दरों में अभूतपूर्व कमी की है और वित्तीय तंत्र में करीब 3.74 लाख करोड़ की पूंजी बढ़ाई है ताकि कर्ज की कमी न रहे.

असर
-    अन्य देशों की तरह भारत सरकार कोरोना के मारे मजदूरों, छोटे कारोबारियों, नौकरियां गंवाने वालों को सरकार कोई नई सीधी मदद नहीं दे सकी है. भवि‍ष्य निधि‍ से मिल रही रियायतों के लाभ केवल 15-16 फीसदी प्रतिष्ठानों को मिलेंगे.

-    रिकार्ड घाटे, राजस्व में कमी के कारण भारत का राहत पैकेज इसके जीडीपी की तुलना में केवल 0.8 फीसदी है जबकि अन्य देश अपने जीडीपी का 4 से 11% के बराबर पैकेज लाए हैं.

-    रिजर्व बैंक ब्याज दर कटौती के बाद बैंक दुविधा में हैं. डूबती अर्थव्यवस्था में कर्ज की मांग तो आने से रही लेकिन ब्याज दर कटने ने जमा रखने वाला और बिदक जाएंगे. कर्ज के कि‍श्तें टालने से बैंक बुरी तरह कमजोर हो जाएंगे. अकेले स्टेट बैंक के करीब 60000 करोड़ रुपये फंस जाएंगे. बाजार में जो अति‍रिक्त पैसा दिया गया है उसका ज्यादातर इस्तेमाल सरकारें कर्ज लेने में करेंगी.  

-    अमेरिकी डॉलर दुनिया की केंद्रीय करेंसी है इसलिए वह डॉलर छाप कर बडे पैकेज ला सकता है. भारत के पास यह रुपया छापकर एसा करने का विकल्प नहीं है क्यों कि इससे महंगाई बढ़ती है. बडा पैकेज बडे घाटे की वजह बनेगा जो रुपये की कमजोर करेगा. इसलिए इन छोटे व सीमित पैकेजों के डॉलर के मुकाबले रुपया संतुलित होता देखा गया है.

सरकार ओर रिजर्व बैंक को इस बात का बखूबी अहसास है कि यह मंदी नगरीय अर्थव्यवस्थाओं, छोटे कारोबारों, सेवा क्षेत्र की है. जहां से बेकारी का विस्फोट होने वाला है. पहले से घि‍सटता मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र उत्पादन रुकने के बाद धराशायी हो जाएगा. विमानन, होटल, आटोमोबाइल, भवन निर्माण, बुनियादी ढांचा आदि क्षेत्रों में कंपनियां दीवालिया होंगी और बकाया कर्ज बढ़ेगा.

यही वजह है कि रिजर्व बैंक ने इतिहास में पहली किसी मौद्रिक नीति में देश को यह नहीं बताया कि इस साल भारत की विकास दर कितनी रहने वाली है. रिजर्व बैंक ने संकेतों में गहरी मंदी के लिए तैयार रहने को कहा है. अन्य एजेंसियों से जो आकलन मिल रहे हैं उनके मुताबिक इस इस साल (2020-21) में भारत की विकास दर 2 से 2.5% फीसदी रहने वाली है जो 1991 के बाद न्यूनतम होगी. अचरज नहीं अप्रैल-जून की तिमाही विकास दर नकारात्मक हो जाए जो एक अभूपूर्व घटना होगी

सनद रहे कि एक छोटी-सी मंदी यानी तीन साल में विकास दर में 2.5 % गिरावट, करीब एक दर्जन बड़ी कंपनियों, असंख्य छोटे उद्योगों और चौथे सबसे बड़े निजी बैंक तो ले डूबी है, कई सरकारी बैंकों के विलय की नौबत है. फिर यह तो इस सदी का सबसे बड़ा आर्थिक संकट है.

इस समय आशंकित होने में कोई हर्ज नहीं. डर सतर्क करता है. यह वक्त सतर्क समझदारी और उम्मीद भरी चेतना के साथ जीने का है.



Saturday, March 21, 2020

गाफिल गोता खाएगा


सबसे अक्लमंद वही है दुनिया में जो यह जानता है कि वह बहुत दूर तक नहीं देख सकताजब तक जिंदगी हमारे हिसाब से चलती हैहम अनिश्चितता की मौजूदगी को ही नकार देते हैंताजा इतिहास में पहली बार विश्व एक साथ दो ब्लैक स्वान (अप्रत्याशि घटनाक्रमसे मुखाति हैउस वक्त जब अर्थव्यवस्थाओं की हालत पहले से ढलान पर है. 

कोरोना वायरस के खौफ से दुनिया के तमाम देश पूरी तरह बंद हो चुके हैं और रूस से नाराज सऊदी अरब ने तेल उत्पादन बढ़ाकर बाजार को गहरी मंदी में धकेल दिया हैकच्चे तेल की कीमत 30 डॉलर प्रति बैरल तक टूटने से कई अर्थव्यवस्थाओं में आपातकाल  गया हैकोरोना दुनिया को रोक रहा है और तेल मंदी कमर तोड़ रही हैकोरोना के असर तो दिख रहे हैंतेल मंदी के प्रभाव का अंदाजा अभी लगाया जाना है.

यह दोहरी आपदा 2008 से संकट से बिल्कुल अलग हैवह संकट वित्तीय ढांचे से निकला थाकर्ज के बोझ के सामने बैंक फटने लगे थेग्रीस और स्पेन जैसे देश कर्ज चुकाने में चूके (सॉवरिन डिफॉल्टहुए थेवित्तीय तंत्र को तब बड़ा नुक्सान हुआ लेकिन बाजारों की ताजा गिरावट तब के मुकाबले कम है.

कोरोना और तेल मंदी के दौर में दुनिया भर के बैंकों के पास पर्याप्त पूंजी हैब्याज दरें न्यूनतम स्तर पर हैं और फंसे हुए कर्जों को लेकर बैंक अंधेरे में नहीं हैं.

वायरल फ्लू से परिचित दुनिया को पता है कि छह माह में कोरोना का असर तो कम हो ही जाएगाइसके बावजूद यह संकट 2008-09 से बड़ा क्यों लग रहा है?

कई दशकों में पहली बार कोई संकट सीधे वास्तविक अर्थव्यवस्था यानी खपतनिवेशरोजगार और सरकारों के राजस्व की जमीन से उभर रहा हैवित्तीय तंत्र (बैंकवित्तीय संस्थाएंशेयर बाजारकर्जमुद्राएंवास्तविक अर्थव्यवस्था के नक्शे कदम नापते हैं. 2008 में वित्तीय संकट ने अर्थव्यवस्था को पूंजी की आपूर्ति रोक दी थीजिसे बहाल कर हालात सुधार लिए गए.

इस वक्त भारत को छोड़करदुनिया की बैंकिंग बेहतर हालत में हैइसलिए हकीमों (केंद्रीय बैंकोंने सस्ते कर्ज (अमेरिका में ब्याज दरें शून्यका नल खोल दिया हैफिर भी मंदी का डर है क्योंकि

 जीडीपी टूटने के साथ उठा यह संकट बैंकों तक तैर जाएगा. 2008 के बाद ग्लोबल कॉर्पोरेट कर्ज 75 ट्रिलियन डॉलर पर पहुंच गया हैकारोबार थमने से नए कर्ज संकट का खतरा है.

 शुरुआती अनुमानों (ब्लूमबर्गके मुताबिकोरोना से दुनिया की अर्थव्यवस्था को 2.7 ट्रिलियन डॉलर का नुक्सान हो सकता हैजो 2008 के नुक्सान से ज्यादा हैताजा संकटों के असर से यह मंदी के निशान (2.5 फीसदसे नीचे 1.5 से 2 फीसद (गोल्डमैन सैक्सतक जा सकती है.

 फ्रांस और अमेरिका को टैक्स में रियायत देनी पड़ रही हैअन्य देशों में भी ऐसी मांग उठेगीऐसे में सरकारों के खजाने डूबेंगेउन पर कर्ज बढे़गा.

 2008 के बरअक्स यह संकट कमजोर अर्थव्यवस्थाओं को ज्यादा मारेगातेल की कीमतों में गिरावट से पश्चिम एशिया की छोटी अर्थव्यवस्थाएं टूट सकती हैंमंदी के पंजे सबसे पहले यूरो जोन को पकडेंगेचीन को वापसी में एक साल लगेगाअमेरिका एक छोटी मंदी (तेल की कीमतें टूटने के कारणझेलेगा.

ब्लैक स्वान वाले नसीम तालेब सुझाते हैं कि घोर अनिश्चितता के बीच फैसला लेते वक्त हमें नकारात्मक प्रभावों पर ध्यान देना चाहिएजिन्हें हम जान सकते हैं  कि संभावनाओं पर जिन्हें समझना हमारे बस में नहीं हैभारत को अब वास्तविकता से नजरें मिलानी चाहिए.

 खुदरा व्यापार के लिए नोटबंदी और जीएसटी के बाद कोरोना तीसरा भयानक झटका है जो तत्काल नकदी का संकट ला सकता है.

 बीमार अर्थव्यवस्था अब तक केवल सेवा क्षेत्र के कंधों पर थीकारोबारयात्राएंबाजार बंद होने से यह इंजन (विमाननहोटलपरिवहनफूडसॉफ्टवेयरभी थम रहा है.

 बेकारी का बड़ा नया दौर ‌सिर पर खड़ा हैस्टार्ट अप और ईकॉमर्स कंपनियों के लिए नई पूंजी लाना मुश्कि होगामांग और टूटने के बाद नए निवेश की हिम्मत बैठ जाएगी.

 केंद्र और राज्य सरकारों के राजस्व टूट चुके हैंउद्योगों को अगर रियायत देनी पड़ी तो कर्ज बढ़ने से राजकोषीय संकट गहराएगा.

 875 कंपनियों के अध्ययन के आधार पर क्रिसिल ने कर्ज संकट को लेकर अलार्म बजा दिया हैकर्ज वसूली रुकेगीबकाया कर्ज के भुगतान टालने होंगे.

 एक छोटी मंदी ने भारत के दूसरे सबसे बड़े निजी बैंक को डुबा दिया और कई सरकारी बैंकों को विलय पर मजबूर कर दिया हैढहते हुए कई निजी बैंक यह फ्लू नहीं झेल पाएंगे.

कोरोना और तेल मंदी की अंधी गली से निकलने के बाद दुनिया लगभग बदल चुकी होगीसरकार अगर सच में संवेदनशील है तो उसे अब कोरोना के बाद की तैयारी शुरू करनी चाहिएअनिश्चित वक्त में गुलाबी उम्मीदें उड़ाने से पहले नुक्सानों का हिसाब सीखना जरूरी है.